Friday, August 19, 2016

हम ऐसी पत्रकारिता पर थूकते हैं..................

पटना से प्रकाशित भटियारे अखबारों ने आज भी अपना भटियारापन जारी रखा...
जी हां, पटना से प्रकाशित कुछ भटियारे अखबारों ने आज भी अपना भटियारापन जारी रखा। भटियारेपन का खिताब जीत चुका पटना से प्रकाशित अखबार “हिन्दुस्तान” ने आज मुख पृष्ठ पर हेडिंग दिया...
“प्रशासन ने माना, शराब से ही हुई 17 लोगों की मौत” – यानी “हिन्दुस्तान” अखबार मानता है कि जिन लोगों की मौत हुई वह शराब से नहीं बल्कि उसके कल के कथनानुसार कै-दस्त से ही हुई।
नीतीश को समर्पित परमभक्त अखबार “प्रभात खबर” ने जो कल यह हेडिंग दिया था कि “गोपालगंज में मरनेवालों की संख्या 14 पहुंची, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नहीं मिला अल्कोहल का अंश”। आज हेडिंग दिया है – “गोपालगंज नगर थाने की सभी 15 पुलिसकर्मी निलंबित” और लगे हाथों जमकर नीतीशायन गाया है।
कल तक जो “दैनिक जागरण” अपने हेडिंग के माध्यम से सही समाचार लिखने का प्रयास करते हुए अपनी गरिमा बचाने का प्रयास किया था, आज उसकी हेडिंग देखिये तो पता चलेगा कि उसने आज नीतीशायन की ओर कदम बढ़ाया है।
दैनिक जागरण का आज का हेडिंग है...
“बख्शे नहीं जायेंगे शराब के धंधेबाज
इस्पेक्टर सहित 25 पुलिसकर्मी निलंबित”
दूसरी ओर “दैनिक भास्कर” ने आज एक बार फिर नीतीश की बैंड बजा दी है। हेडिंग दिया है – “तीन और की मौत, इसंपेक्टर समेत 25 पुलिसकर्मी सस्पेंड”
अब अपनी बात...
क्या पत्रकारिता सत्ता में बैठे मठाधीशों की सुरक्षा और उनकी आरती गाने के लिए होती है या जनता की आवाज बनने के लिए?
जनता इन अखबारों के संपादकों-मालिकों से पूछे कि वे अखबार खोलकर सत्ता में बैठे लोगों के तलवे क्यूं चाटते है?, इससे अच्छा है कि वे कोठा खोल लें...
फिलहाल गोपालगंज शराबकांड में जिस प्रकार से पटना से प्रकाशित अखबारों ने पत्रकारिता धर्म का पालन न कर, सत्ता में बैठे लोगों का महिमामंडन करने का कार्य किया है, हम ऐसी पत्रकारिता पर थूकते हैं...

Thursday, August 18, 2016

अखबारों का भटियारापन...............

