ये साली क्रिकेट पास जो न कराये........। आम जनता, मीडियाकर्मियों और माननीय विधायकों को पता नहीं क्या - क्या बना दिया, इस क्रिकेट पास और टिकट ने। गर आम जनता की बात करें तो, इस क्रिकेट पास के लिए के लिए तो नहीं, बल्कि क्रिकेटरों की एक झलक पाने के लिए, यहां की जनता पुलिस की मार तक खा चुकी, यहीं नहीं अपना पैंट तक उतरवा चुकी हैं, जबकि क्रिकेट की एक झलक पाने के लिए, एक अदद क्रिकेट के लिए, महंगाई तक को चुनौती दे डाली हैं, रांची की जनता ने। गर आप रांची आये तो देख सकते हैं, क्रिकेट की दीवानी यहां की जनता को, जो इस महंगाई में क्रिकेट मैच देखने के लिए बीस- बीस हजार रुपये में, टिकट ब्लैक में खरीदकर, क्रिकेट को इंज्वाय किया हैं। ये तो रही जनता और अब बात करते हैं मीडिया की।
बात -बात में राजनीतिज्ञों और कारपोरेट जगत पर बरसनेवाली यहां की मीडिया और उनमें कार्यरत पत्रकारों और छायाकारों को भी कम नहीं झेलना पड़ा हैं। टिकट और पास पाने के लिए, जेएससीए द्वारा धकियाएं गये ये लोग, जेएससीए के आलाधिकारियों की वंदना और विशेष पूजा करने से भी बाज नहीं आये। एक अखबार ने तो जेएससीए के एक आलाधिकारी की चरणवंदना में एक सप्लीमेंट ही निकाल दिया और उसमें एक पेज विशेष रुप से उक्त आलाधिकारी को समर्पित कर दिया। जिसके एवज में उक्त आलाधिकारी ने उक्त अखबार पर विशेष कृपा भी बरसायी। इसी तरह एक और अखबार, जो अपने को कारपोरेट जगत का सबसे बड़ा अखबार मानता हैं, आज के दिन उसने जेएससीए के एक आलाधिकारी का बयान छापकर, अपनी मौन आराधना और वंदना उक्त आलाधिकारी के प्रति जगजाहिर कर दी हैं। पर जिन अखबारों व मीडिया को पास व टिकट नहीं मिले, उन्होंने जमकर, जेएससीए पर बरसना शुरु कर दिया। यहीं नहीं, खोद - खोदकर ऐसे ऐसे समाचार छापे गये, जिससे उक्त आलाधिकारी के चेहरे पर हवांइयां उड़ी होगी, इसकी संभावना कम ही दिखती हैं, क्योंकि फिलहाल, उस व्यक्ति के सितारे बुलंद हैं, और जब सितारे बुलंद होते हैं तो आप कुछ भी कर लें। उसे कुछ भी नहीं होता। लेकिन ये सितारे बराबर बुलंद रहेंगे, इसकी संभावना कम ही रहती हैं, क्योंकि रावण और कंस के सितारे भी इसी तरह कभी बुलंद हुआ करते थे, पर जब सितारें उनके गर्दिश में पड़े तो वे भी कहीं के नहीं रहे।
आज एक अखबार ने लिखा हैं झारखंड में चार हजार करोड़ से अधिक के घोटाले के मास्टरमाइंड संजय चौधरी का पासपोर्ट आइपीएस अधिकारी अमिताभ चौधरी की सिफारिश पर ही बना था। इन्होंने ही 2004 में रांची पासपोर्ट कार्यालय को चिट्ठी लिखी थी। दिल्ली की सीबीआई टीम की जांच में इसका खुलासा हुआ हैं। इसी अखबार ने ये भी प्रकाशित किया हैं कि गुरुजी ने क्रिकेट स्टेडियम की नींव रखी थी पर स्टेडियम के उद्घघाटन में उक्त अधिकारी ने शिबू सोरेन को पूछना तक उचित नहीं समझा। अखबार ने ये भी लिखा हैं कि स्टेडियम का उद्घाटन अधिकारियों का आयोजन बनकर रह गया। साथ ही स्पोर्टस पेज पर दो आईपीएस की लड़ाई में धूल धूसरित हुआ - कीनन स्टेडियम जैसे आलेख छापकर, अमिताभ चौधरी की बैंड बजा दी हैं। इस अखबार ने जो भी लिखा हैं, उसकी दाद देनी होगी, कि उसने ऐसा कर के एक ऐसे व्यक्ति को चुनौती दे डाली हैं, जिसका ख्वाब बहुत ही उंचा हैं, जो अब राजनीति में भी उतरकर, अपना लोहा मनवाने को उत्सुक हैं, पर जैसे खेल में कामयाब हुआ, वैसे राजनीति में भी कामयाब हो जायेगा, इसकी संभावना कम दिखती हैं, क्योंकि राजनीति में उससे ज्यादा की घटिया सोच रखनेवाले लोग पहले से ही विद्यमान हैं।
