Monday, June 14, 2010

ओछी राजनीति

विद्रोही
नोज कुमार की फिल्म – बेईमान
उसमें एक गाना था –
ना इज्जत की चिंता, न फिक्र कोई अपमान की, जय बोलो बेईमान की, जय बोलो..............................
ठीक इसी गाने के आधार पर झारखंड के नेता, अपने कुकृत्यों को, अंजाम दे रहे हैं, और ताल ठोक कर झारखंड के दामन को दागदार बना रहे हैं।
भारतीय साहित्यों में कहा गया हैं कि सज्जनों के लक्षण ये हैं कि वे मन, वचन और कर्म इन तीनों से एक होते हैं, पर दुर्जन ठीक इसके विपरीत, यानी मन, वचन और कर्म। इन तीनों से अलग-अलग।
ऐसे में यहां की जनता खुद विचार कर लें कि जिसे वे मत देकर जीताते हैं, जिसे गुरुजी कहते नहीं थकते, उनके चरित्र क्या हैं। वे सज्जन हैं या दुर्जन।
राज्यसभा के चुनाव की चर्चा छोड़ दें तो सबसे पहले शिबू सोरेन के भाषणों पर ध्यान दें।
. नक्सली हमारे भाई बंधु हैं, पर विधानसभा में लिखित तौर पर उन्हें राष्ट्रद्रोही कहने से नहीं चूकते।
. विधानसभा चुनाव के पहले कहा करते थे कि पूरा प्रदेश अकाल से जूझ रहा हैं, वे गर सत्ता में आये, तो वे पूरे प्रदेश को अकाल क्षेत्र घोषित करेंगे, पर पांच महीने के शासन में क्या किया, सभी जानते हैं।
. संसद में महंगाई पर कट मोशन होता हैं, प्रदेश में ये भाजपा के साथ होते हैं, पर संसद में कांग्रेस के पक्ष में वोट करते हैं, बाद में नितिन गडकरी के घर जाकर इस घटना के लिए माफी मांगते हैं कहते हैं कि गलती से ऐसा हो गया, मुझे माफ कर दिया जाये, पर दो महीने भी नहीं बीतते, पत्रकारों के समक्ष ये बयान देते हैं कि उन्होंने ये तो जानबूझ कर किया था, कोई गलती में कटमोशन के दौरान कांग्रेस के पक्ष में वोट नहीं बल्कि पूरे होशहवाश में वोट दिया।
. याद करिये बिहार जहां याज्ञवलक्य, मंडन मिश्र, गौतम बुद्ध, अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, राजेन्द्र बाबू, जय प्रकाश नारायण जैसे महानायकों ने जन्म लिया, वहां लालू प्रसाद जैसे लोगों ने भी जन्म लिया और अपने पन्द्रह वर्षों के शासनकाल में बिहार को कहां लाकर खड़ा कर दिया, बिहार की जनता भूली नहीं हैं, ठीक जिस झारखंड में बिरसामुंडा, सिद्धुकान्हु जैसे वीरों ने जन्म लिया, वहां आज शिबू जैसे लोग भी हैं, जिन्हे झारखंड के आंदोलनकारी होने का सौभाग्य भी मिला हैं, पर सच्चाई ये भी हैं कि इस आंदोलनकारी ने जैसा झारखंड का अहित किया, झारखंड का सम्मान गिरवी रखा, आजतक वैसा किसी ने नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में जब झारखंड का निर्माण हो रहा था तो मुख्यमंत्री बनने के लिए किस प्रकार ये भाजपा नेताओं का गणेश परिक्रमा कर रहे थे, ये किसी से छुपा नहीं हैं। नरसिंहाराव सरकार को बचाने के लिए इनके और इनके पार्टी के नेताओं का कृत्य जगजाहिर हैं। कितना इनका गुणगान करु, इस बार के पांच महीने के शासनकाल में अंतिम डेढ़ महीनों में अपना और झारखंड का केवल बयानबाजी को लेकर कितना बंटाधार किया हैं, वो किसी से छुपा नहीं और ले देकर, अब के डी सिंह को टिकट देने के प्रकरण ने, बची खुची सारी असर ही निकाल दी हैं।
शिबू को अपनी पार्टी के नाम पर पुनर्विचार करनी चाहिए, क्योंकि झारखंड अब बन चुका हैं, ये विकास करते नहीं, इसलिए इनकी पार्टी का बेहतर नाम झारखंड मुद्रामोचन मोर्चा हो जाना चाहिए ताकि देश के पूंजीपतियों और केवल धन के लिए ही जीनेवाले पूंजीपतियों को दूसरे पार्टी के पास जाने की जरुरत ही न पड़े, सीधे इन्हीं से संपर्क करें।
हमें तो संदेह होता हैं शिबू की आज की हरकतों को देखकर कि क्या ऐसा व्यक्ति झारखंड का आंदोलनकारी हो सकता हैं, क्योंकि जो अपने लोगों का दर्द देखेगा, क्या वो ऐसी हरकत करेगा।
क्या झारखंड में अच्छे लोगों की कमी हो गयी हैं, क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा में कार्यकर्ताओं और नेताओं का अभाव हो गया, कि झारखंड में अब नेता ही नहीं रहे, जो दूसरे प्रदेशों से नेताओँ का आयात करा रहे हैं। कम से कम शर्म तो आनी चाहिए, गर शर्म नहीं तो जनता के बीच जाये और पूछे कि वे जो कर रहे हैं, उस कुकृत्य से उन्हें कितना दुख हो रहा हैं, पर ये ऐसा करेंगे, हमें नहीं लगता।
अब कांग्रेस की बात, कांग्रेस भी बतायें कि वो कौन पूंजीपति था, जिसे महाराष्ट्र से बुलाकर यहां राज्यसभा का चुनाव लड़ने के लिए प्लानिंग की जा रही थी, कौन उस पूंजीपति को रांची बुलाया था, पर कांग्रेस भी ऐसे लोगों का पर्दाफाश करेगी और पार्टी से निकालेगी, इसकी संभावना कम दिखती हैं।
अरे नेताओं क्या आपने ये नहीं पढ़ा कि ------------
अधमा: धनम् इच्छन्ति
धनम् मानम् च मध्यमा:।
उतमा: मानम् इच्छन्ति
मानो हि महतां धनम्।।

अर्थात जो दूष्ट हैं वो सिर्फ धन चाहता हैं, जो मध्यमवर्गीय लोग हैं उन्हें धन और मान दोनों की जरुरत हैं, पर जो उच्च कोटि के लोग हैं, उन्हें धन नहीं, सिर्फ सम्मान की आवश्यकता हैं, क्योंकि उनके लिए मान ही सबसे बड़ा और सर्वश्रेष्ठ धन हैं।
पर ये बात झारखंड के बिकाउ विधायकों को समझ में आये तब न।

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