Monday, November 11, 2013

आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............

हमारे देश में कैसे चरित्रहीनता के छोटे से पौधे ने बरगद का पेड़ का रुप धारण कर लिया हैं, उसकी बानगी मैंने इस बार छठव्रत में देखी। आम तौर पर ज्यादातर लोग छठव्रत के दौरान, उदारता दिखाते हैं। इस उदारता के दौरान आपको अजीबोगरीब हरकतें देखने को मिलेंगी। जिस व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में कंजूसी के विश्व रिकार्ड बनाये हैं, वह भी छठ व्रत के दौरान, इस प्रकार की उदारता दिखाता हैं कि जैसे वो व्यक्ति अपनी उदारता के लिए भी विश्वरिकार्ड बनाने के लिए उतावला हो। मेरा बचपन पटना के एक छोटे से मुहल्ले सुलतानपुर में बीता हैं। वहां मैंने बचपन में देखा हैं कि जिसके घर मैं कद्दू होता, वो छठ आने के एक महीने पहले से ही कद्दू के पौधे पर ध्यान देता और जैसे ही नहाय खा का दिन होता, वो अपने यहां पैदा हुए कद्दू को बड़े ही सहेज कर, उन घरों तक कद्दू को मुफ्त में इस प्रकार पहुंचाता, जैसे वो भी इस महाव्रत के दौरान थोड़ा सा पुण्य का भागीदार बन जाये। इसी प्रकार सूप बनानेवाले दलितों का समूह, वहीं भाव लेता जो जरुरी हो, न कि छठ के बहाने सूप से अधिक कमाई करने की उसकी मंशा होती। चूंकि वो जानता था कि छठव्रत के दौरान लोग, मोल जोल नहीं करते, जो मुंह से निकल गया, दे देते। क्या वो दिन थे, सेवा भाव के। हर गली-मुहल्ले सेवा भाव से ओत-प्रोत होते। जिसका आटे का मिल होता, वो तो खरना के दिन सुबह से ही अपने मिल को साफ सफाई करके तैयार रखता और छठव्रती अपना आटा मुफ्त पीसा लिया करते, कोई पैसा देने की बात भी करता, तो मिल वाला यह कहकर पैसा लेने से इनकार करता कि यहीं बहाने छठि मइया हमारी सेवा स्वीकार कर रही हैं, यहीं क्या कम हैं। पर अब ऐसी बात नहीं दिखती। सभी मुनाफा कमाने में लगे हैं, क्योंकि अब उन्हें लगता है कि छठ साल में एक बार आनेवाला पर्व हैं, चलो कमालो, नहीं तो फिर ऐसा मौका बार बार नहीं मिलेगा। भला कद्दू, सूप, दौरा, केला, गुड़ और गेहूं आदि के लिए लोग इस प्रकार की मार्केंटिग हमेशा थोड़े ही किया करते हैं, प्रोफेशनल बन जाओ, अपने जमीर को थोड़े दिनों के लिए मिटा दो और शुद्ध मुनाफा कमाने के लिए मुनाफाखोर बन जाओ।
चलिए छोड़िये, कहा भी जाता हैं कि जीने के दो मार्ग हैं एक सत्य का रास्ता और दूसरा असत्य का। जब से सृष्टि बनी है, तभी से ये मार्ग जीवंत हैं, जो लोग सत्य का मार्ग चूनते हैं, उन्हें भी आनन्द मिलता हैं और जो असत्यमार्ग पर चलते हैं, उन्हे भी आनन्द मिलता हैं, अब कौन किस प्रकार का आनन्द लेता हैं, वो जाने। ठीक छठ में भी वो चीजें सामने दिखाई पड़ रही हैं, किसी को छठव्रतियों की सेवा में आनन्द प्राप्त होता हैं तो किसी को छठव्रतियों के सेवा के नाम पर उनसे पूरा सेवाकर वसूलने में आनन्द प्राप्त होता हैं।
इधर मैं कई वर्षों से रांची के चुटिया में रहता हूं। वहां मैंने इस बार अजीबोगरीब चीजें दिखी। चुटिया थाने के ठीक सामने एक दवा की दुकान हैं। संभवतः वो दुकान विक्की सिंह की हैं। जब से इलेक्ट्रानिक मीडिया से मेरा नाता टूटा हैं, तब से मैं थोड़ी देर के लिए वहां से गुजरने के क्रम में विक्की सिंह के दुकान में बैठ जाया करता हूं। इसी बीच छठव्रत आया, पता चला कि विक्की सिंह, हिन्दुस्तानी क्लब चलाते हैं, जिसमें कई युवा शामिल हैं। इस हिन्दुस्तानी क्लब के अध्यक्ष खुद विक्की सिंह हैं। एक सायं जब मैं दुकान पर बैठा था, तो कुछ लोग आये, और विक्की सिंह को कहा कि मेरा नाम लिख लीजिये। विक्की सिंह उठे और उन लोगों का नाम लिख लिये। मैंने विक्की सिंह से पूछा कि विक्की, आप बताये ये नाम लिखाने का क्या चक्कर हैं। विक्की सिंह ने बताया कि पिछले चार सालों से वे छठव्रत के खरना के दिन, उनलोगों के बीच छठव्रत की सामग्री( जैसे – सूप, साड़ी, नारियल, फल, दूध, ईख इत्यादि) बांटते हैं, जो छठव्रत करने में असमर्थ हैं। हमें ये सुनकर अच्छा लगा कि चलों आज के युवा भी इस प्रकार के कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे हैं। मैंने दूसरे सवाल पूछे कि कितने लोगों को आप बांटते