Tuesday, October 26, 2010

और जुबान फिसली.......................!

संदर्भ बिहार विधानसभा चुनाव 2010...
बिहार विधानसभा चुनाव का अंतिम चरण जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है। नेताओं की जुबां फिसलती जा रही है। खासकर जदयू के नेता अति उत्साहित है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि बस विधानसभा चुनाव मात्र औपचारिकता मात्र है। जनता तो पहले से ही दुबारा नीतीश को सत्ता में बैठाने को बेकरार है। पर उन्हें नहीं मालूम कि, सब कुछ ठीक रहने के बावजूद जब भोजन में नमक बेमन से पड़ जाये तो भोजन खानेलायक नहीं रह जाता। इसलिए जदयू और भाजपा को ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि ज्यादातर चुनावी सर्वेक्षण और पत्रकारों के कलम उन्हीं की जय बोल रहे हैं, पर इसमें सच्चाई क्या हैं ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा।
रही बात जुबान फिसलने की, ये कोई नयी बात नहीं हैं, जब आदमी अतिउत्साहित अथवा अति निराश हो जाता है तो उसके मुख से ऐसी भाषाएं या शब्द निकल ही जाते है जो उनके विरोधियों समेत सज्जनों को अच्छी नहीं लगती। राजद के नेता लालू प्रसाद यादव हो या रावड़ी देवी अथवा फिलहाल दूसरे पार्टी में चले गये इन्हीं के रिश्तेदार, सभी जुबान फिसलने के लिए जाने जाते हैं, कुछ के तो केस जुबान फिसलने के कारण ही अभी न्यायालय की शोभा बढ़ा रहे है। अभी जदयू और एनडीए के बड़े नेता शरद यादव सुर्खियों में है – उन्होंने एक चुनावी सभा में राहुल को गंगा नदी में फेंक देने की बात कह डाली। जबकि रांची में भाजपा नेता हरेन्द्र प्रताप कहते हैं कि यूपीए के नेता जिस प्रकार से एनडीए के खिलाफ विषवमन कर रहे है, ऐसे में कोई भी होगा, उग्र हो ही जायेगा।
सचमुच किसी भी बड़े अथवा छोटे नेता व कार्यकर्ता को इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना लोकतंत्र में गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य ही कहा जायेगा और इस प्रकार की भाषा प्रयोग करनेवाले की कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए। पर शरद यादव ने बहुत जल्द ही इस प्रकार के बयान से अपने आपको अलग कर लिया, इसके लिए उन्हें साधुवाद। पर कुछ बात कांग्रेसियों से भी, जो इस मुददे को हवा देते हुए, बात चुनाव आयोग तक ले जाने की बात करते हैं, क्या वे बता सकते हैं कि उन्हीं के राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना राष्ट्रद्रोही संगठन सिमी से कर डाली अथवा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जो बयान आरएसएस पर आये हैं, उसे क्या कहा जायेगा, क्या आरएसएस के खिलाफ उनके दिये गये बयान गैरजिम्मेदाराना नहीं। खासकर उस आरएसएस पर जिसके बारे में खुद उन्हीं के पार्टी के बड़े दिवंगत नेता प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी तक प्रशंसा कर चुके है। आगे चलकर बाबा साहेब अम्बेडकर, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी आरएसएस के कार्यों की भूरिभूरि प्रशंसा की है। "पूर्व राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन ने तो आरएसएस के बारे में कहा था कि आरएसएस पर मुसलमानों के प्रति हिंसा और घृणा फैलाने के आरोप सर्वथा झूठे हैं। मुसलमानों को आरएसएस से परस्पर प्रेम सहयोग और संगठन की शिक्षा लेनी चाहिए।" क्या राहुल बता सकते हैं कि संघ से घनिष्ठ संबंध और प्रचारक तक रह चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी क्या सिमी से जूड़े है। जिस संगठन के बारे में राहुल ने बचकाना बयान दे डाला और जब इन कांग्रेसी नेताओं के पास आरएसएस के खिलाफ ठोस सबूत है तो फिर ये कर क्या रहे हैं, उनकी सरकार है, जल्द से ठोस निर्णय ले, देश से बड़ा कोई संगठन नहीं होता, पर गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य देकर देश की जनता के समक्ष बार बार आरएसएस के खिलाफ बयान देना और उसकी तुलना राष्ट्रद्रोहियों से कर देना, क्या शर्मनाक नहीं।
सच्चाई तो ये हैं कि वर्तमान में किसी भी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं के जुबान पर कंट्रोल नहीं है, जिसे देखिये बक बक कर रहा है, और पतली गली से निकल जा रहा है, बाद में अपनी बयान पर चिंतन भी नहीं करता, कि उसने जो आज भाषण अथवा बयान दिया, वो सही है अथवा गलत। क्या ऐसे में लोकतंत्र मजबूत होगा। क्या इन्हें ये दोहा पढ़ने की जरुरत नहीं --------
बोली एक अमोल है, जो कोई बोले जानी।
हिये तराजू तौलि के तब मुख बाहर आनी।।

सुभाषित तो कहता है --------
वचने किम दरिद्रता ---- अर्थात् बोलने में दरिद्रता कैसी। आखिर ये नेता कब अपनी वाणी पर नियंत्रण रखेंगे।

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