Sunday, August 15, 2010

आप माने या न माने, पर ये सच हैं --------------------------



आप माने या न माने, पर ये सच हैं ----------
आजादी के पहले --------
. भारत परतंत्र था पर भारतीय मन से परतंत्र नहीं थे, उनकी सोच परतंत्र नहीं थी, अपनी आध्यात्मिक और राष्ट्रवाद की परिकल्पनाओं से यहां के लोग ओतप्रोत थे, अंग्रेजी सत्ता को इसका आभास था, तभी लार्ड मैकाले ने इस देश की सार्वभौमिकता और यहां के लोगों की मानसिकता को तोड़ने के लिए ऐसी शिक्षा पद्धति निकाली कि यहां के लोग अंदर से टूट जाये और अंग्रेजी मानसिकता को श्रेष्ठ समझ, अपनी संस्कृति से नफरत करने लगे, फिर भी अंग्रेज भारतीयों को मन से गुलाम बनाने में असफल रहे।
. पूरा देश चरित्रवान था, खासकर भारतीय राजनीतिज्ञों का जीवन आदर्शों से भरा रहता था, लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनते और अपनाने की कोशिश करते।
. यहां की युवा पीढ़ी भी, देश को नयी दिशा दे रही थी, साथ ही अपने चरित्र पर ध्यान देती थी, अपने देश के पूर्वजों के सम्मान पर कोई आंच नहीं आये, इसका ध्यान रहता था, इनके लिए एक ही लक्ष्य था देश के लिए जीना और देश के लिए मरना।
. सभी का एक ही लक्ष्य था, कि भारत स्वतंत्र हो।
. भारत अखंड था, आज का पाकिस्तान, बांगलादेश, चीन द्वारा बलपूर्वक और धूर्ततापूर्ण तरीके से भारत की हड़पी गयी जमीन, सभी भारत के नक्शे में नजर आते थे, भारत का मानचित्र भव्य दीखा करता था।
. भारतीय गरीब थे, पर भारत के उपर कर्ज नहीं था।
. परतंत्र होने के बावजूद, देश की आध्यात्मिक शक्ति का लोहा विदेशी माना करते थे, जैसे स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो धर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म का पताका फहराया, और बताया कि भारत क्या हैं।
. देश का ग्राम और कुटीर उद्योग बहुत ही मजबूत था, अंग्रेजों द्वारा इस उद्योग को सर्वनाश के कगार पर लाने के बावजूद स्वदेशी आंदोलन ने इनको नयी दिशा दी थी।
आजादी के बाद --------------------
. भारत स्वतंत्र हुआ, पर लार्ड मैकाले की जीत भी हुई, कांग्रेस ने सत्ता संभाला और मैकाले की शिक्षा पद्धति को जन जन तक पहुंचाने की कोशिश शुरु हुई, देश में जो काम अंग्रेज नहीं कर सके, वो काम यहां की कांग्रेसी सरकार ने शुरु किया, लोग भारत और भारतीय संस्कृति से दूर होते चले गये और भारतीय मन पूरी तरह से परतंत्र हो गया।
. परतंत्र भारत में जहां सभी चरित्रवान थे, आजादी के बाद चरित्रवानों का टोटा पड़ गया, आप किसी भी क्षेत्र में जाये चरित्रहीनों की संख्या सर्वाधिक हैं, ज्यादातर लोग भ्रष्टाचार में डूबे हैं, और अपने हिस्से का भारत लूट लेना चाहते हैं, जो नहीं लूट रहे, उन्हें मूर्ख समझा जाता हैं।
. आज की युवा पीढ़ी, अब देश और समाज तथा परिवार के लिए भी नहीं सोचती, उसे सिर्फ अपने लिए धन कमाना और ऐश करने से मतलब हैं, इनके लिए देश व समाज कोई मायने नहीं रखता, इनके लिए तो परिवार भी कोई मायने नहीं रखता, सेल्फमेड जिंदगी जीने में ये ज्यादा आनन्द अनुभव करते हैं।
