Sunday, December 29, 2013

दिल्ली के रामलीला मैदान में राम हंस रहे थे........

याद करिये त्रेतायुग। इस त्रेतायुग में एक भारत का लाल जन्मा था। नाम था - राम। उसने ऐसी आदर्श व्यवस्था कायम की,  ऐसी मर्यादाएं उकेरी कि वो राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो गये। राम की एक छोटी कहानी सुनाता हूं, शायद आपको अच्छा लगे। राम की तीन माताएं थी। तीनों माताओं में से जन्म देनेवाली मां कौशल्या से भी अधिक स्नेह कैकेयी राम से किया करती थी, पर कैकेयी ने ही जब राम को राज्याभिषेक करने की तैयारी चल रही थी तो राम के लिए बाधाएं बन कर खड़ी हो गयी और महाराज दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। राम वनवास जाने को तैयार हो गये। यहीं नहीं उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी वन जाने को तैयार हो गये। पर अवध नरेश महाराज दशरथ इसके लिए तैयार नहीं थे, वे बार - बार राम को अपने पिता से द्रोह करने की विनती करते हैं, फिर भी देश काल और समाज के कल्याण के लिए राम वन गमन को तैयार हो गये। सारी अयोध्या राम के साथ वन जाने को तैयार हैं, पर राम अपने सत्य मार्ग से विचलित होने को तैयार नहीं, वे अयोध्या, अयोघ्या की राजगद्दी, अयोध्या की जनता को छोड़ने को तैयार हैं पर सत्य और धर्म को छोड़ने को तैयार नहीं। 
जिस कांग्रेस पार्टी को आम आदमी पार्टी और अन्य पार्टियां गाली दे रही हैं। उसमें भी एक महिला नेत्री हैं - सोनिया गांधी। विदेश में जन्मी, पर भारतीय संस्कृति के मूल भाव त्याग को इस प्रकार अपनायी कि वह दस वर्षों से सत्ता में हैं, पर प्रधानमंत्री पद का लालच उन्हें डिगा नहीं सका। याद करिये संसद के सेन्टर हाल में उनके दल के सारे नेता, दिल्ली की जनता उनके दरवाजे पर खड़ी थी, बार - बार अनुरोध कर रही थी, मैडम आप प्रधानमंत्री बन जाइये, पर वो प्रधानमंत्री नहीं बनी और न ही राहुल को सत्ता के केन्द्र बिन्दु में रहने के बावजूद कोई महत्वपूर्ण विभाग दिलवाया। 
हां एक और बात। देश में एक महात्मा हुए, जो मोहनदास से महात्मा गांधी बन गये, क्या वो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे, पर वो नहीं बने, जवाहर लाल को बनाया। शायद वो जानते थे कि जो सब कुछ बन जाता हैं, वो कुछ नहीं बनता और जो कुछ भी नहीं बनता वो बहुत कुछ बन जाता हैं, जैसे कि मोहनदास, महात्मा और राष्ट्रपिता बन गये। ऐसै भी जब देश की सेवा करनी हैं तो इसमें पद क्या हैं? आप कहीं भी रहकर वो काम कर सकते हैं, जिससे देश खिल उठे। उदाहरण  तो अन्ना हजारे भी हैं, जिन्होंने अपने अनशन से पूरे सदन का ध्यान अपने आंदोलन की ओर खींचा और आज उनके प्रयास से देश में जनलोकपाल विधेयक सामने हैं।
आप पूछेंगे कि ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। कल सुबह सुबह उठा। चैनल खोला। तो पता चला कि देश की राजधानी दिल्ली में सरकार बनने- बनाने का बवडंर थमने जा रहा है। आम आदमी पार्टी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी हैं, कांग्रेस के खिलाफ लड़ी हैं, वो कांग्रेस के साथ ही सत्ता प्राप्त कर रही हैं। अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बन रहे हैं, और देखते ही देखते अरविंद अपने छह साथियों के साथ दिल्ली की सत्ता संभाल ली। खूब भाषण दिये। गाना गाया। श्रीमद्भागवद्गीता के रहस्यों की विवेचना की। लगा कि बस अब राम राज्य आ ही गया।  पर क्या जो अनैतिक तरीके से सत्ता प्राप्त करता हैं, वो क्या सत्य मार्ग को प्रशस्त कर सकता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकता हैं, उत्तर होगा- नहीं।
कुछ सवालों के जवाब क्या अरविंद दे सकते हैं...................
क. जिसके खिलाफ आप चुनाव लड़े और उसी के साथ मिलकर आप सरकार बनाये, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं हैं?
