निः संदेह लाल कृष्ण आडवाणी देश के बड़े नेता है, पर इतने भी बड़े नहीं, जिनका आचरण हम अपने जीवन में उतार सके या हम किसी को कह सके कि तुम आडवाणी जैसे नेता बनो। किसी भी नेता का जीवन-दर्शन, उसके संपूर्ण जीवन पर निर्भर करता हैं कि उसने अपने जीवन काल में क्या किया और क्या नहीं किया। क्या करने से उसके द्वारा देश को बल मिला, पार्टी को बल मिला अथवा उसकी पार्टी या देश की दुर्गति हो गयी। कमाल हैं ये वहीं आडवाणी है जो किसी समय दिल खोलकर ये बोला करते थे, कि गर देश में भाजपा सत्ता में आयी तो देश के प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी विराजमान होंगे, उन्होंने ऐसा किया भी और कभी भी वाजपेयी के आगे अपना कद उचा करने की कोशिश नहीं की, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, पर आज नरेन्द्र मोदी के आगे आते ही, इतने बड़े नेता ने जो ओछी हरकत की, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिख, जिन बातों का पत्र में उल्लेख किया, उससे ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति ने अपने जीवन के सारे कार्यकाल पर खुद से पानी फेर दिया। हमें तो अब संदेह होता हैं कि किसी कालखंड में इस व्यक्ति ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए, अपना सर्वस्व त्याग भी किया होगा।
पत्र में क्या हैं - पत्र में इस नेता ने वर्तमान भाजपा में शामिल नेताओं पर देश के लिए कम और निजी जिंदगी के लिए राजनीति करने का घिनौना आरोप लगाया है। ये कहकर उसने खुद को पाक साफ और सभी भाजपाइयों पर तोहमत लगा दी। ये दिव्य ज्ञान भी लाल कृष्ण आडवाणी को तब आया, जब गोवा में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गयी। उसके पहले इन्हें दिव्य ज्ञान नहीं आया था। ये दिव्य ज्ञान आडवाणी को उस वक्त भी नहीं आया, जब नीतीश कुमार और उसकी पार्टी के घटिया स्तर के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ, गुजरात की जनता के खिलाफ लगातार विष वमन करते रहे। आडवाणी को पता नहीं कि नरेन्द्र मोदी आज समय की मांग हैं। आम जनता नरेन्द्र मोदी की तरफ देख रही हैं, क्योंकि उसे लगता हैं कि ये व्यक्ति ऐसा हैं कि वो देश के लिए कुछ कर सकता हैं। आडवाणी बता सकते हैं कि उन्होंने देश के लिए अब तक क्या किया हैं। सिवाय कुर्सी प्रेम के। अरे आडवाणी को तो सोनिया गांधी से सीखना चाहिए, वो चाहे तो भारत की प्रधानमंत्री बन सकती थी, बन सकती हैं पर उसने कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ध्यान ही नहीं दिया। और इनको देखिये, प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने बेचैन हैं, उस कुर्सी पर सोने के लिए इतने बेचैन हैं, कि जैसे ही उन्हें ये भनक मिली कि नरेन्द्र मोदी उनके आगे दीवार बनकर खड़े हो गये। भाजपा के सारे बड़े पदों से इस्तीफा दे दिया। ये जनाब ब्लाग भी लिखते हैं। ब्लाग में महाभारत का प्रसंग भी ऱखते हैं, पर उन्हें नहीं मालूम कि समय की मांग को देखते हुए, उस महाभारत के कई पात्रों ने कब और किस समय, किन - किन चीजों का त्याग किया।
आडवाणी को ये भी शायद मालूम नहीं हैं कि इसी देश में महात्मा गांधी थे, जो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से ज्यादा अपने लिए गोली चुन ली। आज वे मोहनदास से महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता बन गये। कहा भी जाता हैं कि जिसे सब कुछ मिल जाता हैं, उसे कुछ भी नहीं मिलता और जिसे कुछ नहीं मिलता, उसे सब कुछ मिल जाता हैं। क्या ये प्रसंग आडवाणी को मालूम नहीं। आडवाणी तो आज उस कसाई की तरह हो गये जो, एक बकरे को बड़े प्यार से पालता हैं और फिर उसी बकरे की अपने हित में हत्या भी कर डालता हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने भाजपा को उंचाईयों पर लाकर खड़ा किया, पर ये भी सही हैं कि जिस प्रकार की कारगुजारी, उन्होंने कल दिखायी। लगता है ंकि वो चाहते हैं कि वे अपने ही हाथों से भाजपा का गला घोंट दे। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक जीवन की कैरियर ही समाप्त कर दे। पर उन्हें नहीं मालूम कि भारत की जनता ने कुछ फैसला किया हैं। वो फैसला देशहित में, जनहित में हैं। देश को उचांई पर ले जाने का वक्त हैं. ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी कुछ ऐसा न करें, जिससे देश की जनता और देश उन्हें कभी माफ ही न करें। ऐसे वो कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। नीतीश तो आपको धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट भी दे चुके हैं। ये वहीं नीतीश हैं जिनकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समय - समय पर बदलती रहती हैं। फिर भी जब आप अपने कैरियर को खुद ही डूबो देना चाहते हैं तो कोई कर ही क्या सकता हैं।
