Thursday, March 31, 2011

क्यों नहीं, क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाय..............!

भारत ने पाकिस्तान को एक बार फिर मोहाली में 29 रनों से हरा दिया। सचमुच एक बार फिर ये बात सिद्ध हो गयी कि पाकिस्तान भारत से खासकर वर्ल्ड कप में हमेशा से हारता रहा हैं और इस बार भी हारेगा। कुछ संयोग भी था कि कुछ कौतुक मोहाली में देखने को मिले, सचिन तेंदुलकर बार- बार आउट होते हुए बचे और उन्होंने 85 रनों का व्यक्तिगत स्कोर खड़ा कर लिया। ये घटनाएं भी बहुत कुछ बता रही थी कि मैच भारत के पक्ष में हैं। खैर ये मेरा विषय भी नहीं हैं, आज के समाचार पत्रों और बीती रात से विभिन्न इलेक्ट्रानिक मीडिया ने धौनी सेना की गुणगान करनी शुरु कर दी हैं और साथ ही ये भी राग अलाप दिया कि भारत ही वर्ल्ड कप जीतेगा, मैं भी भारतीय हूं चाहता हूं कि कप भारत में ही रहे। पर केवल क्रिकेट के ही क्यूं और अन्य खेलों के लिए भी ऐसी भावना क्यूं नहीं। खासकर, हॉकी के लिए, जो कि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हैं। यहीं बात पाकिस्तान के लिए भी क्योंकि हॉकी वहां का भी राष्ट्रीय खेल हैं, पर सच्चाई क्या हैं। सभी को मालूम हैं, दोनों देशों में हॉकी हाशिये पर चला गया हैं। न तो सरकार, न ही अधिकारी, न ही बड़े बड़े पूंजीपति-खेल के आयोजक ही इस खेल में रुचि लेते हैं। पूरे देश में जिस प्रकार से क्रिकेट का जूनून हैं। गांव – शहर, कस्बा मुहल्ला सभी जगह छोटे से लेकर बड़े विकेट और बल्ले की ही बात कर रहे हैं, ऐसे में हमारा अभिमत हैं कि क्यूं नहीं क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाय, क्यूं हम बेवजह उसे राष्ट्रीय खेल मानने को तैयार हैं- जिसपर हम बात करने को अपना समय देने को तैयार नहीं हैं। आखिर हम ऐसा क्यूं कह रहे हैं। उसके पुख्ता प्रमाण हैं। आप उन देशों को लीजिये जहां का राष्ट्रीय खेल फुटबॉल हैं, जरा उन देशों और वहां के निवासियों को देखिये कि वे फुटबॉल को किस प्रकार लेते हैं, पर हमारे देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी के प्रति किस प्रकार अनादर का भाव हैं। वो हॉकी खेलनेवाले खिलाड़ियों की मनोदशा देखकर ही पता लग जाता हैं।
जबकि क्रिकेट की बात हो तो पूछिये मत, गांव – महल्ला, नगर –शहर तो दूर हमारे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक इस पर चर्चा करने लगते हैं। दूसरे मित्र व पड़ोसी देश को क्रिकेट का आन्नद लेने के लिए निमंत्रण तक दे देते हैं। क्रिकेट को लेकर भारत और पाकिस्तान में जैसे मारामारी दीख रही होती हैं, वैसी मारामारी अन्य देशों के खिलाफ होनेवाले क्रिकेट मैचों में नहीं होती। आखिर ऐसा जुनून क्यूं हैं, क्यों हमें पाकिस्तान को हराने में परमानन्द की प्राप्ति होती हैं, जबकि ऐसा ही आनन्द फाइनल में जीतने पर देखने को नहीं मिलता। हमें लगता हैं कि ये शोध का विषय हैं, पर जो सामान्य लोग हैं, वे जानते हैं कि आखिर इसका आनन्द का कारण क्या हैं। किस प्रकार हमारे भारत और पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों ने अपने-अपने पड़ोसी देशों को लेकर, हमारे मन में विषवमन पैदा किया हैं, जिसका परिणाम भारत और पाकिस्तान के साथ होनेवाले सिर्फ क्रिकेट में दिखायी पड़ता हैं, न कि इन दोनों देशों के साथ होनेवाले किसी अन्य मैचों में।
कमाल हैं, जैसे ही क्वार्टरफाइनल में ये श्योर हो गया कि भारत और पाकिस्तान सेमीफाईनल में भिड़नेवाले हैं, हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी और वहां के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भारत मैच का आनन्द लेने के लिए आमंत्रित कर दिया। उधर से भी वहीं प्रतिक्रिया हुई, जिसका अंदेशा कि हम आ रहे हैं। क्या बात हैं जो काम और कोई नहीं कर सकता, क्रिकेट ने कर दिया। दोनों देश क्रिकेट देखने ही नहीं, बल्कि बातचीत को भी तैयार हो गये। जनाब गिलानी पाकिस्तान से आये, खाये-पीये, मैच का मजा लिया और गये। ऐसा लगा कि भारत और पाकिस्तान कभी लड़े ही नहीं थे और न ही कभी लड़ेंगे। यानी भारत और पाकिस्तान अब शांति की डगर पर चल पड़े हैं। इधर सोनिया गांधी और और राहुल गांधी भी मैच देखने के मोहाली पहुंचे और बाकी बचे तो अन्य नेता, व फिल्मी अभिनेता- अभिनेत्री व पूंजीपतियों का बड़ा समूह मोहाली पहुंच गया था। क्रिकेट मैच का आनन्द लेने के लिए। उस क्रिकेट का मजा लेने के लिए जो हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं हैं, और जिनके पास अपने राष्ट्रीय खेल देखने के लिए समय नहीं होता। जरा पूछिये, अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से और उन अन्य नेताओं, अभिनेताओं व पूंजीपतियों से कि क्या ऐसी ही कशिश उनके दिलों में राष्ट्रीय़ खेल के प्रति होती हैं। उत्तर होगा – नहीं। जिस देश में सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठनेवालों के दिलों में अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी के प्रति दर्द नहीं उभरता, उस देश में राष्ट्रीय खेल की क्या स्थिति होगी, वो जो हम देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं, हमसे बेहतर कौन समझ सकता।
हम झारखंड में हैं, जहां हॉकी जन-जन में रचा बसा हैं, जहां कई पुरुष और महिला खिलाड़ी हॉकी के द्वारा अपने देश का मान बढाया हैं। इस प्रांत में भी एक क्रिकेट के धौनी ने, उन हॉकी खिलाड़ियों की चमक थोड़ी फीकी कर दी हैं जिन्होंने हॉकी में अपना ही नहीं बल्कि इस राज्य और देश का मान बढ़ाया पर आज उनकी क्या स्थिति हैं, झारखंड की जनता से बेहतर और कौन जान सकता हैं। धौनी का तो कहना ही नहीं, उसके पास तो इतने धन आ चुके हैं कि पूछिय़े मत, पर इसी राज्य में हॉकी के बल पर देश व राज्य का मान बढ़ानेवाले लोगों की हालत पस्त हैं, उस पर न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकार का ध्यान हैं। ले – देकर बेचारे अपने हालत पर आंसू बहा रहे हैं, पर क्रिकेट के पक्षधरों और उसके झंडाबरदारों ने उनकी सूध तक नहीं ली। वो भी उस राज्य में उस देश में जहां हॉकी राष्ट्रीय खेल हैं।
कल मैंने ये भी देखा कि जैसे ही भारत ने पाकिस्तान पर जीत दर्ज की, सोनिया गांधी और मनमोहन के चेहरे पर खुशी का ठिकाना नहीं था, वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी के चेहरे पर हार का गम साफ दिखाई पड़ रहा था। पूरे देश की तो बात ही अलग थी। क्या दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई की बात करे, सभी खुश, देश ने पाक पर फतह कर लिया। ऐसी खुशी, जिसको अभिव्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे, जब पूरे देश में ऐसा माहौल हो, तो फिर हम तो ये ही कहेंगे कि हे महान देश के महान राजनीतिज्ञों ( दोनों देशों ) आप जल्द ही ये घोषणा कर दो कि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी नहीं, क्रिकेट हैं। क्योंकि तुम घोषणा करों या न करों, आम जनता तो हॉकी को भूलाकर क्रिकेट के रंग में रंग ही चुकी हैं और क्रिकेट को राष्ट्रीयता से जोड़ दी हैं। साथ ही सचिन-धौनी इऩके सरताज हो चुके हैं। तो फिर देर कैसी।

