Friday, April 19, 2013

ऐसी पत्रकारिता और ऐसी संस्थाओं को हम दूर से ही प्रणाम करते हैं, जो एक इज्जतदार व्यक्ति की इज्जत लूटने में अपनी शान समझता हैं..........................

रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में बावेला मचा है। दो गुट आमने - सामने है। एक गुट का नेतृत्व पत्रकारिता विभाग के निदेशक सुशील अंकन तो दूसरे गुट का नेतृत्व अतिथि शिक्षक इंदुकांत दीक्षित कर रहे है। एक चाहता हैं कि पत्रकारिता विभाग में वहीं हो, जो वो चाहे। दूसरा गुट चाहता हैं कि पत्रकारिता विभाग में वो हो, जो पत्रकारिता का कायदा - कानून चाहे, जिसमें छात्रों का हित छुपा हो। इस पूरे प्रकरण को रांची से प्रकाशित अखबारों ने भी हवा दी है। रांची से प्रकाशित हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया हैं, पर इनके द्वारा प्रकाशित समाचारों से एक पक्ष में कार्य करने की बू आ रही है। इन अखबारों में प्रकाशित खबरों को कोई भी पढ़े तो उसे लगेगा कि इन अखबारों ने समाचार न प्रकाशित कर एक व्यक्ति विशेष के पक्ष में कार्य करने का ही कार्य किया हैं, जो पत्रकारिता की मर्यादा के प्रतिकूल है। इन अखबारों ने तो इस प्रकरण में एक पत्रकार का मान हानि ही कर दिया है। मैं इसके लिेए इंदुकांत दीक्षित को धन्यवाद दूंगा, कि इस विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया।
रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में फिलहाल राजनीति हावी हैं, पत्रकारिता विभाग का सम्मान दांव पर लगा है, पर इसकी किसी को चिंता नहीं। ऐसा नहीं कि इसमें केवल प्रतिष्ठा इंदुकांत दीक्षित की ही जा रही हैं, देखा जाय तो इसमें सुशील अंकन की प्रतिष्ठा भी जा रही हैं, पर हमें लगता हैं कि उन्हें ये मालूम नहीं कि ऐसे माहौल में क्या करना चाहिए। जब इधर बेसिरपैर की बातें, अखबारों में छपने लगी तो मैंने भी इस प्रकरण को नजदीक से देखने की कोशिश की। पत्रकारिता विभाग के छात्रों, वरिष्ठ पत्रकार व अतिथि शिक्षक इंदुकांत दीक्षित और सुशील अंकन से मुलाकात की और इन महानुभावों से मुलाकात करने के बाद, मैने महसुस किया कि ये लड़ाई बेसिरपैर की है, दोनों पक्ष इसे सम्मान से जोड़ कर देख रहे हैं। साथ ही रही - सही कसर रांची से प्रकाशित अखबारों ने निकाल दी। इन्होंने पत्रकारिता के मर्यादाओं को ताड़-ताड़ करते हुए एक व्यक्ति विशेष के पक्ष में इस कदर समाचार प्रकाशित किया, कि इन्हें अखबार कहते हुए भी हमें लज्जा आती है, क्या समाचार एक व्यक्ति विशेष के पक्ष में छापे जाते हैं, क्या जिसके सम्मान से आप खेलने जा रहे हो, आपने उससे पूछा कि उसकी राय क्या है। गर नहीं तो आपको क्या हक हैं, इस संबंध में कुछ भी छापने की।
और अब हम आपको बताते है कि ये राजनीति कहां से शुरु हुई। राजनीति शुरु होती हैं, उस वक्त से, जब छात्रों के एक दल ने पत्रकारिता विभाग में व्याप्त गड़बड़ियों को उचित मंच पर उठाना शुरु किया। जब इनकी बात नहीं सुनी गयी तो छात्रों के एक दल ने कुलपति, रांची विश्वविद्यालय को अपनी 10 सूत्री समस्याओं को लेकर एक पत्र लिखी। वो समस्याएं इस प्रकार हैं--------------
1. सेमेस्टर - 1 में अधिकतर विषयों में व्यवहारिक ज्ञान की जगह नोट्स का वितरण किया गया।
2. प्रोफेशनल विषयों पर पूरे सेमेस्टर -1 में देश के विभिन्न भागों से किसी भी प्रोफेशन्लस पर्सन्स को बुलाकर कक्षाएं नहीं करायी गयी।
3. व्यवहारिक ज्ञान, समसामयिक मुद्दे और करंट विषयों पर चर्चा नहीं के बराबर होती हैं सिर्फ ओर सिर्फ नोट्स दिये जाते हैं।
4. सेमेस्टर - 1 में हमारे चार पेपर्स थे, जिसमें से पेपर - 2 मि. मल्लिक सर के द्वारा लिया गया। इस विषय की पूर्ण कक्षाएं तो हुई परंतु सिलेबस पूरा होने पर मल्लिक सर से चर्चाएं करने का एक भी मौका नहीं मिला।
पेपर - 2 में कुछ हिस्से मि. संतोष सर के द्वारा लिए गये मगर सर सिर्फ नोट्स से पढ़ाते है, उनमे किसी प्रकार का प्रश्न पूछने पर जवाब नहीं मिलता है। पेपर -3  मिस अनुपमा मेम के द्वारा लिया गया जिसमें हमें काफी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। पहली तो यह कि इस विषय की विषय-वस्तु सही प्रकार के हमें समझायी नहीं गयी। दूसरी मेम की खुद की पीएचडी की कक्षाएं होने के कारण हमारा सिलेबस पूरा नहीं हो पाया। जिसका नुकसान हमें अपनी परीक्षा में उठाना पड़ा। पेपर - 4 मि. सुधीर सर के द्वारा लिया गया जो कि हमें समझ में आया। पेपर - 1 में मि. इंदुकांत दीक्षित सर के द्वारा ली गयी और इस विषय से हम संपूर्ण संतुष्ट हैं, क्योंकि इस विषय में सर के द्वारा हमारी अच्छी पकड़ बनवायी गयी तथा सर के द्वारा और भी कई व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त हुए। पत्रकारिता का सही ज्ञान और उद्देश्य हमें उनसे ही प्राप्त हुआ, मगर दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से इस बार उन्हें कम कक्षाएं दी गयी हैं।
