Thursday, March 31, 2011

क्यों नहीं, क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाय..............!

भारत ने पाकिस्तान को एक बार फिर मोहाली में 29 रनों से हरा दिया। सचमुच एक बार फिर ये बात सिद्ध हो गयी कि पाकिस्तान भारत से खासकर वर्ल्ड कप में हमेशा से हारता रहा हैं और इस बार भी हारेगा। कुछ संयोग भी था कि कुछ कौतुक मोहाली में देखने को मिले, सचिन तेंदुलकर बार- बार आउट होते हुए बचे और उन्होंने 85 रनों का व्यक्तिगत स्कोर खड़ा कर लिया। ये घटनाएं भी बहुत कुछ बता रही थी कि मैच भारत के पक्ष में हैं। खैर ये मेरा विषय भी नहीं हैं, आज के समाचार पत्रों और बीती रात से विभिन्न इलेक्ट्रानिक मीडिया ने धौनी सेना की गुणगान करनी शुरु कर दी हैं और साथ ही ये भी राग अलाप दिया कि भारत ही वर्ल्ड कप जीतेगा, मैं भी भारतीय हूं चाहता हूं कि कप भारत में ही रहे। पर केवल क्रिकेट के ही क्यूं और अन्य खेलों के लिए भी ऐसी भावना क्यूं नहीं। खासकर, हॉकी के लिए, जो कि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हैं। यहीं बात पाकिस्तान के लिए भी क्योंकि हॉकी वहां का भी राष्ट्रीय खेल हैं, पर सच्चाई क्या हैं। सभी को मालूम हैं, दोनों देशों में हॉकी हाशिये पर चला गया हैं। न तो सरकार, न ही अधिकारी, न ही बड़े बड़े पूंजीपति-खेल के आयोजक ही इस खेल में रुचि लेते हैं। पूरे देश में जिस प्रकार से क्रिकेट का जूनून हैं। गांव – शहर, कस्बा मुहल्ला सभी जगह छोटे से लेकर बड़े विकेट और बल्ले की ही बात कर रहे हैं, ऐसे में हमारा अभिमत हैं कि क्यूं नहीं क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाय, क्यूं हम बेवजह उसे राष्ट्रीय खेल मानने को तैयार हैं- जिसपर हम बात करने को अपना समय देने को तैयार नहीं हैं। आखिर हम ऐसा क्यूं कह रहे हैं। उसके पुख्ता प्रमाण हैं। आप उन देशों को लीजिये जहां का राष्ट्रीय खेल फुटबॉल हैं, जरा उन देशों और वहां के निवासियों को देखिये कि वे फुटबॉल को किस प्रकार लेते हैं, पर हमारे देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी के प्रति किस प्रकार अनादर का भाव हैं। वो हॉकी खेलनेवाले खिलाड़ियों की मनोदशा देखकर ही पता लग जाता हैं।
जबकि क्रिकेट की बात हो तो पूछिये मत, गांव – महल्ला, नगर –शहर तो दूर हमारे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक इस पर चर्चा करने लगते हैं। दूसरे मित्र व पड़ोसी देश को क्रिकेट का आन्नद लेने के लिए निमंत्रण तक दे देते हैं। क्रिकेट को लेकर भारत और पाकिस्तान में जैसे मारामारी दीख रही होती हैं, वैसी मारामारी अन्य देशों के खिलाफ होनेवाले क्रिकेट मैचों में नहीं होती। आखिर ऐसा जुनून क्यूं हैं, क्यों हमें पाकिस्तान को हराने में परमानन्द की प्राप्ति होती हैं, जबकि ऐसा ही आनन्द फाइनल में जीतने पर देखने को नहीं मिलता। हमें लगता हैं कि ये शोध का विषय हैं, पर जो सामान्य लोग हैं, वे जानते हैं कि आखिर इसका आनन्द का कारण क्या हैं। किस प्रकार हमारे भारत और पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों ने अपने-अपने पड़ोसी देशों को लेकर, हमारे मन में विषवमन पैदा किया हैं, जिसका परिणाम भारत और पाकिस्तान के साथ होनेवाले सिर्फ क्रिकेट में दिखायी पड़ता हैं, न कि इन दोनों देशों के साथ होनेवाले किसी अन्य मैचों में।