बिहार, मीडिया और बारबालाएं….!

होली बीते कुछ ही दिन बीते हैं, लेकिन होली के दिन और उसके पहले अथवा होली के बाद, जो मीडिया में होली को केन्द्रित बारबालाओं के उपर बिहार से संबंधित समाचार आये। वो चौकानेवाले तो नहीं, पर चिंतन करनेलायक जरुर थे। ज्यादातर मीडिया ने खुलकर दिखायें कि बिहार में होली की संस्कृति को कैसे तारतार कर यहां के अधिकारी बार बालाओं के डांस का आनन्द ले रहे हैं। किसी ने आधे घंटे तो किसी ने इस पर एक घंटे का विशेष चला दिया तो किसी ने अपने फोन नंबर प्रसारित कर दिये कि दर्शक इस पर अपना विचार दे दे। ये वे लोग थे, जो बंद कमरों में वीडियो चलाकर, एडल्ट फिल्में देखने अथवा विभिन्न वेवसाईटों पर एडल्ट साईट देखने पर शर्म महसूस नहीं करते अथवा मुन्नी बदनाम हुई या शीला की जवानी फिल्मों पर डांस करने से ग़ुरेज नहीं करते और ही मुन्नी बदनाम हुई अथवा शीला की जवानी जैसे गाने इन्हें अश्लील लगती हैं, पर जैसे ही कोई लड़कियां अथवा बार बालाएं इन्हीं गीतों पर चौक चौराहों पर डांस कर रही होती हैं तो इन्हें उसमें अश्लीलता, बिहार की संस्कृति पर चोट जैसी चीजें दिखाई पड़ने लगती हैं। कमाल हैबात वहीं हुई, चलनी दूसे सूप के, जिन्हें बहत्तर छेद। यहीं नहीं बिहार के किसी किसी इलाकें में तो कई अधिकारियों ने बिहार दिवस और होली का एकसाथ आनन्द लिया, इन्होंने देखा कि जब बिहार दिवस मनाना ही हैं, नाचगाना करना ही हैं, पैसा सरकारी खर्च होना ही हैं तो फिर क्यूं बहती गंगा में हाथ धो लिया जाय, इसलिए कई लोगों ने अपने कार्यालय में ही बारबालाओं को बुलाकर गीत संगीत का आनन्द लिया, उन पत्रकारों को भी बुलाएं जिनकी इसमें गहरी रुचि हैं, इन पत्रकारों ने भी जमकर रुचि ली और ठुमके लगाये पर ठुमके लगाने के बाद जैसे ही उन्हें पत्रकारिता की याद आयी तो इसे अपने चैनलों तक भेज दिया ताकि इसके आधार पर कुछ कमायी भी हो जाये। इधर डेस्क पर बैठे लोगों ने देखा कि ये तो समाचार हैं, बिकनेवाला आयटम हैं, तो उन्होंने बिहार की संस्कृति और अश्लीलता पर दिखाकर लगे व्याख्यान देने, जिन्हें अश्लील साईट और अश्लील फिल्में देखने का शुरु से ही शौक रहा हैं।
ऐसे तो हमारे देश में इस प्रकार के गीत और संगीत अथवा नृत्य कोई पहली बार नहीं हुए हैं, हमेशा से चलते रहे हैं, जिनकी जो पसंद हैं, उसमें रुचि लेकर वे डूवकी लगाते हैं, पर इन बारबालाओं के माध्यम से पूरे देश के घरों में चुपके से दिखाने का कुकर्म और प्रयास किसने किया ये तो भारत के और बिहार के इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करनेवाले मान्यवर ही बेहतर बता सकते हैं, पर किया क्या जाये। का पर करहू शृंगार, पुरुष मोर आन्हर।
आश्चर्य इस बात की हैकि क्या मुन्नी बदनाम हुई और शीला की जवानी में अश्लीलता नहीं हैं, फिल्म खलनायक में चोली के पीछे क्या हैं, क्या ये अश्लील नहीं हैं। होता तो ये हैं कि सदियों से लोग अश्लीलता को अपनी अपनी आंखों से नापते और देखते हैं और उसके बाद व्याख्यान देते हैँ और इसके बाद शुरु होता हैं एक दूसरे को नीचा दिखाने का आरोप प्रत्यारोप। हालांकि इसका असर कुछ होता नहीं हैं। भले ही जहां बार बालाओं के डांस हुए, बिहार सरकार ने उन अधिकारियों पर गाज भी गिराये पर क्या इस प्रकार के गाज गिराने से उन अधिकारियों के चरित्र सुधर जायेंगे।
हुआ तो ये हें कि पूरे देश के गांव शहरों के कुएं और तालाब, नदियों और सागरों में भांग पड़ गयी हैं। सभी इसमें से एक लोटा जल निकालकर स्वयं को तृप्त कर रहे हैं, ऐसे में अश्लीलता पर कोई टिप्पणी करें तो हमें आश्चर्य लगता हैं. भाई, जब महर्षि विश्वामित्र, मेनका के आगे झूक सकते हैं, जब महर्षि पराशर, सत्यवती के रुप लावण्य को देख मोहित हो सकते है तो ये बार बालाएं किस मर्ज की दवा हैं। ये तो सामान्य लोगों को अपने रुप सौंदर्य और लटकोंझटकों से सिर्फ उनके दिलों को मरहम लगा रही होती हैं। अरे याद करियेभोजपुरी गायक बलेसर को, जो कहते हैं -- काशी में माजा, काबा में माजा, ही माजा बरसाने में, अरे तीन बजे आके जगइहे पतरकी सुतल रहब खरियानी में....................
इसी से पता लग जाता हैं कि सामान्य लोगों की पहली पसंद और आखिरी पसंद क्या हैं। कोई भी व्यक्ति आनन्द की खोज में हैं, पर वो आनन्द उसे कहां मिल रहा हैं, किस रुप में मिल रहा हैं, जिसे वो प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है, उसे वो लेकर रहेगा, चाहे आप झूठी व्याख्यान देकर स्वयं को स्वामी इलेक्ट्रानिकानंद अथवा प्रिंटानंद की उपाधि से विभूषित होने का मन में ख्याल ही क्यूं रखे.

Wednesday, March 23, 2011

हमारा प्रधानमंत्री और यहां के पत्रकार बड़े होशियार हैं.......!

संदर्भ --- घूस देकर सरकार बचाने का...

चाहे सदन में चर्चा हो या न हो। गर हो भी तो भले ही उसका अर्थ न निकले। पर प्रधानमंत्री मनमोहन जी और यूपीए की नेता सोनिया गांधी को मालूम होना चाहिए कि भारत की जनता इतनी मूर्ख नही, जितना वो समझते हैं। भारत की सौ करोड की आबादी जानती हैं कि जो केन्द्र में सरकार चल रही हैं, वो भ्रष्टाचार को आत्मसात कर ही चल रही हैं, और इसी सरकार ने पिछली बार 14 वी लोकसभा में अपनी कुर्सी को बचाने के लिए, सांसदों को घूस दिये थे। ये अलग बात हैं कि जिनके पास सबूत थे, उन पत्रकारों और नेताओं ने इस सरकार के आगे अपनी जमीर बेच दी थी। प्रधानमंत्री जी का संसद में विकीलीक्स मामले पर विपक्षी नेताओं के प्रश्नों के जवाब के दौरान ये कहना कि इसका कोई सबूत नहीं कि उऩकी पार्टी अथवा सरकार ने घूस देकर, सरकार बचायी थी, इसलिए वे निर्दोष हैं अथवा उनकी पार्टी या सरकार दोषी नहीं हैं, बचकाना बयान हैं। ये तो वहीं बयान हैं जब कोई अपराधी, अपराध तो करता हैं, जिसका ताउम्र उसे एहसास होता भी रहता हैं, पर अपने अपराधिक सबूतों को बड़ी ही सफाई से इस प्रकार गायब कर देता हैं, जिसका पता दूसरों को नहीं लगता। पर इस बार विकीलीक्स द्वारा किया गया खुलासा कि कांग्रेस ने सांसदों को घूस देकर अपनी सरकार बचायी थी, सब कुछ क्लियर कर देता हैं कि इस देश में कैसे – कैसे राजनीतिज्ञ शासन कर रहे हैं और इसका साथ यहां के तथाकथित जमीर बेचने वाले पत्रकार कैसे दे रहे हैं । ऐसे तो सभी जानते हैं कि कांग्रेस और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पर्याय हैं। चाहे विदेशों में धन रखने की बात हो या विभिन्न घोटालों को जन्म देना ये कांग्रेसियों का बायें हाथ का खेल हैं। ये अलग बात हैं कि भारत इनके द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार के बावजूद भी सरकता हुआ आगे बढ़ता जा रहा हैं, क्योंकि यहां की आज भी एक बहुत बड़ी आबादी देश को आगे बढ़ाने के लिए अपना खून पसीना बहाती जा रही हैं, ये कहकर कि-----
तेरा वैभव अमर रहे मां,
हम दिन चार रहे ना रहे
इस देश का दुर्भाग्य रहा हैं कि जब से ये देश स्वतंत्र हुआ तब से लेकर आज तक ज्यादातर समय तक कांग्रेसियों का शासन रहा हैं, जिन्होंने शायद संकल्प कर लिया हैं कि वे इस देश का बंटाधार करके रहेंगे। उनके इस संकल्प को पूरा करने में, वे पत्रकार भी शामिल हो गये हैं, जिनका मकसद, समाचारों के माध्यम से पत्रकारिता और देश सेवा न कर ब्लैकमेलिंग करना हैं, पर इन ब्लैकमेलर पत्रकारों को भी कैसे ठीक किया जाता हैं, शायद कांग्रेसियों को बहुत अच्छी तरह पता हैं। इसलिए जिन पत्रकारों अथवा चैनल के पास सासंदों को घूस देनेवाली खबर व उसके पूख्ता सबूत मौजूद थे, उस चैनल और उसके पत्रकारों ने बिना देर किये कांग्रेसियों के चरण पकड़ लिये ये कहकर कि आप हो तो हम हैं, इसलिए आप घबराये नहीं, हम कभी भी उस खबर को अपने चैनल पर नहीं दिखायेंगे, जिसकी वजह से सरकार पर आंच आती हो, आप जो कहेंगे, वहीं करेंगे। इसलिए, उस वक्त, उक्त चैनल ने वो समाचार नहीं दिखायी, जिसको देखने के लिए भारत की जनता बेकरार थी, जिसका कथन था, खबरें किसी भी कीमत पर वो पता नहीं कौन सी कीमत लेकर अपना जमीर बेच चुका था। पर जनता तो जनता हैं वो जान चुकी थी कि दाल में काला हैं, पत्रकारों ने जमीर बेचा हैं, सब जगह थू थू होने लगी, उक्त चैनल ने बहुत दिनों बाद, जब मामला ठंडा पड़ गया, समाचार दिखाई, वो भी जैसे तैसे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, कांग्रेसियों ने पूरे प्रकरण को गड्मगड कर दिया था, वे अपने मकसद में कामयाब हो गये थे, पर कहा जाता हैं न कि सच, सच होता हैं, विकीलीक्स ने रहस्योदघाटन करके बता दिया कि कांग्रेसियों ने घूस देकर, अपनी सरकार बचायी, और केन्द्र की सोनिया मनमोहन की सरकार तो नंगी हुई ही, वे पत्रकार भी नंगे हो गये जिनके पास सत्य था पर वे सत्य दिखाने का साहस नहीं दिखा सकें । जो पत्रकार कहते हैं कि वे खबरें किसी भी कीमत पर जाकर दिखा सकते हैं। वे भी कांग्रेसियों के चरणोदक पीने को बेताब हो जाते हैं, जब कांग्रेसियों की धमक, उन पत्रकारों के कानों तक पहुंच जाती हैं। लेकिन देश के अन्य इमानदार पत्रकारों द्वारा, उन जमीर बेचनेवाले पत्रकारों अथवा चैनलों पर थू थू की जाती है, तब भी ये बेशर्मी से अपने को पाक साफ बताने में लग रहते हैं। जब देश के संसदीय इतिहास में पहली बार, नोटों के बंडलों को भाजपाईयों द्वारा रखा जा रहा था और ये नेता ये कहकर चिल्ला रहे थे कि उन्हें कांग्रेसियों ने खरीदने की कोशिश की, जिसका सबूत देश के एक प्रमुख चैनल और पत्रकार के पास था, उसने किस कारण से अपनी जमीर बेच दी, वे तो वहीं बता सकते हैं, पर देश की जनता जान गयी थी कि यहां नेता व पत्रकार सभी मिले हैं, सभी तरमाल खा रहे हैं, सभी देश को बर्बाद करने में तूले हैं, चारो ओर घोर अंधियारा हैं, कहीं कोई किनारा नहीं हैं, इसलिए जनता सब कुछ जानते हुए भी, एक बार फिर अनिच्छा से विष पीया और कांग्रेस को सत्ता सौंप दी, और इस सता को पाने के बाद कांग्रेसियों ने तो समझ लिया कि भारत की जनता उनके साथ हैं, इसलिए भ्रष्टाचार का कीर्तिमान बनाओ, और देश के दिल्ली में बैठे पत्रकारों को साम दाम दंड भेद के तहत अपने पास मिलाये रखों और देश पर शासन करने का मजा लेते रहो। शर्म हमें आती हैं कि हम उस कालखंड में रह रहे हैं, जहां जमीर बेचनेवाले नेता व पत्रकार देश के शीर्ष स्थानों पर बैठकर, भारत के विकास का बेशर्मी राग, देशवासियों को सुना रहे हैं, ये कितने बेशर्म हैं, इस बात का पता इसी से चल जाता हैं कि देश के संसद में भी बैठकर हसंते हुए, अपनी बेशर्मी का फागुनी राग सुना रहे होते हैं, और इनके फागुनी राग में पत्रकार भी ये कहकर बेशर्म बनते हैं, कि कांग्रेसी और मनमोहन तो आज तक कुछ गलत किया ही नहीं, ये तो विपक्षी दल के नेताओं की आदत हैं, सत्तापक्ष को कठघरे में खड़ा करने की, इसलिए गाहे बगाहे चिल्लाते रहते हैं। इसलिए इन्हें चिल्लाने दीजिये। हम अपना काम करते रहे। यानी की, हम हमेशा जीवित थोड़े ही रहेंगे, जब तक जीयेंगे ऐश करके जीये, देश भाड़ में जाये, जिनको देश के बारे में सोचना हैं, वो सोचे। अपना क्या हैं, खाओ, पीओ, ऐश करो। देश पर चीन हमले की योजना बनाये अथवा पाकिस्तान व बांगलादेश हमारी सरहदों को छोटा करने की कोशिश करें तो उससे हमें क्या। हमने ही ठेका ले रखा हैं, भारत का क्या।

