Saturday, June 21, 2014

भैया, समय नहीं हैं................

पहले धान कुटाता था
फिर चावल से धान का गर्दा हटाया जाता था
फिर धान के गर्दे को चुल्हें में झोक
भात बनाया जाता था
फिर भी लोगों के पास समय था
गेहूं को घर के जाता में पीसा जाता था
तब तावे पर रोटी बनती थी
फिर भी लोगों के पास समय था
कुएं से पानी लाकर
घर के लोग प्यास बुझाते थे
घर की मां बहने और पुरुष कुएं अथवा चापाकल से पानी लाते थे
फिर भी लोगों के पास समय था
तालाब या कुएं पर जाकर
या घर ही में पानी लाकर
लोग कपड़े धोते थे
फिर भी लोगों के पास समय था
लोगों के पास आवागमन के साधन नहीं थे
एक्का और बैलगाड़ी
ज्यादा हुई तो साइकिल से काम चलाते थे
बस और ट्रके भी देखी
मेल - एक्सप्रेस ट्रेनें भी देखी
फिर भी लोगों के पास समय था
मनोरंजन के नाम पर आकाशवाणी और रेडियो सिलोन
और टीवी के नाम पर दुरदर्शन
फिर भी लोगों के पास समय था
और आज
सब कुछ सहज हैं, पर समय नहीं हैं
रिश्ते खत्म हो गये हैं
बेटा मुंह फुलाता हैं
बेटी और पत्नी भी गुस्साती है
बहु को बात - बात पर जम्हाई आती हैं
मेरे दोस्तों के चेहरे पर हवाईयां उड़ती हैं
और अंततः वे कह उठते हैं
भैया समय नहीं हैं
समय लेकर आउंगा 
तो बातें करुंगा
दिल का हाल सुनाउँगा
जैसे लगता हैं कि किसी दुकान पर जायेंगे
पैसे निकालेंगे
और दुकानदार को कहेंगे
कि भैया रुपये के दो किलो समय तौल दो
वो समय तौलेगा
और वे मुट्ठी में समय लेकर
मेरे पास आयेंगे
तब हमें हाले दिल सुनायेंगे

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