Wednesday, December 18, 2013

आप वाले संभलिये - कहीं चौबे गये छब्बे बनने वाली कहावत न चरितार्थ हो जाये आपके साथ.....

 
अपने देश में एक पार्टी की चर्चा है – आम आदमी पार्टी की। अखबार हो या टीवी। सभी पर ये ही विराजमान हैं, जैसे लगता हैं कि अब देश में गर कोई ईमानदार पार्टी हैं तो बस सिर्फ आम आदमी पार्टी। पर जिस देश में चरित्र कौड़ियों के भाव बिकता हो, वहां एक पार्टी इतनी चरित्रवान कैसे हो सकती हैं। समझा जा सकता हैं। फिर भी मीडिया जो न करायें। अभी देश की मीडिया आम आदमी पार्टी को सरताज बनाने में लगी हैं। ये वही मीडिया हैं जो पैसे लेकर कभी निर्मल बाबा तो कभी आसाराम बापू को एक नंबर संत बनाने का काम की थी, जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा हैं। हालांकि मीडिया का एक चरित्र तरुण तेजपाल के रुप में सारे देश के सामने है, कि इस मीडिया में कैसे – कैसे लोग आकर देश का सर्वनाश कर रहे हैं।
जब से दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ और उसके परिणाम आये। जिसे देखो – बस आम आदमी पार्टी के गुणगान में लगा है। इस गुणगान को देख आम आदमी पार्टी से जूड़े लोग भी अतिप्रसन्नता के शिकार हैं और वे वो कार्य कर रहे है, जिसकी इजाजत एक सभ्य समाज नहीं दे सकता हैं। वे एक स्वर से देश में कार्यरत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं को गालियां दे रहे हैं, जैसे लगता है कि दुनिया की सारी खुबसुरती इन्हीं की पार्टी में समा चुकी हैं और बाकी पार्टियां और उसमें शामिल नेता निर्ल्लज है।
जबकि सच्चाई ये हैं कि बारीकी से अध्ययन किया जाय तो आम आदमी पार्टी में भी वे सारे दुर्गुण मिल जायेंगे, जिसकी शिकार अन्य पार्टियां भी हैं, और इसके उदाहरण एक नहीं अनेक हैं ----
क.   आम आदमी पार्टी के ही एक नेता हैं – योगेन्द्र यादव। कल तक कांग्रेस भक्त हुआ करते थे. और कांग्रेस भक्ति में लीन होने के कारण कांग्रेस के नेताओं ने इन्हें कई जगहों पर कृपा भी लूटाई। हाल तक एक देश के एक बड़े आयोग के एक बड़े पदाधिकारी थे और अब कांग्रेस को उपदेश दे रहे हैं।
ख.  चुनाव के दौरान ही आप का एक नेता, जो स्वयं को कवि भी   बताता हैं, भारतीय सम्मान पद्मश्री की धज्जियां उड़ा रहा था, साथ ही दिल्ली स्टाईल में सभी को गालियां दे रहा था – चुनावी सभा के दौरान वो कहते हैं न बाबाजी की............। क्या ये भाषा शराफत में विश्वास रखनेवाले किसी पार्टी की हो सकती हैं।
ग.   आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहा एक संगीत दल – दूसरी पार्टियों को कमीना बता रहा था और इस संगीत दल के कार्यक्रम में आनन्द ले रहे थे – आम आदमी पार्टी के बड़े बडे नेता। आम आदमी पार्टी के नेता बताये कि वे कमीना शब्द का प्रयोग किसके लिए कर रहे थे।
घ.    आम आदमी पार्टी के ही एक नेता हैं – प्रशांत भूषण जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानते। जिसे लेकर एक सिरफिरे ने उन्हीं के कार्यालय में जाकर, उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था। क्या कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं।