कमाल हैं, जैसे ही क्वार्टरफाइनल में ये श्योर हो गया कि भारत और पाकिस्तान सेमीफाईनल में भिड़नेवाले हैं, हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी और वहां के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भारत मैच का आनन्द लेने के लिए आमंत्रित कर दिया। उधर से भी वहीं प्रतिक्रिया हुई, जिसका अंदेशा कि हम आ रहे हैं। क्या बात हैं जो काम और कोई नहीं कर सकता, क्रिकेट ने कर दिया। दोनों देश क्रिकेट देखने ही नहीं, बल्कि बातचीत को भी तैयार हो गये। जनाब गिलानी पाकिस्तान से आये, खाये-पीये, मैच का मजा लिया और गये। ऐसा लगा कि भारत और पाकिस्तान कभी लड़े ही नहीं थे और न ही कभी लड़ेंगे। यानी भारत और पाकिस्तान अब शांति की डगर पर चल पड़े हैं। इधर सोनिया गांधी और और राहुल गांधी भी मैच देखने के मोहाली पहुंचे और बाकी बचे तो अन्य नेता, व फिल्मी अभिनेता- अभिनेत्री व पूंजीपतियों का बड़ा समूह मोहाली पहुंच गया था। क्रिकेट मैच का आनन्द लेने के लिए। उस क्रिकेट का मजा लेने के लिए जो हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं हैं, और जिनके पास अपने राष्ट्रीय खेल देखने के लिए समय नहीं होता। जरा पूछिये, अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से और उन अन्य नेताओं, अभिनेताओं व पूंजीपतियों से कि क्या ऐसी ही कशिश उनके दिलों में राष्ट्रीय़ खेल के प्रति होती हैं। उत्तर होगा – नहीं। जिस देश में सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठनेवालों के दिलों में अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी के प्रति दर्द नहीं उभरता, उस देश में राष्ट्रीय खेल की क्या स्थिति होगी, वो जो हम देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं, हमसे बेहतर कौन समझ सकता।
हम झारखंड में हैं, जहां हॉकी जन-जन में रचा बसा हैं, जहां कई पुरुष और महिला खिलाड़ी हॉकी के द्वारा अपने देश का मान बढाया हैं। इस प्रांत में भी एक क्रिकेट के धौनी ने, उन हॉकी खिलाड़ियों की चमक थोड़ी फीकी कर दी हैं जिन्होंने हॉकी में अपना ही नहीं बल्कि इस राज्य और देश का मान बढ़ाया पर आज उनकी क्या स्थिति हैं, झारखंड की जनता से बेहतर और कौन जान सकता हैं। धौनी का तो कहना ही नहीं, उसके पास तो इतने धन आ चुके हैं कि पूछिय़े मत, पर इसी राज्य में हॉकी के बल पर देश व राज्य का मान बढ़ानेवाले लोगों की हालत पस्त हैं, उस पर न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकार का ध्यान हैं। ले – देकर बेचारे अपने हालत पर आंसू बहा रहे हैं, पर क्रिकेट के पक्षधरों और उसके झंडाबरदारों ने उनकी सूध तक नहीं ली। वो भी उस राज्य में उस देश में जहां हॉकी राष्ट्रीय खेल हैं।
कल मैंने ये भी देखा कि जैसे ही भारत ने पाकिस्तान पर जीत दर्ज की, सोनिया गांधी और मनमोहन के चेहरे पर खुशी का ठिकाना नहीं था, वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी के चेहरे पर हार का गम साफ दिखाई पड़ रहा था। पूरे देश की तो बात ही अलग थी। क्या दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई की बात करे, सभी खुश, देश ने पाक पर फतह कर लिया। ऐसी खुशी, जिसको अभिव्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे, जब पूरे देश में ऐसा माहौल हो, तो फिर हम तो ये ही कहेंगे कि हे महान देश के महान राजनीतिज्ञों ( दोनों देशों ) आप जल्द ही ये घोषणा कर दो कि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी नहीं, क्रिकेट हैं। क्योंकि तुम घोषणा करों या न करों, आम जनता तो हॉकी को भूलाकर क्रिकेट के रंग में रंग ही चुकी हैं और क्रिकेट को राष्ट्रीयता से जोड़ दी हैं। साथ ही सचिन-धौनी इऩके सरताज हो चुके हैं। तो फिर देर कैसी।

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