हमने बाबू लाल को भी देखा है...
हमने अर्जुन मुंडा को भी देखा है...
हमने मधु कोड़ा को भी देखा और शिबू सोरेन को भी देखा...
देखने के लिए तो हेमंत को भी देख लिये...
सभी ने डोमिसाइल के नाम पर, स्थानीयता के नाम पर बवाल काटे, राजनीति की
फसल काटी, पर किसी ने भी इस समस्या का संवैधानिक हल निकालने की ईमानदार
कोशिश नहीं की, पर रघुवर दास ने ऐसा कर दिखाया कि सभी राजनीति के इस अखाड़े
में चित्त हो गये...
हमने डोमिसाइल के आंदोलन को नजदीक से देखा है...
स्थानीय नीति के नाम पर 2002 में हुए बवाल, सड़कों पर उठती आग की लपटों,
धू-धू कर जलती मोटरसाइकिलें और कारें, आंदोलनकारियों और पुलिस की गोलियों
से छलनी होती झारखण्ड के नागरिकों की छातियों और लाशों के ढेर पर राजनीति
करते, अपना राजनीतिक फसल उगाते राजनीतिज्ञों, अपने टीआरपी के लिए जद्दोजहद
करते इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों और कैमरामैनों, मीडिया हाउस में इस
आंदोलन को और हवा देने के लिए बन रही रणनीतियों को भी हमने देखा है...
झारखण्ड बने 15 साल हो गये। इस राज्य में अब तक 10 मुख्यमंत्री बने, पर
किसी ने इस समस्या का हल निकालने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। एक ने तो इसी पर
सत्ता भी संभाली पर सत्ता मिलते ही इस नीति को भूल गये, पर दसवें
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बता दिया कि उनमें हर प्रकार की कूबत है, वे हर
समस्या का हल निकालना जानते है, उन्हें पता है कि शासन कैसे चलाया जाता है,
नीतियां कैसे बनायी जाती है और उसे कैसे क्रियान्वित की जाती है...
अभी मुख्यमंत्री रघुवर दास के मुख्यमंत्री पद संभाले एक साल ही बीते है और
उनके इस सीमित कार्यकाल का लेखा-जोखा देखा जाये, तो ये अब तक बने सारे
मुख्यमंत्रियों में बीस साबित हो गये...
आखिर एक साल में इन्होंने क्या – क्या किया...
जरा देखिये...
1. झारखण्ड को अपनी विधानसभा भवन नहीं थी, विधानसभा भवन का निर्माण प्रारंभ करा दिया।
2. झारखण्ड हाई कोर्ट भवन का निर्माण प्रारंभ करा दिया।
3. यहां के पत्रकारों को सम्मान दिया और रांची में प्रेस क्लब का निर्माण शुरु करा दिया।
4. राज्य को उदय योजना में शामिल होनेवाला पहला राज्य बना दिया।
5. आज वर्ल्ड बैंक भारत के अगर किसी राज्य को सर्वाधिक सम्मान दे रहा है, तो वह हैं – झारखण्ड।
6. श्रम सुधार में प्रथम, नीर-निर्मल योजना में प्रथम, आधारभूत संरचनाओं
को ठीक करने में पूरे भारत में अग्रणी, व्यापार सुगमता सूचकांक में तीसरा
और तेजी से विकास करनेवाले राज्यों में चौथा स्थान...और ये सब हुआ हैं
मात्र एक वर्ष में।
7. हजारीबाग के बरही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की नींव डलवाकर, दूसरी हरित क्रांति का बीज बो दिया।
8. रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय ही नहीं, बल्कि खेल विश्वविद्यालय के साथ – साथ तकनीकी विश्वविद्यालय का शुभारंभ कराया।
9. समाज में कुछ लोगों ने अशांति फैलाने की कोशिश की, वह रांची के दंगा प्रभावित इलाकों में खुद ही कूद पड़ा...