Monday, March 14, 2011

तुम मेरी आरती उतारो, मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा..................!


जी हां। तुम मेरी आरती उतारो, मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा। कुछ ऐसी ही सोच है, झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का। जोड़ – तोड़, सांठ – गांठ, तिकड़मबाजी में महारत हासिल, भाजपा के इस नेता ने झारखंड की सत्ता संभालने के बाद अपनी छवि जनता के बीच ठीक जाये, इसके लिए, इन्होंने अपने आवास पर 12 मार्च 2011 को मीडियाकर्मियों को भोज पर आमंत्रित किया, और उनसे गुफ्तगू की। इस गुफ्तगू में रांची के सभी प्रमुख समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के गण्यमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया। सभी पहुंचे भी। क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री ने भोज पर आमंत्रित किया था। ऐसे भी जब दिल्ली में प्रधानमंत्री, दिल्ली के पत्रकारों को अपने आवास पर भोज में आमंत्रित करें तो भला किस पत्रकार की लार नहीं टपकेगी। ठीक उसी प्रकार, मुख्यमंत्री आवास से जैसे ही भोज का आमंत्रण मिला। रांची के सभी प्रमुख समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के तथाकथित मूर्धन्य पत्रकार पहुंच गये। जिनका मुख्य मकसद मुख्यमंत्री की चाटुकारिता करना, उनके सम्मान में स्वयं को समर्पित कर देना और इसके बदले सरकारी विज्ञापन प्राप्त करना, मुंहमांगी उपहार प्राप्त करना, पैरवी कर अपने लोगों को धन्य – धन्य करा देना, होता हैं, पर इसके उलट इस भोज में कुछ ऐसे भी एक दो पत्रकार पहुंचे थे, जिनका इन सबसे कोई भी लेना देना नहीं होता, जब उन्होंने मुख्यमंत्री आवास पर पत्रकारों के हाल देखे तो भौचक्के रह गये, क्योंकि ये वे पत्रकार थे जिनके जेहन में केवल पत्रकारिता और सिर्फ पत्रकारिता ही होती है।
मुख्यमंत्री आवास पर मुख्यमंत्री के साथ पत्रकारों ने चर्चाएं भी की। पत्रकारों ने कुछ मांगे भी मुख्यमंत्री के सामने रखी। मुख्यमंत्री ने भी दिल खोलकर बातें की --- पत्रकारों के हाल, उनके सम्मान, फैलोशिप, जो अच्छे समाचार प्रसारित अथवा प्रकाशित करेगा, उन्हें सरकार सम्मानित करेगी, धन उपलब्ध करायेगी। पता नहीं क्या – क्या बातों का दौर चला। मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचे पत्रकार खुश, क्योंकि अब जो जितनी चाटुकारिता करेगा, उसे उतना ही लाभ मिलेगा। पत्रकारों को खुशी का ठिकाना नहीं था। अब रेवड़ियां केवल एक को नहीं, बल्कि सबको मिलेगी। फिर भी कुछ को चिंता थी कि ये कैसे हो सकता है। जिसे मुख्यमंत्री पहले से ही रेवड़ियां देते आये हैं, क्या इस प्रकार की शुरुआत से उन्हें तकलीफ नहीं होगी। क्योंकि वे तो चाहते ही हैं कि मुख्यमंत्री रेवड़ियां सिर्फ उन्हें ही दे, ऐसे भी मुख्यमंत्री, उन्हें रेवड़ियां देने में सबसे ज्यादा आगे रहते है, क्यूं रहते है, ये तो मुख्यमंत्री ही बेहतर बता सकते है।
मुख्यमंत्री द्वारा दिये गये भोज में कुछ ऐसे तथाकथित पत्रकार भी पहुंचे थे, जिनका मुख्यमंत्री आवास पर आना जाना बराबर होता हैं, जो इनके सामने साष्टांग दंडवत् किये हुए रहते है और मुख्यमंत्री भी बड़ी उदारता से उन्हें लाखों के विज्ञापन और उपहार देकर, उपकृत करते रहते हैं, यहीं नहीं, मुख्यमंत्री को भी खुद उनके साथ बैठना और बातें करते रहना अच्छा लगता हैं, ऐसे भी अपनी बड़ाई सुनना किसे अच्छा नहीं लगता। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपनी बड़ाई सुनने में आनन्द प्राप्त होता है, तो ये तो झारखंड के मुख्यमंत्री है। पर जनता जानती हैं कि दोनों के कामकाज में आकाश जमीन का फर्क हैं। एक ने अपने काम काज से, अखबारों में सुर्खियां बटोरी, आवश्यकतानुसार विज्ञापन दिये, तो दूसरे ने काम काज पर कम और अपनी छवि जनता के बीच बेहतर दिखे, इसके लिए पत्रकारों को विज्ञापन और उपहार के लॉलीपॉप का लालच दिखाया, और पत्रकार भी इस लॉलीपॉप के आगे उछलते कूदते नजर आये।
ऐसे में झारखंड की जनता के पास मरने के सिवा दूसरा क्या रास्ता बचा हैं। जहां का शासक अपनी छवि बेहतर दीखे, उसके लिए पत्रकारों को मुंहमांगी धन व उपहार देकर, उनकी मुंह बंद करना चाहता हैं और पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के आगे अपनी मुंह बंद करने के लिए करवद्ध हो, खड़ा रहता हैं, साष्टांग दंडवत् करता हैं, उस राज्य का भगवान ही मालिक है।
जिस प्रकार से मुख्यमंत्री आवास में पत्रकारों के लिए भोज आयोजित किये जाते है, और जिस प्रकार से पत्रकार उन भोजों पर टूटते हैं, उसे देखकर कोई भी सामान्य व्यक्ति लज्जित हो जाता हैं कि ये आदमी हैं या कुछ और.......!
कभी – कभी तो मैंने खुद देखा हैं कि मुख्यमंत्री आवास अथवा अन्य जगहों पर जिन पत्रकारों को भोज पर आमंत्रित नहीं किया जाता, जो सिर्फ समाचार संकलन के लिए जाते है, वे भी बिना किसी आग्रह के भोजन व उपहार पर टूट पड़ते हैं, जो बताता हैं कि यहां किस प्रकार की पत्रकारिता चल रही है और जब पत्रकार खुद बिकने को तैयार है तो शासक वर्ग को खरीदने में क्या दिक्कत, वो अपना काम कर रहा है।

