Friday, April 13, 2012

वाह री मीडिया.......................

कल तक निर्मल बाबा को इसी मीडिया ने सर आंखों पर बिठाया और आज यहीं मीडिया उनकी खिल्ली उड़ाने में लग गयी। खिल्ली ऐसे उड़ा रही हैं, जैसे लगता हैं कि इस मीडिया को निर्मल बाबा की तरह ब्रह्मज्ञान अथवा परमज्ञान प्राप्त हो गया हो। निर्मलबाबा के बारे में जिनको थोड़ी सी भी जानकारी हैं वे बेझिझक कहते हैं कि निर्मल बाबा मीडिया की नाजायज देन हैं। इसी मीडिया ने अपने सिर्फ चंद रुपयों की लालच के खातिर अपना स्लॉट बेचा और बाबा थोड़े ही दिन में सात समंदर पार पहुंच गये। लोकप्रियता ऐसी की, आज ये मीडिया लाख उसकी आलोचना कर दें, धज्जियां उड़ा दें, पर निर्मल बाबा के भक्तों पर उसका कोई असर नहीं दीख रहा। अब तो निर्मल बाबा के भक्त इन्हें ही देख लेने की योजना बना रहे हैं, कुछ तो अदालत तक की देख लेने की बात कह रहे हैं। ये कैसी विडम्बना हैं............................
हम आपको बता दें कि जिस देश में, अकर्मण्यवादियों, बाह्यडबंरों पर रिझनेवालों तथा चमत्कार को माननेवालों की जनसंख्या रहती हैं, वहां निर्मलबाबा, रामदेवबाबा और न जाने कितने झोलझाल बाबाओं की सियासत चल पड़ती हैं, जिसके कारण पूरा देश बर्बादी के कगार पर आ खड़ा होता हैं। कल यानी गुरुवार देर रात तक एक राष्ट्रीय चैनल ने अपने आपको निर्मल बाबा से अलग करने की बेवकूफी भरी हरकत की। उसने भी निर्मल बाबा की तरह उटपुटांग हरकते अपने चैनल के माध्यम से करने की कोशिश की, पर खुद ये नहीं बताया कि.....................
क. आखिर वो 12 मई से निर्मल बाबा के इस विज्ञापन को बंद करने का क्यों ऐलान किया, तत्काल प्रभाव से उसने ये विज्ञापन क्यों नहीं बंद किया।
ख. जिस निर्मल बाबा की हरकतों को वो दिखाया करता था, उसे आज वो विज्ञापन कह रहा हैं, उसे ये परमज्ञान पहले क्यों नहीं प्राप्त हुआ।
ग. आखिर उसके इस निर्मल बाबा के हरकतों के प्रसारण करने से जो लाखों जनता की बुद्धि भ्रष्ट हुई, उसके लिए वह अपनी जिम्मेवारी क्यों नहीं लेता।
घ. आखिर उसकी इन हरकतों से जो आनेवाली पीढ़ी प्रभावित हुई, मूर्खता और अकर्मण्यता की शिकार हुई, उसके लिए वो पूरे देश से क्षमा क्यों नहीं मांगता।
ड. इस चैनल ने कल इतनी बड़ी बड़ी गलतियां और झूठ बोले, जिसे देख कर कोई भी सभ्य समाज का बुद्धिजीवी खुद शर्मसार हो जायेगा, और कहेगा कि ये भी टीआरपी का ही चक्कर हैं, यानी येन केन प्रकारेण, चाहे निर्मल बाबा से पैसे लेकर, उसकी बातें चैनल में प्रसारित करों अथवा उसकी आलोचना, टीआरपी तो आ ही रही हैं, क्योकि व्यवसाय में मुनाफा तब भी होगा और रही बात जनता की, तो उसने ठेका थोड़े ही ले रखा है। भाड़ में जाये, जनता हम अपनी दुकान चालू रखे और दुकान में तो गड़बड़ियां चलती ही हैं, उदाहरणस्वरुप जब आप एक किलो सरसो तेल के बदले नौ सौ ग्राम तेल पैक कर दे।
इधर रांची में भी सभी प्रिंट मीडिया को परमज्ञान प्राप्त हो गया हैं। दिये जा रहे हैं -- निर्मल बाबा के खिलाफ, पर रामदेवबाबा के खिलाफ लिखने में इन्हें सांप सूंघ जाता हैं। हालांकि दोनों का काम वहीं हैं। एक बेतुकी बातें करके पैसे ऐंठ रहा हैं तो दूसरा सपने दिखाकर पैसे ऐठ रहा हैं और खुद शून्य से शिखर पर पहुंच चुका हैं। आजकल निर्मल बाबा पर लिखनेवालों की बाढ़ भी आ गयी हैं। हम तो इंदर सिंह नामधारी को बधाई देंगे कि वे अपने साले को बधाई दें कि उनके कारण, उनका नाम भी आज चर्चाओं में हैं। साले के नाम