10. किसानों के लिए कृषि सिंगल विंडो प्रारँभ करा दिया।
11. उद्योग जगत को झारखण्ड में आकर्षित करने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू कराया, साथ ही साइन वन कार्यक्रम की शुरुआत करा दी।
12. कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कौंसिल का गठन करा कर कारपोरेट से
जुड़े लोगों को उनके दायित्वों के पूर्ति के लिए संवेदनशील बनाया।
13. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का गठन कर, इसे और सशक्त बनाया।
14. आदिवासियों को वनाधिकार पट्टा दिलाया। आदिम जनजातियों के लिए विशेष बटालियन का गठन कराया।
यानी अगर हम विकास की धारा को गिनाने बैठ जाये तो हम 100 की संख्या पार कर
जायेंगे। ऐसी सोच वाला मुख्यमंत्री हमनें झारखण्ड में अब तक नहीं देखी।
सचमुच अगर इरादे व हौसले बुलंद हो तो फिर दिक्कत कहां आती है...
इधर सारे अखबार स्थानीय नीति के समाचार से रंगे है...
मैं जानता हूं कि ये क्यूं रंगे है...
उन्हें पता है कि ये स्थानीय नीति लागू करना बर्रे के छत्ते में हाथ डालने
के बराबर है, जिसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने चुनौती के रुप में स्वीकारा।
हम जानते है कि हर अच्छे काम का विरोध होता है, आजकल तो लोकतंत्र में
विपक्षी दल का काम ही हो गया है कि खुद बेहतर काम न करो और कोई बेहतर काम
करें तो उसके बेहतर काम की प्रशंसा न कर, उसकी आलोचना करना शुरु कर दो,
उसके हर अच्छे काम में अड़ंगा लगाओ, क्योंकि खुद तो अच्छा करना है नहीं,
अगर दूसरा कोई अच्छा करेगा तो उसका राजनीतिक कद, ऊंचा हो जायेगा और ये आज
के विरोधियों को बर्दाश्त नहीं...
जरा अखबार पलटिये...
जो कल तक
स्थानीय नीति को लेकर आंदोलन किया करते थे, जिन्होंने इसका राजनीतिक फायदा
भी उठाया, जैसे बंधू तिर्की और चमरा लिंडा। आजकल इनके धांसू बयान अखबारों
से गायब है। झामुमो ने सरकार द्वारा लागू स्थानीय नीति का विरोध किया है,
और विरोध का जिम्मा उठाया है झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने।
झाविमो और राजद जैसी पार्टियों ने नपा तुला बयान दिया है। हम आपको बता दें
कि बाबू लाल मरांडी के डोमिसाइल नीति के खिलाफ उस वक्त राजद कुछ ज्यादा ही
सक्रिय था, पर चूंकि आज वह विपक्ष में है, इसलिए उसके सुर में बदलाव
स्वाभाविक है।
सवाल यह है कि डर के कारण, हम अच्छा काम करना बंद कर देंगे?
जनहित में फैसले लेने बंद कर देंगे?
हम इसलिए काम करने बंद कर देंगे कि एक बड़ा वर्ग हमसे असंतुष्ट हो जायेगा?
अगर इस प्रकार की सोच हम रखे तो निश्चित ही पार्टी भले ही आगे निकल जाये
या व्यक्ति जरुर आगे निकल जाये, पर अंततः देश व राज्य का नुकसान ही होता
है...
