जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी भी सदाचार अपनाया ही नहीं, उन्हें भ्रष्टाचार की चिंता सताती जा रही हैं। उन्हें देश में बढ़ते भ्रष्टाचार और उससे प्रभावित होते विकास की तीव्र चिंता हैं। ये वे लोग हैं जो लाखों-करोड़ों नहीं, बल्कि अरबों – खरबों में खेलते हैं। जिनकी दिन की शुरुआत ही भ्रष्टाचार और दिन की समाप्ति भ्रष्टाचार पर ही खत्म हो जाती हैं। इन्होंने आजकल गांधी नाम जप शुरु कर दिया हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे देश के गांवों – मुहल्लों में हरे राम संकीर्तन चल रहा होता हैं। आज से ठीक पांच दिन पहले अन्ना हजारे ने एक प्लान के तहत दिल्ली में लोकपाल विधेयक और भ्रष्टाचार मुद्दे पर आमरण – अनशन क्या शुरु किया। पूरे देश में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों ने इनकी तुलना गांधी से कर दी। पूरे देश में गांधी और गांधीवाद तथा बाकी बचे तो अन्ना हजारे छाये रहे, लेकिन ये अन्ना खेतों और खलिहानों में नहीं, बल्कि सिर्फ अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में ही थे, इधर लगातार अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में छाये रहने के कारण केन्द्र सरकार सकते में आ गयी, अंततः आनन फानन में अन्ना की सारी बातें केन्द्र द्वारा मान ली गयी । हालांकि जानकार ये भी कहते हैं कि केन्द्र सरकार और उसके समर्थकों ने एक कूटनीति के तहत इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कराये और ठीक एकदिवसीय वर्ल्ड कप के बाद इसे शुरु कराया और आईपीएल शुरु होने के पूर्व ही इस कार्यक्रम को समाप्त करने की योजना को मुर्त रुप दे दिया, क्योंकि ये जानते थे कि मीडिया की भी अपनी मजबूरियां हैं, और इसे आईपीएल शुरु होने के बाद, बड़ा मुद्दा मीडिया नहीं बना सकती। इसलिए देश में बड़े घरानों के सौजन्य से चल रहे प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम कर रहे लाखों का मासिक वेतन उठानेवालों ने अन्ना हजारे के आमरण अनशन को हाईलाईट करना शुरु कर दिया और अन्ना हजारे की तुलना गांधी और उसके कार्यक्रमों की तुलना गांधीवाद से शुरु कर दी, साथ ही देश में एक तरह से ऐलान करा दिया कि अन्ना हजारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ दूसरी क्रांति शुरु कर दी हैं, लोगों को इनका साथ देने के लिए बिना विज्ञापन राशि लिए, विज्ञापन शुरु कर दी कि लोग समर्थन करे, इस महापुरुष का। जो बूढ़ा होते हुए भी, युवाओं जैसा काम कर रहा है। ये हल्ला और प्रोपेगंडा करनेवाले वे तथाकथित देश के मूर्धन्य पत्रकार थे, जो अपने मुफ्स्सिल संवाददाताओं के अरमानों का गला घोंटकर, उन्हें औने पौने पैसे देकर, खुद लाखों का वेतन उठाते हैं, और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं। जो अपने अखबारों के प्रचार प्रसार में अरबों खर्च कर देते हैं ये कहकर कि अब घर में आपकी बीबी की नहीं, आपकी चलेगी मर्जी यानी नारी की स्वतंत्रता का हनन करने में भी, जिन्हें शर्म नहीं आती। वे लोग भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए संपादकीय तक लिख डाले थे। जो देश के तथाकथित मूर्धन्य पत्रकार इस प्रकार की हरकतें कर रहे थे, उनकी सोच और उनकी गिरगिट की तरह रंग बदलने की प्रवृति देख, हमें पूर्व के आंदोलन और उसकी वर्तमान अवस्था पर शर्म महसूस हो रही थी। जरा देखिये, अन्ना के आंदोलन का, आज अऩ्ना ने अपना आंदोलन समाप्त कर दिया पर उसके बदले में क्या उसने पाया। सिविल सोसाईटी की ओर से खुद ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य बन गये हैं। जो ड्राफ्टिंग कमेटी बनी हैं, उसके अध्यक्ष शांति भूषण हैं तो बेटे प्रशांत भूषण सदस्य है। इस मुद्दे पर जब किसी ने अऩ्ना से सवाल किया तो अन्ना का कहना था कि दोनों ईमानदार थे, इसलिए उन्हें रखा गया। क्या देश में इन्हीं बाप बेटों में इनको सबसे ज्यादा ईमानदारी दिखी और देश के 121 करोंड़ों में कोई ईमानदार नहीं था। अरे जिसकी बुनियाद ही इतनी छिछोरी हो, तो वो भ्रष्टाचार से कैसे लड़ेगा। अरे गांधी के नाम को बेचकर अपनी दुकान चलानेवालो, जरा सोचों क्या गांधी ने अपने आंदोलन की कभी कीमत वसूली, जैसा कि अन्ना ने वसूला। खूद सदस्य बनकर। क्या गांधी ने कभी भी अपने जीवन में कोई पद पाया। गर नहीं तो फिर गांधी और गांधीवाद के नाम पर इतना नौटंकी क्यों। जो लोग आंदोलन को मूर्तरुप दे रहे थे, जरा पूछिये कि उनकी पृष्ठभूमि क्या रही हैं, जो स्वामी अग्निवेश खुद नक्सलियों के साथ और उसके आंदोलन को प्रत्य़क्ष समर्थन देता हैं, क्या वो स्वामी हो सकता हैं। जो लोग कश्मीर के विघटनकारियों को समर्थन देने में अपनी शान समझते हैं, क्या वे भ्रष्टाचार के खिलाफ और गांधीवाद के समर्थन में कभी भी आगे आ सकते हैं गर नहीं तो फिर गांधी और गांधीवाद के साथ इतनी बड़ी सौदेबाजी क्यों। मैं उनलोगों से पूछना चाहता हूं जिन्होंने इस नौटंकी को गांधीवाद कह डाला। क्या वे बता सकते हैं कि जिस प्रकार गांधी ने भारत में अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंका, क्या इस प्रकार की नौटंकी से अब देश में भ्रष्टाचार का खात्मा हो गया या हो जायेगा। अरे जिस देश में पढ़ाई के नाम पर क्लर्क बनाने और पैसे कमाने की मशीन बनाने की ट्रेनिंग शुरु हो गयी हो, वहां अब भगत सिंह और चंद्रशेखर कहां से पैदा होंगे, और जब ये पैदा ही नहीं होंगे तो फिर भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगेगा। इतनी छोटी बात आंदोलनकरनेवाले लोगों को समझ में नहीं आती। गर नहीं समझ में आती तो वे जाने, पर यहां की जनता जानती हैं। इसीलिए देश के अन्य भागों में अन्ना के इस तथाकथित आंदोलन मे वे लोग शरीक हुए, जो किसी न किसी प्रकार से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, जिन्होंने मां भारती को पग-पग पर अपमानित करने का संकल्प कर रखा हैं। खेतों-खलिहानों अथवा विभिन्न कल कारखानों में काम करनेवाले या प्रिंट अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया में ही काम करनेवाले उन पत्रकारों ने इस आंदोलन से अपनी दूरी बना ली थी, जो सच में बिना किसी शोर-शराबे के देश को नयी दिशा देने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं, जो देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए, कानून बनाने की बात नहीं, बल्कि खुद कानून बनने की कोशिश कर रहे हैं।
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