Wednesday, December 28, 2011

बेशर्मों को शर्म कहां.............

पांच राज्यों में चुनाव हैं। कांग्रेस ने सुनियोजित साजिश रचकर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए, अल्पसंख्यकों को धर्म के आधार पर आरक्षण दे दिया, जबकि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। इससे कांग्रेस को फायदे हैं, इसाई बहुल गोवा में कहेंगी कि वह इसाईयों को आरक्षण दे दी हैं, सिक्ख बहुल पंजाब में कहेगी कि उसने सिक्खों को आरक्षण दे दिया हैं, और मुस्लिम बहुल उत्तरप्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्रों में वो इसी आधार पर मुस्लिमों को भी आकर्षित करते हुए वोट मांगेगी। संभव हैं, उसे फायदे मिले भी क्योंकि हमारे देश की जनता, कांग्रेस के इस लालीपाप पर आकर्षित हो कर, उसके पक्ष में भारी मतदान कर दे, तो इस पर किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए, क्योंकि यहां की जनता क्या हैं, वो इतिहास बताता हैं, जब अंग्रेज इस देश में आये और विदेशी बाबर इस देश में आया तो कैसे यहां की जनता ने उसका स्वागत करते हुए, अपने देश पर विदेशियों का शासन हंसते हंसते करवाया, और खुद गुलाम बनकर आनन्दित होते रहे, कमोवेश आज भी यहीं स्थिति हैं। भले ही आज की पीढ़ी न स्वीकारें, पर सच्चाई यहीं हैं। फिलहाल कांग्रेस की नजर सर्वाधिक उत्तरप्रदेश पर हैं। अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण का लालीपॉप दिलाने के बावजूद भी, कांग्रेस और कांग्रेस भक्तो को लगता हैं कि अन्ना हजारे उऩके लिए शामत खड़ी कर सकते हैं. इसलिए कांग्रेस को पांच राज्यॉ में जीत सुनिश्चित करने के लिए, कांग्रेस और कांग्रेस भक्तों में धमा चौकड़ी चल रही हैं कि कौन सर्वाधिक सोनिया और राहुल की चरण वंदना करते हुए चाटुकारिता का रिकार्ड तोड़ता हैं। इनमें शामिल हैं - कांग्रेस के कार्यकर्ता-नेता, कांग्रेस भक्त पत्रकार और केन्द्र शासित प्रदेशों में कार्यरत प्रशासनिक उच्चाधिकारी जो कांग्रेसी नेताओं की कृपापात्र बनकर देश का सत्यानाश कर रहे हैं। एक बात मैं बता दूं कि मैं अन्ना, टीम अन्ना और उनके आंदोलन का कतई समर्थक नहीं हूं, गर ज्यादा जानकारी इस संबंध में लेना हैं तो इसी ब्लाग पर अन्ना के आंदोलन और उनके सदस्यों के प्रति हमारे विचार आज भी लिखे पड़े हैं, उन्हें पढ़कर, मेरे विचारों से अवगत हुआ जा सकता हैं, लेकिन अऩ्ना के खिलाफ कांग्रेसियों के आक्रामक रवैये ने हमे ये लिखने पर मजबूर कर दिया कि भारत में जितने भी पागलखाने हैं, उनमें कम से कम कांग्रसियों के लिए कुछ शायिका आरक्षित होने चाहिए क्योंकि ये सभी मानसिक दिवालियेपन के शिकार हो रहे हैं और गर इनका इलाज नहीं किया गया, तो ये पागल होकर भारत के विभिन्न शहरों मे घूमेंगे, जिससे हमें इन्हें देखकर दुख होगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि इनके परिवार, अपने इस पागल सदस्य को देख विधवा प्रलाप करे।
जरा सोनिया का बयान देखिये -- वो कहती हैं कि अन्ना पर व्यक्तिगत हमले नहीं होने चाहिए। सोनिया ये बतायें कि अऩ्ना पर व्यक्तिगत हमले कौन कर रहा हैं। अन्ना को भगोड़ा कौन कह रहा हैं, संघ का एजेंट कौन कह रहा हैं। गर नहीं उसे बूझा रहा तो ऐसी नेता को हम क्या कहें। जरा बेनी प्रसाद वर्मा का बयान देखिये -- ये कह रहे हैं कि अन्ना भाजपा के एजेंट हैं, और भारत पाक युद्ध के समय के भगोड़े भी हैं, तो बेनी जी, भारत सरकार और जिस सरकार में आप भी अपनी गाल लाल कर चुके हैं, बैठ कर क्या कर रहे थे, इसी दिन का इंतजार कर रहे थे क्या, कि कब सोनिया माता की जय बोलने का अवसर मिले, कब अपना सर राहुल के चरण कमलों पर रखने का मौका मिले। गर ऐसा हैं तो आपने सिद्ध कर दिया हैं - राहुल और सोनिया आप की हो गयी, क्योंकि आपने तो ऐसा बयान दे दिया कि आपने पागलपन में दिग्विजय और मणीष तिवारी को भी पीछे छोड़ दिया। इधर कांग्रेसियों को कहीं से पुराना चित्र मिल गया हैं, जिसमें नानाजी देशमुख के साथ अन्ना हजारे का फोटो हैं। इस पर वे बावेला मचाये हुए हैं और अपने कांग्रेस भक्त पत्रकारों को कह रहे हैं कि वे इस मु्ददे को उछालकर, अन्ना की हालत खराब कर दें, पर उन्हें पता नहीं कि जिसका जितना विरोध होता वो उतना ही शक्तिशाली बनकर उभरता हैं। मैं पूछता हूं कि --- नानाजी देशमुख की समाजसेवा व देशभक्ति पर कोई अंगूली उठा सकता हैं क्या। संघ क्या देशद्रोहियों की संस्था हैं क्या, गर संघ देशद्रोहियों की संस्था हैं, तो अटल बिहारी वाजपेयी तो संघ के प्रचारक भी थे, वो तो प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गये। आपके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, हाल ही में उनके जन्मदिन पर, उनके घर पर पहुंचकर शुभकामनाएँ भी दी, तो क्या देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी संघ के एजेंट हैं क्या। देश के पूर्व प्रधानमत्री लाल बहादुर शास्त्री से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी संघ पर कई सकारात्मक टिप्पणी की हैं तो वे सभी संघ और भाजपा के एजेंट थे क्या। पता नहीं आजकल के नेताओं को क्या हो गया हैं, कि सभी संघ - संघ चिल्ला रहे हैं, गर संघ से इतनी ही चिढ़ हैं तो तुम्हारे पास सत्ता हैं, कर क्या रहे हो, औरंगजेब और बाबर की तरह संघ के कार्यालय जहां जहां हैं - ढहवां दो, प्रतिबंध लगा दो, संघ के लोगों को रासुका के तहत जेल में डलवा दो, पर ये भी तुम नहीं कर सकते, क्योंकि आपकी औकात यहां की जनता जिसके पास शर्म और हया बची हैं, वो जानती हैं। आपके घटियास्तर के बयानों के आधार पर ही शायद आप जैसे नेताओँ को छुटभैया, रीढ़विहीन, दलाल, राजनीतिबाज, चिरकुट आदि नामों से विभूषित किया जाता हैं।
और अब मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का बयान देखिये जो यहां की सभी अखबारों में छपा हैं, उनका बयान ही बताता हैं कि उन्हें भी अन्ना के आंदोलन से चिढ़ और कांग्रेस को पुनः सर्वत्र स्थापित करने में कितनी दिलचस्पी हैं। उनका बयान मैंने एक अखबार में पढ़ा -- पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ अभियान करने के टीम अन्ना के प्रस्ताव के औचित्य और नैतिकता पर सवाल खड़ा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने रविवार को चेतावनी दी कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के रास्ते में जो कुछ भी आयेगा, उसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। सवाल ये हैं कि टीम अन्ना के कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन चलाने पर चेतावनी देने वाले, कुरैशी कौन होते हैं। उनका काम हैं चुनाव शांतिपूर्ण और निष्पक्ष ढंग से कराना। पर उन्हें अन्ना या अन्ना की टीम ऐसा करने से रोक रही हैं क्या और गर कोई गलत करेगा, तो उसके खिलाफ कानून अपना काम करेगा। आप संवाददाताओं के माध्यम से टीम अन्ना को धमकाना चाहते हैं कि वे कांग्रेस के खिलाफ बोलने से बचे। आजतक किसी मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस प्रकार से किसी समाजसेवी के खिलाफ बयान नहीं दिया पर इन्होंने बयान देकर बता दिया कि आखिर इनके मन में क्या हैं। सवाल तो ये भी उठता हैं कि उधर कांग्रेस धर्म आधारित आरक्षण की घोषणा करती हैं, और ठीक तुरंत बाद ये पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा करते हैं, आखिर ये सब क्या हैं, इसकी जांच होनी चाहिए। हमें तो लगता हैं कि देश में हर चीज का कांग्रेसीकरण हो गया हैं, जो देश के लिए खतरा हैं। लोकतंत्र के लिए खतरा हैं, जरुरत हैं एक और लोकनायक जयप्रकाश की, जो ऐसी कांग्रेसी सत्ता को धूल चटाने और चुनाव आयोग जैसी संस्था और देश में अन्य प्रशासनिक विभागों में फैलें कांग्रेसी भूतों से देश को मुक्त कराये। हमें लगता हैं कि अब देर नहीं, जल्दी ही वो दिन आयेगा, जब देश कांग्रेसियों के अत्याचार और शोषण से, विदेशी ताकतों के कुचक्रों से, मुक्त होगा, बस थोडी़ मेहनत और लगन से देश सेवा करने की हैं।