Sunday, March 6, 2011

आखिर सुमन गुप्ता को जाना ही पड़ा........।

दसवीं का जब छात्र था, तो उस वक्त कहानी संकलन नामक पुस्तक चला करती थी। उसी में मैंने मुंशी प्रेमचंद की लिखित कहानी नमक का दारोगा पढ़ा था, जिसमें एक पिता अपने पुत्र को नौकरी में जाने के पूर्व हिदायत दी कि बेटा मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद हैं, उपरि आमदनी बहता हुआ स्रोत हैं यानी नाना प्रकार से व्यवहारिक जिंदगी अपनाने की बात, अपने बेटे से कहीं, पर बेटा नहीं माना। नमक का दारोगा बना। ईमानदारी से जिंदगी बितानी शुरु कर दी। एक समय ऐसा आया कि धन ने धर्म पर जीत दर्ज कर ली, पर अंततः कहानी के अंत अंत आते आते, धर्म की जीत हो जाती है। यहीं जीत बताती हैं, कि भारत का ध्येय वाक्य सत्यमेव जयते की सर्वदा जय होती है, इसीलिये भय नहीं करें, संघर्ष करें, आगे बढ़ते जाये, और देश व समाज को नयी दिशा दे दे।
सुमन गुप्ता जो पुलिस अधीक्षक के पद पर धनबाद में शोभायमान थी। आज वो वहां नहीं है, उन्हें राज्य सरकार ने रांची वायरलेस के एसपी पद पर स्थानांतरित कर दिया। धनबाद एसपी के रुप में आर के धान को पदभार ग्रहण करने के लिए कहा गया है। हम आपको बता दें कि सुमन गुप्ता जैसी वीरांगनाएं कई कभी कभार ही जन्म लेती है, जबकि आर के धान जैसे लोगों की संख्या झारखंड में बहुत है, आर के धान न कभी, सुमन गुप्ता बन सकते है और न उन्हें बनने की आवश्यकता है। ऐसे तो राज्य सरकार ने पहले ही सुमन गुप्ता को स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया था पर पता नहीं क्या उनकी मजबूरी हो गयी, उन्होंने स्थानांतरण के फैसले को स्थगित कर दिया और अब अचानक, इसे इम्पलीमेंट करा दिया। हालांकि सामान्य जनता जानती हैं कि ऐसा क्यूं हुआ हैं, और हमें लिखने में कोई दिक्कत नहीं कि राज्य सरकार ने कुख्यात कोयलामाफियाओं और कोयलांचल के कुख्यात अपराधियों, सत्तापक्ष और संपूर्ण विपक्ष में शामिल भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट वरीय पुलिस पदाधिकारियों व भ्रष्ट पत्रकारों के आगे घूटने टेकते हुए, वो कर दिया, जिसकी आशा सामान्य जनता को पहले से ही थी। सामान्य जनता जानती थी कि जिस प्रकार से सुमन गुप्ता कोयलांचल के कोलमाफियाओं पर एक एक कर हमले करते हुए, उन्हें उनकी औकात बता रही हैं, वो ज्यादा दिनों तक धनबाद नहीं टिकेंगी। और आखिर वहीं हुआ भी, नहीं टिकी। ऐसे भी यहां कोई पुलिस पदाधिकारी वो भ्रष्ट ही क्यूं न हो, ज्यादा दिनों तक नहीं टिकता, क्योंकि राज्य के वरीय पुलिस पदाधिकारी आईपीएस ही नहीं, यहां तक की आईएएस अधिकारी भी, जब झारखंड कैडर चुनते हैं तो उनकी पहली और अंतिम इच्छा होती हैं कि एक बार धनबाद संभाला जाये, क्योंकि धनबाद में वो सब कुछ है, जिसके कारण दुनिया की सारी सुख सुविधाएं, देखते ही देखते, उनके घर में आ जाती है। इसलिए हमारा मानना है कि महत्वपूर्ण ये नहीं कि धनबाद में कौन कितने दिन एसपी के रुप में रहा, महत्वपूर्ण ये हैं कि वो जितने दिन भी रहा, कैसे रहा। और हमें ये कहने में गुरेज नहीं कि, सुमन गुप्ता का कार्यकाल अद्वितीय रहा है और आज के बाद धनबाद में जो भी एसपी आयेंगे, उन्हें सुमन गुप्ता बनने में, पसीने छूट जायेंगे। धनबाद से सुमन गुप्ता का जाना, भ्रष्ट व्यवस्था के हावी होने और भ्रष्ट अर्जुन मुंडा सरकार का प्रत्यक्ष और सुंदर उदाहरण है। कुख्यात कोयला माफियाओं, कुख्यात अपराधियों, कुख्यात पुलिस पदाधिकारियों की फौज, इस वीरांगना के खिलाफ लगी थी, जिसमें ये एकमात्र महिला अपनी पूरी ताकत लगाकर, भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ रही थी, ठीक उसी प्रकार जब 1857 में सिंधिया परिवार अंग्रेजों से मित्रता करने की संधि कर रहा था, और उसी वक्त लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से चुन चुन कर बदला ले रही थी, संघर्ष कर रही थी। जिस पर सुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है –
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया,
ने छोड़ी रजधानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो,
झांसी वाली रानी थी।
मैं भी कहना चाहता हूं, जब सुमन गुप्ता भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों, कुख्यात कोल माफियाओं, भ्रष्ट पत्रकारों को उनकी औकात बता रही थी, तब अर्जुन मुंडा की सरकार, इन भ्रष्ट लोगों के साथ सुर में सुर मिलाकर ये कह रही थी कि ऐ भ्रष्टाचारियों, चिंता मत करों, मैं हूं न। जल्द ही, उक्त महिला को, मैं वहां से हटाकर, उसे ऐसा शंट करुंगा कि तुम देखते रह जाओगे। और अर्जुन मुंडा की सरकार ने ये करके दिखा दिया। शर्म – शर्म।
इधर सुमन गुप्ता का स्थानांतरण पत्र आया, उधर उक्त महिला ने तनिक देर नहीं की और अपना बोरा बिस्तर बांध लिया, चल दी। इधर आम जनता को पता लगा कि सुमन गुप्ता जा रही हैं, आम जनता की भीड़ उनके आवास पर आ खड़ी हुई, किसी के हाथों में फूल मालाएं थी, तो कोई उनसे ऑटोग्राफ ले रहा था। आश्चर्य कोई पैसा कमाता हैं तो कोई यश। मैंने कोयलांचल में, कई एसपी को आते जाते देखा, पर आज तक किसी एसपी की, ऐसी विदाई नहीं देखी।
सचमुच मह्त्वपूर्ण ये नहीं, कि कौन कितने दिन जिया, महत्वपूर्ण ये हैं कि वो जितने दिन जिया, कैसे जिया। शेर की तरह या मच्छड़ की तरह। अब धनबाद में शायद ही कोई एसपी के रुप में शेर दिखेगा। शेर लिखने का मतलब, पुरुषार्थ से हैं। सुमन गुप्ता गर चाहती तो वो भी अन्य भ्रष्ट अधिकारियों और समझौतावादी व्यवहार, भ्रष्ट नेताओं की चाटुकारिता कर वो पद पा लेती, जिसकी चाहत यहां के आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को होती हैं, पर जो रास्ता उन्होंने अपनाया है, ईश्वर से यहीं प्रार्थना हैं कि उस पर सदैव चलती जाये, क्योंकि ये मार्ग कठिन है, इस राह में नाना प्रकार की परीक्षाएं होती है और उन परीक्षाओं में सफल होना बहुत ही कठिन होता है। क्योंकि आईएएस व आईपीएस बन जाना आसां हो जाता है, पर इस पद को पाकर, एक अच्छा इंसान बनना, पुरुषार्थी इंसान बनना, लक्ष्मीबाई बनना, बहुत मुश्किल होता है। निरंतर संघर्ष करते जाईये, सुमन जी, आप खूब चमकेंगी, क्योंकि ईश्वर आपके साथ है।

