Thursday, September 15, 2011

क्या किसी पत्रकार और राजनीतिज्ञ के बीच पति-पत्नी जैसे संबंध हो सकते हैं......?

14 सितम्बर 2011, दिन के 11 बजे, रांची का एटीआई हॉल, मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का प्रेस कांफ्रेस, इलेक्ट्रानिक व प्रिंट के छायाकारों और पत्रकारों साथ ही राज्य के आला अधिकारियों से पूरा एटीआई खचाखच भरा हैं। मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करने एटीआई पहुंचते हैं, तभी मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डी के तिवारी, अपने सीट से उठते हैं और माईक से कुछ बोलना शुरु करते हैं। अचानक वे तपाक से ये भी बोल देते हैं कि मुख्यमंत्री और आप पत्रकारों के बीच का रिश्ता पति - पत्नी जैसा होता हैं, इसलिए अब हम मुख्यमंत्री को कहेंगे कि वे आप पत्रकारों को संबोधित करें। इधर मुख्यमंत्री अपनी बातें रखना शुरु कर देते हैं। वे बताते हैं कि किन विकट परिस्थितियों में उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली और कैसे एक साल का मार्ग सुगमता से तय किया। जब तक वे बोल रहे होते हैं - सभी पत्रकार , उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे हैं। एक साल की अपनी कार्यकुशलता को बताने में मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को काफी समय लग जाता हैं। इसी बीच मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा पत्रकारों के संबोधन के बाद कुछ पत्रकार, मुख्यमंत्री से सवाल जवाब करते हैं। सवाल - जवाब भी ऐसा कि पूछिये मत। उन सवालों को मैं लिख भी नहीं सकता। पत्रकारों के सवालों से साफ लग रहा था -- कि मुख्यमंत्री के आगे नतमस्तक होने की जिजीविषा संवाददाताओं में पलने लगी हैं, ताकि जब कभी समय मिले, वे मुख्यमंत्री से कृपा पा जाये। आश्चर्य इस बात की भी कि किसी पत्रकार ने ये सवाल नहीं पूछा कि क्या एक पत्रकार का संबंध किसी राजनीतिज्ञ से पति - पत्नी का हो सकता हैं, गर पति पत्नी जैसा संबंध राजनीतिज्ञों और पत्रकारों के बीच होगा। तो फिर क्या ऐसे में उस राज्य अथवा उस राजनीतिज्ञ या जनता का भला होगा। गर नहीं तो फिर पति - पत्नी का संबंध कैसे। चूंकि उस पत्रकार सम्मेलन में मैं भी गया था -- मुझसे रहा नहीं गया। मैने पूछ दिया कि मुख्यमंत्रीजी पहली बार किसी अधिकारी वह भी डी के तिवारी के मुंह से सुनने को मिला कि पत्रकारों और आपके बीच संबंध - पति पत्नी का हैं, तो इसमें आप ये बतायें कि पत्रकार और राजनीतिज्ञ यानी आप के बीच में पति कौन हैं और पत्नी कौन हैं, और जब पति -- पत्नी का संबंध हैं तो फिर पति - पत्नी के बीच जब संवाद होता हैं तो उसमें तीसरा कोई नहीं होता -- ये अधिकारी पत्रकारों और आपके बीच में दीवार क्यों बन रहे हैं, इनकी क्या आवश्यकता। फिर क्या था -- पूरा एटीआई हंसी के ठहाकों से गूंज उठा। इसी दरम्यान डी के तिवारी उठे और कुछ टोका टाकी की। मैंने स्पष्ट कह दिया कि वे आराम से बैठे और मुझे सवाल करने दे, गर सवाल नहीं करने देंगे तो मैं इस पत्रकार सम्मेलन से उठकर चल दूंगा। मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप किया और उन्होंने मुझे प्रश्न पूछने दिया। मैंने इसी ठहाकों के बीच पूछा कि क्या आपके द्वारा कन्यादान योजना चलायी गयी थी उसका क्या हुआ। उ्दयोग के प्रसार के लिए सिंगल विंडो सिस्टम चालू किया गया था क्या हुआ। मनरेगा की क्या स्थिति हैं। जलसंरक्षण के लिए कानून बनाने की बात की थी, उसका क्या हुआ। दूसरी ओर नार्थइस्ट के उग्रवादियों के पांव, झारखंड तक पहुंच गये, सरकार क्या कर रही हैं। मुख्यमंत्री ने अपने उत्तर में कहा कि सबसे पहले मैं आपके पहले प्रश्न का उत्तर दे दूं कि -- ये शोध का विषय हैं कि हममें से पति कौऩ हैं और पत्नी कौन हैं और ये शोध आप पत्रकार ही करें तो बेहतर होगा। फिर एटीआई ठहाकों से गूंज उठा। बाकी बचे प्रश्नों का उत्तर उन्होंने गोलमटोल दिया, जैसा कि आम तौर पर एक राजनीतिज्ञ देता हैं। अब बात चिंतन की, क्या अब राज्य के पत्रकार, राजनीतिज्ञों के पत्नी की रोल में पत्रकारिता करेंगे या उनका कोई सम्मान हैं, गर सम्मान हैं तो अब यहां के पत्रकारों को ही सोचना होगा कि क्या करें कि, फिर कोई अधिकारी फिर कभी किसी राजनीतिज्ञ की उन्हें पत्नी बनाने की कोशिश नहीं करें, नहीं तो पत्रकारिता की जो स्थिति हैं वो तो भगवान भरोसे हैं। ज्यादातर पत्रकारों ने अपनी स्थितियां खुद ही बिगाड़ ली हैं, ऐसे में कोई अधिकारी गर कुछ और नये शब्दों का प्रयोग पत्रकारों के लिए कर दें तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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