रांची जिला क्रिकेट एसोसिएशन के तत्वावधान में शशिकांत पाठक मेमोरियल मीडिया कप क्रिकेट चल रहा हैं, जिसमें मीडिया में शामिल विभिन्न चैनल व अखबार के लोग एक दूसरे से भीड़ रहे हैं और क्रिकेट की शालीनता व एकसूत्र में बंधने की परंपरा को आत्मसात कर रहे हैं, पर इसी क्रिकेट में, मीडिया में ही कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें किसी भी सूरत में हार पसंद नहीं हैं, वे इसके लिए अंपायर को भला - बुरा कहने से नहीं चुकते। उनका मानना हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ जीतने के लिए ही बने हैं, भला कोई उन्हें हरा दे, ये उन्हें मंजूर नहीं। आखिर जब ऐसी सोच किसी के मन में बन जाये, तो समझ लीजिये वो कितना नीचे तक गिर सकता हैं। हम आपको बता दें कि मुझे कभी भी खेल में दिलचस्पी नहीं रही, कभी - कभार क्रिकेट जब टीवी पर देखता हूं तो थोड़ा समय काट लेता हूं पर क्रिकेट या अन्य खेल मेरा जायका बदल दें, ऐसा नहीं हैं। हम बात कर रहे हैं रांची में चल रहे रांची जिला क्रिकेट एसोसिएशन के तत्वावधान में शशिकांत पाठक मेमोरियल मीडिया कप क्रिकेट की। आज का मैच प्रभात खबर और कशिश चैनल के बीच था। मैच रांची के सेटेलाइट कालोनी स्थित मैदान में चल रहा था। पहले खेलते हुए कशिश की टीम 79 रन बनाकर ऑल आउट हो गयी थी। इसके बाद प्रभात खबर की टीम बैटिंग के लिए उतरी। ये क्या 38 रन में ही प्रभात खबर टीम के चार विकेट उखड़ गये। फिर क्या था, प्रभात खबर के संपादक विजय पाठक, सीधे फील्ड पहुंचे और उलझ गये - अंपायर से। लगे भला बुरा उसे कहने। बेचारे को ऐसा धमकियाया, कि अंपायर के लगे हाथ -पांव फूलने, और अँपायर के धमकाने का असर ऐसा हुआ कि प्रभात खबर जो हार के कगार पर थी, पांच विकेट से जीत गयी।
मैं पूछता हूं कि क्या प्रभात खबर के संपादक विजय पाठक को फील्ड में जाकर अंपायर को धमकी देना उचित था। जो संपादक मैच के अंपायर को धमकी देकर अपने पक्ष में मैच करवा लें, उसे क्या कहेंगे - क्रिकेटर या गुंडा। क्या ऐसे लोग संपादक बनने के लायक हैं। जब ऐसे लोग के मन पहले से ही ये बात घर कर गयी हो, कि उन्हें हर हाल में मैच जीतना हैं, तो फिर इस प्रकार के आयोजन का क्या मतलब। सीधे वाकओवर खुद से लेकर, कप पर कब्जा क्यूं नहीं जमा लेते। जरुरत क्या हैं - जोर आजमाइश की। बाजार में तो बहुत सारे कप और ट्राफी बिकते हैं, खरीद लीजिये, जो मन चाहे, खुदवा लीजिये और लोगों को दिखाइये कि हम बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। आज जैसी हरकत, विजय पाठक ने सेटेलाइट मैदान में की हैं, उससे हर क्रिकेटर का सर शर्म से झूक जाता हैं। मैं स्व. शशिकांत पाठक जी को अच्छी तरह जानता हूं कि वो क्या थे। मैं तो कहूंगा कि जो मैच उनके नाम पर हो रहा हैं, उनके नाम को इस मीडिया कप से हटा लेना चाहिए, क्योंकि उनकी आत्मा भी विजय पाठक की इस हरकत से, शर्मसार हो गयी होगी, क्योंकि क्रिकेट हर हाल में खेल -भावना के तहत प्यार और भाईचारगी सीखाता हैं - न कि गुंडागर्दी।
एक बात और, कुछ लोगों को लगता हैं कि वो जो कुछ कर लेंगे, उसमें जनता की भागीदारी रहेगी, जनता उनके साथ रहेगी, तो ये उनकी बड़ी भूल है, अब जनता बहुत अच्छी तरह से इन रंगे सियारों को देख रही हैं। समय आने दीजिये, अपना निर्णय सुनायेगी। शीर्ष से अर्श पर पहुंचते देर नहीं लगेगी। इसलिए अभी भी वक्त हैं, गुंडागर्दी की जगह, ईमानदारी से कदम बढ़ाइये। मैं बार - बार कह रहा हूं कि लिखने से अच्छा हैं कि कर के दिखाइये, पर यहां तो रोज देवदर्शन अखबार में कराये जाते हैं, पर सच्चाई में इन संपादकों की हरकतें कुछ और ही होती हैं, जैसा कि आज सेटेलाइट मैदान में मैंने एक संपादक की हरकतों को देखा, जो एक अंपायर को धमकिया रहा था।
Yah to patrakarita ke sabhi manakon ke viparit hai! Yah patrakarita to kattai nahin hai. Yah sidha sidha swarthwad hai aur kuchch nahin!
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