Tuesday, March 1, 2011

भारत क्या है .............................................

सदियों से भारत और भारत के बाहर के लोग भारत और उसकी अमूल्य धरोहर यानी इसकी संस्कृति के बारे में जानने की कोशिश करते रहे हैं। इसी क्रम में कुछ जान पायें और कुछ बिना जाने ही स्वर्ग सिधार गये। जिन्होंने जाना, उन्होंने जीने की कला सीख ली और खुद को धन्य करा दिया और जिन्होंने नहीं जाना, वे आज भी आवागमन में लगे हैं। क्या है भारत, क्यों ये आज भी जीवित है जबकि इसी दरम्यान कई देश जीवित हुए और मृत भी हो गये, पर भारत आज भी साकार खड़ा है। इसकी सीमाएं कालांतराल में फैली, सिकुड़ती गयी, पर इसके अस्तित्व पर कभी संकट नहीं आया और न आ पायेगा। शायद इसीलिए सुप्रसिद्ध शायर इकबाल ने आखिर लिख ही डाला कि ...
यूनान मिस्र रोमां, सब मिट गये जहां से,
अब तक मगर है बाकी, नामो निशां हमारा,
कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा हैं, दुश्मन दौरे जहां हमारा......................

कमाल है, विश्व में कौन ऐसा देश है, जिस पर भारत जितने हमले हुए, और फिर इन हमलों से पार पाकर, वो देश फिर शान से खड़ा हो गया हो। इसका मतलब ही है कि भारत, अन्य देशों से कहीं भिन्न है, ये भोगभूमि नहीं, ये त्यागभूमि है। इसका कण-कण धर्म और देवत्व की परिभाषा कहता हैं, जरुरत हैं इसे समझने की। पर आज इसे समझने की फुरसत किसे है, गर नहीं हैं, तो समय का इंतजार करिये, प्रकृति खुद ऐसी लीलाएं करेगी कि आप को समझना आवश्यक पड़ जायेगा।
विष्णु पुराण कहता है………………………………………..
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्षम् तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।

