जब मैं स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहा था, तब मेरे शिक्षक ने बताया था कि अंग्रेज जब भारत में शासन करते थे, तो वे यहां के बेशकीमती सामान अपने देश ले जाया करते थे, साथ ही वे यहां के लघु व कुटीर उद्योगों को नष्ट कर, अपने देश की निर्मित सामग्रियां भारत लाकर बेच दिया करते थे। यहीं नहीं वे यहां की खनिज संपदा को इँग्लैंड ले जाते और इन खनिजों से बनी सामग्रियों को फिर भारत लाकर उंचे दामों पर बेचते, इससे इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था और मजबूत होती जाती, पर भारत और निर्धन होता चला जा रहा था, अंग्रेजों की चिंता अपने देश को येन केन प्रकारेन आगे बढ़ाने की होती जिसको लेकर 15 अगस्त 1947 के पूर्व हमारे देश के नेताओं ने अंग्रेजों से लोहा लिया और देश को स्वतंत्र कराया ताकि भारत स्वयं की नीतियों पर चलकर देश को आत्मनिर्भर और संस्कारित बनवायें। पर........................! आज भारत स्वतंत्र हैं, भारत को आत्मनिर्भर बनाना और संस्कारवान बनाने का जिन पर जिम्मा हैं, वे कर क्या रहे हैं….? इन्होंने अपनी और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक करने का जिम्मा उठा लिया हैं, और निर्धन देशवासियों को दिया हैं सिर्फ और सिर्फ स्वयं का संपोषित जायकेदार भाषण, और इनके भाषणों का जायकेदार ढंग से छापने और दिखाने का जिम्मा ले रखा हैं, देश के तथाकथित पत्रकारों ने।
हाल ही में एक मेरे पत्रकार मित्र ने देश के एक युवा होनहार नेता संभवतः राहुल गांधी का एक बयान पढ़कर मुझे सुनाया, शायद राहुल गांधी उड़ीसा के लांजीगढ़ में भाषण देते हुए कहा था कि देश में दो तरह के लोग बसते हैं एक जिनके पास सब कुछ हैं और एक वे जिनके पास कुछ भी नहीं। वे यानी कि राहुल गांधी ऐसे ही लोगों का जवाब बनना चाहते हैं जिनके पास कुछ भी नहीं, ताकि दिल्ली में बैठी सरकार, उनकी बात सुन सकें, पर राहुल गांधी को कौन बताये कि खुद राहुल जैसे लोग ही अपनी आमदनी मात्र पांच साल में 414 प्रतिशत बढ़ाकर देश को गर्त में ढकेल देने की मुख्य भूमिका अदा कर रहे होते हैं। क्या राहुल देश के गरीबों को बता सकते हैं कि उन्होंने मात्र पांच साल में अपनी आमदनी 414 प्रतिशत कैसे बढ़ा ली…? गर वे अपनी आमदनी मात्र पांच साल में 414 प्रतिशत बढ़ा सकते हैं तो ये ही पद्धति उन गरीबों को भी क्यों नहीं बता देते ताकि वे भी अपनी आमदनी मात्र पांच साल में 414 प्रतिशत बढ़ा लें ताकि किसी राहुल गांधी को उनकी आवाज बनने की आवश्यकता ही न पड़े। वे खुद ही स्वावलंबी बन जाये, पर राहुल जैसे लोगों को इन्हें स्वावलंबी बनाने से क्या मतलब, इन्हें तो अपना जायकेदार भाषण सुनाने से मतलब हैं ताकि उन्हें अखबारों और अन्य मीडियाकर्मियों से वाहवाही मिल जाये और अपनी छवि धीरे धीरे निखारने का वक्त। शायद राहुल गांधी जैसे नेता जानते हैं कि इस देश के गरीबों और दो जून की रोटी खोजनेवालों की पेट तो यहां सिर्फ राहुल के भाषण सुनकर ही भर जाती हैं और बाकी जो बचता हैं वो दूसरे दिन अखबारों अथवा टीवी पर चलनेवाले उनके फूटेज देखकर प्राप्त हो जाता हैं। ऐसे भी यहां के लोगों को स्वावलंबी बनने का समय कहां हैं, गर ये स्वावलंबी अथवा जिस प्रकार से राहुल गांधी जैसे नेता 414 प्रतिशत आमदनी मात्र पांच साल में कर लेते हैं, वो धंधा ये भी शुरु कर दें तो फिर राहुल की भाषण सुनने में दिलचस्पी कौन लेगा।
