Saturday, September 15, 2012

शर्मनाक, हमारे नेताओं ने देश को बाजार बना दिया.............................

एक सवाल -------
1. भारत के प्रधानमंत्री व उनके मंत्रिपरिषद् से,
2. कांग्रेसियों से,
3. कांग्रेस के पिछलग्गू पार्टियों व अन्यान्य संगठनों से, तथा
4. कांग्रेस भक्त पत्रकारों से.
जब देश को बाजार ही बनाना था, तो 1947 के पूर्व भारत के अमर स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त क्यों कराया, अंग्रेज तो वहीं कर रहे थे, जो आज की हमारी सरकार आजादी के 65 साल बाद करने के लिए बेकरार हैं। जब मैट्रिक का मैं विद्यार्थी था, उस वक्त रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी देखने को मिली। इस गांधी फिल्म में एक दृश्य हैं -- जिसमें एक अंग्रेज, स्वतंत्रता सेनानियों पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता हैं कि तुम जो स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हो, क्या तुम इस स्वतंत्रता को बचाकर रख पाओगे, कुछ ही साल बाद तुम गुलाम हो जाओगे। वह संवाद, अक्षरशः हमे आज सत्य दिखता हैं। हमारी मनमोहन सरकार, थाल में सजाकर अपने देश भारत को, विदेशियों के आगे रख दिया कि वे आये और देश का मान मर्दन करें, अपने देश में बने विदेशी सामानों को भारत की छाती पर रखकर, भारत को ही बर्बाद कर दे, और इस कार्य में दिल खोलकर सहायता कर रहे, वे चारों जिससे हमने सवाल पूछे हैं -------------
आज सुबह सभी कांग्रेस भक्त मीडिया बंधुओं ने एक समाचार प्रकाशित किया हैं, जिसमें उन्होंने एफडीआई की केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी और उसके फायदे को प्रमुखता से छापा हैं, पर सच्चाई क्या हैं, आजादी के बाद से लेकर आज तक वह किसान-मजदूर और वो देशभक्त परिवार महसूस कर रहा हैं, जो इस देश से सच्चा प्यार करता हैं। हमें तो कभी - कभी अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तरस आती हैं, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राहुल और सोनिया के इशारों पे हमेशा ता-ता-थै-या करते नजर आते हैं। विदेशी शासकों के प्रमुखों के साथ इनकी जब फोटो दिखती हैं तो इनका दब्बूपन व कायरता साफ झलकता हैं। संसद में जब ये बोल रहे होते हैं तो इनकी आवाज सिंह सी नहीं, बिल्ली सी प्रतीत होती हैं।
14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के दिन, इनकी कृपा से विदेशी ताकतों के आगे झूकनेवाले भारतीय नहीं, बल्कि उन देशभक्त भारतीय परिवारों पर दो बम फटे, जिनकी जिंदगी सिर्फ भारत पर शुरु होती हैं और भारत पर ही खत्म हो जाती हैं। इस मनमोहन सरकार ने भारतीय किसानों की जिंदगी तबाह कर दी, डीजल का दाम 5.90 रुपये बढ़ाकर और मध्यम वर्गीय परिवारों को ये बताकर कि अब आपको मात्र साल में 6 सिलिण्डर मिलेंगे, सब्सिडी पर, इसके बाद आपको अपनी जरुरत पूरी करने के लिेए एक सिलिण्डर के 750 रुपये देने पड़ेंगे। साथ ही यह भी कह डाला कि देश अभी गंभीर संकटों से जूझ रहा हैं और इसके लिए कड़े फैसले सरकार को लेने पड़े हैं। इसलिए ऐसे हालात में देशवासियों को समान रुप से संकट झेलने को तैयार रहना चाहिए, यानी जिसकी रोज की आमदनी 26 रुपये और जिसकी रोज की आमदनी दस हजार रुपये हैं, सभी एक जैसी समस्याएं झेले। हैं न हैरानी वाली बात। हाल ही में मैंने अखबारों में पढ़ा कि हमारे प्रधानमंत्री की जमा राशि मात्र एक साल में दोगुणी हो गयी, जबकि मैंने जिन बैंकों में पैसे डाले हैं वो आज तक एक क्या पांच साल में भी  दोगुणे नहीं किये। शायद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास अलादीन के चिराग होंगे, जिससे वे अपनी आर्थिक स्थिति जब चाहे दोगुणे या पांच गुणे कर लेते होंगे। काश प्रधानमंत्री जी वहीं अलादीन के चिराग, संपूर्ण देश के नागरिकों को दे देते तो कितना अच्छा होता। कांग्रेस की ही नेता हैं -- शीला दीक्षित जो दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं, बड़ी बेशर्मी से बयान देती हैं कि ठीक हैं सिलिण्डर व डीजल के दाम बढ़ गये, पर लोगों की सैलरी भी तो बढ़ी हैं, तो मैं पूछता हूं कि हे शीले, ये बताओ कि देश में कितने लोग सैलरी पर जीवित हैं, गर नहीं तो तुम ऐसी घटिया स्तर का बयान क्यों दी। ऐसे भी इन कांग्रेसियों के बयान को देखेंगे तो पायेंगे कि इनके बयान गैरजिम्मेदाराना, बेहूदापन और घटियास्तर से भरे होते हैं। उदाहरण के लिए कपिल सिब्बल, मणीष तिवारी और दिग्विजय सिंह के बयानों को आप देख सकते हैं। 
