अन्ना के आगे केन्द्र सरकार नतमस्तक हो गयी। एक दो को छोड़ संपूर्ण विपक्ष अन्ना के साथ हो लिया। पूरे देश की निगाहें आज संसद और रामलीला मैदान में गड़ गयी थी। हुआ वहीं, जो देश चाहता था। इस देश में कई आंदोलन हुए, एक आंदोलन गांधी ने किया था। दूसरा आंदोलन जयप्रकाश नारायण ने किया और तीसरा आंदोलन अन्ना हजारे का देखने को मिला। गांधी और गांधी के आंदोलन को मैंने नहीं देखा, जब जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन छेडा था, उस वक्त मेरी उम्र सात साल की थी, पर 1977 के लोकसभा चुनाव में, मैं दस साल का हो गया था, और उस वक्त एक छोटे से डंडे में चक्रबीच हल लिये किसान का झंडा लेकर, खूब इधर – उधर घूमा था। लोग बताते हैं कि उस वक्त भी भ्रष्टाचार ही मुद्दा था, जिसमें जयप्रकाश का ये आंदोलन सफल हुआ। उस वक्त से लेकर आज तक 37 साल हो गये। बहुत सारे आज के युवा तो न तो गांधी और न ही जयप्रकाश के आंदोलन को ही देखा हैं, ऐसे में जिन्होंने अन्ना के इस आंदोलन को देखा होगा। उन्हें अनुभुति हो गयी होगी कि सद्चरित्र, सत्याग्रह और अहिंसा में कितनी ताकत होती हैं।
दिल्ली का रामलीला मैदान जहां 4 जून को रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद करते है। केन्द्र सरकार, थोड़ी ढिलाई बरतती हैं, पर वे थोड़ा और उग्र होते हैं, पर जैसे ही केन्द्र उनको अपनी औकात दिखाती हैं तो वे दिल्ली के रामलीला मैदान से महिलाओं की पोशाक पहन कर भागते हैं। उसके बाद उनके बालकृष्ण और उनकी संस्थाओं पर क्या – क्या दाग लगते हैं, सभी को पता हैं। ठीक दुसरी ओर रामदेव की आंदोलन को हवा निकालनेवाली कांग्रेस, जब अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने की बात करती हैं, तो अन्ना बड़े ही शांत स्वभाव से चुनौती देते हैं कि बताओ उनमें कौन कौन सा दाग हैं, हालांकि कांग्रेस के नेता मणीष तिवारी और सुबोधकांत सहाय जैसे लोग घटिया स्तर की बात करने से नहीं चूकते। कांग्रेस से संबंध रखनेवाले तो इंटरनेट पर अन्ना हजारे के मान मर्दन करने से भी नहीं चूकते, पर जब उन्हें पता लगता है कि अन्ना के साथ जनता हैं तो वे धीरे – धीरे बैकफुट पर आते नजर आते हैं। बैकफूट भी ऐसा कि आज 27 जुलाई एक ऐतिहासिक दिन बन गया। केन्द्र ने संसद में लोकपाल विधेयक पारित करा दिये। प्रधानमंत्री का पत्र लेकर विलासराव देशमुख, दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचे और अन्ना ने अपना अनशन तोड़ने की घोषणा कर दी।
कमाल हैं कि पहला ऐसा आंदोलन देखने को मिला, जहां शांतिपूर्ण ढंग से जनता आंदोलित थी। कहीं कोई हिंसक घटनाएं नहीं। सभी अन्ना – अन्ना रट रहे हैं। एक नारा तो इस दौरान गजब लगा – मैं अन्ना हूं। सचमुच पूरे देश और विश्व ने इस दौरान देखा कि बिना किसी हिंसा और किसी शोर-शराबे के भी जीत दर्ज की जा सकती हैं।
सचमुच आज गांधी जीवित थे --------- अन्ना के आंदोलन के रुप में। जिन्होंने गांधी जी को नहीं देखा, वो शायद अन्ना को देख लें। मैं एक नहीं कई बार कहा हूं, कि जिसके पास चरित्र होता हैं, वहीं आंदोलन खड़ा करता हैं। इसमें एक बात और कि धन की चाहत रखनेवाला व्यक्ति कभी भी आंदोलन नहीं खड़ा कर सकता, ये अटल सत्य हैं, हमारे पुराण और स्मृतियां इसके प्रमाण हैं।
अन्ना के आंदोलन और उसकी जीत पर हर भारतीयों को गर्व हैं, एक प्रकार से संपूर्ण विश्व को एक संदेश की देखों भारत में कैसे सरकार एक सामान्य जनता के आगे झूक जाती हैं। ये संदेश नक्सलियों को भी कि तुम बार-बार हिंसा फैलाते हो, पर कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर सके और न व्यवस्था बदल सकें पर देखों की, एक सामान्य व्यक्ति ने कैसे अपनी जीत सुनिश्चित कर ली। वह भी बिना किसी हिंसा और शोर शराबे के।
एक सबक उन नेताओं को भी, कि जो बार-बार इस आंदोलन के पीछे आरएसएस और भाजपा का हाथ बताया करते थे, आज अपने ही इस बयान पर शर्मसार और अऩ्ना नाम केवलम् मंत्र का जप कर रहे थे।
क्या पूरे विश्व में आप कोई ऐसा देश का नाम बता सकते हैं कि जहां इस प्रकार से आंदोलन चला हो। जहां कोई हिंसा न हुआ हो। लोग 12 दिनों से एक रामलीला मैदान में जमकर, एक 74 व्यक्ति के साथ एकजूटता प्रदर्शित कर रहे हो। नहीं न। तो बस याद रखिये, अपने देश में ऐसा हुआ हैं। आज का दिन ऐतिहासिक हैं भारत की 121 करोड़ आबादी के लिए, क्योंकि उनके सामने एक अनोखी घटना घटी हैं। जो ऐतिहासिक, रोमांचित और पूरे विश्व में भारत के लोकतंत्र की विजयगाथा की कहानी गढ़ रही हैं। आज की घटना से हमें दृढ़ विश्वास हो चला हैं कि 21 वीं सदी भारत का हैं। बस यहां के युवाओं को इसी तरह भारत के आदर्शों पर चलने की सिर्फ जरुरत हैं।