ङ.     स्वयं को बेहतर और दूसरे को निर्लज्ज बताने का जो जज्बा तैयार किया हैं आम आदमी पार्टी ने क्या उसे मालूम नहीं कि उसी के एक पार्टी के विधायक पर लड़की के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप भी हैं, पर ये कहेंगे कि विरोधियों ने उन्हें बदनाम करने के लिए ऐसा किया हैं।
च.   ज्यादातर आम आदमी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता करोड़पति हैं – ऐसे मैं ये आम आदमी की पार्टी कैसे हो गयी।
अन्ना के आंदोलन में शामिल होना और तिरंगे लहराना और फिर उसी आंदोलन का फायदा उठाकर एक राजनीतिक दल बनाकर अन्य सारे राजनीतिक दलों को गाली देना – किस किताब में लिखा हैं। गर इतना ही शौक था तो ये खुद पांव घिसते,  आंदोलन करते और फिर पार्टी बनाते। अन्ना के आँदोलन को हाईजैक कर पार्टी बनानेवाले, शायद नहीं जानते कि जो जनता 28 दे सकती हैं तो दो पर लटका भी सकती हैं। अभी तो 28 सीट क्या मिला ये पागल हो गये हैं। वो कहते हैं न रामचरितमानस की चौपाई में लिखा हैं --------
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई।
जस थोरेहुं धन खल इतराई।।
साथ ही आम आदमी पार्टी के नेताओं के व्यंग्य बाण या यो कहें निर्लज्जता वाले बयान जिस प्रकार से अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं पर पड़ रहे हैं, उससे साफ लगता हैं कि हालात हैं-----
बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे।
खल के वचन संत सह जैसें।।
कहने का तात्पर्य हैं कि हर व्यक्ति अथवा हर राजनीतिक दल को मर्यादा में रहनी चाहिए, गर आप मर्यादा तोड़ेंगे तो जनता आपको भी औकात दिखा देगी। चाहे आप कितने ही बड़े मीडिया मैनेजमेंट क्यों न कर रखे हो। आम आदमी पार्टी को मालूम होना चाहिए कि जूता कितना भी कीमती हो, वह पांव में ही पहना जाता हैं। ठीक उसी प्रकार झाडूं सिर्फ दूसरों पर नहीं चलती, बल्कि कभी – कभी अपने घरों में भी चलानी पड़ती हैं, नहीं तो घर में गदंगी अधिक होने पर, घर में रह रहे लोग बीमारी के शिकार हो सकते हैं। मैं तो देख रहा था कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता मस्ती में इतने पागल हो गये है कि वे झाडूं को टोपी बनाकर पहन रहे हैं। ऐसे उनकी मर्जी कि वे झाडूं को टोपी बनाकर पहने अथवा झाडूं को झाडूं रहने दे। हमें इससे क्या। पर इतना जरुर कह देना चाहता हूं कि ज्यादा इतराये नहीं। वो जो सोच रहे हैं कि कांग्रेस आठ सीटों पर जाकर थम गयी या भाजपा 32 पर आकर अटक गयी तो ये उनकी बड़ी भूल हैं। राजनीति में तो ये सब चलता ही रहता हैं। पर राजनीति में अहंकार नहीं चलता। आप को अहंकार ही ले डूबेगा। ये जो सोच रहे है कि दिल्ली में फिर विधानसभा चुनाव होगा तो वे बहुमत में आ जायेंगे। मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। क्योंकि भारत में एक मुहावरा हैं – चौबे गये छब्बे बनने, दूबे बनकर आये। क्योंकि अगले चुनाव में क्या होगा, मुददे क्या होंगे। कोई नहीं जानता। ऐसा नहीं कि शीला दीक्षित इस बार हार गयी तो दुबारा भी हार जायेंगी। शीला दीक्षित के हार के कई दूसरे कारण है और भाजपा के बहुमत नहीं मिलने के दूसरे कारण पर आप के जीत के कोई कारण नहीं हैं, ये तो मीडिया मैनेंजमेंट हैं, और योगेन्द्र यादव इसके माहिर खिलाड़ी। पर ये माहिर खिलाड़ी हमेशा जीतते ही रहेंगे और आप पार्टी को जीतवाते ही रहेंगे। ऐसा नहीं हैं।
 

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