. आज भारत को कहां ले जाना हैं, कोई लक्ष्य ही नहीं हैं, भारत को कैसा और क्या बनाना हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं, सभी नौकरी कर रहे हैं चाहे वो राजा हो या प्रजा। नौकरी करने के क्रम में, सभी अपने बेटे-बेटियों के लिए, मरते दम तक कुछ ऐसा कर देना चाहते हैं, ताकि सात पुश्त तक गर नौकरी न भी मिले तो ये आराम से जिंदगी गुजार सकें। उसका अनेक उदाहरण हैं, सुबह होते ही, भारत की अखबारें ऐसी खबरों से पटी होती हैं। आज के नेता तो अपनी पत्नी और बच्चों के सिवा दूसरा कुछ सोचते नहीं, आज किसी पार्टी में कल किसी और पार्टी में, सुबह का नाश्ता किसी और पार्टी में दोपहर का भोजन किसी और पार्टी में, ये इनका चरित्र हो गया हैं, ऐसे में समझा जा सकता हैं कि ये देश के प्रति कितने वफादार हैं, अब तो शायद ही कोई ऐसा नेता हैं जो किसी भ्रष्टाचार के दलदल में न फंसा हो, ज्यादातर इस भ्रष्टाचाररुपी गंगोत्री में डूबकी लगा चूके हैं और कुछ लगाने के चक्कर में हैं।
. आज भारत खंडित हैं, आजादी के समय ही भारत दो टुकड़ें में बंट गया था, बाद में चीन और पाकिस्तान ने भी भारत के हजारों वर्ग किलोमीटर भूभाग पर कब्जा कर बैठा. पर किसी की हिम्मत नहीं कि इन हजारों वर्ग किलोमीटर हड़पी गयी जमीन को पुनः भारत में मिला लें।
. बहुत सारे भारतीय अब अमीर बन गये हैं, पर भारत के उपर विदेशियों का इतना कर्ज हैं कि भारत सरकार को बजट का बहुतेरे हिस्सा तो ब्याज देने में खत्म हो जाता हैं।
. स्वतंत्र होने के बाद देश का मान हर क्षेत्र में घटा हैं, हम विश्व कप फुटबाल में भाग लेने के लायक नहीं हैं, हमारे खिलाड़ी किसी भी खेल में गर कुछ जीतते हैं तो ये सरकार की देन नहीं, बल्कि उनकी अपनी मेहनत का फल होता हैं, जिस बांगलादेश को हमने आजाद कराया, वो हमारे लिए काल बन गया हैं, उसके आतंकवादी पूरे देश में फैलकर भारत के अमन चैन के लिए खतरा बन गये हैं, पूर्वोत्तर भारत तो बांगलादेशियों से पट गया हैं, और ये अब उत्तर की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं, और हमारी सरकार वोट बैंक की खातिर, आंख मूंद कर बैठी हैं, एक तो अपनी जनसंख्या और उपर से बांगलादेश की जनसंख्या का दबाव पूरे देश के लिए सरदर्द बन गयी हैं, पर इस पर भी यहां के नेता राजनीति करने से बाज नहीं आते, जबकि दूसरे देश में, ऐसा हैं ही नहीं, गर वहां पता लग जाये कि विदेशियों की बड़ी फौज उनके देश में आ गयी हैं, तो उसके साथ उनके द्वारा ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी जाती हैं कि बाद में उस देश में आने पर, वहां की जनता दस बार सोचने पर मजबूर हो जाती हैं।
. देश का लघु और कुटीर उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो चुका हैं, इसके जगह पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना कब्जा जमा लिया हैं और देश की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से गिरवी हो गयी हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि देश आजादी के बाद बहुत तरक्की किया हैं, मैं बता दूं कि गर ये देश स्वतंत्र नहीं होता, अंग्रेजों के अधीन रहता तब भी तरक्की करता, क्योंकि तरक्की किसी समय का मोहताज नहीं होता। क्या अंग्रेजों के समय डाक व्यवस्था, रेल परिवहन, दूरभाष, आदि जमीन पर नहीं उतरे थे क्या, क्या ये विकास नहीं था, विकास का मतलब कम्प्यूटर क्रांति, सूचना क्रांति होती हैं क्या, विकास का मतलब होता हैं, आंतरिक सोच और सम्मान के साथ बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक भारतीयों को बेहतर जिंदगी प्रदान करना, पर ये क्या आजादी के बाद संभव हुआ हैं।
