Saturday, May 21, 2011

ऐसे आयोजन से क्या लाभ, जब आप समय का मूल्य न समझे और न अनुशासित हो.....!


16 मई से 20 मई तक राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने रांची के बीएनआर होटल में विभिन्न विभागों पर परिचर्चाएँ करायी, लोगों से सुझाव मांगें कि 12वीं पंचवर्षीय योजनाओं में राज्य की विभिन्न विभागों को योजनाओं को कैसे मूर्तरुप दिया जाय, ताकि झारखंड विकास के क्षेत्र में अग्रणी राज्य बन जाये। लोगों ने सूझाव भी दिये, लोगों ने इनकी परिचर्चाओं में भाग लिया, मीडिया ने अपनी विशिष्ट भूमिका भी निभायी। सच्चाई ये भी हैं कि मैं खुद चाहता हूं कि ये प्रांत जो विभिन्न प्रकार से कष्टों को झेल रहा हैं, आगे बढ़े, शक्तिमान बने, पर जो स्थितियां हैं, उससे साफ लगता हैं कि इस राज्य को अभी भी दुर्दिन देखने हैं, कयोंकि अतीत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य बनता है। अतीत कैसा था, वो आज के वर्तमान को देखकर पता लग रहा है, पर जो आज का वर्तमान है और जिस प्रकार के लोग इस वर्तमान के माध्यम से झारखंड के सुखद भविष्य का सपना संजोये हैं, उससे लगता हैं कि फिलहाल इस प्रांत का भविष्य अंधकारमय है।
किसी भी देश, प्रांत, संस्थान अथवा व्यक्ति के विकास के लिए अनुशासन काफी मायने रखता है, और ये अनुशासन सर्वप्रथम राज्य के प्रमुख व्यक्तियों में देखा जाता हैं कि वो कितना अनुशासित है, क्योंकि जब वो अऩुशासित होगा, तभी उसका देश, प्रांत, संस्थान और वह व्यक्ति विकसित होगा, नहीं तो किसी जिंदगी में वो विकसित नहीं हो सकता और न ही वो देश व प्रांत का कायाकल्प कर सकता हैं, ये छोटी सी बात सभी को समझ में आ जाना चाहिए, क्योंकि ये ध्रुव सत्य है।
कल यानी 20 मई को मुझे सूचना मिली। राज्य के सूचना भवन के माध्यम से कि मुख्यमंत्री आज यानी 21 मई को हटिया डैम का निरीक्षण सुबह 9 बजे करेंगे। आज 21 मई को जब सुबह के दस बजे तब मुझे सुचना मिली की, मुख्यमंत्री 11 बजे हटिया डैम पहुंचेगे, लेकिन जब 1 बज गये तब हमने, मुख्यमंत्री आवास पर फोन लगाया, तब सूचना मिली की मुख्यमंत्री हटिया डैम पहुंचेंगे जरुर, लेकिन अभी विलम्ब हैं, चूकि उन्हें आज जमशेदपुर जाना हैं, इसलिए जमशेदपुर जब जायेंगे तब रास्ते में हटिया डैम भी जायेंगे। ये हैं हमारे राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की सोच। और उनकी समय की पाबंदी तथा अनुशासन। और इधर उऩके समाचार को संकलन करने तथा उनके दर्शन को व्याकुल जनता राहे जोह रही हैं कि मुख्यमंत्री अब आ रहे हैं, तब आ रहे हैं। जहां सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठा व्यक्ति समय और अनुशासन को नहीं समझ पा रहा तो ऐसे में राज्य का विकास कैसे होगा।
विकास कोई निश्चित स्थान नहीं हैं, कि वहां पहुंच गये तो विकास की मंजिल पा ली, ये निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं, इसका लक्ष्य समय समय पर बदलता रहता हैं और यहीं नियति भी हैं पर इतनी छोटी सी बात हमारे देश व प्रांत के भविष्यद्रष्टा को दिखाई नहीं पड़ती। बीएनआर होटल में एक बार हमने जाकर देखने की कोशिश की कि सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को मूर्तरुप देने के लिए जो बैठक बुलायी हैं, उसकी स्थिति क्या हैं। हमने देखा कि वहां वैसे ही लोग हैं जो पूर्व से ही राज्य की विभिन्न योजनाओं पर कुंडलियां मारकर बैठे हैं, जिन्होंने विभिन्न योजनाओं को सत्यानाश करके रख दिया हैं और इसी में अपना उल्लू भी सीधा कर रहे हैं और भ्रष्टाचार की नयी परिभाषा गढ़कर, इतनी कमायी अवश्य कर ली कि इनके सात पुश्तों तक अब आगे पीछे सोचने की जरुरत ही नहीं।
अरे भाई, शिक्षा में सुधार लाना चाहते हो, तो करना क्या हैं..........