4 comments:

  1. न जाने ये क्या हो गया है कि राष्ट्रभक्तों को गाली दो और देशद्रोहियों की वंदना करो,इस काम में कांग्रेसी और कुछ छद्मधर्मनिरपेक्ष दलों के नेता और वामपंथी बुद्धिजीवी शामिल हैं,इन्हें हर उस शख्स और संगठन से नफरत है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होने और संस्कारी देशभक्त बनने की बात करता है. ऐसी उल्टी खोपड़ी वालों का इलाज अब महान भारत देश की शुद्ध-प्रबुद्ध जनता हीं कर सकती है। कृष्ण बिहारी जी को सही तस्वीर सामने लाने के लिए साधुवाद.-पुखराज,हैदराबाद

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  2. दरअसल कांग्रेस तुष्टिकरण की नीति .के आधार पर ही अब तक देश का बंटाधार करती रही है.अल्पसख्यको के लिए आरक्षण का खेल भी उसकी इसी नीति के तहत है. आर आर एस फोबिया भी कोई नई बात नहीं है. यह एक तरह से छद्म धर्म निरपेक्षता वादियों का ढोंग हैं.इन्हें बेनकाब करने की जरूरत हैं. आपने बिलकुल सटीक और वाजिब टिपण्णी की हैं.आपको साधुवाद.RAKESH PRAVEER

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  3. भईया आपने एक गंभीर मुद्दे को जिस संजीदगी से लिखा है वह वाकई में एक चिंतनीय विषय है. पता नहीं इस देश की जनता कब तक कॉंग्रेस की लोमड़ी वाली चालो की शिकार होती रहेंगी. कॉंग्रेस की यह तुष्टिकरण की निति देश की एकता और अखंडता के लिए कितनी घटक साबित हो रही है, इसका एहसास लोगो को तब होंगा जब पछताने के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा. आपका जीतेन्द्र कुमार सिंह, देवघर.

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  4. बंधुवर, इसमें कांग्रेस की कोई गलती नहीं है। २००९ के आमसभा चुनाव में कांग्रेस को ११.६८ करोड़ वोट पड़े थे, इसमें ५.५ करोड़ वोट मुसलमानों के के थे। अगर कांग्रेस मुसलमानों को लिए कुछ भी करती है तो उसकी मजबूरी को समझा जा सकता है, रही-सही वोट बेचारे नरेगा के मजदूर और भोजन की गारंटी वाले लोग डालते हैं सो उनके लिए भी कुछ व्यवस्था हो गया है. बाकी जनता कटाती रहे केक। इनका शासन बदस्तूर चलता रहेगा, तब तक.. जब तक हम सभी वोट डालना नहीं सीखेंगे।

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