Thursday, June 2, 2011

चला रामदेव हीरो बनने..........

पने देश में एक रामदेव है, जिन्हें कई लोग बाबा रामदेव, योगगुरु रामदेव, संत रामदेव और पता नहीं क्या क्या, विभिन्न नामों से पुकारते है। ये स्वयं को क्रांतिदूत कहलाने में भी फक्र महसूस करते है। इन दिनों इनकी खूब चर्चा है और वो चर्चा है – विदेश में जमा भारतीय काले धन को, देश में लाने के नाम पर आंदोलन करने और आगामी 4 जून से देशव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन करने के ऐलान के कारण। इस ऐलान से सुना हैं कि देश की लोकतांत्रिक केन्द्र सरकार के मुखिया भी हिल गये है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें पत्र लिखकर, उनसे आमरण अनशन न करने की अपील की है। रामदेव ने भी, प्रधानमंत्री के इस मार्मिक अपील से वशीभूत होकर, प्रधानमंत्री पद को लोकपाल से मुक्त करने की बात कहीं है।
हम आपको बता दें कि देश में आज तक ऐसा कोई संत नहीं हुआ। जिसने बाबा रामदेव की तरह, प्लानिंग के तहत, ऐसा काम किया हो, जिसे पूरे संत समाज का सर झूक जाये। एक नहीं, अनेक संत, कितने का नाम लूं। गुरुनानक, रविदास, नामदेव, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, अगर नाम जूड़वाने लगे तो दस पेज, ऐसे संतों के नाम लिखवाने में खर्च हो जायेंगे, पर इतना मान लीजिये कि किसी योगी ने, इस प्रकार से भारत के विभिन्न शहरों में जाकर योग के नाम पर दुकानें नहीं खोली और न चलायी, जो इन्होंने किया है और इन दुकानों से इनकी चांदी भी हो रही है। एक तो रांची में ही संत योगानन्द जी का आश्रम है जो बताता हैं कि संत और संत की गरिमा क्या होती है।
आजकल सारे इलेक्ट्रानिक मीडिया और अखबारों में इनका महिमामंडन हो रहा हैं, जाहिर हैं कि इनके महिमामंडन होने से पूरे देश के लोगों की नजरें इन पर आ टिकी है। ( उन इलेक्ट्रानिक मीडिया और अखबारों के द्वारा महिमामंडन हो रहा हैं जो पिछले कई वर्षों से आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित साईबाबा के खिलाफ खूब विषवमन करते थे, अनाप शनाप दिखाया करते थे, पर जैसे ही उनका स्वर्गवास हो गया, उनका यशोगान करना शुरु कर दिया, और लगे हाथों अपनी गलतियां सुधारने लगे, साई बाबा से संबंधित सकारात्मक खबरों को दिखाने लगे। यहीं नहीं ये वे इळेक्ट्रानिक मीडिया, उनकी जय – जयकार कर रहे हैं, जो पैसे लेकर कभी – कभी दो नंबर के संतों को, विज्ञापन के रुप में प्रोजेक्ट कर, उन्हें महान संतों की श्रेणी में लाने का कुत्सित प्रयास करते हैं) खैर, शेर की खाल में जब भेड़िये होंगे तो समाज और देश का क्या होगा, जगजाहिर है।
फिलहाल केन्द्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और इस सरकार के मुखिया, यूपीए गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा उपकृत और मनोनीत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है, ये वे ही करते है जो उन्हें कहा जाता है। इसलिए बेचारे के बारे में मैं क्या बोलूं......। फिलहाल इन्हें किसी ने कह दिया होगा कि रामदेव के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से सरकार की सेहत पर असर पड़ेगा, उन्होंने रामदेव के आगे अपनी झोली फैला दी। बेचारे रामदेव कहां चुप रहनेवाले थे, संत हैं और संत तो कुछ न कुछ देते हैं, कह दिया कि प्रधानमंत्री सम्मानित और गरिमा वाला पद हैं, इसलिए इस पद को लोकपाल से मुक्त रखना चाहिए, पर ये भी कह दिया कि वे आमरण अनशन के निर्णय पर अडिग हैं।