किसकी क्या सोच हैं, वह कितनी दूर जा सकता हैं, उससे देश व समाज का कितना भला होगा। उसका अंदाजा लगाना बहुत ही आसान हैं। बिहार में हमारी मां बहनें, चावल पका या नहीं, इसका अंदाजा, तसले पर उबल रहे चावल के एक दो कण को अंगूलियों पर रखकर, उसे मसल कर, पता लगा लेती हैं। ठीक उसी प्रकार जेएससीए कैसे-कैसे लोगों के हाथों में हैं, वह तो जेएससीए के आलाधिकारियों के आचरण से पता लग जाता हैं, उसके गतिविधियों से पता लग जाता हैं। जरा जेएससीए की कारगुजारियां देखिये ------------
1. यहां के जेएससीए के आलाधिकारियों ने पैसे लेकर, उद्घाटन समारोह के सीधा प्रसारण एक चैनल के हाथों बेच दिया। नतीजा लोग, उद्घाटन समारोह को ठीक से नहीं देख पाये। विजूयल इतना घटिया आ रहा था कि जिसकी जितनी निंदा की जाय कम हैं।
2. उद्घाटन समारोह में राज्य के सभी आइपीएस व आइएएस आलाधिकारियों व उनके परिवारों को आमंत्रित किया गया था, जो बचे उसमे गर्वनर और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के परिवारों ने कब्जा जमाया। आम जनता इस पूरे उद्घाटन समारोह से दूर रही। वो जनता, जिसकी दुहाई, उद्घाटन समारोह के अंदर भाषण करनेवाले महानुभाव बारंबार दे रहे थे।
3. जेएससीए के एक आलाधिकारी ने अपने घर में क्रिकेटरों को बुलाया। इसकी महक पत्रकारों को लगी। पत्रकार जब उक्त आलाधिकारी के घर गये। तब वहां पहुंचे पत्रकारों और छायाकारों को धकियाने में लग गये, वहां कार्यरत पुलिस अधिकारी। ये इशारा भी मिला था, जेएससीए के आलाधिकारियों द्वारा कि - पत्रकारों को सबक सिखाओ।
4. जेएससीए के एक आलाधिकारी ने आनेवाले समय में लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर नजर ऱखकर, जमकर अपने चहेतों को क्रिकेट पास रेवड़िय़ों की तरह बांटी, और माननीय विधायकों और अन्य सम्मानित लोगों को ठेंगा दिखा दिया।
5. हद तो तब हो गयी, जब उक्त आलाधिकारी ने एक अखबार में ये बयान दे दिया कि उसने उनलोगों को पास दे दिया हैं, जो सम्मानित हैं। यानी जिन लोगों को उसने पास दिलवाया, वे सम्मानित हैं और जिन्हें नहीं दिलवाया वो अपमानित। अर्थात सम्मान देने और लेने का उसने दुकान खोल लिया हैं क्या।
बात ये हैं कि हर व्यक्ति की अपनी महत्वाकांक्षा होती हैं। महत्वाकांक्षा होनी भी चाहिए, पर किसी को नीचे गिराने की अंदर भावना पालना, ठीक नहीं, क्योंकि ये ही एक भावना, किसी भी व्यक्ति, संस्थान व समाज को नीचे ले जाने के लिए काफी होती हैं। फिर भी बहुत सारी गड़बड़ियों और संभावनाओं के बीच रांची में एकदिवसीय क्रिकेट नजर आया। इसकी हमें भी खुशी हैं।
bilkul sahi kaha aapne. Jis rajya ke neta agar kamjor ho to wha sarkari noukar aapni manmani to karenge hi.
ReplyDeleteThis is a different type of comment Krishna bhai.
ReplyDeleteAnyway the match was good and whosoever could get in, they enjoyed it very much.
Rahi pass pane ki lalak ki baat to aaj us se is desh mein koi bacha nahin hai!