Monday, July 5, 2010

और महंगाई डायन खाय जात है...

"अभी अभी टीवी पर न्यूज़ देखने के दौरान एक गाना सुनने को मिला ----------------------संभवत: ये नई फिल्म का गाना है,
बोल है -------------
"सखी सैयां तो खूब ही कमात है,
और महंगाई डायन खाय जात है।"
इस गाने को सुनने के बाद मुझे मनोज कुमार कि वो फिल्म याद आ गयी ---- रोटी कपडा और मकान. जिसमे एक गाना महंगाई को लेकर था. गीत इतना प्रभावित करनेवाला था कि आज भी वो गीत सम सामयिक ही लगता है, पर उसका एक अन्तरा आज भी हमें झकझोड़ता है,
जिसके बोल है -----------
"हाय महंगाई, महंगाई महंगाई,
तू कहा से आयी,
तेरी मौत न आयी,
हाय महंगाई...................."
आज ५ जुलाई को भारत के इक्के दुक्के पार्टियों को छोड़ सम्पूर्ण विपक्ष ने महंगाई के खिलाफ भारत बंद बुलाया है, और इस भारत बंद को आप माने अथवा न माने जनता का समर्थन प्राप्त है, गर जनता का समर्थन न मिला होता तो भारत बंद का इतना व्यापक असर नहीं पड़ता. रही बात इस बंद का केंद्र सरकार पर असर पड़ता है या नहीं, ये अलग बात है, पर जनता ने अपनी राय जता दी है कि वो क्या चाहती है. पर इसके उलट एक- दो राष्ट्रीय चैनलों ने और कुछ पत्रकारों ने, इस जनसरोकार के मुद्दे पर भी, केंद्र व युपीए सरकार के पक्ष में समाचार दिखाते नज़र आये और इस जनसरोकार के मुद्दे पर आयोजित बंद को ही कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया. इन चैनलों को महंगाई से तड़पते लोगो के विजुअल नहीं दिखाई पड़ते, दिखाई क्या पड़ती है तो ऐसी खबरे जो इस महंगाई के नाम को ही गौण कर दे. और उन्होंने बड़े ही बेशर्मी से उन समाचारों को प्रमुखता दे दी जो महंगाई के खिलाफ बंद के सवाल पर प्रश्न चिन्ह लगा दे. खैर ये लाखों करोडो में खेलनेवाले चैनल और उनके पत्रकार क्या जाने कि चावल दाल और दो जून की रोटी कमाने में भारत की ७० प्रतिशत आबादी कैसे घुट घुट कर जीती है. मैंने तो महंगाई का प्रभाव देखा है आज भी झारखण्ड के उन गलियों और कस्बों में जाकर रिपोर्टिंग की है जहा लोगो से आज भी रोटी बहुत दूर है, पर उन्हें और उनके पत्रकारों को महंगाई का दंश नहीं दिखाई पड़ता. ईश्वर से प्रार्थना है की उन चैनलों को और उनके पत्रकारों को वो सदबुद्धि दे, ताकि महंगाई और भूख जैसे मुद्दे पर वे कम से कम पत्रकारिता धर्म का पालन कर सके. क्योकि मात्र दो सालों में महंगाई ने सुरसा की तरह ऐसा मुख खोला है की वो मुख बंद होने का नाम नहीं ले रहा है. जिसका प्रभाव ये है की इस महंगाई रूपी सुरसा अथवा डायन ने भारत की गरीब जनता को लीलने को तैयार है. सरकार और नेताओं को क्या है, वे अपने लिए सारी तैयारी कर ही लेते है, जैसे इस बार वे अपना पांच गुना वेतन बढ़ाने जा रहे है, ऐसे चैनलो और उनके पत्रकारों को भी नेताओं और सरकारों से मधुर सम्बन्ध होते है और समय समय पर ये इस कारण से उपकृत भी होते है, पर आप बताये कि भारत की गरीब जनता अपना वेतन कैसे पांच गुना बढ़ाये अथवा नेताओं से उपकृत हो. ऐसे हालत में तो बस उसके पास एक ही काम बच जाता है कि वो चौपाल पर बैठ जाये और झाल करताल ढोल लेकर शुरू हो जाये और उस फ़िल्मी गाने कि तरह गाने लगे ----
"सखी सैयां तो खूब ही कमात है,
और महंगाई डायन खाय जात है।"

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