Tuesday, June 19, 2012

नक्षत्रों की दृष्टिकोण में मानसून

पूरे देश में मानसून की चर्चा हैं, वैज्ञानिकों ने पूर्व में घोषणा की थी कि मानसून समय पर आयेगा, पर सच्चाई ये हैं कि मौनसून केरल में सामान्य तौर पर समय से आया जरुर पर दगा भी दे गया। आज चारों ओर हाहाकार मचा हैं। खासकर रांची के आकाश में बादलों का झूंड आते जरुर हैं पर बरसते नहीं, आखिर क्यों। इधर भारतीय पंचागों और विद्वानों की मानें तो उनका कहना हैं कि इस बार मानसून उतना अच्छा नहीं रहेगा, जितना कि पिछले साल था। पिछले साल ज्यादातर वर्षा के नक्षत्र सुवृष्टि योग लेकर आये थे। इसलिए पिछले साल ये भी देखने को मिला कि इन नक्षत्रों में जमकर बारिश हुई और फसल भी अच्छी हुई, पर इस साल बात ही कुछ और हैं। भारतीय विद्वानों का समूह जो नक्षत्रों की भाषा समझता और जानता है, उसका मानना हैं कि इस बार नक्षत्र चमत्कार नहीं दिखायेंगे, क्योंकि इस बार सृवृष्टि का योग हैं ही नहीं। ज्यादातर नक्षत्रों में स्वल्पवृष्टि, खंडवृष्टि या सामान्यवृष्टि का योग हैं। ऐसे में इस बार वर्षा पिछले वर्ष की तुलना में सामान्य होगी न कि शानदार...................................

क. आद्रा -- 22 जून को प्रातः 5.29 से प्रारंभ -------- स्वल्पवृष्टि योग
ख. पुनर्वसु -- 6 जुलाई को दिन 07.04 से प्रारंभ -- खंडवृष्टि योग
ग. पुष्य --- 20 जुलाई को दिन 8.30 से प्रारंभ ----- अल्पवृष्टि योग
घ. आश्लेषा – 3 अगस्त को दिन 8.52 से प्रारंभ --- खंडवृष्टि योग
ङ. मघा – 17 अगस्त को दिन 7.39 से प्रारंभ ---- स्वल्पवृष्टि योग
च. पूर्वाफाल्गुन --- 30 अगस्त की रात 4.20 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग
छ. उत्तराफाल्गुन – 13 सितम्बर को रात 10.30 से प्रारंभ – खंडवृष्टि योग
ज. ह्स्त – 27 सितम्बर को दिन 1.53 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग
झ. चित्रा --- 10 अक्टूबर को रात्रि 2.23 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग

यानी हस्त जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में हथिया नक्षत्र कहते हैं, इसबार इस नक्षत्र में भारी बारिश या सामान्य बारिश की अपेक्षा कम बारिश होने की संभावना हैं, जबकि लोग बताते है कि हथिया की बारिश में तबाही हो जाया करती थी। इसी प्रकार उत्तरा नक्षत्र को कनवा नक्षत्र कहकर भी लोग संबोधित करते है। हमारे जनकवियों ने भी बारिश के बारे में खुलकर विचार दिया हैं और उनके विचार आज भी प्रासंगिक है.........................घाघा कवि को ले लीजिए, उन्होंने कहा हैं कि
रेवती रवे मृगशिरा तपे कछु दिन आदरा जाये
कहे घाघा जिन से श्वान भात न खाये
यानी जिस कालखंड में रेवती रव गया और मृगशिरा नक्षत्र तप गया समझ लीजिये आदरा ऐसा झमझमाएगा और फसल इतनी अच्छी होगी कि कौआ भी अघा जायेगा। ये है हमारी संस्कृति और मानसून की सांकेतिक दृष्टिकोण और हमारे पूर्वजों की भाषा. पर इस बार न तो आद्रा झमझमाने का
संकेत दे रहा हैं और न अन्य नक्षत्र ही कोई ऐसा संकेत दे रहे हैं, जो ये बता सकें कि इस बार नक्षत्र
पिछले साल की तरह शानदार बारिश कराकर भारतीयों को वारा न्यारा करेंगे।

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