Thursday, July 22, 2010

नेता, मीडिया व हमारा बिहार

ऐसे तो देश के ज्यादातर नेताओं का चरित्र एक जैसा ही होता हैं। वे अपने लिए हर विकल्पों की तलाश कर लेते हैं, और जब इन पर सामूहिक तौर पर संकट आता हैं, तो वे उससे बचने के लिए एक होकर, एकता के सूत्र में बंध जाते हैं। जब इनकी चर्चा नहीं होती, तो ये तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं कि वे सूर्खियों में रहे, और इसके लिए सदन की गरिमा तक को ताक पर रख देते हैं। इसके लिए किसी एक पार्टी को दोष देना मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर हैं, क्योंकि देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं जो कह सकें कि वो सिद्धांत और जनसरोकार से संबंधित राजनीति कर रही हैं। हम यहां एक एक कर यथासंभव सभी राष्ट्रीय पार्टियों की चल रही राजनीति पर चर्चा करेंगे।
सर्वप्रथम – वामपंथी पार्टियों को ले लें. सांप्रदायिकता का विरोध करनेवाली पार्टी मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी जिसकी सरकार बंगाल में पच्चीस वर्षों से चल रही हैं, यहां जब कुछ मुट्ठीभर अल्पसंख्यकों ने तसलीमा नसरीन के खिलाफ सड़कों पर उतरने की कोशिश की, तब इसी पार्टी ने अल्पसंख्यकों के वोट बिदक जाने के भय से तसलीमा नसरीन को बंगाल से निर्वासित कर दिया, और जब सरस्वती, लक्ष्मी और हमारे देवी-देवताओं को नग्न चित्र मकबूल फिदा हुसैन ने बनाये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मकबूल फिदा हुसैन के साथ ये सभी हो लिये। ये हैं वामपंथियों को चरित्र।
कांग्रेस के क्या कहने, सरकार बचाने के लिए हाल ही मे मनमोहन सिंह और उनकी मंडली ने क्या किया, पूरा देश देखा, जब सदन में नोटों की बंडल दिखाई पड़ी, जिसका विजूयल एक राष्ट्रीय चैनल के पास था, पर उसने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन न कर किस धर्म का निर्वहण किया, ये वो खुद जाने, पर जैसे ही, आरोप प्रत्यारोप का दौर चला, उक्त राष्ट्रीय चैनल ने वे सारे दृश्य दिखाये पर तब तक देर हो चुका था, कांग्रेस अपना काम कर चुकी थी।
यहीं कांग्रेस नरसिंहराव के शासन में झामुमो के सांसदों को कैसे सरकार बचाने के लिए क्या सौदा की थी, उसके बारे में भी सारा देश जानता हैं।
हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा में जब समाजवादी पार्टी के एक विधायक ने हिन्दी में शपथ लेनी चाही तब वहां महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायकों ने जिस प्रकार उक्त विधायक के साथ दुर्व्यवहार किया और इस मामले में मनसे के विधायकों का सदन से निलंबन हुआ, फिर उनकी निलंबन समाप्त कर दी गयी, इसमें कैसे मनसे और कांग्रेस के लोगों ने गुपचुप समझौते किये, इसके बारे में भी यहां की जनता जानती हैं।
इसलिए यहां के राजनीतिक दलों से मर्यादा, चरित्र और आदर्श की परिकल्पना संजोना, मूर्खता से कम नहीं हैं. ये सदन में मर्यादा, चरित्र और आदर्शवाद की स्थापना करने नहीं जाते, ये जाते हैं, सिर्फ और सिर्फ हठधर्मिता को स्थापित करने की, इस हठधर्मिता में देश व प्रांत का सम्मान चला जाये, उनकी बला से, उन्हें सम्मान से क्या मतलब।
झारखंड विधानसभा जहां के विधायक पूरे देश में सर्वाधिक वेतन उठाते हैं, उन्होंने हाल ही में बजट सत्र के दौरान अपना वेतन बढाने के लिए सरकार से इसी बजट सत्र में प्रस्ताव लाने की बात कहीं, इस मुद्दे को सदन में सभी विधायकों के सौजन्य (भाकपामाले छोड़) से राजद विधायक सुरेश पासवान ने उठाया ये अलग बात है कि सुरेश पासवान की आवाज पर सदन नें तत्काल मुहर नहीं लगायी और अब देश की लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के वेतन पांच गुणा बढे, इसकी चर्चा जोरों पर हैं।
ऐसे तो अब पूरे देश के विभिन्न विधानसभाओं में मेजे पलटने, माइक तोड़ने, विधेयक की प्रतियां फाड़ने, राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान, राज्यपाल के उपर ही कागज के पन्ने फाड़ कर फेंकने की बात आम बात हो गयी हैं। अपने ही विधायक मित्रों के बांह मरोड़ने, उन पर गंदी गंदी छीटाकशीं करने, जान से मार देने की धमकी अब आम बात हो गयी हैं तथा पूरे विधानसभा को युद्धभूमि बना देने के दृश्य आम बात हो गये हैं, और इससे अब शायद ही कोई विधानसभा बचा रह गया हैं, हालांकि इसका प्रभाव अब लोकसभा पर भी पड़ने लगा हैं।