पर रघुवर दास ने इन सारे सवालों पर विराम लगाकर स्थानीय नीति को
परिभाषित कर दिया, इसके लिए इनकी प्रशंसा होनी ही चाहिए। कितने शर्म की बात
है कि छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड ये दोनों राज्य झारखण्ड के समकक्ष ही जन्म
लिये थे, इन्होंने स्थानीय नीति जल्द घोषित कर दी, पर झारखण्ड को स्थानीय
नीति घोषित करने में पन्द्रह साल लग गये।
हमें आज भी याद है कि 2002
में जो स्थानीय नीति के नाम पर दंगे भड़के और जिसमें 6 लोगों की जाने गई।
उसके लिए अगर कोई दोषी है तो वह है
• उस समय की सरकार जिसने इस स्थानीय नीति का ईमानदारी से हल निकालने की कोशिश नहीं की।
• हिंसक आंदोलन कर रहे आंदोलनकारियों पर अंकुश लगाने का काम नहीं किया, बल्कि उसे और हवा दी।
• मीडिया हाउस जिसने अपनी मर्यादा का उल्लघंन किया और डोमिसाइल आंदोलन में
एक दूसरे को देख लेने वाले युवाओं को हतोत्साहित करने के बदले प्रोत्साहित
किया।
• अगर सूत्रों की मानें तो मिशनरियों की भी भूमिका संदिग्ध थी।
आज रघुवर सरकार ने स्थानीय नीति लागू कर दी है। हो सकता है, (हालांकि इसकी
संभावनाएं न के बराबर है) कुछ उपद्रवी इसके नाम पर आंदोलन करें, जरुरत है,
ऐसे लोगों से सख्ती से निबटने की, क्योंकि आज झारखण्ड बहुत आगे निकल चुका
है, और ये उपद्रवी चाहेंगे कि झारखण्ड पुनः विकास की पटरी से नीचे आ जाये,
ताकि रघुवर दास की भी छवि सामान्य मुख्यमंत्री के रुप में जनता के बीच आ
जाये।
हम एक बार फिर मुख्यमंत्री रघुवर दास, दबंग मुख्यमंत्री रघुवर
दास, बोल्ड डिसीजन लेनेवाले मुख्यमंत्री रघुवर दास की इस बात के लिए सराहना
करते है, जिन्होंने स्थानीयता नीति पर बोल्ड स्टेप लिया और अपने घोर
विरोधियों को बता दिया कि वे झारखण्ड को विकास के पथ पर ले चलते हुए, अपने
राज्य को कहा ले जाना चाहते है...
आखिर क्या है रघुवर की स्थानीय नीति...
आइये इस पर गौर फरमाये...
वे सभी स्थानीय माने जायेंगे, जो इस केटगरी में स्वयं को पायेंगे...
• वैसे सभी लोग, जिनका स्वयं अथवा पूर्वज के नाम से पिछले सर्वे खतियान
में नाम दर्ज हो। वैसे मूल निवासी जो भूमिहीन है, उनके संबंध में भी उनकी
प्रचलित भाषा, संस्कृति एवं परंपरा के आधार पर ग्राम सभा द्वारा पहचान किये
जाने पर स्थानीय की परिभाषा में शामिल हो सकेंगे।
• झारखण्ड के वैसे
निवासी जो राज्य में पिछले 30 साल या उससे अधिक समय से निवास कर रहे हों और
अचल संपत्ति अर्जित किया हो। ऐसे व्यक्ति स्वयं, उनकी पत्नी और बच्चे
इसमें शामिल होंगे।
• राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा संचालित या
मान्यता प्राप्त संस्थानों, निगम आदि में नियुक्त एवं कार्यरत अधिकारी और
कर्मचारी एवं उनकी पत्नी और बच्चे।
• केन्द्र सरकार के वैसे कर्मचारी एवं पदाधिकारी जो झारखण्ड में कार्यरत हो, वे स्वयं, उनकी पत्नी और बच्चे।
• झारखण्ड राज्य में किसी संवैधानिक अथवा विधिक पदों पर नियुक्त व्यक्ति और उनकी पत्नी एवं बच्चे।
• ऐसे व्यक्ति जिनका जन्म झारखण्ड में हुआ हो और जिन्होंने मैट्रिक एवं
समकक्ष स्तर की पूरी शिक्षा झारखण्ड में स्थित मान्यता प्राप्त संस्थानों
से पूरी की हो, वे स्थानीय होंगे।
कैबिनेट ने इस नीति पर मुहर लगा दी
है। अब अधिसूचना जारी होने के साथ ही झारखण्ड में यह कानून लागू हो जायेगा।
सचमुच रघुवर दास, आज आप ऐतिहासिक हो गये। आपका हृदय से, फिलहाल इस कार्य
के लिए अभिनन्दन।