झारखंड के कांग्रेस-झामुमो से जूड़े नेताओं-विधायकों की पत्नियां, बेटे-बेटियां, दामाद और उनके लटके - झटके दुखी है। जब से भाजपा-झामुमो-आजसू की खिचड़ी सरकार झारखंड में गिरी, तब से इनके हाल बेहाल हैं, क्योंकि इनके नेता बार-बार कहा करते थे, कि झामुमो आज भाजपा से नाता तोड़े और लीजिये कल झामुमो और कांग्रेस की सरकार बन कर तैयार, पर ये क्या राष्ट्रपति शासन के छह महीने बीतने को आये पर अभी तक झामुमो-कांग्रेस की राज्य में सरकार नहीं बनी। बेचारे हेमंत के हाड़ में हल्दी नहीं लगी, बेचारे मुख्यमंत्री नहीं बने, क्योंकि उनकी दिली तमन्ना हैं कि एक - दो महीने के लिए ही सही कम से कम मुख्यमंत्री की सूची में उऩका नाम तो अब लिख ही दिया जाना चाहिए, पर सफलता नही मिल रही, लेकिन कांग्रेस के पूर्व झारखंड प्रभारी शकील अहमद ने उनके अरमानों पर बड़ा ध्यान दिया और उनकी बाते अपने अन्नदाता राहुल तक पहुंचा दी, साथ ही ये भी बता दिया कि गर कांग्रेस ने हेमंत के हाड़ में हल्दी लगवा दी तो देर सबेर इसका फायदा कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में अवश्य मिलेगा। जैसे ही शकील के सरकार बनाने की हवा देने के बाद कांग्रेस - झामुमो के नेताओँ व विधायकों को मिली, बेचारे खुशी से पगला गये। इनकी पत्नियां, बेटे-बेटियां-दामाद खुशी से पागल हो गये। फिर सरकार बनेगी, दोनों हाथों में लड्डू होंगे, जैसे पूर्व की सरकार में शामिल मंत्रियों, विधायकों की पत्नियां, बेटे-बेटियां और दामाद विदेश यात्रा का आनन्द लेते थे, अब वे भी 18 महीनों में सारा कसर निकाल लेंगे। उन्होंने कोई पाप किया हैं क्या। उन्हें भी विदेश यात्रा और दुनिया का सारा सुख लेने का अधिकार हैं, जनता ने उन्हें मौका दिया हैं, इसका फायदा क्यों न उठाये। और लीजिये इन्हीं सारी तिकड़मों के लिए सरकार बनाने का दौर चलना शुरु हो गया हैं। हां एक बात और हम तो ये लिखना भी भूल रहे हैं, पर अब याद आ गया हैं, लिख देता हूं। यहां का मीडिया जगत भी चाहता हैं कि राष्ट्रपति शासन के बजाय जनता के प्रतिनिधियों का शासन हो, क्योंकि वो जानता हैं कि यहां के जनप्रतिनिधियों को अपनी अंगूलियों पर नचाकर, यहां के प्रशासनिक अधिकारियों से अपने हित में वो काम कराया जा सकता हैं, जो फिलहाल राष्ट्रपति शासन में होता नहीं दीखता, चाहे वो विज्ञापन से संबंधित ही मामला क्यूं न हो। राष्ट्रपति शासन में विज्ञापन मीडिया को उतने नहीं मिलते, जितना की अर्जुन मुंडा के शासनकाल मे अथवा कांग्रेस -झामुमो के शासनकाल में संभव है, और गर किसी कारण से विज्ञापन नहीं मिला तो फिर अपना ब्लैकमेलिंग का धंधा हैं ही। इसलिए यहां का मीडिया जगत भी दिलोजां से चाहता हैं कि यहां सरकार बने, चाहे वो पांच दिन के लिए ही क्यूं न हो।
इस सरकार बनाने में, जनहित और राज्यहित की बात खूब हो रही हैं, पर जरा सोचिये ये जनहित और राज्यहित की बात करनेवालों का चरित्र क्या हैं। सबसे पहले बात कांग्रेस की - यहां काँग्रेस के नेता राजेन्द्र प्रसाद सिंह हैं जो अर्जुन मुंडा के शासन काल में नेता प्रतिपक्ष थे। इनके गुट ने बी के हरिप्रसाद, प्रभारी, झारखंड कांग्रेस के रांची आगमन पर क्या गुंडागर्दी दिखायी ये बताने की जरुरत नहीं। इन्हीं के बेटे हैं - अनूप सिंह जो प्रदेश में एक बड़े पद पर हैं और अपने ही विधायक मन्नान मल्लिक को वो सबक सिखाया कि पूछिये मत। आज भी रांची कोतवाली थाना में इनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हैं, जरा सोचिये ऐसे ऐसे लोग सत्ता में होंगे तो राज्य और जनता का कितना हित होगा। अब जरा झामुमो की बात कर ले। इनके सुप्रीमो है- दिशोम गुरु शिबू सोरेन। ये हमेशा गर्त में जा रहे कांग्रेस को संभालते हैं। पहली बार रिश्वत लेकर नरसिंहा राव की सरकार बचानेवाले शिबू सोरेन की महिमा निराली हैं। इन्हीं की बहू सीता सोरेन हैं, जो सीबीआई के शिकंजे में हैं, जिन्होंने वोट बेचने की अपनी पार्टी की परंपरा का खूब निर्वहण किया और उन पैसों से क्या किया। झारखंड की जनता को मालूम हैं। ऐसे तो इनके सारे विधायक वोट बेचने की परंपरा में पीएचडी हासिल कर ली हैं। इसी पार्टी की कृपा से कई राज्यसभा के सांसद बन गये और कई झारखंड को चारागाह समझ कर यदा कदा झारखंड का परिभ्रमण करते रहते हैं।
सवाल उठता हैं कि जिस प्रांत के नेताओं का चरित्र इस प्रकार का हो। वहां सरकार बने अथवा न बने क्या फर्क पड़ता हैं। आखिर जनहित और राजहित में सरकार बनाने की बात करनेवाले ये जनता को इतना बेवकूफ क्यों समझते हैं, कि जैसे जनता जानती ही नहीं। अरे जनता यहां की सब जानती हैं तभी तो ऐसे लोगों को अपना नेता चूनती हैं ताकि वो विधानसभा पहुंचकर उनकी छाती पर मूंग दल सकें, और इधर कई महीनों से जनता की छाती पर मूंग नहीं दली गयी, इससे जनता भी परेशान हैं। भला एक व्यक्ति को जनता की छाती पर मूंग दलने का अधिकार जनता ने तो नहीं दिया, इसलिए यहां के सभी विधायकों और मंत्रियों को अधिकार हैं कि वे झारखंड की जनता के छाती पर मूंग दलकर, अपनी पत्नियों, बेटे-बेटियों और दामाद-बहूंओं के लिए सात पुश्तों तक पूंजी जमा कर लें, ताकि इनके मरने के बाद, इनकी आत्मा को कोई मलाल न हो, कि वे झारखंड में जन्म लिये पर झारखंड को मुहम्मद गोरी और गजनी की तरह लूट न सके।