बिहार में महराजगंज लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम आ गये। राजद के प्रभुनाथ सिंह 1 लाख 37 हजार से भी अधिक मतों से जीते। जदयू के पी के शाही दूसरे नंबर पर रहे, जबकि कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गयी। लालू की बल्ले - बल्ले है। चुनाव परिणाम के पहले चक्र की मतगणना के बाद ही वे दहाड़ रहे थे। टीवी पर उनका बयान आ रहा था, कह रहे थे कि प्रभुनाथ लालटेन लेकर दौड़ रहा हैं। नीतीश का हाल क्या होगा - गइल गइल भइसिया पानी में। ब्रह्मर्षि समाज की जय जयकार कर रहे थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस बार ब्रह्मर्षि समाज के लोगों ने दिल खोलकर उनका साथ दिया हैं और हुआ भी ऐसा ही। बेचारे पी के शाही जिस नीतीश के विकास का तीर लेकर महराजगंज में खूंटा गाड़ने का प्रयास कर रहे थे, उनका खूंटा प्रथम चक्र की मतगणना के बाद ही उखड़ गया। उन्होंने बयान दे डाला कि कार्यकर्ताओं का उत्साह व जोश नहीं था और पार्टी के अंदर चल रही भीतरघात और गठबंधन धर्म के ठीक से निर्वहन नहीं होने के कारण उनकी हार हो गयी। इधर लालू दहाड़ रहे थे, और दिल्ली में नीतीश, छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह से गुफ्तगूं कर रहे थे। टीवी पर ये भी दिखा कि जब नीतीश, रमण सिंह से बातें कर रहे थे, तब छायाकारों का समूह, इनकी छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहा था, पर ये क्या जैसे ही नरेन्द्र मोदी उधर से निकले छायाकारों का समूह मोदी की ओर दौड़ पड़ा।
पांच जून को देश के कई हिस्सों में हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव परिणामों ने सभी पार्टियों को सबक सिखायी हैं, पर सच्चाई ये हैं कि किसी भी दल ने इस सबक को सीखने की कोशिश नहीं की।
गुजरात में चार विधानसभा सीटों और दो लोकसभा सीटों पर भाजपा को मिली भारी जीत, इस बात का संकेत हैं कि गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी को छोड़ना नहीं चाहती, उसे लगता हैं कि नरेन्द्र मोदी के हाथों में ही गुजरात का भविष्य हैं। जनता का फैसला शिरोधार्य होना भी चाहिए। पर बिहार में क्या हो रहा हैं। लगातार नीतीश के विकास का हव्वा खड़ा करनेवाले नीतीश के चाटूकारों की हवा निकल गयी हैं। बोलती बंद हैं। कल तक नीतीश - नीतीश जपनेवाले और इसी दरम्यान भाजपा की वैशाखी पर सरकार चलाते हुए भाजपा को ही आंख दिखानेवाले, मौसमी शेर गायब दीखे। महराजगंज की हार ने, उनकी सारी हेकड़ी निकाल दी हैं। जदयू के इन छुटभैयें नेताओं को लगता था कि बिहार की जनता नीतीश के आगे नतमस्तक हैं। जो नीतीश बोलेंगे, वो मानेगी। नीतीश का विकास, बिहार में सर चढ़कर बोल रहा हैं। ये हवाई किले बनानेवाले को पता नहीं कि विकास कोई सड़क बनाने और बिजली का खंभा खड़ा करने का ही नाम नहीं, उसके आगे रोजगार उपलब्ध कराने का भी नाम हैं। हद तो तब हो गयी कि आज भी बिहार के सुदुरवर्ती गांवों के लोग महाराष्ट्र और गुजरात में रोजी - रोटी कमाने के लिए जा रहे हैं, पर इन्हें रोकने के लिए बिहार सरकार ने कोई योजनाएँ नहीं बनायी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चिरकुट नेता बिहारियों को गाली देते थे और उसी महाराष्ट्र में जाकर नीतीश मनसे की जी हुजूरी करते दीखे। शायद बिहार की जनता इस दोहरे चरित्र को भूल गयी, उन्हें लगता होगा और जिस गुजरात ने आजतक बिहार की जनता के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, उस गुजरात की जनता का अपमान, इस नीतीश ने बार - बार किया, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विषवमन कर। नीतीश को लगता हैं कि दुनिया की सारी खूबियां इन्हीं में हैं। खुब अहं में डूबे हैं। विज्ञापन के चाबूक से अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपादकों को हांक रहे हैं, समझते हैं कि सम्राट अशोक हो गये, पर उन्हें नहीं मालूम कि बिहार की जनता तो असल में बिहार की जनता हैं। सबसे अनोखी। यहां जातिवाद सर चढ़कर बोलता हैं। लालू ने जातिवाद की सीढ़ी चढकर महराजगंज की लहलहाती फसल दुबारा काटी हैं। राजपूत -यादव तो उसके परंपरागत वोट हैं, भला वो मतदाता राजद से छिटके कब थे, छिटके तो मुस्लिम थे, फिर ससर गये, और लालू के लालटेन की जीत पक्की। रही बात भूमिहार जाति की, तो ये जाति अभी नीतीश से बिदकी हैं ही, ब्याज समेत इसने अपना किराया वसूल लिया और पी के शाही की तीर को भोथर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
हमें याद हैं कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर ने सामान्य बातचीत के दौरान कहा था कि भला बिहार में विकास के नाम पर वोट मिलता हैं क्या। यहां तो जातिवाद और बयार पर वोट मिलता हैं। जनता को जातीयता का बीयर पिलाते रहिए, अपना उल्लू सीधा करते रहिए और जब जीत जाईये तो अपने अनुसार उसका अर्थ निकालिये। ये हैं हमारा बिहार। उसे कभी तीर तो कभी लालटेन और कभी कमल खिलाने में आनन्द आता हैं पर वो भी जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर। बेचारी कांग्रेस जो कल तक इसी के सहारे राज करती थी, आज सारी जातियां उससे बिदक गयी हैं, देखते हैं, ये बिदकी जातियां कब कांग्रेस की ओर आती हैं या कांग्रेस इसी तरह पिछलग्गू बनकर, बिहार में अपना काम चलाती रहेगी। फिलहाल बिहार की जनता ने लालू और उसकी पार्टी को च्यवनप्राश खिलाया हैं, ताकत दी हैं। ताकत मिलते ही, लालू अपनी आदत से लाचार हैं ही, फिर से शुरु कर दिया हैं दहाड़ना। देखते हैं कब तक दहाड़ते हैं, रही बात नीतीश की, तो मैं कहूंगा, कि अब भी वक्त हैं, अहं त्यागे और किसी की आलोचना व किसी के खिलाफ विषवमन करने से अच्छा हैं, बिहार की जनता का सम्मान बरकरार रखने में ध्यान लगाये। यहीं उनके लिए और उनकी पार्टी की सेहत के लिए बेहतर होगा।
Khub likhte ho bhai...
ReplyDeleteFashion Photography