Sunday, March 6, 2011

आखिर सुमन गुप्ता को जाना ही पड़ा........।

दसवीं का जब छात्र था, तो उस वक्त कहानी संकलन नामक पुस्तक चला करती थी। उसी में मैंने मुंशी प्रेमचंद की लिखित कहानी नमक का दारोगा पढ़ा था, जिसमें एक पिता अपने पुत्र को नौकरी में जाने के पूर्व हिदायत दी कि बेटा मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद हैं, उपरि आमदनी बहता हुआ स्रोत हैं यानी नाना प्रकार से व्यवहारिक जिंदगी अपनाने की बात, अपने बेटे से कहीं, पर बेटा नहीं माना। नमक का दारोगा बना। ईमानदारी से जिंदगी बितानी शुरु कर दी। एक समय ऐसा आया कि धन ने धर्म पर जीत दर्ज कर ली, पर अंततः कहानी के अंत अंत आते आते, धर्म की जीत हो जाती है। यहीं जीत बताती हैं, कि भारत का ध्येय वाक्य सत्यमेव जयते की सर्वदा जय होती है, इसीलिये भय नहीं करें, संघर्ष करें, आगे बढ़ते जाये, और देश व समाज को नयी दिशा दे दे।
सुमन गुप्ता जो पुलिस अधीक्षक के पद पर धनबाद में शोभायमान थी। आज वो वहां नहीं है, उन्हें राज्य सरकार ने रांची वायरलेस के एसपी पद पर स्थानांतरित कर दिया। धनबाद एसपी के रुप में आर के धान को पदभार ग्रहण करने के लिए कहा गया है। हम आपको बता दें कि सुमन गुप्ता जैसी वीरांगनाएं कई कभी कभार ही जन्म लेती है, जबकि आर के धान जैसे लोगों की संख्या झारखंड में बहुत है, आर के धान न कभी, सुमन गुप्ता बन सकते है और न उन्हें बनने की आवश्यकता है। ऐसे तो राज्य सरकार ने पहले ही सुमन गुप्ता को स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया था पर पता नहीं क्या उनकी मजबूरी हो गयी, उन्होंने स्थानांतरण के फैसले को स्थगित कर दिया और अब अचानक, इसे इम्पलीमेंट करा दिया। हालांकि सामान्य जनता जानती हैं कि ऐसा क्यूं हुआ हैं, और हमें लिखने में कोई दिक्कत नहीं कि राज्य सरकार ने कुख्यात कोयलामाफियाओं और कोयलांचल के कुख्यात अपराधियों, सत्तापक्ष और संपूर्ण विपक्ष में शामिल भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट वरीय पुलिस पदाधिकारियों व भ्रष्ट पत्रकारों के आगे घूटने टेकते हुए, वो कर दिया, जिसकी आशा सामान्य जनता को पहले से ही थी। सामान्य जनता जानती थी कि जिस प्रकार से सुमन गुप्ता कोयलांचल के कोलमाफियाओं पर एक एक कर हमले करते हुए, उन्हें उनकी औकात बता रही हैं, वो ज्यादा दिनों तक धनबाद नहीं टिकेंगी। और आखिर वहीं हुआ भी, नहीं टिकी। ऐसे भी यहां कोई पुलिस पदाधिकारी वो भ्रष्ट ही क्यूं न हो, ज्यादा दिनों तक नहीं टिकता, क्योंकि राज्य के वरीय पुलिस पदाधिकारी आईपीएस ही नहीं, यहां तक की आईएएस अधिकारी भी, जब झारखंड कैडर चुनते हैं तो उनकी पहली और अंतिम इच्छा होती हैं कि एक बार धनबाद संभाला जाये, क्योंकि धनबाद में वो सब कुछ है, जिसके कारण दुनिया की सारी सुख सुविधाएं, देखते ही देखते, उनके घर में आ जाती है। इसलिए हमारा मानना है कि महत्वपूर्ण ये नहीं कि धनबाद में कौन कितने दिन एसपी के रुप में रहा, महत्वपूर्ण ये हैं कि वो जितने दिन भी रहा, कैसे रहा। और हमें ये कहने में गुरेज नहीं कि, सुमन गुप्ता का कार्यकाल अद्वितीय