Monday, January 31, 2011

मैला से मैला साफ करने की कोशिश...!


30 जनवरी को महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर पूरे देश में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आह्वान पर हजारों लोग, सड़कों पर उतरे। सभाएं की, भ्रष्टाचार से अंत अंत तक लड़ने का संकल्प लिया, भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की बात कहीं। भारत के कई राज्यों की राजधानियों और अन्य महानगरों से निकलनेवाले समाचार पत्रों ने भी, इस कार्यक्रम का भरपूर कवरेज किया और दिया। हालांकि प्रथम दृष्ट्या, इसमें वामपंथ की भी थोड़ी बू आयी, पर जिससे देश बनता हैं, वह कोई भी पंथ हो, हमें ग्राह्य हैं। पर क्या, सचमुच, देश में क्रांति हो गयी, लोग जग गये, अब कभी भ्रष्टाचार यहां देखने को नहीं मिलेगा, सरकार इस आंदोलन से घबरा गयी, सरकार में शामिल लोगों ने भी इस आंदोलन के बयार को भांप कर, अब भ्रष्ट न होने की कमर कस ली। कम से कम हमें तो नहीं लगता और साथ ही देश के करोड़ों लोगों को भी नहीं लगता, क्योंकि अपने देश में इस प्रकार के आंदोलन व प्रदर्शन होते रहते हैं, कैसे होते है, और क्यूं होते हैं, ये भी सबको मालूम हैं।
कमाल हैं, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन हुआ, उसमें वे लोग नेतृत्व कर रहे थे, जो आउट ऑफ डेटेड हैं, जिन्होंने जिंदगी का आधा से ज्यादा मजा ले लिया हैं, और अब उनके पास, आज के डेट में सिवाय उनके अपने नाम चमकाने और अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में आने के सिवा कुछ भी नहीं। क्योंकि भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा हैं, जो कभी खत्म नहीं होगा, और इसमें न तो हड़े लगती हैं और न फिटकिरी, रंग भी चोखा हो जाता हैं, सामान्य जनता की नजरों में ये नायक और नायिका के रुप में आ चुके होते हैं और फिर क्या. फिर चुनाव, चुनाव में पार्टी बनाकर लडेंगे, टिकट देंगे और टिकट लेंगे, और फिर अपनी सल्तनत, यानी भ्रष्टाचार खत्म करने के बजाय, खुद भ्रष्टाचार का हिमायती बन जाना। अब तक हुआ क्या हैं, यहीं तो हुआ हैं। आज जो सत्ता में हैं, या जो सत्ता में नहीं हैं, उन्होंने किसके खिलाफ मोर्चा खोलकर सत्ता हासिल की हैं। वो तो भ्रष्टाचार ही तो हैं।
अब जरा देखिये कौन – कौन लोग, कल के कार्यक्रम में शामिल थे।
स्वामी अग्निवेश, योग गुरु रामदेव, श्रीश्री रविशंकर की संस्था। जरा इन महानुभावों से पूछिये कि आपकी संस्था को पैसे कहां से मिलते हैं, और पैसे देनेवाले कौन हैं। क्या सभी ईमानदार हैं, और ईमानदारी से पैसे कमाकर, उनकी संस्था को पैसे पहुंचाये हैं क्या। क्या इनलोगों ने ईमानदारी से देश की जनता को बताया हैं कि उनके पास कितने पैसे हैं और कहां से आये, किसने दिये हैं। हैं इनमें हिम्मत कि वे देश की जनता के सामने अपनी आय को सार्वजनिक कर सकें। यानी दूसरों से पूछेंगे कि उनके पास पैसे कहां से आये पर अपनी आमदनी और उसके स्रोत नहीं बतायेंगे। यानी खुद मैले और मैला पोछने, उसे साफ करने की बात कहेंगे।
सबसे पहले इन महानुभावों से पूछिये कि भ्रष्टाचार का मतलब भी जानते हैं क्या।
भ्रष्टाचार का अर्थ हैं – आचरण से भ्रष्ट हो जाना। जब आचरण ही भ्रष्ट होगा, तो फिर बचा क्या रह जायेगा।
