Thursday, May 28, 2015

लालू का दृढ़विश्वास और नेतागिरी के फायदे...........

रांची से प्रकाशित एक नीतीश भक्त अखबार के पिछले पृष्ठ पर एक समाचार पढ़ा, पढ़कर मन अति प्रसन्न हुआ। समाचार लालू प्रसाद से संबंधित था, जिसमें लालू का बयान जयललिता की तरह मैं भी होउंगा आरोपमुक्तछपा था। मेरा भी दृढ़ विश्वास हैं कि लालू आरोपमुक्त होंगे, क्योंकि भारत देश में नेता या उसका परिवार कभी अपराधी हो ही नहीं सकता।
उसका प्रमाण हैं कि जिस प्रकार आजादी के पूर्व किसी अंग्रेजों को उसके किये की सजा नहीं मिली, ठीक उसी प्रकार आजादी के बाद देश का कोई भी नेता आरोप सिद्ध होने पर जेल में अपने किये की सजा नहीं काटी। ऐसे भी हमारे देश में एक संत हुए नाम था – गोस्वामी तुलसीदास, जिन्होंने अपने कालजयी पुस्तक श्रीरामचरितमानस में लिखा है समरथ के नहिं दोषु गोसाईं अर्थात् सामर्थ्यवानों में दोष नहीं होते, इसलिए इन्हें सजा नहीं मिलती, तो सजा मिलती किसे है। स्पष्ट हैं कि, जो सामर्थ्यवान नहीं है। हमारे देश में आप गर नेता हैं तो आप कितना भी घोटाला या महाघोटाला कर लीजिये, कुछ दिन या वर्षों तक हंगामा होगा, जिस नेता पर आरोप होगा कुछ वर्षों के लिए जेल हो आयेगा, पर अंततः वह दोष मुक्त हो जायेगा, क्योंकि वह नेता है। उसे निचली अदालत गर सजा सुना भी दें, तो उपरि अदालत में वह निश्चित छूट जायेगा, क्योंकि वह नेता है।  उदाहरण अनेक है, पर एक उदाहरण ताजा – ताजा सुनाता हूं, एक अपराध में राजद और लालू के चहेते नेता पप्पू यादव को एक निचली अदालत ने दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी और फिर कुछ ही महीनें बाद एक उपरि अदालत ने उन्हें दोष मुक्त कर दिया। इसी प्रकार सीबीआई की एक अदालत ने लालू यादव को दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी, पर जरा देखिये वे आराम से कैसे राजनीति कर रहे हैं और अपने शरणागत आये जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के समस्त कष्टों को हरने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दिये हैं। जबकि ये वहीं नीतीश हैं जो लालू के खिलाफ खूब अनाप शनाप बयान देते थे। ये वहीं नीतीश हैं जो लालू को गद्दी से हटाकर सत्तासीन हुए। ये वहीं नीतीश हैं, जो लालू को चारा घोटाले में जेल में सड़ाने के लिए क्या नही किये। ये वहीं नीतीश हैं जो बिहार को जंगल राज से मुक्त करने के लिए बिहार की जनता को आह्वान किया और आज उसी नीतीश को लालू में खुदा का नूर नजर आ रहा हैं। मैं तो ये भी देख रहा हूं कि जो अखबार कल तक लालू का घोर विरोधी था, वह भी नीतीश की भक्ति में आसक्त होकर लालू की खूब वाहवाही कर रहा हैं, अर्थात् इसी को कहते हैं समय अथवा काल। शायद रहिमन ने ऐसे ही लोगों के बारे में ये पंक्तियां लिख डाली हो –रहिमन चुप हवे बैठिये, देखि दिनन के फेर, जब अच्छे दिन आइहे, बनत न लगिहे देर। क्या बात हैं लालू जी, समय आपका आ गया हैं कल का नीतीश आपके चरणों को चूम रहा हैं।  कल का आपका विरोधी अखबार और संपादक आपके यशोगान गा रहे हैं। इसका मतलब क्या हैं, जल्द ही आप ने जो सपना देखा हैं –पीएम बनने का, वो भी ख्वाब पूरे हो जायेंगे, क्योंकि आप असली यादव और उसमें भी विशुद्ध नेता है। मुलायम-शरद-लालू की जोड़ी जरुर गुल खिलायेगी। बस बिहार में गजब ढाने की तैयारी को चरम पर ले जाना है।
आपके इसी सोच पर लगता हैं कि भारत के कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने अपनी नौकरियां छोड़कर नेता बनने में ज्यादा रुचि दिखाई, क्योंकि उन्होंने अपने अनुभवों से पाया कि जो जितना बड़ा नेता, वो उतना बड़ा चोर अथवा घोटालेबाज और उसकी चोरी अथवा घोटाले को सिद्ध कर पाने में ताउम्र अधिकारी लगा दें, सिद्ध नहीं कर पायेंगे गर किसी ने सिद्ध कर भी दिया तो न्यायालय से वे बचकर निकल जायेंगे। ऐसे में आईएएस व आईपीएस की नौकरी गयी तेल लेने। नेता बनो, माल कमाओ। देश का विकास जाये भाड़ में, अपने खानदान के लिए आठ पुश्त तक ऐसा जुगाड़ कर लो कि कोई बाल बांका न कर सकें और ऐसा करने में कुछ हो भी गया तो क्या फर्क पड़ता हैं। थोड़े ही फांसी की सजा होगी या कुछ हो जायेगा, क्योंकि नेता तो नेता होता हैं, उसे अधिकार हैं, सब कुछ करने का, और नेता कभी गलत नहीं होता, नेता कभी दोषी नहीं होता, नेता तो प्रकृति का पैदा किया हुआ वो शूरमा हैं, जिसके बारे में स्वर्ग में बैठा भगवान भी उसके खिलाफ फैसला नहीं ले सकता। तभी तो मैं देख रहा हूं कि झारखंड में भी कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी नेता बन गये। अखबार वाले भी नेता बन गये। गुंडे और अपराधी तो पहले से ही लाइन में हैं, क्योंकि वे नेता के असली आदर्शों को खूब समझते हैं। हां एक चीज जरुर देखने को मिल रही हैं कि अब समाज के कई चालाक लोगों ने नेता के इस अद्भुत गुणों को देख, अब खुद को भी नेतागिरी में फिट करने की जुगत लगा दी हैं।

