पूर्व जन्म का सुकर्म कहे या वर्तमान का प्रयास। हमें पता नहीं,
पर इतना जरुर कहुंगा कि आज उस वक्त बहुत आनन्द और शांति की प्राप्ति हुई,
जब मैं आज योगदा आश्रम पहुंचा। कल ही मेरे छोटे बेटे हिमांशु ने कहा था कि पापा जी 5 जनवरी को स्वामी योगानन्द जी का जन्मोत्सव हैं,
क्या आप आश्रम चलेंगे,
इच्छा थी चलने की पर बोल नहीं पाया था। आज सुबह में हिमांशु ने स्वामी योगानंद जी के बारे में अखबार में कुछ पढ़ने की कोशिश की,
पर उसे निराशा हाथ लगी,
क्योंकि स्वामी योगानंद जी के बारे में किसी अखबार ने कुछ विशेष डालने की कोशिश नहीं की थी। मेरे यहां प्रभात खबर आता हैं,
पर उसमें भी सिर्फ सूचना ही थी,
स्वामी योगानंद जी के बारे में कुछ नहीं था। मेरा रांची से संपर्क 5 जून 1985 को पहली बार हुआ था,
मेरी पत्नी पहली बार योगदा आश्रम लायी थी,
कब लायी थी,
मुझे पता नहीं। पर जब वो यहां लायी थी तब उतना प्रेम का ज्वार इस आश्रम के लिए नहीं था,
पर जैसे जैसे रांची से मेरा संपर्क बढ़ता गया,
पता नहीं क्यों और कैसे योगदा आश्रम में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गयी। योगदा आश्रम और उसकी आबोहवा ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं अपने दोनों बच्चों का नामांकन ही योगदा सत्संग विद्यालय में करा दिया। मेरे दोनों बच्चे योगदा सत्संग से ही मैट्रिक की परीक्षा पास की हैं। बड़े बेटे सुधांशु ने 2004 का दयामाता गोल्ड मेडल एवार्ड भी जीता हैं। जब मेरा छोटा बेटा हिमांशु सातंवी में पढ़ रहा था तब मुझे पता चला था कि योगदा आश्रम में छठी कक्षा के बच्चों के लिए एक विशेष साधना शिविर लग रही हैं। मैंने योगदा आश्रम के साधकों और योगदा सत्संग के प्राचार्य डा. विश्वम्भर मिश्र से बड़ा अनुरोध किया था कि वे हिमांशु को थोड़ा इस साधना शिविर में जगह दें। शिविर छठी कक्षा के लिए थी,
पर मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया। उस साधना शिविर से लौटने के बाद मैंने अपने बेटे हिमांशु में काफी परिवर्तन देखा जो आज भी मुझे प्रभावित करती हैं। पत्रकार के रुप में पत्रकारिता कार्य हेतु कई बार मुझे इस आश्रम में जाने का मौका मिला,
पत्रकारिता की,
पर योगदा आश्रम के अनुभव,
को शब्दों में अभिव्यक्त करने की मुझमे क्षमता नहीं। जब भी गया,
स्वामी योगानंद जी के चित्र और उनकी दिव्य आंखों को मैं देखता ही रह जाता हूं,
जैसे लगता हैं कि वे मुझसे कुछ कह रहे हो। एक बार फिर,
आज उस आश्रम में जाने का मौका मिला -
दोनों बच्चे मेरे साथ थे। बड़ा आनन्द आया,
क्योंकि आश्रम के एक एक स्थान को मनःस्पर्श करने की ठानी थी,
इच्छा पूरी हो गयी। लगा कि मैंने कुछ पाया हैं। सचमुच 5 जनवरी 1893 को जब स्वामी योगानंद धरती पर अवतरित हुए होंगे तो वो दिन कैसा रहा होगा। वो लोग कितने धन्य होंगे,
जिन्हें स्वामी योगानंद जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ होगा। ऐसे तो सम्पूर्ण रांची 5 जनवरी को इस आश्रम में सिमटती नजर आती हैं,
सभी स्वामी योगानंद जी के चित्र के आगे नमन कर रहे होते हैं,
उसके पश्चात प्रसाद ग्रहण कर,
स्वयं को तृप्त करते हैं। मैं चाहुंगा कि स्वामी योगानंद जी की कृपा सब पर बनी रहें ताकि लोग एक दूसरे से प्रेम करना सीखें ताकि भगवद् कृपा सब पर सदैव बनी रहे। स्वामी योगानंद जी को मेरे समस्त परिवार की ओर से शत शत नमन...........................
No comments:
Post a Comment