जनता चाहती हैं, कि वो मेरे पास रहे, मेरे साथ रहे, मेरे हर दुख सुख में साथ दें, क्योंकि वो जब से आयी, तब से धनबाद में वो चीज थम गया, जिसके लिए धनबाद जाना जाता था। आखिर वो कौन हैं – जिसके बारे में धनबाद की जनता ने धनबाद बंद बुला दिया और यहीं नहीं सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार हो गयी। स्पष्ट हैं – वो नाम हैं, धनबाद के वर्तमान एसपी सुमन गुप्ता का। वो हैं महिला, पर पुरुषार्थ इतना भरा कि उनके सामने पुरुष की पुरुषार्थ भी फेल। जब वो धनबाद की एसपी बनी थी, तब मैं उस वक्त ईटीवी धनबाद का प्रभारी था। मनौज कौशिक एसपी की विदाई हो गयी थी और सुमन गुप्ता प्रभार ले रही थी। व्यवसायी वर्ग रोज रोज की रंगदारी से तंग था, कोल माफियाओं की तूती बोल रही थी। नेताओं-माफियाओं-भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ पुलिसकर्मी और पत्रकारों का गठजोड़ अपने रंग में था। ऐसे में इन पर नकेल कसना और धनबाद को रास्ते पर लाना कोई सामान्य काम नहीं था। ऐसे भी कहा जाता हैं कि जो भी आईपीएस झारखंड आता है, और उसे पैसे कमाने होते हैं तो वो एक बार धनबाद की पोस्टिंग चाहता हैं, इसके लिए वो सत्ता में बैठे नेताओं को मुंहमांगी रकम देने को भी तैयार होता है। यहीं नहीं जब पैसे के बल पर, वो एसपी धनबाद आ जाता हैं, तब अपने मनमुताबिक, वो थाना प्रभारियों को नियुक्त करता हैं, सस्पेंड करने का नाटक करता हैं और जम कर पैसे कमाता हैं। ऐसे एसपी को कुछ करने की भी जरुरत नहीं पड़ती, धनबाद हैं, इसलिए पैसे खुद ब खुद इनके पास पहुंच रहा होता हैं, पर इसके बदले में एक सामान्य जनता को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती हैं। चाल धंसते हैं, सामान्य लोग मरते हैं, व्यवसायियों से रंगदारी मांगी जाती हैं, अपहरण उद्योग चलता हैं, रेलवे से लोहे और कोयले की चोरी नहीं, तस्करी होती हैं और अपना प्रांत व देश लूट रहा होता हैं। इधर, भ्रष्ट एसपी, आराम से सो रहा होता हैं, क्योंकि उसे सोने की कीमत हर महीने, कार्यालय, आवास अथवा मनमुताबिक जगहों पर पहुंचा दी जाती हैं।
सुमन गुप्ता, झारखंड का एक जाना पहचाना नाम हैं, इसलिए नहीं कि वो एसपी हैं, इसलिए कि वो अपने कामों से जनता का दिल जीती हैं, साथ ही दिल जीती हैं, उन पुलिसकर्मियों का जो ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ हैं, और उक्त जनता का, जिसे लटपट से कोई मतलब नहीं, सिर्फ उसे मतलब हैं कि चैन से जीने का। जब मैं ईटीवी धनबाद में था, तभी मैं समझ गया था कि इनकी नेताओं, माफियाओं, धनबाद में रह रहे कुछ भ्रष्टपुलिसकर्मियों और पीतपत्रकारिता में संलिप्त लोगों से नहीं बनेगी, और हुआ भी ऐसा ही। सुनियोजित साजिश के तहत शुरु से ही ऐसा ताना बाना बनाया जाने लगा, जैसे लगता हैं कि इनके आने से धनबाद में अमन चैन ही खत्म हो गया हो। और रही सही कसर निकाल दी, धनबाद में धीरेन्द्र प्रकरण ने, जो नेता ये मुद्दा उछाल रहे हैं, उन्हें धीरेन्द्र से कोई मतलब नहीं। मतलब हैं कि इसी की आड़ में, अपना उल्लू सीधा कर लें। यहीं नहीं रांची में बैठे सत्तासीन लोगों को भी पैसे की चाहत हैं, वे भी चाहते हैं कि धनबाद में अपने ऐसे लोगों को बिठा दें, जो आराम से उनके चौखट तक पैसे पहुंचा दे। ऐसे में जब तक धनबाद के एसपी सुमन गुप्ता को नहीं हटायेंगे, तो फिर मनचाहा आदमी कैसे बैठेगा। इसलिए उन्होंने तरकीब निकाली कि क्यूं नहीं, विपक्ष के इस हंगामें को आधार बनाकर, अपना उल्लू सीधा कर लिया जाय। हमें याद हैं कि जिस दिन विधानसभा अपना स्थापना दिवस मना रहा था, उस दिन धनबाद के कई पुलिसकर्मियों और पत्रकारों के फोन हमारे पास आये, उनका एक ही प्रश्न था कि धनबाद के एसपी सुमन गुप्ता का क्या हुआ। आज झाविमो विधायक समरेश सिंह और फूलचंद मंडल ने जो हंगामा किया, उसका कितना असर रहा। और जिस दिन आईपीएस अधिकारियों का तबादला हुआ, उसमें सभी समाचार पत्रों ने सुमन गुप्ता को ही प्रमुखता दे दी, जबकि तबादला सिर्फ सुमन गुप्ता का ही नहीं, औरों का भी हुआ था। ये बातें साबित करती हैं कि एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ महिला, कोलमाफियाओं, सत्ता में बैठे अथवा बाहर में रह रहे राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट पुलिसकर्मियों और पीत पत्रकारिता करनेवाले पत्रकारों को किस प्रकार खटक रही हैं।
मैं ये भी नहीं कहता कि सुमन गुप्ता हमेशा धनबाद में ही रहे, ऐसी महिला, हर जगह जानी चाहिए, जिससे एक नये समाज की रचना हो, पर उक्त महिला का स्थानांतरण भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, कोलमाफियाओं, भ्रष्टपुलिसकर्मियों और भ्रष्ट पत्रकारों को खुश करने के लिए हो, तो इससे ज्यादा शर्मनाक दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। धीरेन्द्र सिंह प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, और इसके दोषियों को दंड भी मिलना चाहिए, पर इस प्रकरण को बहाना बनाकर, बिना जनता को विश्वास में लिए, स्थानांतरण करना, सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ें करता हैं? आखिर सरकार को सोचना चाहिए कि जो लोग रांची से धनबाद अथवा धनबाद से रांची तक ये मामला उठा रहे हैं, वे चाहते क्या हैं, उनका क्या स्वार्थ हैं, पर बिना इन सबकी जांच पड़ताल किये, स्थानांतरण कर देना, बहुत कुछ कह देता हैं। आखिर फुलचंद मंडल, ढुल्लू महतो और समरेश सिंह जैसे विधायक, धनबाद में क्या करते हैं, क्या चाहते हैं, क्या धनबाद की जनता नहीं जानती। कैसे पंचायत चुनाव के दौरान, अर्जुन मुंडा की सरकार ने आनन फानन में, सुमन गुप्ता का स्थानांतरण कर दिया, क्या इस सरकार के क्रियाकलापों को यहां की जनता नहीं जानती। सब जानती हैं, पर जनता करें क्या, यहां तो अंधेर नगरी, चौपट राजा, टके सेर भाजी और टके सेर खाजा वाली कहावत चरितार्थ हो रही हैं।
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