व कारनामों से विख्यात होनेवाले शायद ये पहले राजनीतिज्ञ होंगे। जो बिना पैसे दिये ही, सभी चैनलों और अखबारों में धूम मचा रहे हैं। इंदर सिंह नामधारी को भी याद होगा कि यहीं अखबार वाले जब वे चुनाव लड़ रहे थे, तो उनसे पैसे के लिए देह छिल दिये थे, कि गर वे पैसे नहीं देंगे विज्ञापन के लिए, तो उनका निगेटिव प्रचार होगा। पैसे देंगे तो बस उनकी जय जयकार होगी और इससे वे चुनावी वैतरणी लोकसभा की पार कर जायेंगे। ये अलग बात हैं कि उस दिन प्रिंट मीडिया की इस ब्लैकमेलिंग के शिकार, वे बन पाये थे या नहीं। ये नामधारी ही बेहतर बता सकते हैं, पर फिर भी, आज वे बिना पैसों के सुर्खियां बटोर रहे हैं। मैं तो उन्हें दिल से बधाई देता हैं। आज रांची के सारे अखबार कोई पहले तो कोई बाद में निर्मल बाबा के खिलाफ लिखे जा रहा हैं, पर उन अखबारों से पूछिये कि रामदेव के बारे में क्या ख्याल हैं------------------------------
जरा रांची के अखबारों से पूछिये -----------------
क. कल तक योग के नाम कपालभांति करानेवाले बाबा रामदेव, योग के बाद चूर्ण, चटनी और च्यवनप्राश और अब किराना का दुकान नहीं खोल रखा हैं। क्या संत का काम किराना दुकान खोलना हैं। क्या देश में रामदेव को छोड़कर कोई पूर्व के ऐसे संत हैं जिसने किराना का दुकान खोल कर टाटा और अंबानी के कगार पर आ खड़ा हुआ हो। संत तो कबीर थे कहां करते थे -- मन लागा मेरा यार फकीरी में। संत तो गांधी थे, जिन्हें जैसे ही भारत की वस्तुस्थिति का ज्ञान हुआ, लंगोटी धारण कर ली, मृत्युपर्यंत लंगोटी धारण किये रहे, धन से कोई लगाव नहीं था। संत तो धनबाद के ए के राय हैं, जो तीन - तीन बार विधायक और तीन - तीन बार सांसद रहे, पर कभी भी वेतन तो दूर पेंशन तक नहीं लिया।
ख. क्या ये सही नहीं हैं कि रामदेव ने रांची में आज से छह - सात साल पहले ऐलान किया था कि भारत आगामी पांच सालों में महाशक्ति बन जायेगा। एक अखबार ने इसे सुर्खियां बनाया था, वो भी प्रथम पृष्ठ पर। क्या भारत महाशक्ति बन गया। नहीं बना तो ऐसी वाणी संत के हो ही नहीं सकते। क्योंकि संत जो बोलता हैं, वहीं होता हैं। मन, वचन और कर्म से संत एक होते हैं।
ग. देश में रामदेव ऐसे पहले संत हैं, जो पुलिस के डर से लड़कियों/ स्त्रियों की पोशाक पहनकर भाग निकले। यानी देश में इन्होंने संतों को कायरों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। पर यहां के अखबार रामदेव की पोल नहीं खोलते..................। शायद उन्हें रामदेव में देश का भविष्य दिखाई पड़ता हैं।
ऐसे तो देश में कई ऐसे संत हैं, जो खुद को संत कहते हैं पर उनके बयान और हरकत देखिये तो साफ लगता हैं कि संत का लबादा ओढ़े ये पक्के व्यापारी हैं। जो टाटा, अंबानी और मित्तल जैसे कई व्यवासायिक घरानों को भी मात देने में आगे हैं।
एक संत हैं -- आसाराम बापू भारत में रहते हैं और सामान्य जन को भरी सभा में गाली दे देते हैं और खुद को आध्यात्मिक संत कहलाने में गर्व महसूस करते हैं।
एक संत हैं - श्रीश्री रविशंकर भारत में ही रहते हैं और उन्हें सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे नक्सली हो गये प्रतीत होते हैं। पर देश व मेरे प्रदेश की मीडिया को इसकी जानकारी होते हुए भी इनके खिलाफ बोलने व लिखने में परहेज होता हैं। शायद उन्हें पता हैं कि चूहे और बिल्ली की कहानी। और अंत में उस कहानी का सारांश कि आखिर बिल्ली की गले में घंटी कौन बांधे...................।

