Thursday, October 13, 2011

राष्ट्रनिर्माण का पर्व - विजयादशमी........


विजयादशमी - आज ही के दिन भगवान श्रीराम को महाशक्ति दुर्गा ने विजयी भव का आशीर्वाद दिया था। महाशक्ति के आशीर्वाद से ही भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पायी। सीता को उसके चंगुल से ही नहीं छुड़ाया बल्कि जो वचन उन्होंने विभीषण को दिया था - लंकेश कहकर, उस वचन को भी निभाया। बाद में अपने भाई लक्ष्मण के साथ पुनः अयोध्या लौटे और अवध की संस्कृति को जनजन तक पहुंचाया। यहीं नहीं उन्होंने मर्यादा की अद्भुत मिसाल कायम की। उस मर्यादा की जिसके कारण उनका एक नाम मर्यादा पुरुषोत्तम भी पड़ गया। पुत्र के रुप में, पति के रुप में, शिष्य के रुप में, पिता के रुप में और एक प्रजापालक राजा के रुप में राम की मिसाल शायद किसी लोक में देखने को नहीं मिलती। यहीं कारण हैं कि उनकी प्रशंसा वेदों ने भी गायी हैं ये कहकर कि राम आपके जैसा दूसरा इस त्रैलोक्य में नहीं हैं।
जरा ध्यान दीजिये -------------
आज जो भारत की स्थिति हैं., वैसी ही स्थिति राम के समय भी थी। भारत की सभ्यता और संस्कृति व आध्यात्मिक शक्ति पर रावण की नजर थी, उसकी सेना व गुप्तचर अयोध्या की सीमा तक पहुंच चुके थे, स्थिति ये थी की कोई सुरक्षित नहीं था। महर्षि विश्वामित्र को इसका आभास था -- इसलिए भारत को अखंड रखने के लिए, अपने यज्ञ को बीच ही छोड़कर अयोध्या पहुंचते हैं और महाराज दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग लेते हैं। इन्हीं राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र बातों ही बातों में परीक्षा लेते हैं कि इन बालकों में जिन पर देश की सुरक्षा का भार होगा, क्या वे इस योग्य हैं। वे ताड़का से भिड़वाते हैं और पल ही भर में दोनों राम और लक्ष्मण ताड़का को मार गिराते हैं। महर्षि विश्वामित्र को विश्वास हो जाता है कि जिन बालकों को उन्होंने विद्या ग्रहण कराने के लिए चुना हैं, वे हर भांति योग्य हैं और वे अपने पास पड़ी विद्या को सहर्ष राम और लक्ष्मण को सौप देते है। यही विद्या राम और लक्ष्मण को वनगमन और सीताहरण बाद में रावण पर विजय पाने में भी अक्षरशः सत्य साबित हुई।
विजयादशमी संकल्प लेने का पर्व हैं -- ये उत्साह और जोश भरने का पर्व नहीं, बल्कि संकल्पित होकर देशसेवा के व्रत लेने का दिन हैं। अपने अंदर चरित्र निर्माण और देश निर्माण का व्रत लेने का पर्व हैं। वो भी व्रत कैसा, लाखों संकट क्यों न आ जाये, पर धैर्य नहीं खोना हैं। राम की तरह अटल रहना हैं, गर राम की तरह आप अटल रहोगे तो तुम्हारी जय अवश्य होगी, पराजय का तो सवाल ही नहीं उठता। राम की शक्ति देखिये -- राम को जो कैकेयी वनवास देती हैं, जो मंथरा राम के बारे में सपने में भी अच्छा नहीं सोचती, उस पर भी कृपा लूटाते हैं। शबरी के घर जाकर जूठे बेर खाने में भी उन्हें आपत्ति नहीं होती, वे वानरों और भालूओं के बीच रहकर भी आनन्द महसूस करते हैं, उनके सेना में तो ज्यादातर वानर भालू ही थे, पर एक गिलहरी जो उनके समुद्र पर पुल बनाने के लिए योगदान दे रही होती हैं तो उस पर भी उनकी कृपा पहुंच ही जाती हैं और उसे भी आनन्द देने में तनिक देर नहीं लगाते। महर्षि वाल्मीकि की रामायण हो या तुलसी की श्रीरामचरितमानस गर समय मिले तो पढ़े, पायेंगे कि राम ने सिर्फ दिया, लिया नहीं। जो देता हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ हैं जो पा लिया वो कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकता, सर्वश्रेष्ठ की तो बात ही भूल जाईये।
यहीं कारण है कि राम के आगे सभी नतमस्तक हैं -- कबीर की पंक्तियां हो या रविदास की पंक्तियां या इन पंक्तियों को पाकर किसी ने अपना जीवन धन्य धन्य कर लिया हो, राम तो राम हैं, उन्हीं में समाने में आऩन्द हैं, शायद विजयादशमी भी यहीं बार - बार कहता हैं कि जैसे राम ने रावणरुपी चरित्र का अंत कर दिया, आप भी अपने अंदर समायी हुई बुराई रुपी रावण का अंत कर लो, ताकि जीवन आपका राममय हो जाय।

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