Sunday, May 1, 2011

निर्बल को न सताईये, जाकी मोटी हाय...!


झारखंड में अतिक्रमण की आग में छः लोगों की जान चली गयी। सैकड़ों गरीबों के आशियाने उजाड़ दिये गये। जानें उन लोगों की गयी, आशियाने उनके उजाड़े गये, जो आजीवन कमाई करते करते मर भी जाये, तो भी वे किसी जिंदगी में जमीन खऱीदकर अपना आशियाना नहीं बना सकते। ये दलित और अनुसूचित जन जाति से भी नहीं आते कि सरकार इनके लिए इंदिरा आवास उपलब्ध करा दें। पर इन पर गाज लोकतंत्र के तीन स्तंभ कहे जानेवाले विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी ने मिलकर गिरायी। ये रोते रहे, बिलखते रहे, इनके सपनों का आशिय़ाना ढहता रहा, पर किसी को दया नहीं आयी। वह भी तब, जबकि सभी जानते हैं। तुलसीदास ने कहा हैं कि ------------------
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये, जब तक घट में प्राण।।

अतिक्रमण हटना चाहिए, मैं भी इसका पक्षधर हूं, पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर सिर्फ गरीबों पर बूलडोजर चलाना, इसे कायरता व बुजदिली समझता हूं। जिसने भी गरीबों पर बूलडोजर चलायी हैं, उसे उसके किये की सजा ईश्वर अवश्य देगा, चाहे वो कितना भी बड़ा अथवा सर्वशक्तिमान व्यक्ति क्यूं न हो, जो इस अहं में जी रहा हैं कि उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता. वह भी कबीर की, इस पंक्ति को पढ़ ले, गर वो बाल्यकाल से लेकर वृद्धावस्था तक नहीं पढ़ा हो, पंक्तियां है ------------
निर्बल को न सताईये, जाकी मोटी हाय।
मरे मृग के छाल से, लौह भस्म हो जाय।।