ये निर्णय का ऐलान करना उऩ्हें जरुरी भी था क्योंकि सारी मीडिया, वो प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक सभी बिना विज्ञापन के उनकी जयजयकार करने, उन्हें महानायक बनाने पर तुली हो तो क्यों न इसका पूरा पूरा लाभ उठा लिया जाय, क्योंकि ये ही वो मीडिया हैं, जिसने बिना किसी विज्ञापन के अन्ना हजारे को हीरो बना दिया था और सरकार झूक गयी थी तो वो तो रामदेव है। इस देश में कई भ्रष्टाचार में लिप्त और सरकार को करोड़ों का चूना लगानेवाले उदयोगपति और राजनीतिज्ञ उनके चेले हैं, जिनकी कृपा से उन्होंने खुद इतना धन इकट्ठा कर लिया हैं कि उतनी संपत्ति देश में शायद ही, किसी तथाकथित संत के पास होगी।
हमारे विचार से संत का शाब्दिक अर्थ हैं --- स+अन्त यानि जो समस्याओं का अंत करें, वो संत। जो समस्याओँ को बढ़ा दे। वो संत कैसे हो सकता हैं। भ्रष्टाचार और देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में सत्याग्रह और आमरण अनशन का विशेष महत्व था। अंग्रेजी सरकार, इससे झूकती थी, क्योंकि एक बहुत बड़ा चरित्रवानों का समूह इन आंदोलन के पीछे रहता था, पर आज की जो स्थिति हैं, उसे देखकर हमें हंसी आती है। हमनें बाल्यकाल से लेकर अभी तक कई पुस्तकें पढ़ी हैं, सभी में सत्याग्रह और आमरण अनशन का जिक्र है, गांधी का सत्याग्रह तो अनुरकरणीय है। गांधी ने कह दिया कि फलां तारीख से वे सत्याग्रह पर है और सत्याग्रह शुरु। न किसी पंडाल की जरुरत और न किसी से उनके साथ रहने का आग्रह और न ये ढिंढोरा पिटवाने की जरुरत कि वे आंदोलन पर जा रहे हैं, पर जरा आज देखिये क्या हो रहा है ----------
रामदेव के इस तथाकथित आंदोलन पर नजर डालिये। एक अखबार ने लिखा हैं कि
दिल्ली के रामलीला मैदान में ढाई लाख वर्ग फुट का पंडाल बन रहा हैं, उस पंडाल में मच्छड़ न रहे, इसके लिए फोगिंग मशीन लगायी गयी है। एक लाख आरओ वाटर का इंतजाम किया गया हैं। 1000 शौचालय बनाये जा रहे है। 40 बेड का वातानूकूल आईसीयू, 3000 वर्ग फुट का चार मंच बनाया जा रहा है। इनकी सुरक्षा में 500 दिल्ली पुलिस के जवान लगाये जा रहे हैं। पांच बड़े एलसीडी स्क्रीन लगेंगे। यानी पूरे आंदोलन को हाईटेक करने की कोशिश की जा रही है। यानी भ्रष्टाचार रोकने के लिए, कालेधन को देश लाने के लिए, ये सब किया जा रहा है, वो भी कोई रामदेव के द्वारा।
जब मैं ईटीवी में था। तब धनबाद में मुझे ईटीवी में सेवा देने का मौका मिला। उस दरम्यान, ये रामदेव, धनबाद आये थे। और वहां के चनचनी कालोनी में एक बहुत बड़े धनाढ्य के घर में उनका प्रवास हुआ था। बड़े – बड़े उद्योगपतियों जो पांच लाख रुपये दे सकते थे, आराम से मिलते, उनके आश्रम को पैसे देने के लिए जीजान से जूटते वो भी उनके साथ खूब गप्पे लड़ाते, आनन्दित होते। एक दिन प्रेस काँफ्रेस हुआ था, उसी चनचनी कालोनी में, उसी धनाढ्य के घर में, मैं भी गया था, देखा कि सारे पत्रकार, उनके साथ फोटो खिचाने के लिए बेताब थे, जैसे कि गर उनके साथ फोटों नहीं खिचाया तो जीवन ही बर्बाद हो जायेगा, ऐसी स्थिति थी। पर मैं इन सबसे अलग रहता हूं क्योंकि पता नहीं क्यूं। घर के हालात या माता पिता द्वारा दिया गया संस्कार अथवा वो श्लोक जो बार बार मेरे कान में गूंजते