पूरे देश में मानसून की चर्चा हैं, वैज्ञानिकों की मानें तो इस बार मानसून अच्छा रहेगा। भारतीय विद्वानों का समूह जो नक्षत्रों की भाषा समझता और जानता है, उसका भी मानना हैं कि इस बार नक्षत्र चमत्कार दिखायेंगे, पिछली बार इन नक्षत्रों ने भी दगा दिया था, पर इस बार ज्यादातर नक्षत्रों का समूह अच्छी वृष्टि की संकेत दे रहे हैं, आखिर ये नक्षत्र कब आयेंगे और इनका क्या लक्षण होगा। इस पर हमें विचार करना चाहिए। आज भले ही, आप मौसम विभाग के चक्कर काट लें और मौसम विभाग जिस प्रकार से आपको अपनी बात कह दें, आप उसे मानने को तैयार हो जायेंगे, ये कहकर कि, उसका वैज्ञानिक आधार हैं, पर आज से लेकर सैकड़ों साल पहले, ऐसी बात नहीं थी। किसानों और मानसून के बारें में जानने की इच्छा रखनेवाले लोगों का समूह, पंडितों और विद्वानों के पास पहुंचता था कि आखिर इस बार नक्षत्र क्या संकेत दे रहे हैं। पंडितों और विद्वानों का समूह इन नक्षत्रों की दशा और दिशा देखकर बता देता कि इस बार मानसून दगा देगा या अच्छी बारिश होगी, ये तो रही कल की बात पर, आज भी कमोवेश स्थिति यहीं हैं, जिन्हें थोड़ा बहुत भी नक्षत्रों की जानकारी है, वे पंडितों से पूछ ही देते हैं कि आखिर इस बार मानसून अथवा बारिश कैसी रहेगी। हमनें भी इन पंडितों से पूछने की कोशिश की है, उनका कहना हैं कि इस बार बारिश अच्छी होगी और उसके संकेत नक्षत्र दे चुके हैं। एक दो नक्षत्रों को छोड़, बाकी सारे नक्षत्र इस बार अच्छी वृष्टि के संकेत दे रहे है।
क. आद्रा -- 22 जून की रात 9.11 से प्रारंभ -- सुवृष्टि योग
ख. पुनर्वसु -- 6 जुलाई की रात 10.45 से प्रारंभ -- सामान्यवृष्टि योग
ग. पुष्य -- 20 जुलाई की रात 12.15 से प्रारंभ -- सुवृष्टि योग
घ. आश्लेषा –- 3 अगस्त की रात 12.53 से प्रारंभ -- सृवृष्टि योग
ङ. मघा – 17 अगस्त की रात 12.09 से प्रारंभ -- सामान्य वृष्टि
च. पूर्वाफाल्गुन - 31 अगस्त से की रात 9.30 से प्रारंभ -- सुवृष्टि योग
छ. उत्तराफाल्गुन - 14 सितम्बर को दिन में 3.59 से प्रारंभ – सुवृष्टि योग
ज. ह्स्त –- 28सितम्बर को प्रातः 7.15 से प्रारंभ –- स्वल्पवृष्टि योग
झ. चित्रा --- 11 अक्टूबर को रात्रि 7.38 से प्रारंभ –- स्वल्पवृष्टि योग
यानी हस्त जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में हथिया नक्षत्र कहते हैं, इस बार इस नक्षत्र में भारी बारिश या सामान्य बारिश की अपेक्षा कम बारिश होने की संभावना हैं, जबकि लोग बताते है कि हथिया की बारिश में तबाही हो जाया करती थी। इसी प्रकार उत्तरा नक्षत्र को कनवा नक्षत्र कहकर भी लोग संबोधित करते है। हमारे जनकवियों ने भी बारिश के बारे में खुलकर विचार दिया हैं और उनके विचार आज भी प्रासंगिक है......................... घाघा कवि को ले लीजिए, उन्होंने कहा हैं कि---
रेवती रवे मृगशिरा तपे,
कछु दिन आदरा जाये,
कहे घाघा जिन से,
श्वान भात न खाये.
यानी जिस कालखंड में रेवती रव गया और मृगशिरा नक्षत्र तप गया समझ लीजिये आदरा ऐसा झमझमाएगा और फसल इतनी अच्छी होगी कि कौआ भी अघा जायेगा। ये है हमारी संस्कृति और मानसून की सांकेतिक दृष्टिकोण और हमारे पूर्वजों की भाषा.
apne sahi likha. Vigyan ki apni bhasha hoti he. Vigyan ki utpatti pichle kuch 50 warsho ki he. lekin mausam ki jankari log pahle bhi rakhte the aur unka madhyam hota tha naqshtron ki satik jankari. Appka lekh kafi jankari se bhara hua he.
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