Saturday, June 15, 2013

नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए.......

बहुत पहले एक गाना सुना था -- लौंडा बदनाम हुआ, नसीबन तेरे लिए......। ये गीत अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर पूरी तरह फिट बैठ रही हैं और वह भी इस प्रकार- नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए...........,क्योंकि नीतीश सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट के लिए, वो सारे कार्य कर रहे हैं, जो किसी भी राजनीतिज्ञ को शोभा नहीं देता। इन्हें ये लगता हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करके ये पूरे बिहार में मुसलमानों के रहनुमा बन जायेंगे। अकेले बिहार में लोकसभा और विधानसभा में जदयू का परचम लहरा देंगे, तो ये उनकी मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। मुस्लिम मतदाता चाहे वह बिहार का हो या किसी अन्य प्रांत का, हमें नहीं लगता कि वो इतना मुर्ख हैं कि सिर्फ मोदी का विरोध कर देने से, इनके साथ अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ चिपक जायेगा।बिहार में कभी कांग्रेस, कभी लालू को अपना हीरो चुननेवाली मुस्लिम मतदाता, कल तक नीतीश के साथ थी, पर महराजगंज लोकसभा उपचुनाव ने ये सिद्ध कर दिया कि मुस्लिम मतदाताओं को ज्यादा दिनों तक कोई भी मुर्ख नहीं बना सकता, पर जब कोई मुर्ख बनने को तैयार हैं, अपने घर में आग लगाकर खुद तमाशा देखना चाहता हैं तो उसे किया ही क्या जा सकता हैं। उसे भी अपना घर फूंकने का पूरा अधिकार है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत एक महान देश हैं और बिहार उसमें अनोखा। एक फिल्म में बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने डायलाग बोला था। डायलॉग था - बिहार में तो मां के पेट में ही बच्चा राजनीति सीख लेता हैं। तब समझ लीजिये, बिहार में राजनीति कैसे सर चढ़कर बोलता है। फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार को, नरेन्द्र मोदी से चिढ़ हैं। उनका कहना हैं कि नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक हैं। उन पर 2002 में गुजरात में हुए दंगे का दाग हैं। उनके इस चिढ़ को उनके आसपास अथवा उनकी कृपा से दिल्ली के राज्यसभा तक पहुंचने वाले चिरकुट नेता शिवानन्द तिवारी अथवा कृषि मंत्नी नरेन्द्र सिंह बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं और बताते हैं कि नीतीश सर्वाधिक सेक्यूलर नेता है, पर इन नेताओं के चेहरे से तब हवाइंया उड़ने लगती है। जब एक देशभक्त सवाल पूछ देता हैं, वो सवाल हैं............................
क. जब 2002 में गुजरात जल रहा था, उस वक्त नीतीश कुमार केन्द्र में मंत्री थे, उसी समय वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इतनी उग्रता क्यों नहीं दिखाई, क्यों नही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक्शन लेने के लिए दबाव बनाया।
ख. आडवाणी सेक्यूलर कैसे हो गये, आडवाणी को वे प्रधानमंत्री बनाने के लिए इतने आतुर क्यों हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी के कई नेता अच्छी तरह जानते हैं कि  रामरथ यात्रा निकालकर आडवाणी ने क्या किया था।
ग. भाजपा धर्मनिरपेक्ष नहीं पर कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष कैसे हो गयी, जबकि इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद देश में हुए दंगे के दौरान हजारों सिक्खों का कत्लेआम कर दिया गया। हाल ही में असम में एक बहुत बड़ा नरसंहार हो गया, वहां किस समुदाय के लोग मारे गये, ये नीतीश बहुत अच्छी तरह जानते हैं। यानी भाजपा करे तो दंगे और कांग्रेस व नीतीश की पार्टी करे तो हर हर गंगे।
घ. पूरा बिहार जानता हैं कि नीतीश बिहार के विकास की हवा खड़ा करते हैं, पर स्वयं घोर जातिवादी हैं, ये तो फूट जालो शासन करों में विश्वास रखते हैं, जैसे देखिये दलितों में भी बंटवारा खड़ा कर दिया और एक वर्ग को महादलित घोषित कर दिया, क्या इससे उस समुदाय का कल्याण हो गया।
