Tuesday, September 11, 2012

अर्जुन मुंडा सरकार के दो साल......................

अर्जुन मुंडा सरकार के दो साल हो गये। उस सरकार के दो साल हुए, जिस सरकार में शामिल दलों में आपसी समन्वयता हैं ही नहीं। इस सरकार की यहीं सबसे बड़ी प्रमुख बात हैं। सांप्रदायिकता के नाम पर भाजपा को हरदम गाली देनेवाली झामुमो और निरंतर सत्ता के निकट गणेश परिक्रमा करनेवाली आजसू जैसी दलों की खिचड़ी सरकार ने जैसे तैसे दो साल पूरे कर लिये हैं। ये सचमुच बड़ी बात हैं। कहने को एक बार फिर अर्जुन भक्त पत्रकार व मीडिया वहीं कह रहे हैं, जो एक साल पहले कहा था, यानी उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इसलिए वे कहेंगे क्या। निरंतर सरकारी विज्ञापनों की चाहत ने उन्हें सत्य बात लिखने और बोलने से रोका भी हैं, पर हम अपनी क्या कहें, कहे बिना और लिखे बिना रुक नहीं सकता, इसलिए मन किया, लिख रहा हूं. जनता निर्णय करें, सत्य क्या हैं और असत्य क्या हैं।
एक बार फिर एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक ने लिखा हैं कि पंचायत चुनाव और राष्ट्रीय खेल इस सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि हैं, पर सच्चाई ये है कि ये दोनों उपलब्धि पिछले साल की हैं, न कि इस साल की। हुआ तो ये हैं कि सरकार ने पंचायत चुनाव तो कराये पर पंचायतों को अधिकार ही नहीं दिये, यानी शादी तो कराया पर दुल्हा-दुल्हन का मिलन ही नहीं कराया, जब दुल्हा-मिलेंगे ही नहीं तो फिर ये शादी हो या नहीं, क्या फर्क पड़ता हैं, आज भी पंचायत प्रतिनिधि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कुछ दिन पहले तो इन्होंने झारखंड बंद का ऐलान भी किया, जिसका असर भी देखने को मिला, पर सरकार के उपर जूं तक नहीं रेंगी।
राष्ट्रीय खेल करानेवाली मुंडा सरकार से पूछिये कि पिछले साल की उपलब्धि, इस साल भी गिनाने में लगे हैं तो ये बताये कि इस साल उन्हीं पिचों व मैदानों पर खेल का कौन सा राष्ट्रीय आयोजन हुआ। सच्चाई ये हैं कि इन खेल स्टेडियमों में आशा नाइट व आयटम सांग गानेवाली कलाकारों का जमावड़ा हो रहा हैं या इन स्टेडियमों का वे लोग यूज कर रहे हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में पावर रखते हैं और इन पावरों का यूज कर अपने - अपने लिए इन स्टेडियमों को यूज कर रहे हैं। इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या हो सकती हैं।
इस साल मुख्यमंत्री दुर्घटनाग्रस्त हुए, ईश्वरीय कृपा बाल - बाल बच गये, उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। ईश्वर को इसके लिेए कोटि कोटि धन्यवाद, पर एक सवाल मुंडाजी से भी कि ऐसी हालात में वे रिम्स न जाकर अपोलो क्यों गये, क्या उनकी इलाज रिम्स में बेहतर ढंग से नहीं हो सकती थी, गर वे अपोलो के बदले रिम्स जाते तो रिम्स की विश्वसनीयता में चार चांद लगता और यहां के डाक्टरों और यहां इलाज कराने आये मरीजों और उनके परिवारों का मनोबल भी बढ़ता, वे ये कहते कि हमारा मुख्यमंत्री भी वहीं इलाज कराता हैं, जहां सामान्य लोग जाते हैं, कितनी बड़ी बात होती। 