क्या ये सही नहीं कि देश पर कारपोरेट जगत ने कब्जा जमा लिया हैं, और हमारे नेता इन कारपोरेट जगत की कठपुतली बन कर भरतनाट्यम कर रहे हैं, जमकर लूट मचा रखी हैं, एक बार विधायक अथवा सांसद बने नहीं कि जिंदगी की सारी सुख अपने कदमों पर लाकर खड़ा कर देने की चाहत, इन्होंने बढ़ा रखी हैं। क्या ये सही नहीं हैं कि एक तरफ गरीब जनता चालीस रुपये किलो चावल खरीदने पर मजबूर हैं, पर हमारे नेता संसद भवन और विधानसभा की कैंटिनों में भारतीयो के खून पसीने की कमाई को मुफ्त में उड़ाते चले जा रहे हैं। जरा खुद देखिये आजादी के पहले के नेताओं की जिंदगी और आजादी के बाद के नेताओं की जिंदगी पता लग जायेगा कि इनकी सोच क्या हैं और ये देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं।
आज चीन पूरे देश के लिए खतरा बनता जा रहा हैं, वो पूरे भूभाग को घेर रखा हैं, पर हमारे नेता को इसकी कोई चिंता नहीं।
इन सारी सच्चाईयों के बावजूद भी, भारी गड़बड़ियों के बावजूद भी गर्व कीजिये, क्योंकि आज भारतीय स्वतंत्रता दिवस का 64 वां दिवस हैं। इन बातों पर, पर याद रखिये, इसमें हमारे नेताओं का हाथ नहीं, बल्कि उन भारतीयों को हाथ हैं, जो तन मन धन से अभी भी देश को एक नयी पहचान दिलाना चाहते हैं ------------------------
आजादी के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारतीय चरित्र को सम्मान दिया, महात्मा गांधी के जन्म दिन को अतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया।
आजादी के बाद भारत ने चार युद्ध झेले और इन चारों युद्धों में भारतीय सेना ने भारत की लाज रखी, देश के सम्मान पर आंच आने नहीं दिया।
भारतीय किसानों ने कृषि में भारत को आत्मनिर्भर बनाया।
भारतीयों वैज्ञानिकों की नयी पीढ़ी ने संचार क्रांति और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत को नयी पहचान दिलायी।
विश्व का सर्वश्रेष्ठ और महान लोकतंत्र जहां एक वोट से सरकार गिर जाती हैं, फिर जनता ही चूनती हैं, लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्तान में जनता सरकार बनाती हैं, पर जनता सरकार गिराती नहीं, वहां इसका जिम्मा सेना संभालती हैं।
पूरे विश्व में भारतीय प्रतिभाओं की धाक, अमरीका, इँगलैंड और कई देशों में भारतीयों ने भारत का मान बढ़ाया।
देश के संतों ने विदेशों में जाकर भारतीय धर्म और संस्कृति का ऐसा पताका फहराया कि आज विदेशियों में भारतीय धर्म के प्रति आदर और सम्मान बढ़ता जा रहा हैं, हरे राम हरे कृष्ण आंदोलन के प्रणेता अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी, भारतीय योग को विदेशों में फैलानेवाले स्वामी योगानंद जी जैसे संत इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

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