पाकिस्तान तो अपने जन्म से ही कश्मीर पर अपना हक जताता रहा है, वहीं चीन ये मानने को तैयार ही नहीं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इधर इस साल से वो कश्मीरियों के लिए अलग प्रकार के वीसा जारी कर अपना इरादा भी जाहिर कर दिया है और चीन के इस हरकत को हवा दी है, भारत में ही रह रहे वो लोग जो अपने आपको बुद्धिजीवी मानते हैं, जो अपने आप को वामपंथ की मुख्यधारा में रहने की बात करते हैं, जो खाते पीते भारतीय भूभाग पर हैं पर दिलों दिमाग से चीन व पाकिस्तान के ज्यादा निकट हैं। आश्चर्य है कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उस हर प्रकार की राष्ट्रविरोधी हरकतें करते हैं, जिससे भारत की संप्रभुता को चोट पहुंचती है, पर भारत सरकार इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती।
हाल ही में अखबारों और मीडिया के माध्यम से एक बयान पढ़ने और सुनने को मिला कि अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहनेवाली एक महिला बूकर पुरस्कार विजेता अरुंधती राय मानती है कि कश्मीर भारत का कभी अभिन्न अंग नहीं रहा, ठीक इसी प्रकार लादेन की भाषा में नक्सली नेता किशन का कहना था कि कश्मीर को आजाद कर दिया जाय, साथ ही गर वहां भारतीय सेना कश्मीर में कुछ करती है तो वह ऐसे मुद्दे पर नक्सली, मुसलमानों का साथ देंगे, अरे तुम किसी का साथ दो, देश को और देशभक्तों को क्या फर्क पड़ता हैं, वो तुम जिसके लिए लड़ने की बात करते हो, उसका तुम कितना भला कर रहे हो, वो तो भारत की आत्मा और भारतीय जनता खूब जान रही हैं।
कमाल है ये अरुंधती राय और किशन जैसे नक्सली को, जब कश्मीर में हिंदूओं का कत्लेआम होता हैं, जब इस्लाम के नाम पर सिक्खों को धमकी दी जाती हैं कि वे इस्लाम कबूल करें तो ये दोनों उस वक्त वामपंथी किताबों में उलझे रहते हैं, लेकिन जैसे ही इस्लाम, पाकिस्तान और चीन की बात आती हैं तो ये दरवे से निकल कर पाकिस्तान और चीन जैसे देशों तथा इस्लाम के साथ होने की बात करते हैं।
ये नक्सली क्या कर रहे हैं, इससे देश रोज दो चार हो रहा हैं। खूलकर नक्सलियों और उनके गतिविधियों को समर्थन करनेवाली अरुंधती राय को जब ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस उड़ायी जाती है और निर्दोष रेलयात्रियों की लाशों से पुरा इलाका पट जाता हैं तो उसमें उन्हें इंसानियत नष्ट होता नहीं दीखता। जब आतंकी पूरे कश्मीर से हिंदूओं को एक कर निकाल बाहर कर रहे होते हैं तो इनकी छाती नहीं पसीजती, पर जब देश के स्वाभिमान की रक्षा, एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना अपनी जान गवां रही होती हैं और देशद्रोहियों व आतंकियों को उनकी औकात बताती हैं, तो इनकी छाती फटने लगती हैं, इनकी क्यों छाती फटती हैं, भारतीय जनता अब खूब जान रही हैं।
सदियों से शांति व प्रेम का संदेश देनेवाले भारत में ये लोग बंदूक की गोली से शांति व प्रेम फैलाना चाहते हैं। इनका मानना हैं कि बंदूक की निकली गोली से ही शांति और विकास का द्वार खुलता हैं, क्योंकि ये जिनके आदर्शों पर चलने की बात करते हैं, इनके आका कभी भारत से जुड़े ही नहीं, और न ही उनकी भारतीय आदर्शों में दिलचस्पी थी, ये तो मार काट की ही भाषा समझते थे और है, और जो उनकी ये भाषा नहीं समझता या उनके विचारों को नहीं मानता, उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला देते ताकि इनके खिलाफ दूसरा कोई विचार जन्म ही न ले। गर किसी को लगता हैं कि ये लिखे हुए शब्द गलत हैं तो चीन के थ्येन मन चौक की घटना याद कर लें।
इस अरुंधती और किशन को कश्मीर पर बोलना बहुत अच्छा लगता हैं और जो चीन तिब्बत पर बल पूर्वक कब्जा कर बैठा हैं, जहां के लाखों तिब्बती दूसरे देशों में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उनके पक्ष में बोलने में इनका गला सूखता हैं कारण कि उन्हें अपने आका चीन के खिलाफ बोलने में शर्म महसूस होती हैं, वहां उन्हें चीन की ये गंदी हरकतें बहुत अच्छी लगती है, क्यों आप खूद समझिये। हर बात को समझाने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं, बल्कि इनकी हरकतों, इनके विचारों, जहां ये बोलते हैं, केवल उस पर ध्यान दीजिए।