Thursday, May 14, 2015

संघ और प्रभात खबर के बीच छिड़ी जंग.........


पिछले दिनों 9 मई को प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या 2 में पढ़ने को मिला कि समाचार एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार, झारखंड द्वारा इस वर्ष से शुरु किये गये पं. दीनदयाल राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार के लिए प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक (झारखंड) अनुज कुमार सिन्हा को चयन किया है। श्री सिन्हा को ये पुरस्कार 12 मई को एटीआई सभागार में प्रदान किया जायेगा। पुरस्कार के लिए एक चयन समिति बनायी गयी। उस चयन समिति की बैठक में ये निर्णय लिया गया, कि इस पुरस्कार के लिए प्रभात खबर के अनुज कुमार सिन्हा ही योग्य है, दूसरा कोई नहीं.....!

मुझे जैसे ही ये समाचार पढ़ने को मिला, मेरा माथा ठनका। भला ये कैसे हो सकता हैं कि संघ प्रभात खबर में कार्यरत इतने बड़े अधिकारी को वह भी संपादकीय स्तर का, उसे सम्मानित कर दें, क्या संघ का हृदय परिवर्तन हो गया.....या कुछ दूसरी बात हैं......मैंने पता लगाने की कोशिश की और 12 मई तक इँतजार किया। जैसे ही 12 मई बीता, मुझे ये बात जानने में देर नहीं लगी कि संघ का हृदय परिवर्तन हुआ या कुछ दूसरी बात हैं।

संघ जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहा जाता है। अधिकांश लोगों का मानना हैं कि ये पूर्णतः चरित्र निर्माण करनेवाली एक राष्ट्रभक्त संगठन है। जिसे लेकर देश-विदेश के कई महापुरुषों ने अपने संभाषणों में इस संगठन के क्रियाकलापों पर सुंदर प्रतिक्रियाएं दी, जिसे कई अखबारों और चैनलों ने जगह भी दी। ये अलग बात हैं कि कुछ अखबार/चैनल पूर्व से ही अपने मन में संघ के प्रति नकारात्मक भाव रखते हुए अनाप-शनाप छापते/ दिखलाते रहते हैं।

इधर कुछ महीनों से प्रभात खबर ने संघ के प्रति छद्म नाम से बहुत कुछ छापे हैं, हम उस समाचार को न तो गलत ठहरा सकते हैं और न ही सही, सच्चाई क्या है, ये जांच का विषय हैं। हर समाचार में गलतियां और हर समाचार में सच्चाईयां नहीं होती। कुछ समाचार समय, काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अखबार व चैनल वाले छापते व दिखाते रहते हैं, इसमें उनका निहितस्वार्थ छुपा रहता हैं, जिसे वे निहितस्वार्थ न कहकर देश व समाज के प्रति अपना कर्तव्य का निर्वहण करने का ढोंग समाज के समक्ष रखते हैं।

