60 दिन बीत गये पर जनाब को माहौल बनाने से फुर्सत नहीं
किसी भी व्यक्ति के लिए उसके शुरुआती दिन काफी मायने रखते हैं, इसी से सरकार की रुपरेखा और उसके काम करने के ढंग का पता चल जाता हैं, पर दो महीने बीत चुके, अभी तक ये पता नहीं चल पाया कि सरकार के मंसूबे क्या हैं, उसकी प्राथमिकता क्या हैं.........शुरुआती दिनों में मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों से वार्ता के दौरान ये बाते सुनने को मिली कि अभी सरकार विभागीय अधिकारियों से राय – मशविरा कर रही हैं, राय मशविरा होने के बाद राज्य के विकास के लिए एक रोडमैप बनाया जायेगा, और फिर राज्य के विकास में तेजी देखने को मिलेगा, पर किसी ने ये नहीं बताया कि वो रोडमैप कब तक बन कर तैयार हो जायेगा........फिलहाल हम भी आम जनता की तरह उस रोडमैप की इंतजारी में हैं............हालांकि कई अखबारों पर ध्यान दें तो उन अखबारों के पन्नों को उलटने पर सरकार काफी हरकतों में दीख रही हैं, एक्शन में भी दिख रही हैं पर आम जनता को कहीं से उस एक्शन की धार दिखाई नहीं दे रही हैं..............और जो दिखाई दे रही हैं, वो हमेशा से दिखाई देती रही हैं, कुछ नयापन नहीं दिख रहा.......................। नयापन दिखेगा भी कैसे, क्योंकि सरकार ने अभी तक नयापन दिखाई नहीं, वहीं पुरानी सरकारों की मुखिया की तरह चल दिये कंबल बांटने.....यानी कंबल लेनेवाली वहीं, देनेवाले वहीं, और इस लेनेदेने के चक्कर में कंबल का कमीशन खानेवाले भी वहीं........
सरकार ने भरोसा दिलाया था कि राज्य में गवर्नेंस पहली प्राथमिकता होगी, पर आम जनता से पूछे तो उन्हें कहीं गवर्नेंस की छाप नहीं दिखती.............
राजधानी रांची में वहीं सड़क जाम की स्थिति, वहीं मैन्यूल तरीके से चलता यातायात का पहिया, वहीं बिना हैलमेट के चलते दूपहिये, वहीं जहां-तहां लगे टेम्पू और टैक्सियों का जमावड़ा, बड़े-बड़े अधिकारियों और मंत्रियों की लाल-पीली बत्तियों वाली चारपहियों का जहां-तहां रुकना और जाम लगाना..............
स्वास्थ्य विभाग से जूड़ी अस्पतालों में वहीं स्थिति यानी डाक्टर हैं तो दवा नहीं, दवा नहीं तो डाक्टर नहीं, खानाबदोश वाली स्थिति...........
और पानी कहीं इतना की सड़कें धूल जाये और कहीं पानी इतना भी नहीं कि प्यास बूझ सकें, ये नमूने हैं, झारखंड की गवर्नेंस की, आखिर कब सुधरेगी यहां की स्थिति, कब अमल में आयेगा वो सब, जिसकी जरुरत आम जनता को हैं................
