मोदी के आइल बहार हो,
सैया लाव कमलवा,
महंगाई बढ़ावे सरकार हो,
सैया खिलाव कमलवा.................
ये लोकगीत के बोल रांची में खूब सुनने को मिल रहे हैं। इन लोकगीतों में महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर वर्तमान सरकार को कोसा जा रहा हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी में आस्था व्यक्त भी की जा रही हैं, लोक कलाकारों को लगता हैं कि सरकार बदलने से उन्हें राहत मिलेगी। जरा देखिये गीत के दूसरे बोल...........
मोदी के खिलाफ मत बोल, मोरे सैया,
देशवा के नाक बचइह मोरे सैया,
अँगना में कमल खिलइह मोरे सैया.........
इस लोक गीत में साफ स्पष्ट हैं कि एक महिला वर्तमान सरकार के करतूतो से खफा हैं और महिला अपने पति से साफ कहती हैं कि गर आपने मोदी के खिलाफ उसके सामने कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा, वो ये भी कहती हैं कि देश का सम्मान अब बचाने का वक्त हैं, इसलिए इस बार किसे वोट देना हैं, आप समझ लीजिये।
लोकगीत हमेशा से धारदार हथियार रहे हैं, चुनावी जंग में। ज्यादातर लोकगीत पार्टी और दलों के लोग बनवाते और कैसेट - सीडी तैयार कर चलवाते हैं, पर यहां स्थिति उलट हैं। यहां किसी दल ने इन गीतों को तैयार नहीं किया, बल्कि आम लोगों ने गीत बनायी और शुरु हो गये - ढोल-हारमोनियम-करताल और झाल के सहारे, अपने मन को खुश करने। न तो इन्हें किसी दल से मतलब हैं और न किसी से राग-द्वेष, मन में आया तो शुरु हो गये। इधर इनकी जूबां पर नरेन्द्र मोदी कुछ ज्यादा ही आ बसे हैं। इनका साफ कहना हैं कि भाई हमलोग रोज कमानेवाले और खानेवाले हैं. महंगाई ने उनका जीना दूभर कर दिया। सरकार के पास हम जा नहीं सकते और सरकार उनकी बात नहीं सुन सकती, इसलिए हमलोग शुरु हो गये - अपने लोकगीतों द्वारा अपने मन की बात कहने.............। कुछ आस बंधी हैं, नरेन्द्र मोदी से, लगता हैं कुछ ये करेंगे, पर ये भी गर जीना दूभर करेगे तो देखेंगे। लेकिन अभी तो मोदी ही मोदी हैं.................
टीवी पे मोदी,