Monday, August 9, 2010

लो आया मौसम दल बदलने का......................... !


बिहार विधान सभा के चुनाव की विधिवत् घोषणा अब तक नहीं हुई, लेकिन विभिन्न पार्टियों के नेता अब दल बदलने को लेकर उत्सुक हैं, कोई दल बदल चुका हैं, कोई दल बदलने की तैयारी में हैं और इस दल बदल के चक्कर में इन दलबदलू नेताओं ने सारी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया हैं, बड़बोलेपन के चक्कर और जातीय दंभ में स्वयं की जाति को इन्होंने उस पादान पर लाकर खड़ा कर दिया हैं कि जैसे इनकी ही जातियों के लिए सिर्फ और सिर्फ बिहार बना हैं, बाकी जातियां इनके चरणवंदन और चरणधूलि पाने के लिए हैं। ये स्थिति एक पार्टी की नहीं, बल्कि कमोबेश सभी पार्टियों की हैं। तीन चार साल पहले की बात हैं। जब मैं धनबाद में था, तो एक बिहार के ही बड़बोले नेता आनन्द मोहन ने एक संवाददाता के प्रश्न के जवाब में कहा था कि जब पत्रकार अपने बेहतर कैरियर के लिए, संस्थान बदल देते हैं तो उनके जैसा नेता, बेहतर कैरियर के लिए पार्टी अथवा दल क्यों नहीं बदले। ऐसे हैं हमारे बिहार के नेता। ऐसी हैं इनकी सोच। इसलिए प्रभुनाथ सिंह जैसे नेता, नीतीश का दामन छोड़, लालू का दामन पकड़ लें और कहें कि हे लालू जी आप ही मेरे कैरियर निर्माता हो, मेरी कैरियर पर ध्यान दो। लालू भी – प्रभुनाथ को कहें, कि एवमस्तु तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी, तो क्या गलत हैं।
पर प्रभुनाथ सिंह का ये कहना कि उनके आने से बिहार में एक नया समीकरण बनेगा, पीएमआरवाई का, तो ये उन्हें कहने की इजाजत किसने दे दी। पीएमआरवाई का मतलब – कोई बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री रोजगार योजना नहीं समझ लें। प्रभुनाथ सिंह के शब्दों में पी का मतलब पिछड़ा, एम का मतलब मुस्लिम, आर का मतलब उनकी जाति राजपूत, जिससे वे आते हैं और वाई का मतलब यादव। क्या इन्हीं पीएमआरवाई से वे बिहार विधान सभा में स्थिति मजबूत कर लेंगे। क्या जिन अक्षरों का इन्होंने उपयोग किया हैं, वो पिछले लोकसभा और पांच साल पहले के विधानसभा चुनाव में किसी दूसरे जगह छिटक गये थे क्या।
क्या इन जातियों का प्रभुनाथ सिंह जैसे लोगों ने ठेका ले रखा हैं और मान लिया कि इन जातियों और समुदाय का ठेका ले रखा हैं तो भी बाकी जातियां और समुदाय, इनके आगे पानी भरेंगे क्या। लालू और पासवान जैसे नेताओं से बिहार में एकता की बातें करना ही बेमानी हैं, लोग ठीक ही कहते हैं कि इस देश व राज्य को गर किसी ने बर्बाद किया हैं तो वे राजनीतिज्ञ हैं जो विशुद्ध रुप से राजनीतिबाज बनकर पूरे देश व राज्य में रहनेवाले, विभिन्न समुदायों को इतने टुकड़ों में बांट देना चाहते हैं कि देश व राज्य बर्बाद हो जाये और इनकी राजनीतिक कैरियर हमेशा हिट रहे, ताकि ये आराम से अपना और अपने आनेवाले पीढ़ियों का उद्धार कर सकें, लेकिन ये नहीं जानते कि अंधकार का साम्राज्य ज्यादा दिनों तक नहीं होता। मैं लालू प्रसाद से पूछना चाहता हूं कि जिस जय प्रकाश आंदोलन के वे प्रोडक्ट हैं, वे जयप्रकाश संपूर्ण क्रांति की बात किया करते थे, क्या प्रभुनाथ सिंह जैसे नेताओं के बयान से और उनकी पार्टी में ऐसे नेताओं के आने से संपूर्ण क्रांति हो जायेगी क्या। ऐसे भी लालू प्रसाद का पूरा कैरियर देखा जाये तो ये भी माई समीकरण की बात कुछ ज्यादा ही करते थे, ऐसे में गर प्रभुनाथ ने उसमें पीआर मिला दिया तो क्या हुआ, लालू प्रसाद को तो इससे और मजबूती ही मिलेगी, वे समझ रहे होंगे कि अब बिहार विधानसभा में उनकी वापसी तय हैं, लेकिन वे भूल रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भी कमोबेश जाति की राजनीति करनेवाले बिहार के सारे के सारे नेता उनकी तरफ हो गये थे पर परिणाम कुछ दुसरा ही आया।
रही बात नीतीश की, तो ये भी कोई दुध के धूले नहीं हैं। थोड़ा बहुत अंहकार इनमें भी आ गया हैं, ये समझ रहे है कि बस अगली पारी भी इन्हीं की होगी, और इसी चक्कर में वे बहुत सारे ऐसे भी गलत निर्णय कर रहे हैं, जिनका खामियाजा वे भुगतेंगे ही। इनके पार्टी में भी बहुत सारे दुसरे दलों के नेता आने के चक्कर में हैं और कुछ इनकी पार्टी से जाने के चक्कर में हैं, क्योंकि जब जब चुनाव आते हैं तो बिहार क्या पूरे देश में ऐसे दृश्य दिखाई पड़ जाते हैं, पर इसके कारण बिहार की मर्यादाएं और सामाजिक माहौल न बिगड़ जाये, इसका ध्यान यहां के राजनीतिज्ञों को रखनी चाहिए, क्योंकि जो काम राजठाकरे महाराष्ट्र में कर रहे हैं, वो ही काम ये कमोबेश बिहार में कर रहे हैं, चाहे वो लालू हो या प्रभुनाथ या कोई अन्य। अंतर ये हैं कि राज ठाकरे अपनी राजनीति चमकाने के लिए, मराठी और गैर मराठी विवाद उछाल रहे हैं और बिहार के नेता पीएमआरवाई बनाम गैर पीएमआरवाई का मुद्दा उठा रहे हैं। दोनों में कोई अंतर नहीं हैं, बस समझ की फेर हैं, सभी देश को बर्बाद करने में तुले हैं. जरुरत हैं बिहार में रह रहे उन युवाओं को, आगे बढ़ने की जो बिहार को एक नयी दिशा देना चाहते हैं, वे आगे बढ़े और इस चुनाव में जन जन तक जाकर बतायें कि वे वोट किसी को भी दें, पर दे जरुर, पर ध्यान रहे कि बिहार की मर्यादा और सामाजिक माहौल न बिगड़ने पाये, क्योंकि बिहार के नेताओं ने अपनी घटिया स्तर की राजनीति शुरु कर दी हैं, मैं देख रहा हूं वे सब कुछ करने पर आमदा हैं – हो सकता हैं कि वे अपराधियों तक का शरण लें और कहें कि ये ही बिहार को नयी दिशा देंगे, इसलिए पीएमआरवाई के तहत इन्हें ही वोट दें। इसलिए बिहार के युवाओं का जगना बहुत जरुरी हैं।

No comments:

Post a Comment