काश! हमारे देश के नेता गरीब होते,
वो दिन भर काम करने के बाद बीस रुपये कमा पाते,
उनके कम से कम एक बच्चे होते,
जिन्हें स्कूल भेजने का सपना होता,
वो कम से कम दिन में एक बार बाजार जाते,
बाजार जाकर, आटा, चावल, दाल और सब्जी लाते,
केवल आटा, चावल, दाल और सब्जी ही लाने में,
उनकी कमर टूट जाती,
तो फिर अखबारौं में हमें लगता हैं कि
आज जैसे विज्ञापन नहीं आते,
कि पाकिस्तान, नेपाल और बांगलादेश से भी कम रेट,
गैस सिलिंडरों के दाम भारत में हैं
मिट्टी तेल और डीजल के लिए आज भी अपनी सरकार सब्सिडी दे रही है,
कमाल ये भी हैं
कि भारत की जनता की कमाई अंकगणितीय ढंग से बढ़ती हैं
पर भारत के नेताओं की
कमाई ज्यामितीय प्रणाली सी बढ़ती हैं
एक नेता पांच साल में,
अपनी कमाई 200 से 1785 प्रतिशत तक बढ़ा लेता हैं,
पर हम आज तक ईमानदारी से,
दो जून रोटी भी ठीक से नहीं खा पाये,
ये कहते हैं कि अपने देश में लोकतंत्र हैं
पर ये लोकतंत्र सिर्फ,
इन्हीं के घरों में दिखता हैं,
इनकी बीवियां करोड़ों में नहाती हैं.
गरीबों की तो चिथड़ों में नजर आती हैं
पता नहीं बापू का लोकतंत्र कहां खो गया।
हम आज भी वहीं हैं,
नेता हमारा बहुत दूर निकल गया।
कोई ढूंढ कर ला दो,
मुझे वो गांधी,
जो लाठी लेकर चलता था,
चिथड़ों में दिखता था
अपना चेहरा उसमें नजर आता था,
हम खुश थे,
क्योंकि वो भी मेरे जैसा था,
पर आज तो अजब गजब हैं
जो नेता हैं,
खुद को गांधीवादी कहता हैं.
खूब टीप टॉप में रहता हैं
चम्मच कांटे से खाता हैं
पता नहीं क्या हैं य़े,
नेता का चक्कर की,
कुछ बनते ही,
बोलेरो से चलता हैं।
काश इस पर भी वे विज्ञापन लाते,
बताते कि उनके जीवन शैली का,
राज क्या हैं,
पर शायद ही ऐसा विज्ञापन दिखेगा,
ये नेता अपने ही लोगों को लहू पीयेगा,
झूठ बोलेगा,
अपने ही देशवासियों के धन से,
अपने परिवार को राजसुख देगा,
मरती रहे जनता अपनी बला से,
हम पैदा हुए हैं, राजभोगने को,
राज भोगेंगे।
दाम बढ़ायेंगे, महंगाई हमने थोड़ी बढाई
अमेरिकी ने कह दिया बढ़ा दी।
बाजार हमसे थोड़े ही नियंत्रित हैं,
इसका तो अंतर्राष्ट्रीय फंडा हैं,
केवल नामके हम मंत्री, प्रधानमंत्री हैं,
असली राजा तो विदेशों में बैठे हैं,
जिनके हम कठपुतली हैं।
Wednesday, June 29, 2011
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