हमारे मुहल्ले के कई भाजपाई नेताओं व कार्यकर्ताओं के चेहरे कल तक खिले हुए थे, पर आज कुछ दिनों से गाल पचके और चेहरे मुरझाये हुए हैं, क्योंकि कल तक भाजपा कार्यकर्ताओं की सुध लेनेवाले मुख्यमंत्री ने उनकी भी क्लास ले ली हैं...कुछ बयान भाजपा कार्यकर्ताओं को सुहा नहीं रहे, ऐसे में कल कार्यकर्ता इनसे दूरियां बना लें तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी....यानी स्थिति वहीं जैसा पहले की, मुख्यमंत्री जायेंगे कार्यक्रम में, पर अधिकारी होंगे उनके नुमांइदे होंगे, बस नहीं होगी तो आम जनता और उनके कार्यकर्ता, जिसकी पीठ पर चढ़कर, जनाब आज शहंशाह बने हैं।
आम जनता के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात, रोजगार, पेयजल और बिजली, ये ज्यादा मायने रखती हैं, पर इन्हें ठीक करने के लिए हमें नहीं लगता कि ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत हैं, बस उसे दिशा देने और प्रशासनिक अधिकारियों को टाइट करने की जरुरत हैं पर जिस प्रकार से काम चल रहे हैं, उससे नहीं लगता कि सरकार आम जनता को फिलहाल इन परिक्षेत्रों में राहत दिलाने को उत्सुक हैं, क्योंकि इनके मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों को नागरिक अभिनन्दन और अन्य व्यक्तिगत कार्यों से फूर्सत नहीं मिल पा रही..........
इधर दो महीने में खुशी का समाचार ये हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास मुख्यमंत्री आवास पहुंच चुके हैं, तो आशा की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री आवास में पहुंचते ही, कुछ नई चीजे और काम की झलक जनता को देखने को मिलेगी, क्योंकि आशा पर ही जनता टिकी हैं.........हालांकि जिस प्रकार से पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती और मुख्यमंत्री रघुवर दास के बीच एटीआई में तू तू – मे मे हुई और इस तू तू मे मे के दौरान सीएम रघुवर दास ने सजल चक्रवर्ती की मुख्य सचिव पद से छुट्टी करते हुए, उन्हें तीन दिनों के भीतर कारण बताओ नोटिस जारी किया और उनकी जगह पर राजीव गौवा को बिठा दिया, उससे नहीं लगता कि प्रशासनिक अधिकारियों और नई सरकार के बीच बेहतर तालमेल की स्थिति उत्पन्न होगी, क्योंकि उधर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव पद पर बिहार के श्रम सचिव संजय कुमार को बुला लिया गया, जिसे लेकर राज्य की प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कड़ा प्रतिवाद किया हैं, झामुमो ने तो इस पर कड़ी प्रतिक्रिया भी दी, वो भी ये कहकर की सरकार को लगता हैं कि राज्य के अधिकारियों पर भरोसा नहीं, इसलिए वे झारखंड के प्रशासनिक अधिकारियों का मनोबल तोड़ने और बाहर के अधिकारियों को बुलाकर उनकी आवभगत और झारखंड को अपने हिसाब से चलाने की सोच रहे हैं, जो गलत हैं। ऐसे आम तौर पर ये सीएम का निजी मामला हैं, पर इतना तो तय हैं कि आखिर कितने अधिकारी बाहर से बुलाये जायेंगे और कितने अधिकारी जो झारखंड में हैं, उन पर अविश्वास का तलवार लटकेगा, ऐसी स्थिति रही तो कमोबेश, आज नहीं तो कल परिस्थितियां विकट होगी और सरकार तथा अधिकारियों में मन मुटाव होना स्वभाविक हैं, ऐसे में आम तौर पर विकास कार्य प्रभावित होना तय हैं.......फिर भी अभी तो मात्र दो महीने बीते हैं, आगे – आगे देखिये होता हैं क्या, फिलहाल नये मुख्य सचिव और सीएम के प्रधान सचिव ने पद भार ग्रहण कर लिया हैं, देखते हैं आगे क्या सीन देखने को मिलता हैं, फिलहाल जैसे विपक्ष चुप्पी साधे हैं, आम जनता भी चुप्पी साधकर देख रही हैं कि ये माहौल बनाने का कार्यक्रम कब समाप्त होता हैं और सरकार सही मायनों में कब आम जनता के लिए ठोस प्रयास करती हुई दिखाई देती हैं..........
Friday, February 27, 2015
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