इसी साल मुख्यमंत्री ने अपने विशेषाधिकार से उन पत्रकारों को अपने विशेषाधिकार से लाखों रुपये दे डाले, जो उनकी आरती उतारने में लगे रहते हैं, वह भी फैलोशिप और लाइफटाइम एचीवमेंट के नाम पर। पत्रकारों ने लिया भी। एक ही परिवार से कई लोग उपकृत भी हुए, पर क्या ऐसे फैलोशिप और लाइफटाइम एचीवमेंट का पुरुस्कार लेने व देने से झारखंड का सम्मान बढ़ गया या हम वहीं ढाक के तीन पात पर विचरण कर रहे हैं। 
सच्चाई तो ये हैं कि इस प्रकार की आरती उतारने और उतरवाने की परंपरा को त्यागकर स्थानीयता नीति पर सरकार जल्द से जल्द कुछ ठोस प्रयास करती। पड़ोसी छतीसगढ़  स्थानीयता नीति स्पष्ट कर दिया पर झारखंड में देखिए, पिछले साल एक कमेटी बनती हैं और वो कमेटी दो साल में एक बार मीटिंग करती हैं और उस मीटिंग में भी कुछ निकल कर नहीं आता। क्या ये शर्मनाक नहीं हैं।
इस सरकार में शामिल दलों के नेताओं और यहां के अधिकारियों ने एक काम बहुत अच्छा किया कि वे जनता के पैसों से जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका का खुद दौरा किया, वह भी स्टडी टूर के नाम पर और पता नहीं क्या क्या। पर उस स्टडी टूर का कितना फायदा मिला वो तो मैं झारखंड की राजधानी रांची समेत कई जिलों की स्थिति देखकर आनन्दित हो जाता हूं। अपने ही लोगों के माथे पर सर रखकर कैसे विकास के नाम पर, उस जमीन को औने पौने दाम पर देश के उद्योगपतियों को जमीन शिफ्ट कर दी जाती हैं, इसे देखकर हमें हैरानी होती हैं, पर इसके लिए, सिर्फ अर्जुन मुंडा को ही दोषी ठहराना मै उचित नहीं समझता, क्योंकि इसके लिए पक्ष व विपक्ष दोनों जिम्मेदार हैं, पर वर्तमान सरकार इतना तो जरुर कर सकती थी कि वो ऐसे कृत्यों पर लगाम लगाती। 
राजधानी रांची तो नर्क लगता हैं, किसी भी प्रकार से ये राजधानी लगता ही नहीं। सारा का सारा नगर तबेला नजर आता हैं। प्रतिदिन जाम, जल जमाव, अव्यवस्थित बाजार इसकी शोभा बन गयी हैं, जबकि राजधानी किसी भी प्रांत का दर्पण हैं, पर इसकी शोभा कैसे बढ़े, इस पर किसी का भी ध्यान नहीं हैं। राज्य की राजधानी रांची में यहां वरीय पुलिस अधिकारियों का काम रह गया हैं -- छोटे छोटे चोरों को पकड़ना और अपनी फोटो खींचवाकर, अखबारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखलाना, जबकि इसी रांची से कई आतंकी, दूसरे राज्यों की पुलिस पकड़कर, अपने यहां ले जा चुकी हैं, ये शैली हैं - यहां की पुलिस के काम करने की और इन पुलिस पर सरकार का कुछ भी नहीं चलता। यानी यहां किसकी सरकार हैं, कैसी सरकार हैं, पता ही नहीं चल रहा, फिर भी दो साल इस सरकार ने पूरे कर लिए, चलिए हम सब मिलकर, इस सरकार की जय बोले.....क्योंकि अर्जुन तो अर्जुन हैं, वो अपने तरकस में हर प्रकार के बाण रखे हैं, जो समय समय पर यूज करता रहता हैं, हो सकता हैं कि एक दिन उसके तरकस से ऐसा भी बाण निकले, जिससे झारखंड की सारी समस्याओं का ही अंत हो जाय, इसलिए हम उस दिन का इंतजार करें, साथ ही इस सरकार के मनोबल को भी बढ़ाये, इन आशाओं के साथ की आनेवाले समय में कुछ न कुछ नया अवश्य होगा...................

1 comment:

  1. Krishna Bhai, Vastav mein Jharkhand mein to do varsh ka karyakal pura karna Bhi ek upalabdhi hi hai na...

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