हैं – अधमा धनं इच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमा, उत्तमा मानं इच्छन्ति, मानो हि महता धनम्।। रामदेव मुझे प्रभावित नहीं कर सकें। क्योंकि मैंने कई संतों के बारें में पढ़ा हैं, जिन्होंने धन के पीछे, यश के पीछे भागा नहीं, वे तो निरंतर, मानव निर्माण में लगे रहते हैं, क्योंकि मानव निर्माण हो गया तो फिर समाज और देश बनने बनाने में कितना समय लगेगा। पर यहां तो एक संत द्वारा एक ऐसे पेड़ बोने की कोशिश की जा रही हैं, जिससे सदाचार फैले, पर उस सदाचार वृक्ष को रोपने में जड़ में पानी न देकर, उसके शिखाओं पर पानी देने की कोशिश हो रही हैं और इस कोशिश में सभी प्रयास कर रहे हैं। कोई गांव-शहर में जाकर मानव निर्माण का कार्य, संस्कार व चरित्र निर्माण का कार्य नहीं कर रहा। सभी पतली गली से राजनीतिक सफर तैयार करने में लगे हैं, एक देख रहा हैं कि जब योग के झांसे से पूरा देश उसके साथ हो गया और भ्रष्टाचार के नारे सें पूरी दिल्ली हिल गयी तो फिर प्रधानमंत्री का पद कितना दूर हैं। दूसरा देख रहा हैं कि बंदूक की गोली से सत्ता हथियाने में अब ज्यादा दूर हैं कहां, कई बुद्दिजीवी प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से उन्हें समर्थन दे ही रहे हैं तो फिर दिक्कत कहां हैं, इस नाहक कमजोर केन्द्र सरकार को उखाड़ फेंकने में कहां दिक्कत हैं, मौका मिलते ही, उखाड़ फेंकेंगे और भारत के गर्दन को जब चाहे, जब तोड़ मरोड़ देंगे और चीन के हाथों सौंप देंगे। दिक्कत कहां हैं।
कमाल है, जिस सरकार को जनता चुनती है, वो सरकार का मुखिया, एक योग के नाम पर झांसा देनेवाले के आगे झूकता हैं, चार – चार मंत्रियों को दिल्ली एयरपोर्ट भेज देता हैं, जैसे कि किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष, उससे मिलने आ रहा हो। उस प्रधानमंत्री से देश के विकास और सम्मान की आशा की जा सकती हैं। इस देश में लोकतंत्र हैं या तथाकथितयोगतंत्र। हमें तो लगता हैं कि इस देश की कोई मर्यादा ही नहीं और न ही कोई गरिमा है। सभी अपने अपने ढंग से इस देश का सत्यानाश करने में लगे है। भ्रष्टाचार क्या कोई बकरी का बच्चा है, दौड़ा और पकड़ लिया, क्या रामदेव में हैं ताकत कि वे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा दें। अगर नहीं तो इस प्रकार का नाटक क्यो, इससे किसका फायदा होगा और किसका नुकसान। ये तो योग के नाम पर झांसा देनेवाले रामदेव को तब पता चलेगा जब वे मृत्युशैय्या पर पड़ें होंगे, क्योंकि वे सब को धोखा दे सकते हैं, अपनी आत्मा को नहीं।
ऐसे भी इस देश का कौन ऐसा चरित्रवान व्यक्ति होगा, जो विदेशों में पड़े अपने देश के काले धन को लाना नहीं चाहेगा, कौन ऐसा चरित्रवान व्यक्ति होगा जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत नहीं चाहेगा, पर इस देश में चरित्रवानों की संख्या कितनी हैं, इनकी संख्या तो देश में विलुप्त होते सिंह की तरह हो गयी हैं, जरुरत हैं, इन चरित्रवानों की संख्या में वृद्धि कराने की, जैसे ही इनकी संख्या बढ़ेगी, भ्रष्टाचार रुपी दावानल खुद ब खुद समाप्त हो जायेगा, फिर किसी तथाकथित रामदेव को, दिल्ली के रामलीला मैदान में करोड़ों खर्च कर, इस प्रकार की झूठी आंदोलन करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।

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