अर्थात् हिमालय के दक्षिण और सागर के उत्तर में जो भूखण्ड है वो भारत के नाम से जाना जानेवाला हैं और उसकी संतान भारती कहलाती है।
भा का अर्थ होता है – प्रकाश, प्रभा, कांति, शोभा और रत का अर्थ है – उसमें रम जानेवाला। यानी प्रकाश की ओर सदैव गमन करनेवाले देश का नाम भारत है। कैसा प्रकाश तो उसका सीधा अर्थ है – ज्ञान का प्रकाश। सर्वप्रथम ज्ञानोदय यहीं हुआ, सभ्यता यहीं आयी और फिर इस ज्ञान के प्रकाश के आधार पर सारा विश्व आलोकित हुआ। सारा विश्व भी अब मान चुका है कि विश्व की पहली पुस्तक ऋग्वेद है और इससे ज्यादा वर्तमान में प्रमाणिक आधार दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
भारत और भारत का धर्म………………………………………………..
बार-बार धर्म को लोग, अपने अपने चश्मे से देखते हैं, कोई कहता है – हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, सिक्ख धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और पता नहीं कितने सारे धर्म आज विश्व में पैदा हो चुके हैं, जो अनगिनत हैं, हम कह सकते हैं कि जितने लोग, उतने धर्म। पर धर्म क्या है, उसका शाश्वत स्वरुप क्या है, उसका आधार क्या है, शायद ही इन धर्मों की वकालत अथवा इस पर गर्व करनेवालों को मालूम हो, पर सही में धर्म की व्याख्या बहुत पहले स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में कर दी थी – ये कहकर कि गर पूरे विश्व से हिन्दू धर्म समाप्त हो जाये और उसके जगह पर इस्लाम धर्म का बोलबाला अथवा ईसाई या अन्य किसी भी प्रकार के धर्मों का बोलबाला हो जाये तो उसके धर्म ध्वज अथवा उसके उपदेशों में क्या लिखा होगा – ये लिखा होगा कि झूठ बोलो, अमर्यादित आचरण करों, सज्जनों को दुख पहुंचाओं, नहीं तो फिर क्या लिखा होगा – यहीं न, कि सच बोलो, अमर्यादित आचरण न करों, सज्जनों को आनन्द पहुंचाओ, यहीं तो धर्म है। भारत तो सदियों से यहीं कहता आया है। यहीं धर्म का मूल स्वरुप हैं, आधार है। ऐसे भी धर्म शब्द की उत्पति ही संस्कृत के धृ धातु से हुई है। धृ का अर्थ है – धारण करना। क्या धारण करना तो सत्य धारयति धर्मः अर्थात् सत्य को धारण करना ही धर्म है। धर्म शाश्वत है यह प्रकृति के अधीन है। प्रकृति स्वयं सत्य आचरण करा लेती है कोई इसके विपरीत चल ही नहीं सकता। गर चलेगा तो प्रकृति उसे दंड देगी, ये पूर्णतः सत्य है। ठीक उसी प्रकार कि गर्मी के दिनों में कोई कंबल नहीं ओढ़ सकता, कंबल तभी ओढ़ेगा जब जाड़े का मौसम आयेगा। ये धर्म का सार है। किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा चलाया गया पंथ या मत – कदापि धर्म का स्वरुप नहीं ले सकता। क्योंकि धर्म उक्त व्यक्ति के पूर्व में नहीं रहने के बावजूद भी था और उक्त व्यक्ति के नहीं रहने पर भी रहेगा। वह मृत नहीं हो सकता। किसी व्यक्ति के पंथ अथवा मत को माननेवाले पंथी अथवा मतावलंबी हो सकते है। धर्मावलंबी नहीं, धर्मावलंबी तभी होंगे जब वो प्रकृति के अनुरुप चलेंगे, भारत और भारत की वैदिक परंपराएं अथवा उपनिषद् यहीं कहती है, गर आप इसे नकारेंगे तो भला, वेदों अथवा उपनिषदों को क्या होनेवाला है, ठीक उसी प्रकार गर कोई आकाश पर थूकने का प्रयास करें तो क्या होगा, उत्तर उस व्यक्ति को खुद ही पता हैं, इस पर विवेचना की आवश्यकता नहीं।
भारत भोगभूमि नहीं, त्यागभूमि है........................................
ज्यादातर लोग आज पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति से अनुप्राणित हो रहे है, उन्हें लगता हैं कि उनका जीवन पश्चिम की तरह सुखों का उपभोग करने के लिए हुआ हैं, इसलिए जमकर प्रकृति का दोहन करों, आनन्द पाओं और दुनिया से विदा हो जाओ, पर भारत के इतिहास को देखें तो यहां वहीं व्यक्ति जीवित रहा, जिसने त्याग को अपनाया, बाकी सभी मृतात्माओं की श्रेणी में आ गये। ये क्रम सदियों से चलता आ रहा है और चलता रहेगा, कोई इसे काटना भी चाहे तो नहीं काट पायेगा। कितने प्रमाण दूं।
जरा गोस्वामीतुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस अथवा वाल्मीकि रामायण का पृष्ठ उल्टे. प्रसंग अयोध्याकांड का है। राजा दशरथ अति प्रसन्न है। वे अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते है। सारी तैयारियां हो चुकी हैं, पर ऐन मौके पर कैकेयी, महाराज दशरथ से दो वर मांगती हैं, जिसमें राम को वनवास और भरत को राज्याभिषेक की मांग शामिल है। दशरथ किंकर्तव्यविमूढ़ है। क्या करें क्या न करें। पर श्रीराम मर्यादा का पालन करते हुए पुरुषार्थ के प्रथम सोपान त्याग को अपनाते हैं, धर्म की रक्षा करते हुए, पिता और रघुकुल की रीति प्रभावित न हो, वे वनगमन को स्वीकार करते हुए, जंगल की ओर निकल पड़ते है। राम चाहते तो आजकल की पीढ़ियों के अनुसार वे अपने पिता दशरथ से कह सकते थे कि पिताजी आपने माता कैकेयी को वर दिया था, मैंने नहीं, रघुकुल के नियमानुसार अयोध्या का राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है, ऐसे में, मैं ही अयोध्या का असली उत्तराधिकारी हूं और मैं ही राजा बनुंगा। अब आप बताईये, जब श्रीराम इस प्रकार की मांग दशरथ के पास रखते तो वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते। उत्तर होगा – नहीं। तो ये है धर्म और ये है भारत। श्रीराम ने पिता के वचन को साकार करने के लिए, सारे सुखों का त्याग कर दिया, यहीं नहीं इसके बाद सीता और लक्ष्मण ने श्रीराम के लिए, महलों के सुख का परित्याग कर दिया। और अब आगे, श्रीराम के भाई भरत को पता चलता है कि उनकी माता कैकेयी, उनके लिए राज्याभिषेक और श्रीराम के लिए वनगमन की मांग कर दी है, तो वे अपनी माता कैकेयी तक का परित्याग करते हुए, अपने ज्येष्ठ भ्राता श्रीराम को वन से लौटाने के लिए, जंगल की ओर चल पड़ते है, यहीं नहीं 14 वर्षों तक अयोध्या में रहते हुए, भरत ने सारे सुखों का त्याग कर दिया और वनवासियों की तरह रहे, ये है त्याग की परिभाषा यानी भारत की परिभाषा का सुंदर उदाहरण।
एक और प्रसंग पर ध्यान दें...................................................
प्रसंग श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकांड का है
बालि श्रीराम के बाण से घायल है। घायल बालि ने कहा –
धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि व्याध की नाई।।
मैं वैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।।

श्रीराम ने कहा.......................
अनुज बधु भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।।
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकई जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई।।

