
हम कहां की बात करें, कौन ऐसा क्षेत्र हैं, जहां भ्रष्टाचार नहीं हैं। सीबीआई की तो ज्यादातर कार्य झारखंड में ही हैं, लगता हैं कि सीबीआई का निर्माण हमारे पूर्व के राजनीतिज्ञों ने झारखंड को देखते हुए ही किया था। जरा देखिये लालू के चारा घोटाला की बात हो या मधु कोड़ा से जुड़ा मामला सभी का केन्द्र बिन्दु झारखंड ही हैं। पर इनकी बात करने के पूर्व हम झारखंड के विधानसभा की बात कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। यहां अब तक जितने भी विधानसभाध्यक्ष हुए, अपने ढंग से नियुक्तियां की, और यहां पर नियुक्ति घोटाला हो गया, कौन सा मापदंड रखा गया, कैसे बहाली हुई, इस पर गर बात करें तो रामचरितमानस से भी बड़ा महाकाव्य तैयार हो जायेगा। आश्चर्य इस बात की हैं कि इसे लेकर किसी भी विधानसभाध्यक्ष ने अपनी गलती नहीं मानी हैं और न ही शर्मिदंगी दिखायी।
जरा इस विवरणिका को देखिये तो पता लग जायेगा कि अपने यहां विधायकों और दूसरे जगहों के विधायकों की संख्या कितनी और इसे देखते हुए स्टाफों की संख्या कितनी हैं और उस पर राशि कितनी खर्च हुई हैं -----------------------
राज्य-------विधायकों की संख्या----स्टाफ------वार्षिक खर्च करोड़ रुपये में
छत्तीसगढ़ -------91------------255 -----5.60
उत्तराखंड -------70 ------------190 -----4.25
बिहार --------243-------------630 -----7.25
झारखंड---------81 ------------960 ----16.81
कमाल इस बात की हैं कि विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता हैं और इस मंदिर में आवश्यकता से अधिक अयोग्य लोगों की बहाली, वो भी अपने चहेतों को नौकरी दिलाकर विधानसभाध्यक्षों ने कर दी, क्या ये शर्मनाक नहीं।
कमाल हैं दस साल बने हो गये, झारखंड के इसी बीच सात सरकारें आयी और चली गयी, दो – दो बार राष्ट्रपति शासन लगा, आठवी सरकार भी कैसे बनी, इसको लेकर तरह तरह की अटकलें लगायी गयी हैं, कहनेवाले तो कह भी चुके हैं कि इस सरकार को बनाने में कारपोरेट जगत के लोगों ने रुचि ली हैं, जिसके एवज में इस सरकार ने उन्हें उपकृत करने की योजना पर काम भी शुरु कर दिया हैं। कमाल इस बात की भी कि राज्य को बने दस साल हुए और इससे ज्यादा बार विकास आयुक्त बदले जा चुके हैं, छह – छह बार पुलिस महानिदेशक और महाधिवक्ता का बदलाव हो चुका हैं, औसतन हर दस बाहर महीने में सचिवों का तबादला हो जाता हैं। भ्रष्टाचार का आलम तो ये हैं कि यहां स्थानांतरण उद्योग भी चलता हैं, और वसूली भी की जाती है।
भ्रष्टाचार का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता हैं कि इस राज्य का अपना विधानसभा भवन नहीं, सचिवालय नहीं, जबकि इन्हीं पर करीब दो सौ करोड़ रुपये अब तक खर्च हो चुके हैं। राष्ट्रीय खेल अब तक नहीं हो पाये है। इन मंत्रियों और अधिकारियों की करतूतों को देखिये अपने चहेतों को किस प्रकार झारखंड लोक सेवा आयोग के माध्यम सें शानदार नौकरियां दिलवा दी, ये अलग बात हैं कि पूरे मामले की जांच हो रही हैं, और कुछ लोग इस मामले में जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहीं नहीं शायद देश का ये पहला राज्य हैं जहां पर भ्रष्टाचार मामले में ही एक निर्दलीय व्यक्ति जो मुख्यमंत्री बना, अपने रिकार्ड भ्रष्टाचार के कारण, रांची और दिल्ली की जेलों में रहकर झारखंड की मान को गिरवी रख दिया है। यहीं नहीं इनके शासनकाल में ही मंत्री रहे, कई मंत्रियों पर सीबीआई की पकड़ हैं और ये भी फिलहाल विभिन्न जेलों में बंद रहकर अपनी जिंदगी को नारकीय बना रखा हैं। आश्चर्य इस बात की भी हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप में बंद इन मंत्रियों और नेताओं के रिश्तेदारों को उनके दैनिक जीवन में कोई दिक्कत नहीं आ रही, बल्कि वे इसका फायदा भी उठा रहे हैं और विधानसभा तक पहुंच जा रहे हैं, यहीं नहीं जेल में रहकर ये लोकसभा के चुनाव तक जीते हैं, ऐसे में यहां की जनता की सोच पर स्वतः प्रश्न चिह्न लग जाता हैं कि क्या वो भ्रष्टाचार को सदाचार की ताबीज मान चुकी हैं, गर नहीं मानती तो भ्रष्टाचार मामलों में बंद ये नेता और उनके रिश्तेदार चुनाव में तो कम से कम नहीं ही जीतते, पर इनकी जीत बताती हैं कि जनता के सोच में भी बदलाव आया हैं और यहां की जनता फिलहाल भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा नहीं मानती, तभी तो सभी मस्त हैं नहीं तो भ्रष्टाचार पर आज तक अंकुश क्यों नहीं लगा, ये तो और पनपता जा रहा हैं, भस्मासुर की तरह।
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