मौत गरीबों का और पटना से प्रकाशित एक-दो अखबारों को छोड़कर सभी अखबारों ने आज गरीबों के मौत का मजाक उड़ाया हैं और नीतीश भक्ति से स्वयं को अलंकृत कर लिया है। भटियारापन दिखाने में इस बार पटना से प्रकाशित हिन्दुस्तान अखबार ने बाजी मार ली है, इस बार हिन्दुस्तान प्रथम स्थान पर और प्रभात खबर दूसरे स्थान पर है, जबकि दैनिक जागरण ने अपनी गरिमा बचाने में कुछ हद तक सफलता पायी, वहीं दैनिक भास्कर ने सही खबरें प्रकाशित कर गरीबों के मौत पर मरहम और नीतीश को डायरेक्ट चुनौती दे दी है।
जरा खबर क्या है, उसे जानिये – खबर यह है कि जहरीली शराब पीने से गोपालगंज में 15 लोगों की मौत हो गयी, प्रशासन मानने को तैयार ही नहीं कि यह मौत जहरीली शराब पीने से हुई है, जबकि जिनके घर में ये घटना घटी, वे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि यह मौत जहरीली शराब के कारण हुई, पर बेशर्म अखबारों को देखिये, क्या हेडिंग बनायी है...
सबसे पहले पटना से प्रकाशित हिन्दुस्तान को देखिये...
हेंडिग बनाई है...
“गोपालगंज में कै दस्त से 14 मरे”
प्रभात खबर को देखिये, ये हेंडिग बनाया है
“गोपालगंज में मरनेवालों की संख्या 14 तक पहुंची”
दैनिक जागरण ने हेडिंग दिया
“जहरीली शराब से 14 मरे”
दैनिक भास्कर ने हेडिंग दिया
“पहले आंखों की रोशनी गई, फिर जान, जहरीली शराब से 15 लोगों की मौत”
ये हैं कुछ अखबारों का दोगला चरित्र और नीतीशायण गाने की प्रतियोगिता...
और अब अपनी बात...
जो लोग हमारे फेसबुक से जुड़े है, और हमारा फेसबुक पढ़ते है। वे जानते होंगे कि मैंने 4 अगस्त 2016 को क्या लिखा था, पर जो नहीं पढ़े है, उनके लिए मैं पुनः उद्धृत कर रहा हूं, वो यह हैं...
“बिहार के बबुआ नीतीश को समर्पित...
ए भाई इ देश में दहेज के खिलाफ कानून बना है...भ्रष्टाचार रोकने के खिलाफ भी कानून बना है...कम उम्र में शादी रोकने का भी कानून बना है...चोरी, बलात्कार, गुंडागर्दी रोकने के लिए भी कानून बना है...लगे हाथों एक और भी कानून बन गया, क्या कहते है दारु पीने से रोकने का कानून...हम सभी का स्वागत करते है...जैसे पहले के कानून का किया...जैसे आज भी दहेज लेते है, भ्रष्टाचार का सारा रिकार्ड अपने नेता जी अपने पास रखते है, कम उम्र में शादी भी करते और करा देते है, चोरी, बलात्कार और गुंडागर्दी तो नेताओं के आभूषण ही है...इसलिए दारु के बारे में क्या कहना हैं, नई - नई दुल्हन बनी है, देखते है आगे कितने लोग इसका घूंघट उठाते है...”
ये लिखने का अभिप्राय यहीं था कि आप कुछ भी कर लो, जो गलत लोग है, जो चरित्रहीन लोग है, वे अपनी कलाबाजी दिखायेंगे ही, उन्होंने अपनी कलाबाजी आज दिखा दी...
पर इससे हुआ क्या?
मरा कौन गरीब, मरा कौन था गरीब और मरेगा कौन गरीब
और इस पर मजा लूटेगा कौन, वहीं हिन्दुस्तान, वहीं प्रभात खबर जो दांत निपोड़ कर फिलहाल नीतीशभक्ति में सर से पांव तक डूबा है...
बेशर्म है ये लोग, पत्रकारिता क्या करेंगे...
ये तो नीतीशायन गायेंगे और गरीबों के शव पर ठुमके लगायेंगे...
हम ऐसी पत्रकारिता पर थूकते हैं...

Thursday, August 11, 2016

संभ्रांत पत्रकार बनकर झारखण्ड को लूटने का सुनहला अवसर हाथ से जाने न दें..........