जरा देखिये, हमारे देश के नेताओं की हरकतें। दिल्ली में इन्हीं की सरकार हैं, जिसके मंत्री कहते है कि वे अनाज सड़ा देंगे पर गरीबों को निवाला नहीं देंगे। ये इन्हीं की सरकार हैं, जिनके मंत्री पी चिदम्बरम को भगवा कलर में आतंक दिखायी पड़ता हैं, शायद राहुल और उनके चाहनेवाले अथवा उनके पदचिन्हों पर चलने की कसम खानेवालों को ये पता नहीं कि जिस भगवा आंतक की बात कर रहे हैं, वो भगवा हमारे देश के तिरंगा में भी दिखायी पड़ता हैं, जो शौर्य व वीरता का प्रतीक हैं, जिस पर कई गीतकारों ने गीत लिखे हैं, एक गीत तो आज भी भारतीय युवाओं में वीरता की लहर दौड़ा देता हैं, जिसके बोल हैं – मेरा रंग दे वसंती चोला, मेरा रंग दे। ये वासंती रंग भी भगवा का ही प्रतीक हैं क्या कहेंगे। क्या अब रंग भी आंतक से जोड़ा जायेगा। ये हैं कांग्रेसी और इनकी सोच, जिनकी सोच पर हमें तरस आता हैं और ये देश निर्माण की बात करते हैं।
कमाल हैं अपनी आमदनी को बेतहाशा ढंग से बढ़ाने में केवल राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि देश के अन्य नेता भी शामिल हैं। ये कांग्रेस, भाजपा, राजद तथा सभी दलों में हैं, जो देश को ताक पर रखकर वो सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहते हैं, जो अन्य देशों के नेता, नहीं करते। जो इसी देश में राज करनेवाले अंग्रेजों ने नहीं किया, अंग्रेज ने भले ही भारत को बर्बाद किया पर वे भी अपने देश ब्रिटेन के हित में ही काम करते थे, पर आज तो देश स्वतंत्र हैं फिर हमारे देश के नेताओं का वो त्याग कहा गया, जो आजादी से पहले और आजादी के बाद कुछ वर्षों तक यहां के नेताओं में दिखाई पड़ा करता था। जरा देखिये कितनी निर्लज्जता से इन्होंने अपने वेतन बेसिक 192000 से 600000, दैनिक भत्ता 1000 से 2000, संसदीय क्षेत्र भत्ता 240000 से 540000, कार्यालय भत्ता 240000 से 540000, हवाई यात्रा भत्ता साल में 34 के जगह 50, टेलीफोन 150000 कॉल से 200000 कॉल और पेंशन 8000 से 20000 रुपये प्रतिमाह बढ़ा ली.
ये ही नहीं हमारे देश के किसानों मजदूरों को अपने खेत के उपकरण लेने के लिए बैंक से जो ऋण लेने पड़ते हैं, उसमें उन्हें ब्याज देनी पड़ती हैं पर ये नेता जब बैंक से 400000 रुपये तक ऋण लेंगे तो इन्हें ब्याज देने की जरुरत ही नहीं। क्योंकि ये देश के नेता हैं, सांसद हैं, इनका जीवन हमारे जीवन से अलग हैं, इन्हें भगवान ने भारत में इसलिये भेजा हैं ताकि ये भारतीय जनता की मेहनत का सही सही उपयोग कर सकें और अपने परिवार को परम सुख का आनन्द जीवन भर देते रहे, कमाल हैं, मेरे देश के नेताओं की सोच।
यहीं नहीं जरा इस ओर भी नजर डालिये -----------------
आम जनता चाय पी रही हैं पांच रुपये कप, और ये अपने कैंटीन में पीते हैं एक रुपये कप, भारत की गरीब जनता दो जून की रोटी कमाने में अपना जीवन बर्बाद कर ले रही हैं, महंगाई ने लोगों का जीवन दूभर कर दिया हैं पर जरा देखिये ये माल भोग खा रहे हैं कैसे जरा देखिये – इनकी कैंटीन के हाल और इनके मौज –
चाय – एक रुपये
सूप – साढ़े पांच रुपये
दाल – डेढ़ रुपये
दही चावल – ग्यारह रुपये
वेज पुलाव – आठ रुपये
फिश करी – तेरह रुपये
फिश कर्ड – सत्रह रुपये
चिकन – साढ़े चौबीस रुपये
चपाती – एक रुपये
चावल – दो रुपये
डोसा – चार रुपये
खीर – साढ़े पांच रुपये
थाली – साढ़े बारह रुपये
नान वेज – बाईस रुपये
बिरयानी – साढ़े बीस रुपये, यानी माल महराज के मिर्जा खेले होली। जनता के पैसे -- मौज कर रहे हैं ये नेता, और जनता मरे तो नेता क्या करें, वो तो बनी हैं ही मरने के लिए। गर संसदीय इतिहास उलट कर देखे तो अपने देश में सात प्रतिशत ही सांसद ऐसे हैं जो बहस में हिस्सा लेते हैं। 18 फीसदी तो आजतक संसद में सवाल किया ही नहीं, जबकि 14 लाख रुपये संसद की हर घंटे की कार्यवाही पर खर्च हो जाती हैं। कमाल का हैं ये अपना देश और कमाल के है ये नेता और कमाल की हैं यहां की जनता जो सब कुछ सहे जा रही हैं, कुछ बोलने को तैयार ही नहीं और जब चुनाव आती हैं तो फिर वो ही करती हैं, जो नेता चाहते है। यानी ये जनता कब जगेगी, कुछ कहां नहीं जा सकता। इस देश का तो भगवान ही मालिक हैं।
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