सूत्र बताते हैं कि इधर संघ के खिलाफ प्रभात खबर का लगातार होता दुष्प्रचार से संघ ने एक नीति बनायी, कि वह न तो अखबार के खिलाफ आंदोलन चलायेगा और न ही न्यायालय का दरवाजा खटखटायेगा। हां इतना जरुर करेगा कि वह स्वयंसेवकों से अनुरोध करेगा कि वे प्रभात खबर का बहिष्कार करना शुरु करें। आज भी आप देख सकते हैं कि संघ के ऐसे बहुतेरे स्वयंसेवक हैं, जो संघ के लिए अपना जान छिरकते हैं, उन्होंने प्रभात खबर को अपने घर में आने पर प्रतिबंध लगा दिया हैं। निवारणपुर स्थित संघ मुख्यालय में तो आप प्रभात खबर कभी देख ही नहीं सकते और न ही इसकी आनुषांगिक संगठन के कार्यालयों में।

अब बात यहां आती हैं कि जब संघ मुख्यालय में प्रभात खबर नहीं आता तो फिर प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा को पुरस्कृत करने की बात कहां से आ गयी, वह भी संघ की अनुषांगिक संगठन, समाचार एजेंसी, हिन्दुस्थान समाचार की ओर से..........। ये बात किसी भी स्वयंसेवक को पच नहीं रही थी, सभी स्वयंसेवक इसका विरोध कर रहे थे। कुछ दबीं जुबां तो कुछ खुलकर विरोध कर रहे थे। आखिर ये कैसे हो गया। क्या राज्य में सचमुच पत्रकारों का अकाल पड़ गया हैं। क्या अब जब भी पुरस्कार की बात आयेगी तो प्रभात खबर से ही लोग आयेंगे, पुरस्कार लेने। यानी जितने स्वयंसेवक, उतनी ही बातें।

सूत्र बताते हैं कि जैसे ही पं. दीन दयाल राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार देने की बात झारखंड में आयी। हिन्दुस्थान समाचार के ब्यूरो चीफ ने हिन्दुस्तान समाचार पत्र के चंदन मिश्र और दैनिक जागरण के कमलेश रघुवंशी को बुलाकर एक बैठक की और आनन-फानन में प्रभात खबर के अनुज कुमार सिन्हा को पुरस्कार देने की घोषणा कर डाली। फिर अखबारों व चैनलों से इस बात की जानकारी जनता तक पहुंचा दी गयी। जिसे संघ, हिन्दुस्थान समाचार और विश्व संवाद केन्द्र के उच्चाधिकारियों को नागवार गुजरी और उसी वक्त तय हो गया कि किसी भी हालत में प्रभात खबर के अनुज कुमार सिन्हा को 12 मई को एटीआई में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित नहीं किया जायेगा, हालांकि पुरस्कार दिलवानेवालों ने भी कम एड़ी-चोटी एक नहीं की। नाना प्रकार के तिकड़म लगाये पर सफलता मिलती नहीं दिखी। खैर 12 मई समयानुसार आया, कार्यक्रम आयोजित हुए। संघ, विश्व संवाद केन्द्र, हिन्दुस्थान समाचार, भाजपा और संघ के कई आनुषांगिक संगठन के लोग पहुंचे पर उन्हें सम्मान नहीं मिला, जिन्हें सम्मान देने की घोषणा की गयी थी.......। इससे प्रतिष्ठा किसकी गयी.......? सम्मान लेनेवाले की, सम्मान दिलाने की घोषणा करनेवाले की या किसी और की। आप अपने ढंग से इसकी व्याख्या कर सकते हैं।

इधर आज 14 मई को हमने चयन समिति के सदस्य चंदन मिश्र से बात की, तब उनका कहना था कि सम्मान समारोह का कार्यक्रम अभी स्थगित हुआ हैं, पुरस्कार देने की घोषणा की तिथि बाद में की जायेगी, पर संघ के सूत्र बताते हैं कि ऐसा संभव नहीं। 12 मई को संपादकीय पृष्ठ पर सांप्रदायिकता के जहर से सावधान नामक संपादकीय और 13 मई को पवन के. वर्मा के आलेख भगवाकरण की घातक प्रक्रिया में संघ के आनुषांगिक संगठनों को लंपट समूह की संज्ञा देने पर भी संघ को आपत्ति है। संघ का कहना हैं कि प्रभात खबर आखिर ये सब लिख और पढ़ा कर क्या साबित करना चाहता हैं। ये समझ से परे हैं। संघ के स्वयंसेवकों का कहना हैं कि संघ पर वैचारिक हमले हो, उसका स्वागत हैं, पर गलत, मनगढंत, अपशब्दों का प्रयोग, अखबार के मानसिक दिवालियापन की ओर संकेत करता है।

