बचपन में दीपावली पर निबंध जब लिखने को कहां जाता, तो अनायास राम की चर्चा हो जाती। दीपावली पर ये प्रसंग मैं लिखना नहीं भूलता कि जब राम 14 वर्ष के वनवास को पूरा करने के बाद अयोध्या लौटें तौ अयोध्यावसियों ने राम का स्वागत दीपावली मना कर की थी, अर्थात् अपने घरों, चौक चौराहों, सड़कों, विद्यालयों और प्रशासकीय भवनों को दीपों से ऐसा सुसज्जित किया कि उस दिन से चली आ रही ये परंपरा आज भी जीवित हैं. दीपावली हम मनाते जा रहे हैं, पर दीपावली मनाने के क्रम में ये भूल जाते हैं कि जहां राम वहीं अयोध्या और जहां अयोध्या नहीं वहां दीपावली कैसी। राम का मतलब क्या, क्या राम एक व्यक्ति हैं या चरित्र, गर राम एक व्यक्ति हैं तो हमे नहीं लगता कि वनगमन के समय, सुमित्रा लक्ष्मण को ये कहती कि---
तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भांति सनेही।।
अवध तहां जहं राम निवासू। तहंइं दिवसु जहं भानू प्रकासू।।
गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्याकांड में साफ कहा, कि जब लक्ष्मण को पता चला कि श्रीराम को वनगमऩ का आदेश मिला हैं, वे भी श्रीराम के साथ निकलना चाहते हैं, वे अपनी माता सुमित्रा से आदेश मांगते हैं कि माता सुमित्रा सहर्ष श्रीराम के साथ वनगमन का आदेश दे। सुमित्रा भी तनिक मन में पुत्रमोह नहीं रखती और लक्ष्मण से कह बैठती हैं जो मैंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस से उद्धृत चौपाईयों को उपर में लिखा हैं। आजकल सामान्य जन से पूछिये कि दीपावली क्या हैं, बतायेंगे -पर्व हैं, दीये जलायेंगे, गणेश लक्ष्मी की पूजा करेंगे, मिठाईयां खायेंगे - खिलायेंगे और जितनी जेब जवाब दे, उतने का पटाखा छोड़ देंगे, दीपावली संपन्न हो जायेगी, पर दीपावली तो इन सबसे दूर चरित्र की पूजा का पर्व हैं, जो हम सबसे दूर छूटता जा रहा हैं और जहां चरित्र ही नहीं वहां ज्ञान अर्थात् गणेश का प्रादुर्भाव कैसे होगा, और जब गणेश नहीं होंगे तो सत्य मार्ग से लक्ष्मी अर्थात् धन कैसे प्राप्त होगी और जब सत्यमार्ग से लक्ष्मी आयेगी ही नहीं तो फिर संपन्नता कैसे होगी। कोई भी पर्व हमारे यहां जो आदिकाल से चला आ रहा हैं, वो ऐसे ही नहीं बन गया, उसके आधार हैं पर सच्चाई ये हैं कि हम उन आधारों को छोड़ बाह्याडंबरों और आधुनिकता में इस प्रकार खोते चले जा रहे हैं कि उसका प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर पड़ता जा रहा हैं और सब कुछ होते हुए भी हम बावले होकर, सपरिवार समूल नष्ट होते जा रहे हैं, समय आज भी बीता नहीं हैं, सब कुछ वहीं हैं, पर आज भी राम के चरित्र को हम अपने में समाहित कर लें तो फिर दिक्कत कहा हैं। हमारे प्राचीन मणीषियों ने तो बार - बार कहा कि -
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योरमा अमृतंगमय
आखिर, सबसे पहले उन्होने असत्य से सत्य की और जाने की बात क्यों कहीं, इसलिए कहीं कि, कहा गया हैं - सत्य धारयति धर्मः। यानी धर्म सिर्फ सत्य को धारण करता हैं, असत्य को नहीं। फिर दूसरी पंक्ति आयी - अंधकार से प्रकाश की ओर चले। अंधकार से प्रकाश की ओर कौन जायेगा, जो सत्य को धारण करेगा, फिर हैं मृत्यु से अमरता की ओर चले, यानी मृत्यु पर विजय कौन पायेगा, जो सत्य से प्रकाशित होगा। दीपावली इसी सत्य को प्राप्त कर, स्वयं को प्रकाशित और दूसरों को प्रकाशित करने का पर्व हैं, गर आपने ऐसा कर दिया तो दीपावली मना रहे हैं, अन्यथा आप क्या मना रहे हैं, स्वयं सोच लीजिये। मैं कह ही क्या सकता हूं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम वनगमऩ से लौट रहे हैं, उनके साथ सारे लोग मौजूद हैं जो रावण पर विजय प्राप्त करने के समय हृदय से सहयोग किया, वे उन्हें संबोधित कर रहे हैं, कहते हैं ------
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोउं। यह प्रसंग जानई कोउ कोऊ।।
अर्थात अवधपुरी जैसा प्रिय उन्हें कोई नहीं, और ये प्रसंग बहुत कम ही लोग जानते हैं, आखिर त्रेतायुग के इस अवधपुरी में क्या था, बस चरित्र था, और इसी चरित्र से सभी अवांछित तत्व कांपते थे, पर क्या आज वो चरित्र हमारे पास हैं, गर नहीं तो इस दीपावली को क्यों नहीं हम एक आदर्श दीपावली मनाने के लिए एक पग बढ़ाये।