सुधार लाओ, किसने रोक रखा हैं, पर सच्चाई ये हैं कि तुम खुद ही नहीं चाहते कि शिक्षा में सुधार हो, क्योंकि गर शिक्षा में सुधार हो गया तो फिर तुम्हारे बच्चों का क्या होगा। हम कहना क्या चाहते हैं दिमाग पर जोर लगाईये। समझ में आ जायेगा। और जिन्हें नहीं समझ में आ रहा। वो ऐसे समझिये। क्या आपके प्रांत के नेताओं, वरीय अधिकारियों, व्यवसायियों, बड़े-बड़े पूंजीपतियों अथवा जिनके पास थोड़े से भी पैसे हैं, उनके बच्चे क्या सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं अथवा सरकारी अस्पतालों में इनकी इलाज होती हैं। गर नहीं तो फिर ऐसे स्कूल अथवा अस्पताल की आवश्यकता क्यूं। अरे भई जिस दिन से इन नेताओं, वरीय अधिकारियों, व्यवसायियों, बड़े बड़े पूंजीपतियों और मठाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने और सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने लगेंगे। ये सब खुद ब खुद ठीक हो जायेंगे। मैंने तो देखा कि जो टीचर जिस सरकारी स्कूल से 40-50 हजार का वेतन उठा रहा होता हैं, वो खुद अपने बेटों-बेटियों को उस स्कूल में न पढ़ाकर, निजी स्कूलों में पढ़ा रहा होता हैं. यहीं नहीं यहीं हाल सरकारी अस्पतालों से अपनी जिंदगी बेहतर कर रहे डाक्टरों का हैं।
पूरे देश व पूरे राज्य को चरित्रहीन बना कर रख दिया और अब चले हैं देश व राज्य को बेहतर बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं पर चर्चा कराने के लिए, ये तो वहीं बात हुई। बचपन में तोता रटंत की कथा वाली बात।
गर सचमुच में कोई राज्य को आगे बढ़ाने की बात करता है तो मैं यहीं सुझाव दूंगा कि पहले गांधी की तरह बनने की कोशिश करो। नहीं तो ये झूठी दिलासा देना बंद करों कि तुम झारखंड को आगे बढ़ाना चाहते हो।
गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे तब वे मुंबई में गोपाल कृष्ण गोखले से मिले, उन्होंने गांधी से सिर्फ यहीं कहा कि गांधी जो आप सोच रहे हो, वो भारत नहीं हैं, पहले आप भारत को निकट से देखो, तब पता चलेगा कि भारत क्या हैं और उसके बाद जब लक्ष्य बनाकर चलोगे तो तुम अवश्य कामयाब होंगे। मैं भी यहीं कहता हूं कि यहां के राजनीतिज्ञ पहले झारखंड को नजदीक से देखे, यहां की जनता क्या चाहती हैं, उनके दिलों से पूछे, राजधानी और बड़े शहरों से प्यार जरुर करें पर गांवों में रहनेवाले लोगों को ये महसूस नहीं होने दें कि वे उऩसे दूर हैं नहीं तो स्थिति भयावह हो जायेगी क्योंकि शहर तक आने के लिए गांव को मजबूत होना बहुत ही जरुरी है। सच्चाई यहीं हैं कि यहां ज्यादातर नेता चालाक है, अपनी चालाकी में ये ज्यादा मशगूल है। और वो चालाकी जनता खूब समझती हैं पर ये समझते हैं कि जनता महामूर्ख हैं।
एक मई को यहां के एक नेता ने मोराबादी मैदान में आमरण अनशन का कार्यक्रम रखा, गांधी बनने की कोशिश की, पर सच्चाई ये भी हैं कि इनके आमरण अनशन को तुड़वाने के लिए न तो सरकार आगे आयी और न ही जनता। खुद इन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को मोराबादी बुलवाया, एक भोजपुरी गायक अभिनेता आया, सभी ने गुहार लगायी, कि वे अऩशन तोड़े और उन्होंने अनशन तोड़ दिया। जबकि गांधी ने जब भी अनशन किया और सत्याग्रह की, तब तब वे कामयाब होकर लौटे। ये हैं कल के गाँधी और आज के नेताओं का चरित्र। ऐसे में ये प्रांत झारखंड कैसे आगे बढ़ेगा। मैं तो यहीं कहूंगा कि बस सारे नेता चरित्रवान बन जाये, समय को पहचाने, आदर्शवादिता को अपनाएं, जो कहें वो करें जो करें वो कहें, मन, वचन और कर्म से एक रहे, फिर देखिये कि ये झारखंड कहां जाता हैं, पर बिना चरित्रवान बने, आप चाहेंगे कि देश व समाज को नयीं दिशा दे दें तो ये तो किसी जिंदगी में आप नहीं कर सकतें और न ही आनेवाले समय में आपको लोग याद रखेंगे।

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