मेरा रांची से 25 सालों का संबंध रहा है, पर मैने निकट से देखा हैं कि जितने भी जनवादी कार्यक्रम होते हैं, या इस प्रकार के वामपंथी चिंतक, देशतोड़क बयान देनेवाले लोग आते हैं, उनके कार्यक्रम इसाई मिशनरी इलाकों में ही होते हैं, मिशनरी प्रेक्षागृहों में ही होती हैं, आज तक इनके कार्यक्रम मैंने सार्वजनिक जगहों पर होते नहीं देखा। ये धर्म को अफीम मानते हैं, पर सच्चाई ये हैं कि हिंदू धर्म के खिलाफ बोलने, उनके खिलाफ गाली देने में ये शान समझते हैं और चूंकि इस प्रकार के गाली देनेवाले शब्द, देश तोड़क बयान सिर्फ मिशनरीज इलाकों में आराम से बोले जा सकते हैं, कार्यक्रम आयोजित होते हैं। एक बार मैंने इन्हीं मुददों पर एक वामपंथी नेता से पूछा कि आखिर इस प्रकार के आयोजन मिशनरीज इलाकों अथवा मिशनरीज संगठनों के बीच क्यों, अन्य जगहों पर क्यों नहीं, तब इनका कहना था कि ऐसा संभव ही नहीं। आज भी नक्सल प्रभावित इलाकों में मिशनरीज धर्म प्रचार कर आदिवासियों का बलात् धर्म परिवर्तन कर रहे हैं और उनके मूल धर्म और मूल पहचान से अलग कर रहे हैं, किसके इशारे पर ये सब हो रहा हैं। शायद इसका जवाब भी अरुंधती और किशन के पास नहीं होगा। क्या कारण हैं कि विदेशों में लोग भारतीय धर्म के प्रति सहानुभूति रखते हैं पर अपने देश में केवल पेट के लिए लोग धर्म परिवर्तन कर ले रहे हैं।
आजकल इन्हें बहुत अच्छा बहाना मिल गया हैं नक्सलियों को समर्थन देने का कि केन्द्र और राज्य सरकार खनन के नाम पर, कल-कारखाने लगाने के नाम पर पूंजीपतियों को जमीन देने के लिए, जमीन हड़पने के लिए एमओयू कर रही हैं, ग्रीन हंट चला रही हैं। मैं भी मानता हूं कि इसमें कुछ सच्चाई हैं पर ये कौन सी बात हो गयी कि आप इसकी आड़ में देश को तोड़ने पर आमदा हो जाओ, कह दो कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है। ये बोलने का अधिकार किसने आपको दे दिया, आखिर चीन और पाकिस्तान के साथ आपको इतनी हमदर्दी हैं तो फिर भारत में रहने का क्या मतलब हैं, इसे भी तो यहां की जनता को बताओ पर आप ऐसा करोगे, हमें नहीं लगता, क्योंकि आप क्या हो, आज जनता जान चुकी हैं।
हाल ही में अखबारों और मीडिया के माध्यम से एक बयान पढ़ने और सुनने को मिला कि अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहनेवाली एक महिला बूकर पुरस्कार विजेता अरुंधती राय मानती है कि कश्मीर भारत का कभी अभिन्न अंग नहीं रहा, ठीक इसी प्रकार लादेन की भाषा में नक्सली नेता किशन का कहना था कि कश्मीर को आजाद कर दिया जाय, साथ ही गर वहां भारतीय सेना कश्मीर में कुछ करती है तो वह ऐसे मुद्दे पर नक्सली, मुसलमानों का साथ देंगे, अरे तुम किसी का साथ दो, देश को और देशभक्तों को क्या फर्क पड़ता हैं, वो तुम जिसके लिए लड़ने की बात करते हो, उसका तुम कितना भला कर रहे हो, वो तो भारत की आत्मा और भारतीय जनता खूब जान रही हैं।
कमाल है ये अरुंधती राय और किशन जैसे नक्सली को, जब कश्मीर में हिंदूओं का कत्लेआम होता हैं, जब इस्लाम के नाम पर सिक्खों को धमकी दी जाती हैं कि वे इस्लाम कबूल करें तो ये दोनों उस वक्त वामपंथी किताबों में उलझे रहते हैं, लेकिन जैसे ही इस्लाम, पाकिस्तान और चीन की बात आती हैं तो ये दरवे से निकल कर पाकिस्तान और चीन जैसे देशों तथा इस्लाम के साथ होने की बात करते हैं।