जरा अग्निवेश को देखिये, ये खुद को स्वामी अग्निवेश कहते हैं, पर माओवादियों के घोर हिमायती हैं, ये उनके लिए और उनकी ओर से सरकार से बात करने की भी इच्छा रखते हैं, जब माओवादियों की हत्या होती हैं तो इनका हृदय व्यथित हो जाता हैं, बयान भी दे देते हैं, पर इन्हीं माओवादियों की गोली से आम जनता की मौत होती हैं, सरकारी सेवा में कार्यरत किसी पुलिसकर्मी की मौत हो जाती हैं तो इनके होंठ सील जाते हैं, और ये अपने को संत कहते हैं। यहीं नहीं जो अरुंधती राय कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानती, उसके संग कार्यक्रम करने में इन्हें बड़ा ही आनन्द आता हैं, और ये महात्मा गांधी की शहादत दिवस के दिन नई दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण देते हैं, जिस गांधी ने अंग्रेजों के बंदूक से निकली गोली और भारतीयों के बंदूक से निकली गोली से मरनेवाले लोगों, दोनों को समान बताते हुए अहिंसा को अपनाया। उस गांधी के शहादत दिवस पर दोहरा मापदंड अपनाते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करना, क्या इन दोहरे चरित्रवालों से देश का भला होगा।
जरा योग गुरु राम देव को देखिये, ये खुद को संत कहते हैं, आज तक देश में ऐसा संत हुआ ही नहीं, जो अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगायी हो, पर ये संत ऐसे हैं, जिन्हें अपनी जान संकट में आने लगी, और लगे बयान देने की, उनकी जान को खतरा हैं, लगे हाथों सरकार ने इनकी जान बचाने के लिए जेड श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करा दी। क्या इस रामदेव को गौतम बुद्घ और अंगूलिमाल की कहानी याद नहीं, जरुर याद होगा, पर इसे गौतम बुद्ध थोड़ी ही बनना हैं, ये तो अंबानी और टाटा को टक्कर देने के लिए पैदा हुए हैं। टक्कर दे रहे हैं और अब तो सत्ता की कुर्सी उन्हें दिखाई देने लगी हैं, जो संत सत्ता की राजनीति करे, भ्रष्ट तरीके से प्राप्त धन को, धर्म के नाम पर प्राप्त कर, अपना आश्रम बनाये, उसे भी अधर्म ही कहा जायेगा और इस प्रकार से प्राप्त धन को भ्रष्टाचार की ही श्रेणी में रखा जायेगा, इन संतों को मान लेना चाहिए। क्योंकि इस देश में रामदेव से बढ़कर, अनेक संत हुए, जिनके पांव के धूल भी रामदेव नहीं बन पायेंगे, रामदेव को जो बनना था, बन गये, पर याद रखे, वे देश की गरीब और ईमानदार, मेहनतकश किसानों और मजदूरों को धोखा नहीं दे सकते, ये धोखा दे सकते हैं – गलत तरीकों से धन प्राप्त किये, धंधेबाजों, करचोरी करनेवाले पूंजीपतियों को। सामान्य जनता को बाबा रामदेव, श्रीश्रीरविशंकर, और स्वामी अग्निवेश के आंदोलन से क्या मतलब, या रिटायर्ड नौकरशाहों से क्या मतलब। ये रिटायर्ड नौकरशाहों से ही पूछिये कि जब ये नौकरी में थे, तब क्या, इन्होंने ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहण किया, गर नहीं तो आज भ्रष्टाचार के नाम पर घड़ियाली आंसू क्यों.
गर सचमुच में देश में भ्रष्टाचार, से लड़ने के लिए इन्में जज्बा उत्पन्न हो गया हैं। तो कहा जाता हैं कि जब जगे तभी सबेरा। इन सबकों चाहिए कि अपनी पूर्व जिंदगी के किये गये अनैतिक और भ्रष्ट तरीकों को भी सार्वजनिक करें, कि उन्होंने पूर्व में ये ये गलत तरीके अपनाये, भ्रष्टाचार किया, भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहे, अब संकल्प लेता हूं कि आगे ऐसा नहीं करुंगा, ये देश की जनता को वचन देता हूं। तब जाकर विश्वास किया जा सकता हैं, पर अचानक ये देशभक्ति का छलावा, से आम जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता और न ही भ्रष्टाचार पर रोक ही लग सकता हैं, क्योंकि मैले से मैला साफ नहीं होता, बल्कि गंदगी और फैलती हैं।

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