पत्र में क्या हैं - पत्र में इस नेता ने वर्तमान भाजपा में शामिल नेताओं पर देश के लिए कम और निजी जिंदगी के लिए राजनीति करने का घिनौना आरोप लगाया है। ये कहकर उसने खुद को पाक साफ और सभी भाजपाइयों पर तोहमत लगा दी। ये दिव्य ज्ञान भी लाल कृष्ण आडवाणी को तब आया, जब गोवा में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गयी। उसके पहले इन्हें दिव्य ज्ञान नहीं आया था। ये दिव्य ज्ञान आडवाणी को उस वक्त भी नहीं आया, जब नीतीश कुमार और उसकी पार्टी के घटिया स्तर के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ, गुजरात की जनता के खिलाफ लगातार विष वमन करते रहे। आडवाणी को पता नहीं कि नरेन्द्र मोदी आज समय की मांग हैं। आम जनता नरेन्द्र मोदी की तरफ देख रही हैं, क्योंकि उसे लगता हैं कि ये व्यक्ति ऐसा हैं कि वो देश के लिए कुछ कर सकता हैं। आडवाणी बता सकते हैं कि उन्होंने देश के लिए अब तक क्या किया हैं। सिवाय कुर्सी प्रेम के। अरे आडवाणी को तो सोनिया गांधी से सीखना चाहिए, वो चाहे तो भारत की प्रधानमंत्री बन सकती थी, बन सकती हैं पर उसने कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ध्यान ही नहीं दिया। और इनको देखिये, प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने बेचैन हैं, उस कुर्सी पर सोने के लिए इतने बेचैन हैं, कि जैसे ही उन्हें ये भनक मिली कि नरेन्द्र मोदी उनके आगे दीवार बनकर खड़े हो गये। भाजपा के सारे बड़े पदों से इस्तीफा दे दिया। ये जनाब ब्लाग भी लिखते हैं। ब्लाग में महाभारत का प्रसंग भी ऱखते हैं, पर उन्हें नहीं मालूम कि समय की मांग को देखते हुए, उस महाभारत के कई पात्रों ने कब और किस समय, किन - किन चीजों का त्याग किया।
आडवाणी को ये भी शायद मालूम नहीं हैं कि इसी देश में महात्मा गांधी थे, जो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से ज्यादा अपने लिए गोली चुन ली। आज वे मोहनदास से महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता बन गये। कहा भी जाता हैं कि जिसे सब कुछ मिल जाता हैं, उसे कुछ भी नहीं मिलता और जिसे कुछ नहीं मिलता, उसे सब कुछ मिल जाता हैं। क्या ये प्रसंग आडवाणी को मालूम नहीं। आडवाणी तो आज उस कसाई की तरह हो गये जो, एक बकरे को बड़े प्यार से पालता हैं और फिर उसी बकरे की अपने हित में हत्या भी कर डालता हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने भाजपा को उंचाईयों पर लाकर खड़ा किया, पर ये भी सही हैं कि जिस प्रकार की कारगुजारी, उन्होंने कल दिखायी। लगता है ंकि वो चाहते हैं कि वे अपने ही हाथों से भाजपा का गला घोंट दे। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक जीवन की कैरियर ही समाप्त कर दे। पर उन्हें नहीं मालूम कि भारत की जनता ने कुछ फैसला किया हैं। वो फैसला देशहित में, जनहित में हैं। देश को उचांई पर ले जाने का वक्त हैं. ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी कुछ ऐसा न करें, जिससे देश की जनता और देश उन्हें कभी माफ ही न करें। ऐसे वो कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। नीतीश तो आपको धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट भी दे चुके हैं। ये वहीं नीतीश हैं जिनकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समय - समय पर बदलती रहती हैं। फिर भी जब आप अपने कैरियर को खुद ही डूबो देना चाहते हैं तो कोई कर ही क्या सकता हैं।
Krishna Bihari Bhai you have correctly written that Advani ji has probably lost his way, but why, I do not know.
ReplyDeleteI personally know Mr Advani and he also knows me by my name and I have known him for last about 15 years at the personal level. This step of Advani ji has surprised me to a great extent. He is a visionary and there are only a few leaders of his caliber in the Indian polity. I am sure that he must be hurt to a great extent or he must be having some other great plan for his party but RSS has probably ignored it and that is why he has decided to leave the party now. When RSS is there only to disrupt the party and not to guide it, what can he do? You must be remembering that RSS chief Mohan Bhagwat had clearly told us in Ranchi last year that he and his organization had nothing to do with BJP but when it comes to decision making they intervene in the BJP matters like it is there spoon fed baby. It is probably not acceptable to any great leader!
So Advani is not hurt by Modi's promotion rather he is hurt of RSS misbehavior.