रहा है और आज के बाद धनबाद में जो भी एसपी आयेंगे, उन्हें सुमन गुप्ता बनने में, पसीने छूट जायेंगे। धनबाद से सुमन गुप्ता का जाना, भ्रष्ट व्यवस्था के हावी होने और भ्रष्ट अर्जुन मुंडा सरकार का प्रत्यक्ष और सुंदर उदाहरण है। कुख्यात कोयला माफियाओं, कुख्यात अपराधियों, कुख्यात पुलिस पदाधिकारियों की फौज, इस वीरांगना के खिलाफ लगी थी, जिसमें ये एकमात्र महिला अपनी पूरी ताकत लगाकर, भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ रही थी, ठीक उसी प्रकार जब 1857 में सिंधिया परिवार अंग्रेजों से मित्रता करने की संधि कर रहा था, और उसी वक्त लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से चुन चुन कर बदला ले रही थी, संघर्ष कर रही थी। जिस पर सुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है –
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया,
ने छोड़ी रजधानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो,
झांसी वाली रानी थी।
मैं भी कहना चाहता हूं, जब सुमन गुप्ता भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों, कुख्यात कोल माफियाओं, भ्रष्ट पत्रकारों को उनकी औकात बता रही थी, तब अर्जुन मुंडा की सरकार, इन भ्रष्ट लोगों के साथ सुर में सुर मिलाकर ये कह रही थी कि ऐ भ्रष्टाचारियों, चिंता मत करों, मैं हूं न। जल्द ही, उक्त महिला को, मैं वहां से हटाकर, उसे ऐसा शंट करुंगा कि तुम देखते रह जाओगे। और अर्जुन मुंडा की सरकार ने ये करके दिखा दिया। शर्म – शर्म।
इधर सुमन गुप्ता का स्थानांतरण पत्र आया, उधर उक्त महिला ने तनिक देर नहीं की और अपना बोरा बिस्तर बांध लिया, चल दी। इधर आम जनता को पता लगा कि सुमन गुप्ता जा रही हैं, आम जनता की भीड़ उनके आवास पर आ खड़ी हुई, किसी के हाथों में फूल मालाएं थी, तो कोई उनसे ऑटोग्राफ ले रहा था। आश्चर्य कोई पैसा कमाता हैं तो कोई यश। मैंने कोयलांचल में, कई एसपी को आते जाते देखा, पर आज तक किसी एसपी की, ऐसी विदाई नहीं देखी।
सचमुच मह्त्वपूर्ण ये नहीं, कि कौन कितने दिन जिया, महत्वपूर्ण ये हैं कि वो जितने दिन जिया, कैसे जिया। शेर की तरह या मच्छड़ की तरह। अब धनबाद में शायद ही कोई एसपी के रुप में शेर दिखेगा। शेर लिखने का मतलब, पुरुषार्थ से हैं। सुमन गुप्ता गर चाहती तो वो भी अन्य भ्रष्ट अधिकारियों और समझौतावादी व्यवहार, भ्रष्ट नेताओं की चाटुकारिता कर वो पद पा लेती, जिसकी चाहत यहां के आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को होती हैं, पर जो रास्ता उन्होंने अपनाया है, ईश्वर से यहीं प्रार्थना हैं कि उस पर सदैव चलती जाये, क्योंकि ये मार्ग कठिन है, इस राह में नाना प्रकार की परीक्षाएं होती है और उन परीक्षाओं में सफल होना बहुत ही कठिन होता है। क्योंकि आईएएस व आईपीएस बन जाना आसां हो जाता है, पर इस पद को पाकर, एक अच्छा इंसान बनना, पुरुषार्थी इंसान बनना, लक्ष्मीबाई बनना, बहुत मुश्किल होता है। निरंतर संघर्ष करते जाईये, सुमन जी, आप खूब चमकेंगी, क्योंकि ईश्वर आपके साथ है।

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