हैं और ये पैसा कहां से आता हैं। विक्की ने बताया कि वे पिछले चार सालों से बांटते आ रहे हैं, शुरुआत 36 लोगों से हुई थी, इस बार 95 लोगों को देना हैं। जिसमें सूप उन्हीं के क्लब के रमेश शर्मा और दूध का इंतजाम मुन्ना सिंह कर देते हैं, बाकी सारी व्यवस्था उनकी यानी विक्की की हैं। सुनकर बहुत आनन्दित हुआ, देर रात हो चली थी, मैं घर पहुंचा। बहुत ही आत्मविभोर हुआ, कि छठव्रत का अर्थ ही सेवा भाव हैं, और ये युवा गर ऐसा करते हैं तो सचमुच वे प्रभु के बहुत ही निकट हैं, उसे और कुछ करने की क्या जरुरत हैं। उसके दुकान और आंगन में तो ऐसे ही सूर्यनारायण और छठि मइया खेलती होंगी। उसे कही जाने की कोई जरुरत ही नहीं। इसी सोच में दूसरे दिन हम फिर विक्की की दुकान पर पहुंचे, पता चला कि अब रजिस्ट्रेशन का काम पूरा हो चला हैं। रजिस्ट्रेशन का मतलब, जिन्हें छठव्रत की सामग्री देनी होती हैं, हिन्दुस्तानी क्लब के लोग, उसकी पूर्व में ही सूची बना लेते हैं, ताकि वितरण के दिन, कोई गड़बड़ी नहीं हो। मैं बहुत ही खुश था। अचानक, कुछ महिलाओं का समूह उनके दुकान पर आ गया। महिलाएं बोली कि उनका नाम भी लिख लिया जाय। दुकान पर बैठे, क्लब के सदस्यों के साथ विक्की ने कहा कि चूंकि जितने लोगों का इस बार देना हैं, उनकी सूची पूरी हो गयी हैं, अब हम देने में असमर्थ हैं, अब हम आपको अगले साल देंगे, पर शर्त यहीं हैं कि जिस दिन हमलोगों तिथि मुकर्रर करते हैं, अपना नाम सूची में दर्ज कराने की, उस तिथि तक आपलोग अपना नाम दर्ज करा दें। इन महिलाओं ने कहा कि आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............। पर इस बार दे दीजिये। ये वो लोग थे, जिन्हें ईश्वर ने गरीब नहीं बनाया, जिनके हाथों व कानों में सोने के गहने साफ बता रहे थे, कि इन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है, पर मुफ्त में छठव्रत करने का एक शायद अपना अलग आनन्द होगा, और मुफ्त में सूप, साड़ी वगैरह मिल जाये तो क्या गलत हैं। हद तो तब हो गयी कि ये महिलाएं, पूर्व विधानसभाध्यक्ष सी पी सिंह से पैरवी भी करवा ली। अब युवा क्या करते। उन्हें इनका नाम दर्ज करना पड़ा। यानी हवन करने में युवाओँ के हाथ जलने का खतरा साफ नजर आ रहा था, पर मुफ्त में छठव्रत के नाम पर बेवजह कष्ट प्रदान करनेवालों को दया नही आ रही थी। कमाल हैं, जिस देश में ऐसे ऐसे लोग हो, जो छठ के नाम पर भी, भीख मांगने की कला पर गर्व करते हो, और ये कहते हो कि हम एक साल बाद भीख मांगने के लिए, पहले से ही रजिस्ट्रेशन करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तो क्या आपको लगता हैं कि ऐसे लोगों पर भगवान सूर्य नारायण और छठि मइया कृपा लूटायेंगी। जो लोग दूसरे के मुख का आहार छीनने में अपनी शान समझते हो, उस पर ईश्वर की दया कैसे हो सकती हैं। इन युवाओं ने तो उन बेसहारों और गरीबों के लिए कार्यक्रम चलाया, जिनको ईश्वर ने कुछ भी नहीं दिया, पर इन बेसहारों और गरीबों पर लालचियों को दया नहीं आ रही तो क्या कहेंगे। ऐसे हम उन बेसहारों और गरीबों को भी कह देते हैं कि आपको व्रत करने के लिए किसी भी चीज की जरुरत नहीं, बस आप इतना करिये कि किसी भी जलाशय अथवा कूएं पर चल जाइये। जिस दिन पहला अर्घ्य हो, उस दिन भगवान भास्कर के समक्ष दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो जाइये और एक लोटा जल लेकर अर्घ्य दे दीजिए और यहीं कार्य दूसरे दिन करिये। आपका व्रत सफल हो जायेगा और ईश्वर मनोवांछित वर अवश्य देंगे, क्योंकि भगवान केवल भाव देखते हैं, क्या आपको पता नहीं भगवान राम तो भाव में बहकर शबरी के जूठे बेर खा लिये थे तो ऐसे में आपके एक लोटे जल क्यों नहीं भगवान भास्कर, और छठि मइया अर्घ्य स्वरुप ग्रहण करेंगी। धन्य हैं। हिन्दुस्तानी क्लब के वे युवा जो इस मंहगाई में भी छवठ्रतियों की सेवा में स्वयं को समिधा बना डाला। ईश्वर की उन पर कृपा अवश्य हो, ईश्वर से हमारी यहीं प्रार्थना है।

1 comment:

  1. Krishna ji, aap ne bilkul durust likha hai.
    Yah samaj ko ho kya gaya hai, yah vicharniya hai.

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