6 comments:

  1. ek baba jayenga to dusra aa jayenga, phr koi nai kahani aur sagufa, log gali denge par shayad hi koi ispar chintan karenge ki galtiyan to hamne bhi ki hai.........

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  2. ye ek kadvi sacchayi hai sir ki bharat vidambanaon ka desh hai, jahan nirmal baba jayse log krupa jayse shabdon ka galat istemaal karte hain, lekin usse bhi jyada nich wo tv channel or akhbaar hain jo pehle to apne vigyapan ke liye ayse babaon ko sir akhon par bithate hain, phir TRP & lokpriyata badane or janta ke bich acchi chavi ka dambh bharne ke liye in babaon ko dispose karte hain....or usse bhi zyada khatarnaak ye ki kendra sarkaar ka suchna avam prasaran mantralaya pehle bhi gahri nind soya tha....ab bhi soya hai...use desh ki khush hali & logon ke vikash ki koi chinta hi nahi hai

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  3. sawal y nahee ki baba galat hain ...sawal ye hai kihum bhed chal se kyon chal padte hain.bhat sarkar jab tahbajaree basooltee h...tou fir gangee bhee saf use hee karnee chahia...baba kahte hain ve tex dene wale ekmatr baba hain ....dhara 80 ke tahat unki sanstha pajeekrat h...pajeekrt sanstha jisase aay sarkar ko ho rahee hai fir hum sarkar ki aay girane ka huq kisne diya.. hamain aadmee bankar rahne ke liy....midia tou apna dayitva ka nirvahan kartee..jo hochpoch peda ki jarahee hai ye tou hamain hee kee hai jiske liy hum ko hee sochna h0ga...navh n aaye ...batain aangan teda hai.......

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  4. Baba...Pranaaammmmmmmmm................

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  5. Baba...Pranaaammmmmmmmm................

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  6. apne jo 25 march ko likha wo duniya ko bad me pata chala. Media ke bare me apke vichar karve sach hai jisko kahne me aap sadaiv aage rahe hai. aapki ye bate hi aapko our logo de alag rakhati hai. Aapki bat agar log,patrakar aur sarkar sune aur samje to samaj ka kalyan ho.
    Dhanyabad sir

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