यहां भी धर्म की व्याख्या हो गयी, गर आप चौपाईयों पर ध्यान दें तो भारत और भारत के धर्म की परिभाषा स्वतः प्राप्त हो जाती है।
ये तो भारत के महाकाव्यों में से एक की बात कही, हो सकता है कि कई मित्र इन उदाहरणों को धार्मिक कथा कहकर, इसे प्रमाण मानने से इनकार कर दें। उनके लिए भी भारत के कई उदाहरण जो समसामयिक है। मेरे पास मौजूद है।
जरा ध्यान दे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का काल खंड महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत आते है, भारत आते ही स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई जारी करने की घोषणा करते है। तभी उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले से होती है, गोपाल कृष्ण गोखले, उन्हें कहते है कि मिस्टर गांधी ( उस वक्त तक गांधी को महात्मा का खिताब, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नहीं दिया था) जिस भारत की परिकल्पना वे अभी कर रहे है, वैसा भारत अभी नहीं हैं, स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को ठीक ढंग से चलाने के लिए पहले, उन्हें यानी महात्मा गांधी को, भारत दर्शन का कार्यक्रम बनाना चाहिए, उसके बाद गांधी जी ने भारत दर्शन का कार्यकम बनाया। उसी दौरान, उन्होंने जो भारत की तस्वीर देखी, उनका हृदय विदीर्ण हो उठा। भारत और भारतीयों की दयनीय दशा देख उन्होंने सारे सुखों का त्याग करने का संकल्प लिया और उसके बाद जो उन्होंने सामान्य जन की वेष भूषा अर्थात् लंगोटी पहनी तो उसे आजीवन धारण किये रहे। फिर उन्होंने सामाजिक सुधार आंदोलन के साथ साथ देश की स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी, और उन्होंने खुद अपने आंखों से भारत की स्वतंत्रता को देखा। इसके बदले में, उन्होंने अपने लिए कुछ भी देश से नहीं मांगा, सिर्फ और सिर्फ देश को दिया। त्याग की ऐसी मिसाल किस देश में मिलती है। इसी त्याग के कारण तो गांधी अपनी मृत्यु के साठ साल बीत जाने के बाद भी, जीवित है। यहीं नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने इनके जन्म दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर दिया।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी को लीजिए, इन्होंने इंदिरा गांधी के गर्व को चूर चूर कर दिया। संपूर्ण क्रांति की बात की। 1974 के छात्र आंदोलन और उसके बाद उपजे जनता के क्रोधाग्नि का सही नेतृत्व कर, उन्होंने 1977 में जनता पार्टी की सरकार बना दी, चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने सत्ता से दूरी बनाये रखी, और कभी सत्ता की कामना ही नहीं की। मर गये, पर सामान्य जन की तरह जीवन जिया, और इसी जीवन के द्वारा, उन्होंने भारत की अमूल्य संस्कृति को बता दिया की, जीना इसी का नाम है।
भारतीय उपनिषद् तो स्पष्ट कहता है कि
नत्वामहं कामये राज्यं, न स्वर्गं न पुर्नभवं।
कामये दुखतप्तानां, प्राणिणां आर्तनाशनम्।।

गर कोई सच्चा भारतीय है, तो वो न तो राज्य की कामना करेगा, न स्वर्ग की कामना करेगा, वो तो बस यहीं चाहेगा की सारे सुखों का त्याग कर, दुखियों और पीड़ितों के शोक को शमन करने के लिए, इस धरा पर बार बार आता रहे।
कौन सच्चा भारतीय अथवा पुरुषार्थ से भरा प्राणी रहा है, उसकी परीक्षा उसके पूरे जीवनकाल खंड के मूल्याकंण से हो जाती हैं कि उस व्यक्ति में कितना पुरुषार्थ रहा, जैसे चाणक्य ने कहा.
यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते।
निर्घषणतापछेदनेताडनैः।।
तथा चतुर्भिः पुरुषं परीक्ष्यते।
त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।

जैसे सोने को चार प्रकार से परखा जाता है, घिसकर, तापकर, छेदकर और पीटकर। ठीक उसी प्रकार किसी पुरुष की पुरुषार्थ की परीक्षा, उसके अंदर त्याग, मर्यादा, गुण और कर्म की परीक्षा लेकर की जाती हैं। जो इसमें खड़ा उतरा वो सच्चा भारतीय और भारत माता का लाल, नहीं तो बस उसी प्रकार आये गये, जैसे इस श्लोक का भावार्थ...............................................
येषां न विद्या, न तपो, न दानं, न ज्ञान शीलं, न गुणो न धर्मः
ते मृत्युलोके भूविभारभूता, मनुष्यरुपेणमृगाश्चरन्ति।।

जो आज विज्ञान पर्यावरण की संकट के बारे में आगाह कर रहा है, उस संकट को लाया किसने खुद विज्ञान ने, और ऐसा होगा, इसके बारे में आगाह तो हमारे मणीषियों ने आज से हजारों वर्ष पहले कह दिया था कि एक दिन ऐसा आयेगा कि विज्ञान के नाम पर ही लोग, अपने जीवन के कालखंड को सदा के लिए बुझा देंगे। कमाल है, आज के जैसी टेक्नॉलॉजी तो, उनके पास थी ही नहीं, फिर भी वे कैसे जान गये। वो इसलिए जान गये, क्योंकि उन्होंने परमज्ञान की प्राप्ति के पीछे ही समय गवायां, व्यर्थ के पचड़े में नहीं पड़े, प्रकृति ने जैसा संदेश दिया, उस अनुरुप आचरण करते गये, खुद को बनाया, भारत को बनाया, भारत की संस्कृति को अनुप्राणित किया, अपने इस आचरण को और बेहतर और आनेवाले पीढ़ियों को संदेश देने के लिए उपनिषद और अनेक ग्रंथ उपलब्ध करा दिये, और इसे धर्म का स्वरुप दिया, कि शायद लोग समझेंगे और गर आप आज नहीं समझ रहे, तो उनमें उनका क्या दोष। फिर भी मैं मानता हूं कि आनेवाला समय भारत का हैं, निराशावादी होना, अज्ञानता का परिचायक होता है, जो ज्ञानवान हैं वे आशावादी होते हैं, परिवर्तन चक्र चलता रहता है। भारत का ध्येय वाक्य है – सत्यमेव जयते। एक दिन सत्य की जीत होगी, धर्म का वर्चस्व बढ़ेगा, प्रकृति सभी को आगोश में लेगी, भारत फिर खिल उठेगा, त्याग की भूमि फिर इठलायेगी, चिंता की कोई आवश्यकता नहीं।
अंत में, कबीर की पंक्ति मुझे याद आ रही है, जो उन्होंने बहुत पहले कहा था.......
मन लागा, मेरा यार फकीरी में,
जो सुख पाउं, राम भजन में
वो सुख नाही, अमीरी में,
भला – बुरा, सब का सुन लीजै,
कर गुजरान, गरीबी में,
मन लागा मेरा यार फकीरी में,
आखिर ये तन, खाक मिलेगा,
कहां फिरत मगरुरी में,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिले, सबूरी में,
मन लागा मेरा यार, फकीरी में....................................................