उत्तरप्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार में ये दृश्य आम हो गये हैं, पर हमारे जनप्रतिनिधियों को शर्म नहीं। शर्म आयेगी कैसे शर्म तो एक गहना हैं, जिसे पहनकर ही शर्म आ सकती हैं, जब शर्म का गहना किसी ने पहना ही नहीं तो उसे शर्म कैसा। जरा देखिये, बिहार की -------------
20 जूलाई को विपक्षी दलों ने बिहार विधानसभा में मेजे पलट दी, कुर्सियां तोड़ दी, हाथापाई की, मारपीट की, और ठीक 21 जूलाई को विधानसभाध्यक्ष के उपर चप्पल फेंक दी, एक महिला विधायक तो इतनी आक्रोशित थी कि अपना गुस्सा वो गमले पर उतार रही थी, जो विधायक इस प्रकार की हरकतें कर रहे थे, क्या बता सकते हैं कि उनके इलाके की जनता उन्हें इसी प्रकार के आचरण करने के लिए विधानसभा भेजती हैं क्या। या किसके इशारे पर वे ऐसी हरकतें कर रहे थे। आश्चर्य इस बात की भी, जिन पार्टियों के विधायक ऐसी गंदी हरकते कर रहे थे, उन पार्टियों के नेता टीवी पर बयान दे रहे थे, कि उन्होंने अथवा उनकी पार्टियों के नेताओं व विधायकों ने ऐसा कुछ नहीं किया, जब कुछ नहीं किया तो क्या टीवी में उनके डूप्लीकेट काम कर रहे थे क्या।
इस घटना के बाद एक बात और सामने आयी हैं कि ऐसी हरकते विधायक इसलिए करते हैं कि वे टीवी के माध्यम से सभी जगह छा जाये, उनकी चर्चा हो, हो सकता हैं इसमें कुछ सच्चाई भी हो, क्योंकि जब से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपनी जगह मजबूत बनायी हैं, ऐसी हरकते ज्यादा देखने को मिल रही हैं, क्योंकि इलेक्ट्रानिक मीडिया उन खबरों को नहीं दिखाती, जिससे जनसरोकार हो, वो तो ऐसी ही चीजे ढूंढती हैं, जिससे कुछ दिनों तक माहौल गरमाया रहे, लोग मीडिया से चिपके रहे, और बाकी सारी महत्वपूर्ण मुद्दे गौण हो जाये। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। सभी को मीडिया के अंदर छा जाने का एक फैशन चल पड़ा हैं विधायकों में मर्यादित आचरण कर नहीं, बल्कि अमर्यादित आचरण कर शोभा पाने की इच्छा बलवती होती जा रही हैं। जो शर्मनाक हैं।
कमाल हैं, भले ही जिन बातों को लेकर विपक्ष गर्म था, उसे शांतिपूर्वक बातों से सदन में ही, अपना विरोध वे दर्ज करा सकते थे, पर एक दूसरे को बाहुबल से देख लेने की क्षमता, ये कहां से आ रही हैं, इन विधायकों में। मुझे समझ में नहीं आ रहा। हमें लगता हैं कि शायद जनता जान रही हैं क्योंकि पांच साल पूरे होने को हैं, क्या सत्तापक्ष और विपक्ष सभी जनता की नजरों में नंगे हो चुके हैं, सभी अपने अपने चेहरे को चमकाने में लगे हैं, एक को नरेन्द्र मोदी के संग फोटो छप जाने पर अपना चेहरा गंदा नजर आने लगता हैं और वो अपना चेहरा चमकाने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आग – बबूला होता हैं, और वो इसके लिए गुजरात की जनता की ओर से मिली हुई बाढ़पीड़ितों की सहयोग राशि लौटा देने से भी गुरेज नहीं करता, तो दूसरी ओर विपक्ष देखता हैं कि भाई उसे तो अपना चेहरा चमकाने का मौका ही नहीं मिला, इसलिए महालेखाकार की रिपोर्ट का ही आश्रय लेता हैं, कहता है कि घोटाला हुआ हैं और लगे हाथों विधानसभा की मर्यादा का चीरहरण करता हैं, आश्चर्य इस बात की हैं कि इस चीरहरण में मीडिया भी अपना हाथ सेंक रहा होता हैं, और ताली ठोकने से परहेज तक नहीं करता।
अंत में एक और बात ---
जिस दिन भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हो रही थी, भाजपा के बड़े नेता जनता को संबोधित कर रहे थे, मैंने नौ बजे की रात, एक प्रादेशिक चैनल का प्राईम टाईम खोला कि देखूं कि आज का क्या – क्या महत्वपूर्ण समाचार हैं, मैने देखा कि आधे घंटे की बूलेटिन में नीतीश कुमार का भाषण ही बीस मिनट तक चलता रहा, जब मैंने उक्त चैनल के डेस्क पर बैठे लोगों से बातचीत की कि भाई आज के प्राईम न्यूज में केवल नीतीश ही दिखाई पड़ेंगे क्या, उनका कहना था कि भाई पेड न्यूज हैं, यानी न्यूज फारमेट में विज्ञापन चल रहा हैं, तो कम से कम इस नौ बजे के न्यूज में ज्यादा समय नीतीश ही दीखेंगे, और समाचारों के लिए आगे की बुलेटिन देखिये।
जरा सोचिये, जहां सभी चरित्र, संस्कार और आदर्श की श्रद्धांजलि दे दिये हो, वहां इस प्रकार की हरकतें होगी ही, तो फिर बिहार में ऐसा हुआ, फलां जैसा वहां हुआ, इस प्रकार का विधवा प्रलाप मीडिया क्यूं कर रहा हैं, इसके लिए तो सभी दोषी हैं, इस हमाम में सभी नंगे हैं, बस डूबकी लगाने भर की देर हैं।

No comments:

Post a Comment