ड. नीतीश ने विकास का हवा खड़ा कर, सर्वाधिक फायदा उन अपराधियों को पहुंचाया जो इनके दल में शामिल थे, और जो अपराधिक किस्म के नेता दूसरे दलों में थे, उन्हें चून-चूनकर जेलों के अंदर पहुंचाया, ताकि नीतीश का सामना कोई कर ही न सकें।
च. नीतीश ने नीतीश भक्त पत्रकारों को खूब फायदा पहुंचाया।  नीतीश भक्त पत्रकारों ने भी नीतीश को जमकर फायदा पहुंचाया। उसका नमूना देखिये, जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी पटना में तो एक चैनल ने पटना में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक का समाचार दो मिनटो में खत्म कर दी और नीतीश की एक सभा के समाचार को 21 मिनट स्थान दिया। बाद में जब हमने पता लगाया तो पता चला कि नीतीश के समर्थन में ये पेड न्यूज था।
छ. इसी नीतीश ने अपनी ही पार्टी के टॉप स्तर के नेता को ठिकाने लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जान बूझकर बांका संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से दिग्विजय सिंह का टिकट काटा। अंत में दिग्विजय सिंह खुद निर्दलीय लड़ गये और नीतीश को उसकी औकात बता दी। फिलहाल दिग्विजय सिंह दुनिया में नहीं हैं।
ज. सच्चाई ये हैं कि जदयू कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं हैं, ये क्षेत्रीय पार्टी हैं जो बिहार में भाजपा के वैशाखी पर टिकी है, नीतीश इसके एकमात्र नेता हैं, जो कुर्मी जाति से आते हैं। इस नीतीश ने जदयू को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया हैं। शरद यादव तो मुखौटा हैं, उनकी इतनी हिम्मत भी नहीं कि नीतीश के खिलाफ बगावत या आवाज बुलंद कर सकें, क्योंकि उन्हें भी लोकसभा पहुंचना हैं, राजनीति करनी हैं और वे जानते हैं कि नीतीश उन्हें लोकसभा में आराम से पहुंचा सकते हैं, इसलिए ये चाहकर भी राजग गठबंधन को मजबूती नहीं प्रदान कर सकते, ये वहीं करेंगे, जो नीतीश कहेंगे, इसलिए बेचारे शरद यादव पर क्या लिखना और क्या बोलना।
हमारे देश में अल्पसंख्यक का मतलब। बौद्ध, जैन, यहुदी अथवा पारसी नहीं होता। इनके खिलाफ कुछ भी अत्याचार कोई भी कर दे, किसी भी नेता के आंख से आंसू नहीं दिखाई पड़ेंगे पर जैसे ही मुस्लिम या इसाईयों के खिलाफ गर छिटपुट हिंसा भी हो जाये तो फिर देखिये इन घडि़याली नेताओँ के घड़ियाली आंसू, इतने आंसू टपकायेंगे कि पूछिेय मत। ये इसलिए घड़ियाली आंसू टपकाते है, क्योंकि कई विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रो में ये वोटर के रुप में निर्णायक हैं। गर इन्हें पता लग जाये कि मुस्लिम या इसाई वोट अब निर्णायक नहीं रहे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये घडि़याली आंसू क्या ये तो एक बूंद पसीने भी इनके लिए नहीं बहाये। ये हैं हमारे देश के वर्तमान घटियास्तर के नेताओं का चरित्र। विधायक और सांसद बनने के बाद तो ये शपथ लेते है कि वे भारत के संविधान की मर्यादाओं की रक्षा करेंगे पर सच्चाई ये  हैं कि जितना संविधान की धज्जियां ये उड़ाते हैं, उतना कोई नहीं और वोट के लिए तो ये कहीं मुसलमान तो कहीं घोर जातिवादी होने से भी नहीं चूकते। हम कहते हैं कि जब मुस्लिम वोटरों की इतनी ही चिंता हैं तो हमारा सलाह हैं कि नीतीश धर्मपरिवर्तन क्यों नहीं कर लेते। इससे अच्छा तो दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। मुस्लिम भी कहेंगे कि देखो ये नीतीश को, जो इस्लाम कबूल कर लिया, अपने हिंदू धर्म से खुद को अलग कर लिया। नेता हो तो ऐसा हो, जो वोट के लिए अपना ईमान और धर्म भी बदल लिया हैं, इसलिए वोट तो हम नीतीश कुमार जो अब मो.नीतीशुद्दीन बन गये हैं, उन्हें ही देंगे। इससे जदयू भी मजबूत हो जायेगा और सदा के लिए नीतीश बिहार के मुसलमानों में लोकप्रिय और ऐतिहासिक पुरुष हो जायेंगे................

1 comment:

  1. Nitish ke baare mein aap ne jo bhi likha hai wah uchit hi hai, kyonki unhon ne aur unke dal ne sabhi simaayen tod di hain! Ab to sahi mein unhen Maulana Mulayam ki tarah Maulana Nitish ban jana chahiye!

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