दूसरी ओर संघ समर्थकों का कहना हैं कि जब संघ इतना गलत हैं तो फिर इसके आनुषांगिक संगठनों से खुद सम्मानित होने का भाव रखना, ये क्या न्यायोचित हैं? आखिर अपने संपादक के पुरस्कृत होनेवाली खबर प्रभात खबर ने क्यों छापे? उसे तो पुरस्कार यह कहकर ठुकरा देना चाहिए था कि आप तो सांप्रदायिक हो, और हम भगवा सोच वाले, सांप्रदायिक संगठनों अथवा उसके आनुषांगिक संगठनों से अनुप्राणित अथवा पुरस्कृत नहीं होते। यानी यहां तो दो प्रकार की बातें हो रही हैं, संघ को गाली भी दे रहे हो और संघ से पुरस्कृत होने का स्वार्थ भी रखते हो। प्रभात खबर को इस विषय पर अपनी सोच बदलनी होगी। क्योंकि दोनों चीजें, एक साथ नहीं चल सकती।

इधर जहां मैं रहता हूं, वहां प्रभात खबर समर्थकों की संख्या बहुत थी, पर अब उनका भी विचार बदल रहा है। एक सज्जन ने कहा कि प्रभात खबर पर्यावरण बचाओ मुहिम चला रहा हैं और लिखता हैं कि झारखंड से 38 पहाड़ गायब हो गये। भला झारखंड तो पठारी इलाका हैं, यहां पहाड़ी हो सकते हैं, पहाड़ कहां से आ गया भाई। बचपन में जब झारखंड, संयुक्त बिहार में था तब पढ़ने को यहां मिलता था कि बिहार की सबसे ऊंची पहाड़ी पारसनाथ की पहाड़ी है, जो अब झारखंड की सबसे उंची पहाड़ी है। ऐसे में जब यहां पहाड़ हैं नहीं, तो पहाड़ गायब कैसे हो गये।

दूसरी बात जो प्रत्येक दिन अखबार के चार पेज की लाइफ रांची देखने को मिलती हैं, उसके टाइम पास वाले पृष्ठ पर अर्धनग्न नायिकाओं के चित्र परोसे जाते हैं, वो किसलिए परोसे जाते हैं, उससे कौन सा समाज, प्रभात खबर तैयार कर रहा हैं, समझ में नहीं आ रहा।

इसलिए संघ, कैंपेन चलाये, अथवा न चलाये। ऐसे भी प्रभात खबर को लेकर जनता के विचार बदल रहे है, जनता के पास अब विकल्प बहुतेरे हैं, उन विकल्पों पर जनता गौर कर रही हैं, परिणाम जल्द ही आयेगा, कोई ज्यादा दिमाग नहीं लगाये...............

Sunday, May 10, 2015

काश, गब्बर झारखंड आता और यहां के 10 पत्रकारों को भी अगवा करता........