5. विभाग में आंखन देखी वीडियो मैग्जिन के अलावा पत्रकारिता और जनसंचार के किसी और आयाम जैसे - साक्षात्कार करना, समाचार बनाना, किसी भी घटना की कवरेज करना, समाचार लिखने की कला, अखबारों एवं टीवी न्यूज के प्रोडक्शन के बारे में व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त होने की कोई भी व्यवस्था नहीं होने के कारण हम सभी विद्यार्थियों में भारी निराशा हैं। आंखन देखी का अधिकतर प्रोडक्शन्स निदेशक महोदयजी के घर में ही होता रहा हैं जिससे अधिकतर विद्यार्थियों को लाभ नहीं हो पा रहा हैं।
6. हमारा अनुरोध हैं कि अध्यापकों पर हमें गुप्तढंग से फीडबैक बताने का अवसर दिया जाये।
7. विषय के उचित ज्ञाता अध्यापक ही कक्षा में बुलाया जाये।
8. अध्यापकों को इंटरेक्टिव कक्षा लेने के निर्देश दिये जाये।
9. हम छात्रों को किस अध्यापक से पढ़ने की रुचि हैं, वह जाना जाये।
10. आवश्यक होने पर हमारे अध्यापकों की कक्षा में आप स्वयं भी निरीक्षण करने आये तो हमारी समस्या का अवश्य निदान हो पायेगा।
छात्रों के इन समस्याओं को देखने के बाद अतिथि शिक्षक इंदुकांत दीक्षित ने पत्रकारिता विभाग के स्थायी सलाहकार वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त जी को एक पत्र लिखा। इंदुकांत दीक्षित को पत्र को देख बलबीर दत्त जी ने निदेशक पत्रकारिता विभाग को दो बार पत्र भेजी, जिसमें एक बैठक आयोजित कर, इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करने की बात कहीं गयी, पर निदेशक पत्रकारिता विभाग को बलबीर दत्त की ये बातें अच्छी नहीं लगी। मैंने जब इस संबंध में पत्रकारिता विभाग के निदेशक सुशील अंकन से बात की तब उनका कहना था कि बलबीर दत्त जी सिर्फ परामर्श दे सकते हैं, आदेश नहीं। वे उनकी बातों को मानने को बाध्य नहीं हैं। इधर बातें बढ़ती गयी, बाते इतनी बढ़ गयी कि आनन - फानन में, रांची विश्वविद्यालय के कुलपति ने 15 अप्रैल को पत्रकारिता विभाग की बेहतर संचालन के लिए 12 लोगों की एक कमेटी बना डाली और इसकी पहली मीटिंग 20 अप्रैल 2013 को आयोजित कर दी। जिसे सुशील अंकन और उनके चाहनेवाले मीडिया में कार्य कर रहे अन्य पत्रकारों को अच्छी नहीं लगी। अब सभी ने मौका ढूंढना शुरु किया। मौका भी जल्द मिल गया। जब पत्रकारिता विभाग में दो दिन पहले एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ और इस कार्यक्रम का जबर्दस्त फायदा उठाया - इंदुकांत दीक्षित के विरोधियों ने। ऐसा फायदा उठाया कि पूछिये मत। आनन - फानन में निदेशक ने कई निर्णय ले लिये। तत्काल प्रभाव से इंदुकांत दीक्षित को कक्षा लेने से वंचित कर दिया। जिस छात्र ने पत्रकारिता विभाग हो रहे गलत कार्य को लेकर कड़ा रुख अपनाया, उसे भी दंडित करने का कार्य शुरु कर दिया गया और इन सारी बातों को हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर से जूड़े पत्रकारों ने अपना हित साधने के लिए अनाप - शनाप खबर छापनी शुरु कर दी और एक व्यक्ति की इज्जत लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब 20 अप्रैल को क्या निर्णय कुलपति लेते हैं, सभी का ध्यान उसी ओर हैं। कुलपति के पास सवाल भी बहुत हैं...........
क. क्या सत्य की विजय होगी।
ख. क्या कुलपति दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में छपी बातों पर विश्वास करेंगे या इसकी सत्यता का जांच करायेंगे।
ग. क्या उन छात्रों को न्याय मिलेगा, जिसकी वे आंदोलन कर रहे हैं।
घ. क्या अयोग्य शिक्षक जो फिलहाल पत्रकारिता विभाग में कार्य कर रहे हैं, वे पढ़ाते रहेंगे या योग्य शिक्षक भी पत्रकारिता विभाग में दीखेंगे। 
ये कुछ सवाल अभी से मन-मस्तिष्क में मंडरा रहे हैं। अब इन प्रश्नों का हल कल निकल पाता हैं या नहीं। सभी का ध्यान अभी कुलपति की ओर हैं। अब जबकि दोनों पक्ष आमने -सामने हैं। हम अब भी चाहेंगे कि छात्रों के हित में सुखद निर्णय सुनने को मिले, जिससे छात्रों का भविष्य प्रभावित न हो और पत्रकारिता विभाग की मर्यादा भी बची रहे।

1 comment:

  1. Sir, jabtak aap jaise sacche aur nidar patrakar is samaz me hain, tabtak satya ki jeet hamesha hoti rahegi........

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