संभ्रांत पत्रकार बनकर झारखण्ड को लूटने का सुनहला अवसर हाथ से जाने न दें...
कंबल ओढ़कर, घी पीने का सुनहला अवसर झारखण्ड में...
अगर आप किसी न्यूज एजेंसी से जुड़े है, या अन्य मीडिया हाउस से, तो फिर आपकी बल्ले-बल्ले है, यानी दोनों हाथों में लड्डू...
ये आपके हाथों में है...
बस आपको इतना ही करना है...
एक संस्थान खोलिए, या कोई न्यूज पोर्टल खोल लीजिये...
और उसमें अपने पिता को चेयरमेन बना दीजिये...
अपनी पत्नी को संपादक बना दीजिये...
अगर आपका बेटा है तो उससे आप अपने ही पोर्टल पर बेमतलब का कमेंट्स डलवाया कीजिये या कभी – कभी उससे रिपोर्टर्स का काम ले लीजिये ताकि जब बड़ा हो तो उसे आराम से संवाददाता या पत्रकार बनाया जा सके...
कमेंटस दिलवाने में आप अपने मित्रों और परिवारों की भी मदद ले सकते हैं...
और खुद मुख्य संपादक बन जाइये और विज्ञापन प्रबंधक का काम शुरू कर दीजिये...
जैसे ही आप ऐसा करेंगे, विभिन्न दलों के नेता, मंत्री और अधिकारी से आप मुंहमांगी राशि विज्ञापन के रूप में वसूलना शुरू कर देंगे...
यहीं नहीं, अनैतिक कार्यों और इन हरकतों को अपनाते ही आप जल्दी धन-कूबेर बन जायेंगे, वह भी प्रतिष्ठा के साथ...
आपको सहयोग करने के लिए झारखण्ड के श्रम विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, उद्योग विभाग के लोग सदैव आपके साथ है, यहीं नहीं स्वास्थ्य, खेल, पर्यटन आदि विभाग भी आपको इस अनैतिक कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार है...
यहीं नहीं झारखण्ड में स्थित सीएमपीडीआई, सीसीएल या प्रमुख भारतीय कंपनियां जैसे- सेल, गेल या कई सासंद मौजूद है ही...
हां एक बात और...
अपने संस्थान या न्यूज पोर्टल के नाम पर समय – समय पर एक स्मारिका निकलवाइये और पूरे स्मारिका में अपने बेटे, अपनी पत्नी और अपने पिता का फोटो भर दीजिये और नैतिकता पर भाषण देने के लिए आजकल गर्दिश में चल रहे किसी भी नेता को बुला लीजिये...फिर क्या सम्मान और पैसे दोनों एक साथ...
यहीं सत्य है,
अगर किसी कारण से ईमानदारी का कीड़ा, आपको काटे हुए है, तो समझ लीजिए, कहीं के न रहियेगा आप, यहां तक कि आप ही से लोग इस बात का प्रमाण मागेंगे कि आप पत्रकार है, इसके क्या प्रमाण है...तो फिर देर किस बात की...
बेशर्मी जिन्दाबाद, लंठई जिन्दाबाद...
नैतिकता का लबादा ओढ़िये और सारे अनैतिक हरकतें अपनाइये...
अनैतिकता के रास्ते, पत्रकारिता के वास्ते...

Friday, August 5, 2016

ले लोट्टा...................

ले लोट्टा, इ त नीतीशवा के दारू कानून के हव्वे निकल गइल भइया...
अरे जादा दिन के बात नइखे, बिहार विधानमंडल में हमार बबुआ नीतीश दारू कानून पेश कइले...
उनकर बुतरूवन बिधयकवन सब खूब दांत निपोरत रहे...
उनकर लटकन पत्तरकार लोग तो झूम झूम के नीतीशायन गावत रहे...
ताड़ी पिये के रिकार्ड तोड़ले लालू भगवान तो नीतीशवा के अपन भक्त बना दिहले,
और कहिले कि कोई यादव और कुरमी भाई अब दारू ना पीहे...
और जो दारू पीहे, तो जइहे काम से...
लेकिन इ का होयल भइया
न दारू कानून पास होते देरी
आउर न उ कानून में छेद होते देरी...
आजे एगो अखबार पटना डेडलाइन से समाचार छपले बा...
समाचार के शीर्षक बा...
पकड़े गये व्यापारियों के ब्लड सैंपल में अल्कोहल नहीं मिला...
इ समाचार में लिखल बा कि
बिहार में शराबबंदी के बाद पटना पुलिस ने होटल पनास से सात व्यापारियों को शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। फांरेसिक साइंस लेबोरेट्री ने सभी व्यापारियों को क्लीन चीट दे दी।
वाह रे भाई, वाह...
एकरा कहल जाला, कानून तू केतनो बना ल, चलइहे धरती लोक के प्राणिये न...