ख. आप कहेंगे कि आपने जनता से राय मांगी और जनता ने राय दिया, तब सरकार आपने बनायी, तो फिर सवाल आप से ही कि उसी जनता ने आपको स्पष्ट जनादेश क्यों नहीं उस वक्त दे दिया, जब चुनाव हुए थे?
ग. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद, जनता से यह कहना कि जब आप कोई सरकारी विभाग में काम कराने जाओ और कोई घूस मांगे तो घबराओं नहीं, इनसे कैसे सलटना हैं, हम सलट लेंगे,  क्या ये मुख्यमंत्री की भाषा हो सकती है?
घ. लोकतंत्र में एक बड़ी पार्टी को सत्ता से हटाकर, दूसरे नंबर और तीसरे नंबर की पार्टी मिलकर सरकार बनाये और कहे कि हमें जनादेश मिला हैं, इससे बड़ा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता हैं?
ड. पिछले कई दिनों से अरविंद के भाषण सुन रहा हूं, जो आदमी अपने ही दिये गये भाषणों और वक्तव्यों पर कायम नहीं रहे, उस पर हम ये कैसे विश्वास करें कि वो अच्छा करेगा? जैसा कि अरविंद ने दिल्ली चुनाव परिणाम आने के पहले कहा था कि हम न भाजपा और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे और न ही सरकार को सहयोग देंगे और अब कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता हथिया ली। ये तो भ्रष्टाचार का रिकार्ड तोड़ेनेवाला कीर्तिमान हैं। आप कहेंगे कि जनता से राय लिया तब सरकार बनायी। अरविंद जी, यहीं जनता राम को भी वनवास न जाने के लिए अनुरोध किया था पर राम ने जनता के उस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए, अपने वचनों पर कायम रहे। अरे सोनिया को तो जनता ने जनादेश तक दे दिया पर सोनिया ने प्रधानमंत्री की पद ठुकरा दी। आप तो सोनिया की पार्टी कांग्रेस से भी गये गुजरे हो।
उपनिषद् कहता हैं ----------------
जो अच्छे लोग हैं वे मन, वचन ओर कर्म से एक होते हैं
जबकि दुर्जन, मन, वचन और कर्म इन तीनों से अलग होते हैं।
अब आप बताओ केजरीवाल कि आपने दिल्ली चुनाव परिणाम आने के पहले कहा कुछ और चुनाव परिणाम आने के बाद किया कुछ ये क्या बताता हैं, सज्जनता या दुर्जनता? चलो एक बात के लिए आपको बधाई तुम्हारा बेटा आज ये कहने के लायक हो गया कि मेरा पापा दिल्ली का मुख्यमंत्री हैं, पत्नी कहेगी कि मेरा पति दिल्ली का मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली की जनता कहेंगी कि दिल्ली का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। पर जिन्हें राजनीति में आदर्श और शुचिता स्थापित करनी हैं या देश को एक बेहतर राजनीतिक स्थिति में ले जाना चाहते हैं, उन्हें तुम्हारी सत्ता स्थापित होने से कोई फर्क नहीं पड़ा हैं। 
हां एक बात हैं, आप कुछ ऐसा करों कि जिससे लगे कि आपने कुछ किया। अभी तक तो आप बोलते ही रहे हो। और वो बोले जो किये ही नहीं, अथवा वचन पर कायम नहीं रहे। ऐसे में आपसे आशा भी रखना, मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर हैं। हां एक बात और, अभी सारे के सारे चैनल और दूसरे मीडिया हाउस आपकी चरणवंदना में लगे हैं, पर ये कब तक आपके साथ रहेंगे, वो आपको भी मालूम होना चाहिए, क्योंकि ये किसी के नहीं हैं, कब पलटी मारेंगे और फिर आप कहां दीखेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। शायद यहीं कारण था कि दिल्ली के रामलीला मैदान में जब अरविंद लीलाएं कर रहे थे, भगवान राम आकाश से उन लीलाओं को देख हंस रहे थे............

1 comment:

  1. Mera is mamle mein thoda matbhed hai Krishna bhai. Aap ki baanten durust hain lekin Arvind ki party ne Congress se samarthan liya nahin hai. Yah use bina shart Janta ke saamne bhagte hue dikhane ke liye Congress ne kiya tha.
    Aise mein shayad Kejariwal ne thik nirnay liya. Ab aage dekhna hai Shuchita rahati hai ki nahin?
    By,
    Main kal Dhanbad ja raha hoon.
    Kya kuchh dekh sakta hoon, guide kariyega.

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