काश, गब्बर झारखंड आता और यहां के 10 पत्रकारों को भी अगवा करता और अपना एक मैसेज पत्रकारों के लिए भी छोड़ देता......। पूरे देश में अक्षय कुमार की एक नई फिल्म गब्बर इज़ बैककी धूम है। फिल्म हैं भी सटीक और दिल पर राज करनेवाली, इसलिए फिल्म को देखने के लिए विभिन्न सिनेमा हॉलों व मल्टीप्लेक्सों में भीड़ जूट रही हैं। फिल्म के डायलॉग भी जानदार है। एक डायलॉग – इस कॉलेज में पुलिस एलाऊ (ALLOW) नहीं हैं, काश हमें ये डायलॉग भी सुनने को मिलता कि इस संस्थान में या इस घर में पत्रकारों का आना निषेध हैं। हमें लगता हैं कि आज नहीं तो कल ये सुनने को अवश्य मिलेगा। बस थोड़ा इंतजार कीजिये।
आखिर मैं पत्रकारों को अगवा करने की बात गब्बर से क्यों किया उसका मूल कारण हैं. सिर्फ ऐसा नहीं है जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है कि डॉक्टर और उनका मेडिकल संस्थान, पुलिसकर्मी व नेता या नगर निगमकर्मी, जिला का कलक्टर अथवा रियल ईस्टेट (REAL ESTATE) का मालिक ही भ्रष्ट होता है। हमें तो इनसें ज्यादा भ्रष्ट झारखंड के पत्रकार नजर आते हैं। जो जितने बड़े पद पर बैठा हैं, वो उतना ही बड़ा भ्रष्ट हैं।
जरा नजर डालिये............।  यहां के पत्रकारों/ अखबारों/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मालिक व संपादकों की टोली क्या कर रही हैं।
क.        इनका पहला काम मुख्यमंत्रियों अथवा वरीय प्रशासनिक अधिकारियों को ब्लैकमेल करना अथवा चाटुकारिता कर राज्य के खनिज संसाधनों पर कब्जा जमाना हैं।
ख.       विभिन्न क्रियाकलापों द्वारा सरकार के मनोबल को तोड़ना और उनसे मुंहमांगी विज्ञापन प्राप्त करना है।
ग.         विभिन्न प्रकार के चिरकुट टाइप पंडे पुजारियों की नई पौध को सृजन करना और उनसे मुंहमांगी रकम वसूलना, साथ ही उन्हें अपने अखबारों में जगह देना/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा उन्हें अपने संस्थानों में पैसे लेकर एक स्लॉट बेचना और इनके द्वारा समस्त जनता को दिग्भ्रमित करना है।
घ.         साथ ही राज्यसभा के लिए खुद को प्रोजेक्ट करना-कराना, मुख्यमंत्री का प्रेस एडवाइजर बनना, राजनीतिक सलाहकार बनना, सूचना आयुक्त बनना, विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को यत्र – तत्र, मालदार जगहों/विभागों में स्थानांतरण करना-कराना प्रमुख है।
ङ.           यहीं नहीं सरकारी एवार्ड/गैर सरकारी एवार्ड/कभी-कभी खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए खुद ही एवार्ड लेने के लिए कार्यक्रम आयोजित करना-कराना भी शामिल है।
च.         अपने परिवार के सदस्यों/बेटे-बेटियों को सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में नियोजित करने के लिए अनैतिक तरीका अपनाना और सरकार में शामिल मंत्रियों का अपने अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से यशोगान गाना भी प्रमुख है।
छ.        यहां के 90% पत्रकार हैलमेट नहीं पहनते और ना ही गाड़ियों के वैध कागजात लेकर चलते हैं। ये तो उलटे ही यातायात नियमों को तोड़कर यातायात पुलिस को देख लेने की बात करते है।
ज.        विजुयल लेने के लिए तोड़-फोड़ करना-कराना और फिर खुद को महिमामंडित कराने का काम भी यहां के पत्रकारों का अति पवित्र कार्य बना हुआ हैं।
झ.       विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कराना और अनैतिक तरीके से पैसे इकट्ठे करना। उनलोगों से पैसे लेना, जिन्होंने राज्य की जनता से ठगी की और फिर उन ठगों का अखबारों और चैनलों में महिमामंडित करना.....
मतलब स्पष्ट हैं अक्षय भाई, झारखंड के इन पत्रकारों की कारगुजारियां आप तक नहीं पहुंची थी क्या.....या आप यहां के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की तरह, यहां के पत्रकारों से डर गये। हालांकि हम जानते हैं, आपको सॉरी से नफरत हैं, जब सॉरी से नफरत हैं तो आप इनसे डरेंगे क्या? आप गब्बर बन गये। बहुत ही सुंदर रुप, गब्बर का लेकर आये हैं। शोले के अमजद खान वाले गब्बर का तो आपने वाट लगा दी और शैतान गब्बर को भगवान गब्बर बना दिया। ये चारित्रिक उत्थान का विषय है। आपने संवाद भी बोला हैं कि यहां से ठीक पचास-पचास कोस........ नहीं तो गब्बर आ जायेगालेकिन हमें नहीं लगता कि यहां आपका डर पत्रकारों में हैं। हां मजा तो तब आ जायेगा, जब यहां के 10 भ्रष्ट पत्रकारों की सूची में पहला नंबर किसका होगा....उसके नाम के लिए काश एक अधिसूचना आपकी ओर से जारी हो जाती..............। सचमुच गब्बर भाई आप कहां हो......। झारखंड में आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा............GABBAR IS BACK.