ये नक्सली क्या कर रहे हैं, इससे देश रोज दो चार हो रहा हैं। खूलकर नक्सलियों और उनके गतिविधियों को समर्थन करनेवाली अरुंधती राय को जब ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस उड़ायी जाती है और निर्दोष रेलयात्रियों की लाशों से पुरा इलाका पट जाता हैं तो उसमें उन्हें इंसानियत नष्ट होता नहीं दीखता। जब आतंकी पूरे कश्मीर से हिंदूओं को एक कर निकाल बाहर कर रहे होते हैं तो इनकी छाती नहीं पसीजती, पर जब देश के स्वाभिमान की रक्षा, एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना अपनी जान गवां रही होती हैं और देशद्रोहियों व आतंकियों को उनकी औकात बताती हैं, तो इनकी छाती फटने लगती हैं, इनकी क्यों छाती फटती हैं, भारतीय जनता अब खूब जान रही हैं।
सदियों से शांति व प्रेम का संदेश देनेवाले भारत में ये लोग बंदूक की गोली से शांति व प्रेम फैलाना चाहते हैं। इनका मानना हैं कि बंदूक की निकली गोली से ही शांति और विकास का द्वार खुलता हैं, क्योंकि ये जिनके आदर्शों पर चलने की बात करते हैं, इनके आका कभी भारत से जुड़े ही नहीं, और न ही उनकी भारतीय आदर्शों में दिलचस्पी थी, ये तो मार काट की ही भाषा समझते थे और है, और जो उनकी ये भाषा नहीं समझता या उनके विचारों को नहीं मानता, उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला देते ताकि इनके खिलाफ दूसरा कोई विचार जन्म ही न ले। गर किसी को लगता हैं कि ये लिखे हुए शब्द गलत हैं तो चीन के थ्येन मन चौक की घटना याद कर लें।
इस अरुंधती और किशन को कश्मीर पर बोलना बहुत अच्छा लगता हैं और जो चीन तिब्बत पर बल पूर्वक कब्जा कर बैठा हैं, जहां के लाखों तिब्बती दूसरे देशों में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उनके पक्ष में बोलने में इनका गला सूखता हैं कारण कि उन्हें अपने आका चीन के खिलाफ बोलने में शर्म महसूस होती हैं, वहां उन्हें चीन की ये गंदी हरकतें बहुत अच्छी लगती है, क्यों आप खूद समझिये। हर बात को समझाने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं, बल्कि इनकी हरकतों, इनके विचारों, जहां ये बोलते हैं, केवल उस पर ध्यान दीजिए।
मेरा रांची से 25 सालों का संबंध रहा है, पर मैने निकट से देखा हैं कि जितने भी जनवादी कार्यक्रम होते हैं, या इस प्रकार के वामपंथी चिंतक, देशतोड़क बयान देनेवाले लोग आते हैं, उनके कार्यक्रम इसाई मिशनरी इलाकों में ही होते हैं, मिशनरी प्रेक्षागृहों में ही होती हैं, आज तक इनके कार्यक्रम मैंने सार्वजनिक जगहों पर होते नहीं देखा। ये धर्म को अफीम मानते हैं, पर सच्चाई ये हैं कि हिंदू धर्म के खिलाफ बोलने, उनके खिलाफ गाली देने में ये शान समझते हैं और चूंकि इस प्रकार के गाली देनेवाले शब्द, देश तोड़क बयान सिर्फ मिशनरीज इलाकों में आराम से बोले जा सकते हैं, कार्यक्रम आयोजित होते हैं। एक बार मैंने इन्हीं मुददों पर एक वामपंथी नेता से पूछा कि आखिर इस प्रकार के आयोजन मिशनरीज इलाकों अथवा मिशनरीज संगठनों के बीच क्यों, अन्य जगहों पर क्यों नहीं, तब इनका कहना था कि ऐसा संभव ही नहीं। आज भी नक्सल प्रभावित इलाकों में मिशनरीज धर्म प्रचार कर आदिवासियों का बलात् धर्म परिवर्तन कर रहे हैं और उनके मूल धर्म और मूल पहचान से अलग कर रहे हैं, किसके इशारे पर ये सब हो रहा हैं। शायद इसका जवाब भी अरुंधती और किशन के पास नहीं होगा। क्या कारण हैं कि विदेशों में लोग भारतीय धर्म के प्रति सहानुभूति रखते हैं पर अपने देश में केवल पेट के लिए लोग धर्म परिवर्तन कर ले रहे हैं।
आजकल इन्हें बहुत अच्छा बहाना मिल गया हैं नक्सलियों को समर्थन देने का कि केन्द्र और राज्य सरकार खनन के नाम पर, कल-कारखाने लगाने के नाम पर पूंजीपतियों को जमीन देने के लिए, जमीन हड़पने के लिए एमओयू कर रही हैं, ग्रीन हंट चला रही हैं। मैं भी मानता हूं कि इसमें कुछ सच्चाई हैं पर ये कौन सी बात हो गयी कि आप इसकी आड़ में देश को तोड़ने पर आमदा हो जाओ, कह दो कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है। ये बोलने का अधिकार किसने आपको दे दिया, आखिर चीन और पाकिस्तान के साथ आपको इतनी हमदर्दी हैं तो फिर भारत में रहने का क्या मतलब हैं, इसे भी तो यहां की जनता को बताओ पर आप ऐसा करोगे, हमें नहीं लगता, क्योंकि आप क्या हो, आज जनता जान चुकी हैं।
No comments:
Post a Comment