अर्जुन मुंडा की नयी सरकार पर आरोप है कि इस सरकार को व्यवसायियों ने अपने फायदे के लिए बनायी है और ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पायेगी। इस तरह का आरोप तो विधानसभा में ही संभवतः झारखंड विकास मोर्चा विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने लगाया था, जब अर्जुन मुंडा सदन में विश्वास मत प्राप्त कर रहे थे, लेकिन हम आपको बता देना चाहते हैं कि इस तरह की बातें झारखंड का बच्चा बच्चा जानता हैं, कोई इसमें नयी बात नहीं है।
पहली बात, क्या ये पहली बार हुआ हैं कि सरकार बनाने अथवा बचाने के लिए किसी राजनेता द्वारा व्यवसायियों से सहयोग लिया गया हो, ये तो हमेशा से होता रहा हैं और होता रहेगा, क्योंकि हमारे यहां राजनीति अब साधुओं अर्थात् सज्जनों की जमात नहीं करती, ये विशुद्ध राजनीतिबाज हैं जो विपरीत आचरण कर सत्ता हासिल कर स्वयं और अपने अनुयायियों को अनुप्राणित करते रहते हैं, इसके उदाहरण केवल अर्जुन मुंडा नहीं बल्कि कई राजनीतिज्ञ हैं, जिसकी एक लंबी लिस्ट हैं, जिसमें भारत के सभी राजनीतिक दल शामिल हैं।
कल एक राष्ट्रीय चैनल और आज उस राष्ट्रीय चैनल का हवाला देकर रांची से प्रकाशित कई समाचार पत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया हैं, ऐसा लगता हैं कि व्यवसायियों से सहयोग लेकर, अर्जुन मुंडा ने अपराध कर डाला हैं। लेकिन अर्जुन ने अपराध किया अथवा नहीं किया, इसका निर्णय कौन करेगा, अखबारवाले और मीडिया के लोग या समय आने पर झारखंड की जनता।
कल तक तो ये ही अखबार व मीडिया वाले अर्जुन की जयजयकार कर रहे थे, अचानक ये सुर कैसे बदल गया। कमाल की बात हैं अजय संचेती भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, उन्हें आज भाजपा नेता कम और व्यवसायी ज्यादा बताया जाने लगा हैं। लगे हाथों भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रघुवर जो ज्यादातर विवादास्पद मुद्दों पर नो कमेंटस और मीडिया पर आंख भौं तान के निकल जाते हैं उनके मुख से ये कहलवाते हुए दिखाया गया, कि सबसे पहले अजय संचेती का उनके पास फोन आया था कि वे विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा दे दें, बाद में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी का। हो सकता हैं कि रघुवर दास ने खुद को ये संवाद कहने के लिए ड्रामा भी कराये हो, क्योंकि राजनीति में साम दाम दंड भेद सब चलता हैं, ऐसे भी रघुवर दास मन ही मन अर्जुन से खार खाये हुए हैं और फिलहाल झारखंड में रघुवर दास नेतृत्व कर रहे है, केन्द्र के उन विक्षुब्ध नेताओं का जिन्हें फिलहाल गडकरी और अर्जुन मुंडा पसंद नहीं हैं, जो नहीं चाहते कि अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री हो, क्योंकि उनके पसंद का मुख्यमंत्री कोई दूसरा है, जिनकी पकड़ राष्ट्रीय चैनलों में भी मजबूत हैं। वो जो चाहे दिखवा सकते हैं और जो चाहे करवा सकते हैं। लेकिन इसका परिणाम क्या निकलेगा, शायद दो बंदरों और बिल्ली वाली कहानी भाजपा के ये विक्षुब्ध नेता नहीं जानते।
दूसरी बात कल एक राष्ट्रीय चैनल ने दिखाया और आज कुछ अखबारों ने फोटो छापा हैं कि जिन व्यवसायियों ने सरकार बनाने में प्रमुख निभायी, वे शपथ ग्रहण समारोह में अगली पंक्ति में बैठे थे, क्या कोई बता सकता हैं कि किसी के शपथ ग्रहण समारोह में अगली पँक्ति पर कौन बैठता हैं। अगली पंक्ति पर तो वहीं वैठेगा, जो धनवाला अथवा रसूखवाला हो, कोई रिक्शावाले या भिखमंगों को तो कोई बैठायेगा नहीं। मैं मीडियाकर्मियों से ही पूछता हूं कि गर मीडिया से ही किसी को इस दौरान बैठाना रहता तो इस शपथ ग्रहण समारोह में, अग्रिम पंक्ति में चरित्रवान पत्रकार बैठते क्या, कि यहां भी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के मालिकों और प्रबंधकों का कब्जा रहता। कोई बता सकता कि आज पत्रकारिता के नाम पर जो राज्यसभा में जा रहे हैं, वे कौन लोग हैं..........................। वे वहीं लोग हैं, जो किसी न किसी प्रकार से विभिन्न राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के टॉप के नेताओं को अपने कलम अथवा कैमरा के माध्यम से उपकृत करते रहते हैं और समय आने पर ब्याज के साथ, वो सब वसूल लेते हैं, जिसकी परिकल्पना नहीं की जा सकती। क्या ये सही नहीं कि मीडिया में, जो रसूखवाले थे, वे भी अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री पद पर बैठा देखना चाहते थे, मैंने तो अपनी आंखों से देखा कि शपथग्रहण समारोह के दिन ज्यादातर चैनलों के प्रतिनिधि और उनके आका मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के चरणों में बलिहारी जा रहे थे, क्यों बलिहारी जा रहे थे, वे वे ही मीडिया के लोग बेहतर बता सकते हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को बाजार बना दिया है। रही बात झारखंड की तो यहां के विधायकों का इतिहास रहा हैं कोई नयी बात नहीं हैं. चाहे नरसिंह राव सरकार बचाने का मामला हो या परिमल नथवानी या के डी सिंह को राज्यसभा पहुंचाने की बात, ये तो खुलकर, डंके की चोट पर वो सब काम करने को तैयार रहते हैं, जो दूसरे लोग छुप कर करते हैं। और जब अर्जुन मुंडा ने व्यवसायियों के सहयोग से सरकार बना ही ली है तो उस पर छीटाकशी कौन करेगा। वे लोग, चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद। मीडिया पहले अपने गिरेबां में झाक कर देखे और झाविमो के बाबू लाल मरांडी जैसे नेता भी। जिन्होंने इस प्रकरण पर बखूबी बयान दे डाला। क्या बाबू लाल मरांडी बता सकते हैं कि इसी विधानसभा चुनाव में उनके द्वारा उपयोग किये गये उड़नखटोले के पैसे कहां से आये, फिल्म अभिनेत्रियों को कैसे चुनावी सभा में ले जाया गया, विधानसभा चुनाव में मीडिया पर पैसा कैसे पानी की तरह बहाया गया, कूटे में महाधिवेशन के दौरान करोड़ों रुपये कैसे खर्च हो गये, आखिर ये बिना व्यवसायियों के सहयोग से हो गया क्या। गर व्यवसायियों के सहयोग से नहीं हुआ तो जनता को बतायें कि अचानक कहां से उन्हें अलादीन का चिराग प्राप्त हो गया ।