आउर इ धरतीलोक के प्राणी केतना महान, केतना चरित्रवान होखेला
उ तो लालू भगवान और उनकर बड़ भगत बबुआ नीतीश से ज्यादा कौन जनिहे...
अरे जो दल बदल में माहिर ह,
अरे जो पशु चारा खाए में माहिर ह
और जो काल्हे पशु चारा खाएवाला घोटालेबाज कह कह के, अपना चेहरा चमकवले
और फिर जाके बाद में, ओकरे गोदी में बैठके
आपन दाढ़ी टोवे लगले
उ केतनो कानून बना दी
ओकरा से का होई
हाल ही में एगो केजरिया, खूब ईमानदारी के ढोल पीटले
और आज ओकर सारा ईमानदारी, एक-एक कर काठ के कड़ाही जइसन भो - काटा हो जाता
तो समझ जाइ, कि नीतीशवा के इ दारू कानून के का होई
आज ओकर पहला अध्याय, सामने दिखाई पड़ गइल...
मजा ली बबुआ नीतीश के दारू कानून के...
बबुआ नीतीश के कोई नजर ना लगावे भाई
बड़ काम के हमर बबुआ नीतीश बाड़े...

Monday, August 1, 2016

प्रतिभा सम्मान की आड़ में अखबारों का चलता व्यवसाय...