राज्य में अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है, कहा जा रहा है कि न्यायालय के आदेश पर चल रहा है, पर ये अतिक्रमण हटाओ अभियान चल कहा रहा है। वहां चल रहा है – जहां गरीबों का निवासस्थल है। जिनकी फूटपाथ पर जिंदगी चलती है और फूटपाथ पर ही समाप्त हो जाती है, पर जिन अमीरों ने कानून को ठेंगा दिखाकर, फूटपाथ को भी नहीं छोडा, उस पर बुलडोजर क्या, एक सूई भी नहीं चूभोई गयी है। ये है – हमारा देश भारत, उसका एक प्रांत झारखंड और उसकी व्यवस्था।
शायद ऐसी व्यवस्था, इसलिए कि लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों ने रामचरितमानस की चौपाईयों को अक्षरशः कंठस्थ कर, उस पर चलना शुरु कर दिया है – ये कहकर कि ----------------------
समरथ के नहिं दोषु गोसाई
आज हमें हरि शंकर परसाई बरबस याद आ रहे है........। उनकी लिखी कहानी भेड़ और भेड़िये याद आ रही है। हमें लगता है कि अतिक्रमण के नाम पर, अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर जिस प्रकार से गुंडागर्दी चली हैं, मुझे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से विश्वास उठ गया है। पूर्व में, जो घटनाएं घटी, जो मेरे आंखों के सामने नहीं घटी थी, फिर भी इस प्रकार की घटनाएं घटित होती थी, तो मैं समझता था कि देश में कानून का राज है। जो लोग गलत करेंगे, उन्हें आज न कल सजा मिलेगी। पर मैंने जो महसूस किया, उसका लब्बोलुआब ये है कि गरीब तो पैदा ही होते है, अमीरों के द्वारा काट दिये जाने के लिए।
गरीबों को तो जीने का अधिकार ही नहीं है, जीने का अधिकार तो सिर्फ उन्हें है – जो हजारों, लाखों और करोड़ों में खेलते है। जो झारखंड के महानगरों में, टूटे – फूटे प्लास्टिक, मिट्टी और कचरों के घरों में रहकर, इन अमीरों के सुख साधन का सामान जूटाने और उनकी सेवाओं में अपना सम्मान तक गिरवी रख देते है, उन्हें जीने का अधिकार किसने दे दिया। शायद यहीं कारण रहा कि गरीबों के आशियाने ढहते रहे, गरीबों के बेटे पुलिसिया गोली के शिकार होते रहे और लोकतंत्र के तीनों स्तंभ चुपचाप मौन रहकर, इनकी बेबसी पर खुश होते रहे, इन्हें इनके हाल पर दया तक नहीं आयी।
ये खुश होनेवाले वे लोग है --------- जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी ईमानदारी नहीं बरती। जिन्होंने इन्हीं गरीबों के पैसे खाकर, उनकी जिंदगी तबाह कर दी और विभिन्न घोटालों को अंजाम दिया। जिन्होंने अपने लिए बिना किसी नक्शा को पास कराये, बड़े-बड़े आलीशान होटल और अपने मकान बनाये। जिन्होंने बेईमानी के सारे रिकार्ड तोड़ कर अपने परिवार के लिए दुनिया के सारे सुखसाधन अपने लिये जुटा लिये और जूटा रहे है। इन पर किसी की नजर नहीं जाती, क्योंकि ऐसे लोग इन लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में बड़ी संख्या में देखने को मिल जाते है। इसलिए इन पर बुलडोजर चले भी तो कैसे। इधर अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर गरीबों के आशियाने पर बुलडोजर चलते रहे, गरीबों के छातियों पर गोलियां चला दी गयी, पर सरकार बेबस थी। केवल एक राग अलाप रही थी कि न्यायालय का आदेश है ----------- इसलिए वह अतिक्रमण हटाओ अभियान चला रही है। विपक्ष न्यायालय पर तो नहीं, पर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा था कि ये गलती सरकार की है। इस अतिक्रमण हटाओ अभियान से मुक्ति सिर्फ अध्यादेश लाकर ही पायी जा सकती है, पर इनके इस अध्यादेश लाने के चक्कर में कितनी मांओं के गोद सुनी हो गयी, शायद लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों को मालूम नहीं। उन्हें ये भी मालूम नहीं कि अपने आशिय़ाने को ढहने का समाचार मिलते ही, कितनों की दहशत में ही जान निकल गयी, पर लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों को इससे क्या मतलब। मौत तो इस देश में होती ही रहती हैं............................
और अब इस राज्य के तथाकथित गुरुजी यानी बात शिबू सोरेन की ------------------झारखंड के लोग, इन्हें गुरुजी के नाम से जानते है, इन्हें गुरुजी किसने बनाया, हमें नहीं मालूम और न ही हम जानना चाहते है। अचानक पता चला, कि ये जनाब अतिक्रमण हटाओ अभियान और गरीबों पर चल रही बुलडोजर से परेशान है, दुखी है। इन्होंने मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखा है कि मुख्यमंत्री जल्द इस समस्या का समाधान करें। बेचारे इतने दुखी थे कि इन्होंने संथालपरगना में होनेवाले उदघाटन और शिलान्यास कार्यक्रम से स्वयं को अलग कर दिया। लगा कि सरकार अब गयी और तब गयी, पर जैसा कि गुरुजी का आदत है कि वे क्या बोलते है और क्या करते है उन्हें खुद मालूम नहीं होता। उन्होंने आनन फानन में कोर कमेटी और पता नहीं क्या – क्या झामुमो की बैठक बुला दी और हुआ वहीं यानी ढाक के तीन पात। सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है, वो सरकार और सरकार के मुखिया से नाराज नहीं है। ये बयान दे डाला। जब सरकार अच्छा ही काम कर रही थी तो उन्होंने अर्जुन मुंडा को पत्र ही क्यूं लिखा कि वे सरकार के काम काज से दुखी हैं या संथाल परगना के उद्घाटन और शिलान्यास कार्यक्रम से खुद को अलग क्यूं कर लिया। यानी ये जनता को बेवकूफ समझते है, ये समझते है कि वे गुरु जी है और झारखंड के नागरिक उनके चेले। जैसा कहेंगे वैसा समझ लेंगे, पर उन्हें ये मालूम नहीं कि उनकी इस गंदी राजनीति को जनता बहुत अच्छे ढंग से समझती है। यहां की जनता जानती हैं कि जो नरसिम्हा राव की सरकार, रिश्वत लेकर बचा सकते है, उस पर भरोसा कभी किया ही नहीं जा सकता और न ही जनता गुरुजी पर विश्वास करती है।

2 comments:

  1. निर्बल को न सताईये, जाकी मोटी हाय।
    मरे मृग के छाल से, लौह भस्म हो जाय।।
    ,,,....
    जब निपट अँधियारा होता है तो समझो उजाला करीब है.. हमेशा एक सा दिन रहेगा यह समर्थों की सबसे बड़ी भूल होती है, और गाहे बगाहे सभी तो यहीं सब कुछ भोगना देखना है..
    बहुत चिंतनशील आलेख ... बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग.... आभार

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  2. Kafi acha laga apka lekh. Mai to itna hi kahunga jo Basir Badr ne kaha hai;

    "Umr bit jati hai ek ghar banane me
    wo taras nahi khate bastiyan jalane me"

    With regards

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