Wednesday, November 10, 2010

तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय, न तुम हारे, न हम हारे....!

संदर्भ अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा 2010...

अमरीकी राष्ट्रपति की जब कभी भारत यात्रा हुई है, तो ये यात्रा शुरु से लेकर आखिरी तक नयी नयी विवादों में घिरी होती है। जो लोग चाहते हैं कि अमरीका से हमारे संबंध मजबूत हो, उन्हें अमरीकी राष्ट्रपति का प्रत्येक संवाद मन को जीत लेनेवाला लगता हैं, जबकि इसके घुर विरोधी को हर बातों में कुछ न कुछ घालमेल दिखाई देते हैं, खासकर चीन और रुस के कटटर समर्थक भारतीय वामपंथियों को अमरीका और अमरीकन राष्ट्रपति एकदम नहीं सुहाते। आखिर क्यों, इस पचड़े में हम पड़ना नहीं चाहते, सभी लोग जानते है।
आज की स्थिति और परिस्थिति में भारत की नयी पीढ़ी अमरीका से बेहतर संबंध बनाने में विश्वास रखता है, क्योंकि वो जानता हैं कि बिना बेहतर संबंध के न तो भारत को वो स्थान मिल सकता हैं, जिसकी उसे जरुरत है और न ही आगे बढ़ने का रास्ता। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा छठे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने भारत की यात्रा में दिलचस्पी दिखायी और अपने हाव भाव और विचारों से भारतीयों के दिल जीतने में कामयाब रहे। खासकर मुबंई में दीवाली फेस्टिवल मनाने के क्रम में भारतीय बच्चों के साथ नृत्य करने का मामला हो अथवा दिल्ली के हुमायूं के मकबरे पर नन्हे – मुन्ने बच्चों के साथ मिलने का तरीका। सभी में वे बीस साबित हुए। रही बात मुंबई में भारतीय उद्योगपतियों से बातचीत और दिल्ली में संसद में उनके दिये गये भाषण बताने के लिए काफी थे कि उनकी आज की सोच क्या हैं। इसमे कोई दो मत नहीं कि जो आज पूरे विश्व की स्थिति है, उसने अमरीका के सोच में काफी बदलाव लाया है और भारत को ऐसे समय में नजरंदाज करना, अमरीका को मुश्किल सा लग रहा हैं। याद करिये जब पूर्व में हमारे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति का अमरीका दौरा होता था तो क्या होता था, अमरीकन राजनीतिज्ञ उन्हें कितना भाव देते थे, यहीं नहीं वहां के समाचार पत्रों की क्या भूमिका होती थी और आज के वहां के राजनीतिज्ञों और समाचार पत्रों की क्या भूमिका है। आज तो वहां के अखबार भारत-अमरीका के इस दौरे और उसके नतीजों और सम्पादकीय से पटे हैं। ये है – बदलाव। और ये बदलाव। भारत के राजनीतिज्ञों के क्रियाकलापों से नही हुए, बल्कि उन सैकड़ों, हजारों, लाखों गुमनाम भारतीयों के उनकी मेहनत और उनसे निकले परिणामों का नतीजा हैं कि आज भारत ऐसे मोड़ पर खड़ा हैं कि अमरीकन राष्ट्रपति बराक ओबामा को कहना पड़ गया कि भारत एक विकसित राष्ट्र हैं, भारत को सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए और जब कभी सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या बढाने को हुई तो अमरीका भारत के इस पक्ष का समर्थन करेगा। आज अमरीकन राष्ट्रपति भारतीय उद्योगपतियों से सहयोग मांग रहे हैं, वे भारत के साथ व्यापारिक समझौते करना चाह रहे हैं, क्यों चाह रहे हैं, इसका भी खुलासा करीब – करीब देश व विदेश के समाचार पत्रों ने कर दी है।
एक बहुत ही मशहूर पंक्ति में यहां उद्धृत करना चाहता हूं.......
किसी ने ठीक ही कहा हैं...

खुद ही कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है।
क्या पहले के भारतीय प्रधानमंत्री की ये हैसियत थी कि किसी अमरीकन राष्ट्रपति के साथ संवाददाता सम्मेलन में भारतीय पक्ष को इतनी मजबूती से रख सके, जैसा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बार कह कर जता दिया कि भारत अमरीका की नौकरी चूरा नहीं रहा और हमारी भागीदारी, समान मूल्यों और हितों विश्व के प्रति समान दृष्टिकोण और हमारी जनता की गहरी मैत्री पर आधारित है।
आखिर क्या वजह हुई कि अमरीकन राष्ट्रपति आज जय हिंद तक बोलने पर मजबूर हैं, पाकिस्तान में आतंकी ठिकाने उन्हें मंजूर नहीं और 26 नवम्बर के हमलावरों को पाकिस्तान सजा दे, ये बोलने से नहीं चूके। इसका सीधा सा अर्थ हैं कि अमरीका फिलहाल आर्थिक मंदी से उबर नहीं पाया हैं और वह धीरे धीरे नीचे की ओर खिसकता जा रहा हैं। वहां बेरोजगारी बढ़ी हैं, और इसका परिणाम खुद अमरीकन राष्ट्रपति झेल रहे हैं, जबकि इसके विपरीत भारत में वैसी स्थिति नहीं हैं, जैसी अमरीका की हैं, और भारत ने जिस प्रकार आर्थिक मंदी को झेला और उबरा, ऐसी कूबत शायद किसी देश में नहीं और इसी का फायदा, अमरीका उठाना चाहता है। सचमुच आज हमें खुशी हैं कि महाशक्ति खुद को माननेवाला अमरीका और उसके राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारत की ताकत का लोहा माना हैं और कहा कि भारत एक बड़ी ताकत बन चुका हैं, पर हमें इससे ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं क्योंकि इनके ये बोल, कितने सत्य हैं, ये आनेवाला समय बतायेगा, पर हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हमारी एक बहुत बड़ी आबादी भूख और गरीबी से लड़ रही हैं। जिनके पास खाने पीने पहनने ओढ़ने और रहने को तक को नहीं हैं, हमे उनके लिए कुछ करना हैं, ताकि हम सचमुच भारत को विकसित राष्ट्र बना सकें। भारत विकसित राष्ट्र, झूठ और भ्रष्टाचार में लिप्त राजनीतिज्ञों से नहीं बनेगा, बल्कि उन करोड़ों युवाओं से होगा, जिसके बारे में आज कहा जा रहा हैं कि भारत में युवाओं की एक बहुत बड़ी फौज हैं, गर ये युवा सही मायनों में अपनी शक्ति को पहचान लेंगे तो समझ लीजिए, आनेवाला समय सही मायनों में हमारा हैं, 21वीं सदी भारत का है।

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