क. जब ढोंगी बाबाओं के विज्ञापनों को अपने अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित करनेवाला...
ख. जब ढोंगी बाबाओं को अपने यहां बुलाकर उसे महिमामंडित करनेवाला...
ग. जब सेक्स से संबंधी उलुलजुलूल विज्ञापन प्रकाशित करनेवाला...
घ. जब वशीकरण के नाम पर तमाम तरह के अंधविश्वास को आगे बढ़ाने से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित करनेवाला...
ङ. जब नेताओं के चरणवंदना कर स्वयं को उपकृत करनेवाला...
च. जब बिल्डरों से आर्थिक मदद लेकर नाना प्रकार के कुकृत्यों को जन्मदेनेवाला...
प्रतिभा सम्मान का आयोजन करने लगे तो समझो दाल में काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। इन दिनों जिसे देखों, प्रतिभा सम्मान आयोजित कर रहा है, और आश्चर्य इस बात की है कि ऐसे आयोजनों में लोग अपने पूरे परिवार के साथ इस प्रकार भाग ले रहे है, जैसे लग रहा हो कि उनके बच्चों को भारत रत्न की उपाधि मिल रही हो। सच्चाई यह है कि इन अखबारों के द्वारा इस प्रकार का आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि इसकी आड़ में अखबारों का आर्थिक सुदृढ़ीकरण हो सकें। आप देखेंगे कि इस प्रकार के आयोजन में बड़ी संख्या में प्रायोजक भाग लेते हैं। उसका मूल कारण, बड़े-बड़े अखबारों को अपनी ओर आकर्षित करना है, ताकि उनके द्वारा भविष्य में जब उनकी गलतियां उजागर हो, तो ये अखबार अपनी ओर से मुंह बंद रखे, और ये होता भी है।
प्रतिभा सम्मान समारोह में सहजीविता के आधार पर प्रायोजक, आयोजक और सम्मानप्राप्तकर्ता सभी आनन्दित रहते है, और नुकसान उठाना पड़ता है, समाज को, राज्य को और देश को। नुकसान इसलिए कि, इस प्रकार के आयोजन से न तो बच्चों को लाभ होता है और न उन परिवारों को, जो इसका लाभ उठा रहे होते हैं। अरे इन बच्चों की प्रतिभा का सम्मान उसी दिन हो गया, जब बच्चे मैट्रिक अथवा इंटर की परीक्षा में प्रथम, द्वितीय या तृतीय आ गये।
प्रतिभा का सम्मान, अगर अखबार करने लगे तो फिर वे बच्चे जो इन अखबारों से कभी उपकृत ही नहीं हुए, वे बैठकर आलू छीलेंगे क्या?
अखबार का काम – सिर्फ नैतिकता के आधार पर समाचारों को प्रकाशित करना है, अगर अखबार यहीं काम ईमानदारी से करने लगे तो फिर प्रतिभा सम्मान समारोह की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, पर यहां हो क्या रहा है, जिन्हें जो काम करना है, वे उस काम को छोड़कर, वो सारी काम कर रहे है, जो उन्हें नहीं करना है।
एक महत्वपूर्ण बात, सम्मान को लेकर ही...
आइये महात्मा गांधी से जुड़ी एक कहानी सुनाता हूं। महात्मा गांधी का मूल नाम मोहनदास था, पर मोहनदास कौन है, आज किसी से पूछे, तो कोई नहीं बतायेगा, पर महात्मा गांधी बोले तो सभी बता देंगे कि महात्मा गांधी कौन है या महात्मा गांधी कौन थे...
क्या आप जानते है कि महात्मा गांधी को महात्मा की उपाधि किसने दी थी...
इसका सही उत्तर है – रवीन्द्र नाथ ठाकुर।
क्या आप जानते है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी थी...
इसका सही उत्तर है – सुभाष चंद्र बोस।
यानी सम्मान देनेवाला कौन है, उसकी नीयत क्या है, उसका समाज में क्या भूमिका है, यह भी देखी जाती है, ये नहीं कि किसी ने दे दिया और हमने ले लिया। जहां इस प्रकार की हरकतें चलती हो, उसे पूर्णतः व्यवसाय कहते है, न कि प्रतिभा सम्मान...
जरा कोई बता सकता है क्या कि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने जब गांधी को महात्मा से नवाजा था या जब सुभाष चंद्र बोस ने गांधी को राष्ट्रपिता कहा था तब इस सम्मान समारोह के प्रायोजक कौन-कौन थे... और इस सम्मान समारोह में ताली पीटने के लिए गांधी के परिवार से कौन – कौन लोग मौजूद थे...
मेरे भाइयों,
अपने बच्चों को इस प्रकार के प्रतिभा सम्मान समारोह से दूर रखो...
उनमें सही मायनों में गांधी, रवीन्द्र और सुभाष जैसा चरित्र डालों...
पढ़ने का मतलब क्या होता है...
पढ़ने का मतलब प्रतिभा सम्मान समारोह में जाकर पीतल के टूकड़ें बंटोरना नहीं होता...
पढ़ने का मतलब, सिर्फ और सिर्फ चरित्र और संस्कार को अपनाना होता है...
झूठी सम्मान के पीछे या उसे प्राप्त करने के लिए बौराना नहीं होता...
अरे सम्मान तो मिलेगा ही, वो तो आपको दौड़कर, आपका हक दिलाकर रहेगा...
पर पहले कुछ करके तो दिखाओ...
अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो, और कुछ नहीं...
वह भी कैसे...
केवल प्रबल प्रयास और अथक प्रयास से ज्ञान अर्जित नहीं किया जा सकता...
जरा अपने पूर्वजों की बताई मार्ग का अनुसरण करो...
जानो, ईश्वर किसकी मदद करता है...
उद्यमं, साहसं, धैर्यं, बुद्धि, शक्तिं, पराक्रमं।
षडते यत्र वर्तन्ते, तत्र देव सहाय्यं कृतः।।
जानो,
अभिवादनशीलस्य नित्यंवृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्यवर्दधन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।।
मेरे कहने का मतलब क्या...
एक दृष्टांत तुम्हारे सामने है...
बहुत लोग इंजीनियरिंग और डाक्टरी की पढाई कर रहे है, कुछ लोग कामयाब हो जाते है और कुछ कामयाब नहीं होते, जो कामयाब हो गये उसकी भी क्या गारंटी की वे इंसान ही होंगे और जो कामयाब नहीं हुए, उसकी भी क्या गारंटी की वे इंसान ही होंगे...
अगर तुमने शुरूआत ही गलत कर दी, तो मानकर चलो की अंत भी गलत ही होगा...
क्योंकि जिस घर की नींव ही गलत है, उस गलत नींव पर अच्छे मकान नहीं तैयार होते...
ठीक उसी प्रकार प्रतिभा सम्मान में उपकृत होनेवाले बंधु या परिवार इस प्रकार के सम्मान प्राप्त कर, सोचते है कि वे आगे निकल जायेंगे, तो हमें नहीं लगता कि वे आगे निकल पायेंगे, क्योंकि जो प्रतिभा सम्मान दे रहे है, उनका तो स्वयं ही आधार नहीं है, वे तो इस आड़ में स्वयं को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा रहे है, वो आपको समृद्धि या सम्मान क्या दिला पायेंगे...
ऐसे आप स्वयं समझदार है, समझते रहिये...