ऐसे तो पूरे देश में विपक्षी दल भी इस डीजल की मूल्यवृद्धि, सिलिण्डर में सब्सिडी की कटौती पर हाय तौबा मचा रहे हैं, हो सकता हैं कि कांग्रेस की सरकार सोची समझी रणनीति के तहत एक - दो रुपये डीजल का दाम घटा दे या इसी तरह की निर्णय सिलिण्डर पर भी कर दें पर जरा सोचिये आज इस देश की ऐसी हालत किसने की। आखिर देश के सभी नेताओं के पास बेतहाशा दौलत कहां से आये, गर आ भी गये तो ये बेतहाशा दौलत इन्होंने कहां छुपा रखा हैं। आखिर देश आर्थिक संकट से जूझ रहा हैं तो इनमें त्याग की भावना क्यों नहीं, ये क्यों नहीं अपने काले धन को भारत में लाकर, भारत को आर्थिक शक्ति बना देते हैं। सच्चाई तो ये हैं कि हमारे देश के नेताओं की जमीर मर चुकी हैं। ये अपने खानदान को सांसद बनाते हैं, देश व राज्य की बागडोर सौपते हैं। इनके खानदान विदेशों में अपने लिए शान की जिंदगी जीने के लिेए विलासिता संबंधी वस्तुओं का उपयोग करते हैं और देश की जनता को जाति व सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर अपना उल्लू सीधा करते हैं, और देश की जनता पर जब इस प्रकार के बम फूंटते हैं तो जनता कराहने के सिवा कुछ नहीं कर पाती।
कमाल हैं, अपनी सरकार मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने की बात करती हैं। मिसाइल बनाने की बात करती हैं, प्रक्षेपास्त्र छोड़ने की बात करती हैं, पर सच्चाई ये हैं कि यहां की 90 प्रतिशत जनता पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शासन चलता हैं, सच बात तो ये हैं कि ये कंपनियां गर भारत से हाथ खींच ले तो यहां की जनता पागलों की तरह अपने बालों को नोंच रही होगी, क्योंकि इनके बालों में शैम्पू से लेकर, इन्हें नहलाने, कपड़े धोने, दांत साफ करने, यहां तक की शौचालय में हाथ धुलाने का काम इऩ्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ले रखा हैं और ये सब देने हैं कांग्रेस की। उस कांग्रेस की, जिसमें महात्मां गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल जैसे नेताओं की भागीदारी रहीं, दुर्भाग्य उस कांग्रेस में सोनिया, राहुल, शीला, मनमोहन, दिग्विजय जैसे घटिया स्तर के नेता हैं। अरे महात्मा गांधी को नाथुराम गोडसे ने एक बार मारा, पर गांधी को, उनके विचारों को सर्वाधिक हत्या किसी ने की, तो वह और कोई नहीं ये कांग्रेसी ही हैं। आज स्वतंत्रता के बाद गांधी और बिनोवा के विचारों को अपनाते हुए, ग्राम स्वराज्य की बात पर अमल की गयी होती, तो देश आज बाजार नहीं बनता।
आज सारा देश जब कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण कराह रहा हैं तो देश की युवा पीढ़ी और देशभक्त जनता को चाहिए कि कांग्रेस से अपना नाता तोड़े और ईमानदारीपूर्वक जीवन व्यतीत करे। एफडीआई हमारे सरकार की मजबूरी हो सकती हैं, पर हमारी मजबूरी नहीं। आराम से स्वदेशी वस्तूओ का उपभोग करें, जब विकल्प न मिले तो विदेशी वस्तुओ का उपयोग करें। जो नेता या पार्टियां या मीडिया हाउस विदेशी वस्तूओं का उपभोग करती हैं या विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं, उसका बहिष्कार करें। उनका स्पर्श किया हुआ सामग्रियों का भी परित्याग करें। याद रखे, देश है तो आप हैं, देश नहीं तो कुछ नहीं। बड़ी त्याग और बलिदान से हमारे पूर्वजों ने देश को स्वतंत्र कराया हैं, कृपया अपने देश को बाजार बनने न दे, हांलांकि देश के सर्वोच्च संस्थाओं पर बैठे हमारे नेताओं ने देश को गुलाम बनाने के लिेए कोई कसर नहीं छोड़ रखी हैं, फिर भी एक और लड़ाई लडने के लिेए स्वयं को तैयार रखे और इस बार की लड़ाई पहले से कहीं ज्यादा खतरनाकर होगी, क्योंकि दुश्मन अब अपने घर में भी एक नहीं, अनेक हैं......................................

1 comment:

  1. Krishna Bhai, This is really unfortunate. The Congress led govt at the center is just functioning as a puppet of the US multinationals. This FDI in retail has been decided to help Obama in the presidential election!

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