Sunday, May 10, 2015

काश, गब्बर झारखंड आता और यहां के 10 पत्रकारों को भी अगवा करता........



काश, गब्बर झारखंड आता और यहां के 10 पत्रकारों को भी अगवा करता और अपना एक मैसेज पत्रकारों के लिए भी छोड़ देता......। पूरे देश में अक्षय कुमार की एक नई फिल्म गब्बर इज़ बैककी धूम है। फिल्म हैं भी सटीक और दिल पर राज करनेवाली, इसलिए फिल्म को देखने के लिए विभिन्न सिनेमा हॉलों व मल्टीप्लेक्सों में भीड़ जूट रही हैं। फिल्म के डायलॉग भी जानदार है। एक डायलॉग – इस कॉलेज में पुलिस एलाऊ (ALLOW) नहीं हैं, काश हमें ये डायलॉग भी सुनने को मिलता कि इस संस्थान में या इस घर में पत्रकारों का आना निषेध हैं। हमें लगता हैं कि आज नहीं तो कल ये सुनने को अवश्य मिलेगा। बस थोड़ा इंतजार कीजिये।
आखिर मैं पत्रकारों को अगवा करने की बात गब्बर से क्यों किया उसका मूल कारण हैं. सिर्फ ऐसा नहीं है जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है कि डॉक्टर और उनका मेडिकल संस्थान, पुलिसकर्मी व नेता या नगर निगमकर्मी, जिला का कलक्टर अथवा रियल ईस्टेट (REAL ESTATE) का मालिक ही भ्रष्ट होता है। हमें तो इनसें ज्यादा भ्रष्ट झारखंड के पत्रकार नजर आते हैं। जो जितने बड़े पद पर बैठा हैं, वो उतना ही बड़ा भ्रष्ट हैं।
जरा नजर डालिये............।  यहां के पत्रकारों/ अखबारों/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मालिक व संपादकों की टोली क्या कर रही हैं।
क.        इनका पहला काम मुख्यमंत्रियों अथवा वरीय प्रशासनिक अधिकारियों को ब्लैकमेल करना अथवा चाटुकारिता कर राज्य के खनिज संसाधनों पर कब्जा जमाना हैं।
ख.       विभिन्न क्रियाकलापों द्वारा सरकार के मनोबल को तोड़ना और उनसे मुंहमांगी विज्ञापन प्राप्त करना है।
ग.         विभिन्न प्रकार के चिरकुट टाइप पंडे पुजारियों की नई पौध को सृजन करना और उनसे मुंहमांगी रकम वसूलना, साथ ही उन्हें अपने अखबारों में जगह देना/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा उन्हें अपने संस्थानों में पैसे लेकर एक स्लॉट बेचना और इनके द्वारा समस्त जनता को दिग्भ्रमित करना है।
घ.         साथ ही राज्यसभा के लिए खुद को प्रोजेक्ट करना-कराना, मुख्यमंत्री का प्रेस एडवाइजर बनना, राजनीतिक सलाहकार बनना, सूचना आयुक्त बनना, विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को यत्र – तत्र, मालदार जगहों/विभागों में स्थानांतरण करना-कराना प्रमुख है।
ङ.           यहीं नहीं सरकारी एवार्ड/गैर सरकारी एवार्ड/कभी-कभी खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए खुद ही एवार्ड लेने के लिए कार्यक्रम आयोजित करना-कराना भी शामिल है।
च.         अपने परिवार के सदस्यों/बेटे-बेटियों को सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में नियोजित करने के लिए अनैतिक तरीका अपनाना और सरकार में शामिल मंत्रियों का अपने अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से यशोगान गाना भी प्रमुख है।
छ.        यहां के 90% पत्रकार हैलमेट नहीं पहनते और ना ही गाड़ियों के वैध कागजात लेकर चलते हैं। ये तो उलटे ही यातायात नियमों को तोड़कर यातायात पुलिस को देख लेने की बात करते है।
ज.        विजुयल लेने के लिए तोड़-फोड़ करना-कराना और फिर खुद को महिमामंडित कराने का काम भी यहां के पत्रकारों का अति पवित्र कार्य बना हुआ हैं।
झ.       विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कराना और अनैतिक तरीके से पैसे इकट्ठे करना। उनलोगों से पैसे लेना, जिन्होंने राज्य की जनता से ठगी की और फिर उन ठगों का अखबारों और चैनलों में महिमामंडित करना.....
मतलब स्पष्ट हैं अक्षय भाई, झारखंड के इन पत्रकारों की कारगुजारियां आप तक नहीं पहुंची थी क्या.....या आप यहां के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की तरह, यहां के पत्रकारों से डर गये। हालांकि हम जानते हैं, आपको सॉरी से नफरत हैं, जब सॉरी से नफरत हैं तो आप इनसे डरेंगे क्या? आप गब्बर बन गये। बहुत ही सुंदर रुप, गब्बर का लेकर आये हैं। शोले के अमजद खान वाले गब्बर का तो आपने वाट लगा दी और शैतान गब्बर को भगवान गब्बर बना दिया। ये चारित्रिक उत्थान का विषय है। आपने संवाद भी बोला हैं कि यहां से ठीक पचास-पचास कोस........ नहीं तो गब्बर आ जायेगालेकिन हमें नहीं लगता कि यहां आपका डर पत्रकारों में हैं। हां मजा तो तब आ जायेगा, जब यहां के 10 भ्रष्ट पत्रकारों की सूची में पहला नंबर किसका होगा....उसके नाम के लिए काश एक अधिसूचना आपकी ओर से जारी हो जाती..............। सचमुच गब्बर भाई आप कहां हो......। झारखंड में आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा............GABBAR IS BACK.

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