Monday, August 1, 2016

प्रतिभा सम्मान की आड़ में अखबारों का चलता व्यवसाय...

क. जब ढोंगी बाबाओं के विज्ञापनों को अपने अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित करनेवाला...
ख. जब ढोंगी बाबाओं को अपने यहां बुलाकर उसे महिमामंडित करनेवाला...
ग. जब सेक्स से संबंधी उलुलजुलूल विज्ञापन प्रकाशित करनेवाला...
घ. जब वशीकरण के नाम पर तमाम तरह के अंधविश्वास को आगे बढ़ाने से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित करनेवाला...
ङ. जब नेताओं के चरणवंदना कर स्वयं को उपकृत करनेवाला...
च. जब बिल्डरों से आर्थिक मदद लेकर नाना प्रकार के कुकृत्यों को जन्मदेनेवाला...
प्रतिभा सम्मान का आयोजन करने लगे तो समझो दाल में काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। इन दिनों जिसे देखों, प्रतिभा सम्मान आयोजित कर रहा है, और आश्चर्य इस बात की है कि ऐसे आयोजनों में लोग अपने पूरे परिवार के साथ इस प्रकार भाग ले रहे है, जैसे लग रहा हो कि उनके बच्चों को भारत रत्न की उपाधि मिल रही हो। सच्चाई यह है कि इन अखबारों के द्वारा इस प्रकार का आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि इसकी आड़ में अखबारों का आर्थिक सुदृढ़ीकरण हो सकें। आप देखेंगे कि इस प्रकार के आयोजन में बड़ी संख्या में प्रायोजक भाग लेते हैं। उसका मूल कारण, बड़े-बड़े अखबारों को अपनी ओर आकर्षित करना है, ताकि उनके द्वारा भविष्य में जब उनकी गलतियां उजागर हो, तो ये अखबार अपनी ओर से मुंह बंद रखे, और ये होता भी है।
प्रतिभा सम्मान समारोह में सहजीविता के आधार पर प्रायोजक, आयोजक और सम्मानप्राप्तकर्ता सभी आनन्दित रहते है, और नुकसान उठाना पड़ता है, समाज को, राज्य को और देश को। नुकसान इसलिए कि, इस प्रकार के आयोजन से न तो बच्चों को लाभ होता है और न उन परिवारों को, जो इसका लाभ उठा रहे होते हैं। अरे इन बच्चों की प्रतिभा का सम्मान उसी दिन हो गया, जब बच्चे मैट्रिक अथवा इंटर की परीक्षा में प्रथम, द्वितीय या तृतीय आ गये।
प्रतिभा का सम्मान, अगर अखबार करने लगे तो फिर वे बच्चे जो इन अखबारों से कभी उपकृत ही नहीं हुए, वे बैठकर आलू छीलेंगे क्या?
अखबार का काम – सिर्फ नैतिकता के आधार पर समाचारों को प्रकाशित करना है, अगर अखबार यहीं काम ईमानदारी से करने लगे तो फिर प्रतिभा सम्मान समारोह की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, पर यहां हो क्या रहा है, जिन्हें जो काम करना है, वे उस काम को छोड़कर, वो सारी काम कर रहे है, जो उन्हें नहीं करना है।
एक महत्वपूर्ण बात, सम्मान को लेकर ही...
आइये महात्मा गांधी से जुड़ी एक कहानी सुनाता हूं। महात्मा गांधी का मूल नाम मोहनदास था, पर मोहनदास कौन है, आज किसी से पूछे, तो कोई नहीं बतायेगा, पर महात्मा गांधी बोले तो सभी बता देंगे कि महात्मा गांधी कौन है या महात्मा गांधी कौन थे...
क्या आप जानते है कि महात्मा गांधी को महात्मा की उपाधि किसने दी थी...
इसका सही उत्तर है – रवीन्द्र नाथ ठाकुर।
क्या आप जानते है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी थी...
इसका सही उत्तर है – सुभाष चंद्र बोस।
यानी सम्मान देनेवाला कौन है, उसकी नीयत क्या है, उसका समाज में क्या भूमिका है, यह भी देखी जाती है, ये नहीं कि किसी ने दे दिया और हमने ले लिया। जहां इस प्रकार की हरकतें चलती हो, उसे पूर्णतः व्यवसाय कहते है, न कि प्रतिभा सम्मान...
जरा कोई बता सकता है क्या कि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने जब गांधी को महात्मा से नवाजा था या जब सुभाष चंद्र बोस ने गांधी को राष्ट्रपिता कहा था तब इस सम्मान समारोह के प्रायोजक कौन-कौन थे... और इस सम्मान समारोह में ताली पीटने के लिए गांधी के परिवार से कौन – कौन लोग मौजूद थे...
मेरे भाइयों,
अपने बच्चों को इस प्रकार के प्रतिभा सम्मान समारोह से दूर रखो...
उनमें सही मायनों में गांधी, रवीन्द्र और सुभाष जैसा चरित्र डालों...
पढ़ने का मतलब क्या होता है...
पढ़ने का मतलब प्रतिभा सम्मान समारोह में जाकर पीतल के टूकड़ें बंटोरना नहीं होता...
पढ़ने का मतलब, सिर्फ और सिर्फ चरित्र और संस्कार को अपनाना होता है...
झूठी सम्मान के पीछे या उसे प्राप्त करने के लिए बौराना नहीं होता...
अरे सम्मान तो मिलेगा ही, वो तो आपको दौड़कर, आपका हक दिलाकर रहेगा...
पर पहले कुछ करके तो दिखाओ...
अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो, और कुछ नहीं...
वह भी कैसे...
केवल प्रबल प्रयास और अथक प्रयास से ज्ञान अर्जित नहीं किया जा सकता...
जरा अपने पूर्वजों की बताई मार्ग का अनुसरण करो...
जानो, ईश्वर किसकी मदद करता है...
उद्यमं, साहसं, धैर्यं, बुद्धि, शक्तिं, पराक्रमं।
षडते यत्र वर्तन्ते, तत्र देव सहाय्यं कृतः।।
जानो,
अभिवादनशीलस्य नित्यंवृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्यवर्दधन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।।
मेरे कहने का मतलब क्या...
एक दृष्टांत तुम्हारे सामने है...
बहुत लोग इंजीनियरिंग और डाक्टरी की पढाई कर रहे है, कुछ लोग कामयाब हो जाते है और कुछ कामयाब नहीं होते, जो कामयाब हो गये उसकी भी क्या गारंटी की वे इंसान ही होंगे और जो कामयाब नहीं हुए, उसकी भी क्या गारंटी की वे इंसान ही होंगे...
अगर तुमने शुरूआत ही गलत कर दी, तो मानकर चलो की अंत भी गलत ही होगा...
क्योंकि जिस घर की नींव ही गलत है, उस गलत नींव पर अच्छे मकान नहीं तैयार होते...
ठीक उसी प्रकार प्रतिभा सम्मान में उपकृत होनेवाले बंधु या परिवार इस प्रकार के सम्मान प्राप्त कर, सोचते है कि वे आगे निकल जायेंगे, तो हमें नहीं लगता कि वे आगे निकल पायेंगे, क्योंकि जो प्रतिभा सम्मान दे रहे है, उनका तो स्वयं ही आधार नहीं है, वे तो इस आड़ में स्वयं को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा रहे है, वो आपको समृद्धि या सम्मान क्या दिला पायेंगे...
ऐसे आप स्वयं समझदार है, समझते रहिये...

No comments:

Post a Comment